Tuesday, February 6, 2018

राजपरिवार व्रिटिस अधिकारी तथा जनप्रतिनिधि भी नहीं दिला सके सम्मान कैप्टनगंज को तहसील नहीं जिला बनाना चाहिए डा. राधेश्याम द्विवेदी


सन् 1801 के पूर्व बर्तमान बस्ती मण्डल का यह भूभाग अवध प्रान्त के अन्र्तगत मुगलों के अप्रत्यक्ष नियंत्रण में आता था। पहले यह क्षेत्र वाराणसी मंडल के गोरखपुर जिले की सीमा का हिस्सा रहा है। 1801 में अंगेजों के अधीन बस्ती एक तहसील की इकाई के रूप में आया है। जहां अंग्रेज इस क्षेत्र से अधिक से अधिक राजस्व की वसूली कर रहे थे , वही स्थानीय शासक भी अपनी मनमानी करते रहे हैं। अवध (फैजाबाद) के सीधे नियंत्रण के बावजूद पटना, जौनपुर तथा बहराइच के नबाबों व सरदारों ने भी लूटपाट मचाया रखा था। परगना अमोढ़ा तो अंग्रेजों के अधीन सबसे बाद में आया है। अकबर के समय तक यह अवध का भाग ही बना रहा। चूंकि अंग्रेज इसे जब तक पूर्णरूपेण अपने अधीन नहीं कर लिए, उनकी गतिविधियंा इस क्षेत्र में कुछ ज्यादा ही रही है। 1801 ई. में रोटलेग गोेरखपुर का जिला कलेक्टर बना था। राजस्व की वसूली के लिए कैप्टन मैलकाम मैकलाज के अधीन एक सेना राजस्व वसूली में मदद करने लगी थी। बाद में बुटवल एवं गोरखाओं से अंग्रजों की कई झड़पे भी हुई थीं । लूटपाट का बोलवाला हो गया था। 1815 व 1816 ई. में जिले के उत्तरी क्षेत्र बांसी  तथा मगहर में सियारमार एक खानाबदोस जाति के लोगों ने लूटपाट करना शुरू कर दिया था। इन्हें स्थानीय जमीदारों का समर्थन भी मिला हुआ था वे पुलिस वालों को मारते थे तथा सरकारी खजाना लूट लेते थे। बांसी में सात पुलिसवालों को मारकर 6 को घायल कर उन्हाने कानून व्यवस्था को चुनौती दे रखी थी। मई 1816 ई. में इस दल ने कैप्टनगंज से उस समय का 6,000 रूपया लूट लिया था। एसा लुका छिपी का खेल 1857 ई तक पूरे जिले में चलता रहा। प्रतीत होता है कि 1801 ई. से ही कैेप्टनगंज बस्ती जिले का महत्व पूर्ण स्थान बना लिया था और यह अंग्रेजों का एक सुरक्षित तथा सुविधापूर्ण स्थल का रूप ग्रहण कर लिया था। परिणामस्वरूप आगे चलकर 1885 ई. में यह तहसील तथा मंुसफी कार्यालय का गौरव हासिल कर सका था।

स्वतंत्रता आन्दोलन के 1857 के विद्रोह के समय पूरे देश में अंगे्रजों पर संकट के बादल मड़राने लगे थे। सभी अंग्रेज जान बचाकर भाग रहे थे । उन्हें व उनके परिवार पर संकट बरकरार था। बस्ती कल्कट्री पर पहले अफीम तथा ट्रेजरी की कोठी हुआ करती थी। यहां 17वीं नेटिव इनफेन्ट्री की एक टुकड़ी सुरक्षा के लिए लगाई गई थी। इस यूनिट का मुख्यालय आजमगढ बनाया गया था। जहां 5 जून 1857 को विद्रोह भड़क उठा था। 6 अंगे्रज भगोड़ों का एक दल नांव द्वारा अमोढ़ा होते हुए कप्तानगंज स्थित अंग्रेज कैप्टन के शरण में आया था। तहसीलदार ने उन्हें चेतावनी दिया था कि शीघ्र बस्ती छोड़ दें । वे मनोरमा नदी को बहादुरपुर विकासखण्ड के महुआडाबर नामक गांव के पास पार कर रहे थे। वहां के गांव वालों ने घेरकर 4 अधिकारियों एवं दो सिपाहियों की हत्या कर डाली थी । लेफ्टिनेंट थामस , लिची , कैटिली तथा सार्जेन्ट एडवरस तथा दो सैनिक मार डाले गये थे। तोपचालक बुशर को कलवारी के बाबू बल्ली सिंह ने अपने पास छिपाकर बचाया था तथा उन्हें कैद कर रखा था। वर्डपुर के अंगे्रज जमीदार पेप्पी को