Sunday, February 18, 2018

प्रमोशन मानक में बदलाव अव्यवहारिक डा. राधेश्याम द्विवेदी सेवानिवृत्त अधिकारी


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सातवें वेतन आयोग के पहले सामान्य चरित्र पर भी प्रोन्नति मिल जाया करती थी। 2016 में इसमें बदलाव किया गया है। अब वेरी गुड प्रवृष्टि होने पर ही प्रोन्नति का रास्ता खुला है। देखा यह भी गया है कि अधिकारी अपने खास कर्मचारियों को यह लाभ दे देते हैं, परन्तु जिनसे किसी भी प्रकार की नाराजगी होती है उन्हें इस हथियार से संकट में लाया जा सकता है। यद्यपि सरकार ने अनेक प्रावधान कर्मचारियों के हित में बना रखे हैं परन्तु यह उतना व्यवहारिक नहीं है। इस हथियार का प्रयोग आम कमचारी कर भी नहीं सकता है। सरकार ने सातवें वेतन आयोग के लागू होने के बाद प्रमोशन या वेतन वृद्धि के बने मानक में बदलाव के बाद किया है। सातवें वेतन आयोग के बाद केंद्र सरकार ने कर्मचारियों के लिए एसीपी ( एर्श्योड करियर प्रोगेशन) में बदलाव किया था। इसमें कहा गया था कि जिनका काम पारामीटर पर नहीं होगा उनका अप्रेजल या इंक्रीमेंट नहीं होगा। साथ ही नियमित प्रमोशन पर भी इसका असर पड़ेगा। पहले गुड रहने पर इनक्रीमेंट और प्रमोशन मिलता था लेकिन अब इसके लिए पारामीटर को वेरी गुड कर दिया गया है। सातवें वेतन आयोग के लागू होने के बाद कर्मचारियों के प्रमोशन को दो साइकिल हो चुका है। इनमें सैकड़ों कर्मचारियों को गुड से ही संतोष करना पड़ा है। इनमें कुछ अदालत की शरण में भी जा चुके हैं। अनेक विभागों में सौकड़ों मामले लम्बित पड़े हैं। वित एवं कर्मिक मंत्रालय भी उसमें दिलचस्पी लेते दिख नहीं रहा है। परिणाम स्वरुप अनेक कर्मचारियों को उनके वाजिब हक से महरुम होना पड़ रहा है। अनेक सेवामुक्त कर्मचारियों को यातो पुराने वेतनमान से पेंसन तथा सेवा निव्त्त लाभ लेने को मजबूर होना पड़ रहा है अथवा वे सालो दर साल इन लाभों के लिए भटक रहें है।

कर्मचारियों को गोपनीय रिपोर्ट बताना जरूरी:-सरकारी कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण तथा दूरगामी फैसले में उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार, 12 मई को कहा कि अधिकारियों द्वारा, अपने कर्मचारियों को वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) के बारे में अवश्य सूचित करना चाहिए ताकि वह उसके खिलाफ सक्षम अधिकारी के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत कर सके। न्यायमूर्ति एचके सेमा और न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू की पीठ ने देव दत्त की याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि कोई भी नियम अथवा सरकारी निर्देश अधिनियम 14 या संविधान के किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं कर सकता क्योंकि संविधान सर्वोपरि है। देव दत्त की याचिका स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति काटजू ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय के 26 नवम्बर 2001 के उस फैसले को दरकिनार कर दिया जिसमें उसने याचिकाकर्ता की याचिका को अस्वीकार करते हुए उसे सीमा सड़क इंजीनियरिंग सेवा में अधीक्षण अभियंता के पद पर पदोन्नति देना अस्वीकार कर दिया था। पीठ ने कहा कि यह फैसला देते हुए कोर्ट प्राकृतिक न्याय के नए सिद्धांत का विकास कर रहा है। उन्होंने कहा-‘‘पारदर्शिता के लिए जरूरी है कि सैन्यकर्मियों को छोड़कर सरकारी कर्मचारियों के एसीआर को तर्कसंगत अवधि के भीतर उन्हें अवश्य बता देना चाहिए और ऐसा फैसला देकर हमने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का विकास कर रहे हैं।’’ फैसले में कहा गया है कि ऐसा नहीं है कि किसी सरकारी कर्मचारी की वार्षिक रिपोर्ट में प्रतिकूल प्रविष्टि होने पर ही उसे सूचित किया जाए बल्कि उसे हर उस प्रविष्टि की जानकारी दी जानी चाहिए चाहे वह खराब, सामान्य अथवा बहुत अच्छी हो ताकि सक्षम अधिकारी के समक्ष वह अपना पक्ष रख सके। ऐसा नहीं होने पर यह निष्पक्षता की नीति का उल्लंघन है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रविष्टि करने वाले से ऊंचे अधिकारी को ही कर्मचारी के एसीआर पर आगे की सुनवाई करनी चाहिए। पदोन्नति पाने के लिए उनके वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में बहुत अच्छी प्रविष्टि होनी चाहिए थी जबकि उनकी रिपोर्ट में एक अच्छी रिपोर्ट दर्ज होने के कारण उन्हें पदोन्नत नहीं किया जाने लगा है।