इस क्षेत्र का डिप्टी कलेक्टर 15 जून 1857 को नियुक्त किया गया था। उसने बुशर को छुड़वा लिया। उसने 20 जून 1857 को पूरे जिले में मार्शल ला लागू कर रखा था तथा महुआ डाबर नामक गांव को आग लगवा करके जलवा दिया था। जलियावाला बाग की तरह एक बहुत बड़ा जनसंहार यहां हुआ था। इन्हीं दौरान दिल्ली व अवध के नबाब के प्रतिनिधि राजा सैयद हुसेन अली उर्फ मोहम्मद हसन (जो मूलतः दीवानखाना काजी मोहल्ला सहसवान बदायूं के मूल निवासी थे ) ने कर्नल  लेनाक्स ,उनकी पत्नी तथा बेटी को अपनी संरक्षा में ले रखा था। पेप्पी ने इन्हें भी मुक्त कराया था। 12 अगस्त 1857 को मोहम्मद हसन के नेतृत्व में बागियों ने कैप्टनगंज को अपने अधीन कर रखा था।

जिले में चारो तरफ अफरा तफरी मचा हुआ था। दिसम्बर 1857 तक कोई विशेष कदम नहीं उठाये जा सके थे। फिर अंग्रेजों ने शान्ति की बहाली के लिए तीन दल बनाये थे । नेपाल के राजा जंग बहादुर के नेतृत्व में 900 गोरखाओं का एक दल कर्नल मैंकजार्ज के साथ लगाया गया था जो 5 जनवरी को मूव किया था। दूसरे दल का नेतृत्व राफक्राफ्ट ने बिहार से तथा तीसरे का नेतृत्व ब्रिगेडियर जनरल फैंक ने जौनपुर से किया था। अमोढ़ा के देशी सैनिकों से 17 अप्रैल तथा 25 अप्रैल 1858 को अंग्रेजों को बुरी तरह मात खाना पड़ा था। छः अंग्रेज अधिकारियों को छावनी में अपने जान गवाने पड़े थे। फैजाबाद से सेना बुलाकर विद्रोह को दबाना पड़ा था। छावनी बाजार के पीपल के पेड़ पर 150 विद्रेहियों को फांसी पर लटकाया गया था। अनेक अंग्रेजों की कब्रें व स्मारक भी सरकार ने बनवाये हैं। राफक्राफ्ट कैप्टनगंज आ गया तथा जून 1858 के आरम्भ तक यहां कैम्प किया था। अंग्रेजी सेना मो. हसन के पीछे पड़ी थी। वह भागते छिपते अंग्रेजी सेना के शरण में 4 मई 1859 को चला आया था । उसे क्षमा करते हुए सीतापुर की एक छोटी सी रियासत गुजारे में दी गई थी। गोपाल सिंह नामक सूर्यवंशी एक जमीदार को कैप्टनगंज का तहसील देकर कृतकृत्य किया गया था। उसे अनुदान में जमीन भी दिया गया था।  6 मई 1865 को अफीम एवं टेजरी कोठी में जिला बस्ती का मुख्यालय खोला गया था। इसी के साथ पांच तहसीलों में जिले का विभाजन कर दिया गया था। बस्ती नामक नवनिर्मित जिले की लम्बाई उत्तर से दक्षिण 110 किमी. तथा चैड़ाई पूर्व से पश्चिम 84 किमी. थी। इसमें 7614 राजस्व गांव, 3717 गांव पंचायतें तथा 376 न्याय पंचायतें तथा कुल क्षेत्रफल 7228 वर्ग किमी.था।
अंगे्रजों ने इस क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए छावनी में कई दशकों तक सेना की छावनी व बैरकें बना रखी थी। कैप्टनगंज जो रतास नामक एक छोटा सा गांव था , कैप्टन स्तर के एक सैन्य अधिकारी द्वारा स्थापित सैनिक कार्यालय तथा बाजार 1861-62 तक स्थापित हो चुका था ।1865 में यहां तहसील तथा मुंसफी न्यायालय स्थापित हो चुके थे। रतास अंग्रेजो द्वारा राजा बांसी को दिया गया भेंट था क्योंकि उन्होने अंग्रेजों की काफी मदद की थी। प्रतीत होता है कि बांसी के राजा रतन सेन के नाम को स्थायी प्रदान करने के कारण रतास का नाम पड़ा होगा। यही रतास आगे चलकर कैप्टनगंज ब्रिटिस टाउन मुंसफी व तहसील की शक्ल लिया था। आजादी के बाद इसका नाम कप्तानगंज कर दिया गया।
तहसील मुख्यालय घोषितः-खलीलाबाद , मुन्डेरवा , बस्ती , तिलकपुर , सिसई तथा कल्यानपुर(तीनों हर्रैया तहसील) में अंग्रेज के जमाने से सेना कैंप लगाती आ रही है। 1857 की क्रांति को जब अंग्रजों से भलीभांति संभाला तब आगे की सुव्यवस्था के लिए बस्ती तहसील मुख्यालय को 1865 में जिला मुख्यालय घोषित कर दिया गया। बस्ती , कैप्टनगंज ,खलीलाबाद, डुमरियागंज तथा बांसी नाम से 5 तहसीलें भी घोषित की गई। विशाल भूभाग तथा अमोढ़ा की सक्रियता के कारण यह क्षेत्र अंग्रेजों से संभल नहीं पा रहा था। फलतः 1876 में कैप्टनगंज को तहसील व मंुसफी समाप्त करके हर्रैया में तहसील व मुंसफी बनाई गई । इस प्रकार लगभग 15 सालों तक कैप्टनगंज ब्रिटिश प्रशासन का एक महत्वपूर्ण  प्रशासनिक इकाई के रूप में बना रहा। 109 ग्राम सभाओं/पंचायतों तथा 11 न्याय पंचायतों को समलित करते हुए 2 अक्टूबर 1956 को  पुराना कैप्टनगंज अब नया कन्तानगंज विकास खण्ड का मुख्यालय घोषित किया गया। 1971 ई. में इस विकास खण्ड की जनसंख्या 84,501 रही। एक जुलाई 1958 को हर्रैया 118 ग्राम सभाओं/पंचायतों तथा 11 न्याय पंचायतों को समलित करते हुए हर्रैया विकास खण्ड का मुख्यालय घोषित किया गया। इसी प्रकार 129 ग्राम सभाओं/पंचायतों तथा 13 न्याय पंचायतों को समलित करते हुए 2 अक्टूबर 1960 को गौर विकास खण्ड का मुख्यालय घोषित किया गया । इसी प्रकार 111 ग्राम सभाओं/पंचायतों तथा 11 न्याय पंचायतों को समलित करते हुए 2 अक्टूबर 1962 को परशुरामपुर विकास खण्ड का मुख्यालय घोषित किया गया। विक्रमजोत विकास खण्ड मे 121 ग्राम सभाओं/पंचायतों तथा 12 न्याय पंचायतों को समलित किया गया है। अभी हाल ही में हर्रैया तथा कप्तानगंज का दक्षिणी भाग को काटकर दुबौलिया बाजार नामक नया विकास खण्ड घोषित किया गया है।
बांसी तहसील का नेपाल से लगा भाग अलग करके नौगढ़ तहसील को 1955 में बनाया गया था। इस समय इसमें वर्डपुर, लौटन, जोगिया , उसका वाजार तथा नौगढ़ विकास खण्ड को समलित किया गया। 29.12.1989 को बस्ती जिले के उत्तरी भाग को सिद्धार्थ नगर नामक पृथक जिला घोषित किया गया । इसका मुख्यालय नौगढ़ बनाया गया।  आगे चलकर 1997 में इस तहसील के पश्चिमी भाग शोहरतगढ़ तथा बढ़नी विकास खण्डों को मिलाकर शोहरतगढ़ नामक नई तहसील गठित हुई। डुमरियागंज का उत्तरी भाग इटवा तथा खुनियांव विकास खण्डों को मिला व अलग कर 1990 में पृथक इटवा तहसील बना दी गई थी। डुमरियागंज में डुमरियागंज व भनवापुर विकास खण्डों को मिलाकर डुमरियागंज तहसील घोषित की गयीं इसी प्रकार बांसी तहसील में बांसी, मिठवल तथा खेसरहा विकासखण्ड बचे। इस नये जिले में 999 गांव पंचायतें तथा 14 विकास खण्ड तथा 16 थान्हें बना दिये गये। वर्तमान समय में यह जिला 2752 वर्ग किमी.(1006.3 वर्ग मील) क्षेत्र में फैलकर 25,53,526 जनसंख्या रखता है।