प्रमोशन और इंक्रीमेंट पाने के लिए कड़ी मेहनत :- केंद्रीय कर्मचारियों को अब प्रमोशन और इंक्रीमेंट पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि सरकार ने अब तरक्की पाने के तरीकों में बदलाव कर दिए हैं। सरकार की तरफ से जारी नए नोटिफिकेशन में कहा गया है कि उन्हीं कर्मचारियों का सालाना प्रमोशन और इंक्रीमेंट होगा जिनकी रिपोर्ट कार्ड मेंवेरी गुडलिखा होगा। फिलहालगुडहोने पर भी इंक्रीमेंट हो जाता है जो अब से काफी नहीं होगा। यह बात 26 जुलाई 2016 को जारी नोटिफिकेशन में कही गई है। इस नोटिफिकेशन को वित्त मंत्रालय की तरफ से जारी किया गया था। यह नोटिफिकेशन अगस्त महीने से प्रभाव में आने लगा है।
काम में सुधार होगा :- प्रमोशन के नए पैमाने के बारे में सरकार का मानना है कि इससे केंद्रीय कर्मचारियों के काम करने की क्षमता में सुधार आएगा। यह सुझाव पैनल ने ही दिया था जिसे बाद में सरकार द्वारा मान लिया गया। इसके साथ ही पैनल से यह भी सुझाव दिया था कि मोडिफाइड अस्योर्ड करियर प्रोग्रेसन (एमएसीपी) स्कीम का लाभ उन्हीं कर्मचारियों को दिया जाना चाहिए जिन्होंने जरूरी ट्रेंनिंग पूरी की हो। इसे भी मान लिया गया है।
गुप्त रिपोर्ट पूरी तरह तथ्यों और प्रदर्शन के ईमानदार आकलन पर आधारित 
सातवें वेतन आयोग के लागू होने के बाद कर्मचारी ग्रेडिंग के नाम पर मामले को अदालत तक ले जाएं, सरकार इसके लिए उनके अप्रेजल सिस्टम को पूरी तरह पारदर्शी रखने की तैयारी में है। सरकार ने सभी विभागों और मंत्रालयों से कहा है कि कर्मचारियों के कामकाज पर आधारित गुप्त रिपोर्ट पूरी तरह तथ्यों और प्रदर्शन के ईमानदार आकलन पर आधारित हो। इसके लिए डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल एंड ट्रेनिंग (डीओपीटी) की ओर से सभी अधिकारियों को अडवाइजरी भेजा गया है। इसमें कहा गया कि अक्सर ऐसा देखा गया है कि लापरवाही से काम करने वाले अधिकारी-कर्मचारी के विभागीय जांच या कार्रवाई में आसानी से निकल जाते हैं। एडवाइजरी में इस प्रवृत्ति पर गहरा एतराज जताते हुए कहा गया कि अगर किसी कर्मचारी के खिलाफ लापरवाही की बात साबित होती है तो एक्शान के बारे में साफ-साफ बताना होगा। अगर संबंधित जांच अधिकारी ऐसा नहीं बता पाते हैं तो फिर उनकी भूमिका भी जांच के दायरे में सकती है। साथ ही किसी कर्मचारी को गुड या वेरी गुड में अंतर करने में सभी मानक का पूरी तरह सख्ती से पालन करने को कहा गया है। अगर पूर्वाग्रह या पक्षपात की बात साबित होती है तो फिर संबंधित अधिकारी भी कार्रवाई के दायरे में आएंगे।
प्रमोशन का रास्ता भी खोला गया
इसी आदेश में कर्मचारियों को राहत पहुंचाते हुए सभी तरह की चेतावनी या किसी खास लापरवाही के बाद निंदा मिलने का असर भविष्य में कर्मचारियों के प्रमोशन में नहीं पड़ने का रास्ता भी खोला गया है। आदेश के अनुसार सभी तरह की चेतावानी को सर्विस रिकार्ड में रखने की जरूरत नहीं है जिससे किसी का प्रमोशन किसी एक गलती के कारण रुके। इसके लिए भी साफ किया गया है कि सर्विस रिकार्ड में उसी चेतावनी को दर्ज किया जाएगा जिस मामले में उस कर्मचारी को दूसरा विभागीय दंड भी मिला है। वरना छोटी गलतियों के बदले इसे दर्ज नहीं किया जाएगा जिससे उसके प्रमोशन या वेतन वृद्धि में बाधक नहीं बने। अभी सभी तरह की विभागीय कार्रवाई सर्विस रिकॉर्ड में दर्ज होती है जो उनके प्रोमोशन में बाधक बनती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि संवौधानिक उपबन्धों के बावजूद कर्मचारी को अनेक प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। काश ये प्रावधान वापस ले लिए जांय तो कर्मचारियों को राहत मिल सकती है। तभी पहले जैसे प्रोन्नति की व्यवस्था लागू हो सकेगी।



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