1971 की जनगणना में बस्ती जिला ( वर्तमान बस्ती मण्डल ) की जनसंख्या 29,84,090 तथा क्षेत्रफल जिला गजेटियर के अनुसार 7340 वर्ग किमी तथा सर्वे आफ इण्डिया के रिकार्ड के अनुसार 7309 वर्ग किमी. बताया गया है। बस्ती को मण्डल तथा सिद्धार्थनगर व सन्तकबीरनगर दो नये जिले बनने के बाद डुमरियागंज तहसील का दक्षिणी रामनगर विकासखण्ड का भाग तथा बस्ती तहसील का उत्तरी भाग सल्टौवा को मिलाकर नई भानपुर तहसील बनाई गई। इसे बस्ती जिले से सम्बद्ध किया गया। इसी प्रकार बांसी तहसील का दक्षिण रूधौली विकास खण्ड तथा बस्ती तहसील का उत्तरी साऊंघाट विकास खण्ड को  मिलाकर रूधौली नामक नई तहसील बनाई गई। इसे भी बस्ती जिले से सम्बद्ध किया गया। हर्रैया तहसील का अभी तक कोई विभाजन नहीं हुआ है। दिनांक 04.07.1997 को बस्ती को कमिशनरी के रूप में घोषित किया गया। अवशिष्ट एवं वर्तमान बस्ती जिले में 1047 गांव पंचायतें 139 न्याय पंचायतें ,14 विकासखण्ड तथा 16 थान्हें अभी भी हैं। वर्तमान समय में यह 4309 वर्ग किमी. (1664 वर्ग मील )क्षेत्र में फैला तथा 26,41,056 जनसंख्या रखता है।
इसके बाद खलीलाबाद को 05 सितम्बर 1997 को सन्त कबीर नगर नामक पृथक जिला घोषित किया गया। इसके लिए 131 गांव बस्ती तहसील से तथा 161 गांव बांसी तहसील से अलग कर सन्त कबीरनगर जिले को पूरा किया गया। इस तहसील में अब सेमरियांवा, बघौली तथा खलीलाबाद को मिलाकर के खलीलाबाद तहसील घोषित किया गया। साथ ही जिले के उत्तरी भाग मेंहदावल, सांथा तथा बेलहरकला विकासखण्डों को मिलाकर मेंहदावल तहसील घोषित की गई। दक्षिणी भाग पौली , हैंसर बाजार तथा नाथनगर विकासखण्डों को मिलाकर नई धनघटा नाम से पृथक तहसीलें घोषित की गईं। सब मिलाकर इस नये जिले में 646 गांव पंचायतें , 9 विकास खण्ड तथा 7 थान्हें बने हुए हैं। वर्तमान समय में यह 1659 वर्ग किमी. (640.6 वर्ग मील ) क्षेत्र में फैला तथा 17,14,300 जनसंख्या रखता है।
विश्वस्थ सूत्रों से पता चला है कि रतास बाजार जो बांसी राजघराने का भी हिस्सा कहा जाता रहा। आज जब उस घराने का प्रदेश सरकार में महत्वपूर्ण योगदान है , वह भी अपने पूर्वजों के गौरव व थाती को संभालने व संजोने में विफल रहे। अंग्रेज अधिकारी भी इस कैप्टनगंज की गरिमा वापस नहीं दिला पाये। परन्तु जो क्षेत्र कैप्टन स्तर के एक सैन्य अधिकारी द्वारा स्थापित सैनिक कार्यालय तथा बाजार 1861-62 तक स्थापित हो चुका था, जिस क्षेत्र में 1865 में तहसील तथा मुंसफी न्यायालय स्थापित हो चुके थे। 1857 की क्रांति को जब अंग्रजों से भलीभांति संभाला तब आगे की सुव्यवस्था के लिए बस्ती तहसील मुख्यालय को 1865 में जिला मुख्यालय घोषित कर दिया गया। बस्ती , कैप्टनगंज ,खलीलाबाद, डुमरियागंज तथा बांसी नाम से 5 तहसीलें भी घोषित की गई। विशाल भूभाग तथा अमोढ़ा की सक्रियता के कारण यह क्षेत्र अंग्रेजों से संभल नहीं पा रहा था। फलतः 1876 में कैप्टनगंज को तहसील व मंुसफी समाप्त करके हर्रैया में तहसील व मुंसफी बनाई गई । इस प्रकार लगभग 15 सालों तक कैप्टनगंज ब्रिटिश प्रशासन का एक महत्वपूर्ण  प्रशासनिक इकाई के रूप में बना रहा। इस क्षेत्र के सांसद व विधायक भी अनेक महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए इसके इतिहास से अपरिचित रहे और इसे इसका ऐतिहासिक स्वरुप नहीं दिलवा पाये। यह भी पता चला है कि विक्रमजोत व परशुरामपुर के 571 राजस्व ग्राम 41611 हेक्टेयर जमीन तथा 3,47,408 जनसंख्या को लेकर पृथक तहसील बनाने के प्रयास में हैं। इस हालत में तो कैप्टनगंज को तो बहुत पहले जिला घोषित कर दिया जाना चाहिए जो आज एक टाउन एरिया तक नहीं बन सका है। यह इस क्षेत्र का दुर्भाग्य तथा यहां की जनता जनार्दन की उदासीनता नही ंतो और क्या कहा जा सकता है ?

विकास कार्यों की दृष्टि से वर्तमान हर्रैया तहसील मण्डल और जिले के अन्य तहसील से काफी पिछड़ा हुआ है। विशाल भूभाग को आच्छादित करने के कारण यहां विकास की गति बहुत धीमी है। यहां के अधिकारियों पर काम का बोझ एवं दबाव अपेक्षाकृत ज्यादा ही रहता है। इस तहसील में पहले पांच विकास खण्ड थे परन्तु अब छः हैं । बस्ती मण्डल में दो या तीन विकास खण्डों को मिलाकर कई नई तहसीलों का गठन किया गया है। इस दृष्टि से हर्रैया का यह क्षेत्र निरन्तर पिछड़ता जा रहा है। हर्रैया तहसील के पश्चिमी तीन विकास खण्ड हर्रैया, विक्रमजोत तथा परशुरामपुर को हर्रैया तहसील में तथा पूर्वी तीन विकासखण्ड गौर ,कप्तानगंज एवं दुबौलिया को कप्तानगंज नामक नई तहसील में समलित कर इसका मुख्यालय कप्तानगंज किया जाना चाहिए। चूंकि ब्रिटिशकाल में यह 10 से अधिक वर्षों तक तहसील मुख्यालय का गौरव प्राप्त कर चुका है इसलिए इसे जिला घोषित करने के लिए सारी परिस्थितियां भी अनुकूल हैं। इससे यह क्षेत्र मण्डल के अन्य तहसीलों की भांति विकास के पथ पर चल सकेगा। यह स्थान एक तो राष्ट्रीय राजमार्ग 28 पर स्थित है तथा यह रामजानकी मार्ग के दुबौलिया तथा लखनऊ गोरखपुर रेलवे लाइन के टिनिच व गौर नामक स्टेशनों से जुड़ा भी है। विकास की दृष्टि से जब से यहां से तहसील हर्रैया गई यह क्षेत्र पिछड़ता ही रह गया था। यह कस्बे से ज्यादा कुछ नहीं हो सका। यहां विकास की असीम सम्भावनाएं है। इस अंचल को मण्डल तथा प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से जोड़ना बहुत जरूरी हो गया है। इसे राजमार्ग से भी जोड़ना है तथा आवागमन के साधन भी चलाया जाना है। बस्ती दुबौला परशुरामपुर ,महराजगंज, नगर बाजार ,गनेशपुर, गोटवा, चिलमा बाजार , टिनिच, कप्तानगंज व दुबौलिया आदि जैसे कई अन्य मार्गों को और विकसित किया जाना है। मनवर , मछोई , रवई तथा मजोरवा आदि अन्य छोटी-बड़ी नदियों पर जगह जगह पुल बनाये जाने है। विद्युत आपूर्ति की दशा में सुधार लाना है। शिक्षा माफियों से इस क्षेत्र को निजात दिलानी है तथा गुणवत्ता पर अधिक बल देना है। यहां की कुछ सम्पन्न प्रतिभायें हीे महानगरों में जाकर अपनी प्रतिभा दिखा पाती है ,वरना यह भूमि कम उपजाऊ नहीं है। हमारी मांग है कि कप्तानगंज को तहसील घोषित किये जाने की सभी औपचारिकतायें शुरू किया जाय जिससे इस क्षेत्र का भी संतुलित विकास हो सके और यह अपना खोया हुआ पुराना गौरव प्राप्त कर सके। यहां के बुद्धजीवी जन तहसील बचाओं समिति का गठन करे तथा अपने अपने जन प्रतिनिधि पर दबाव डालें कि वे इस दिशा में कोई ठोस कदम उठावें।       

No comments:

Post a Comment