Wednesday, June 5, 2024

अयोध्या में भाजपा के हारने के कारण आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी


       जिस सरकार ने पूरे अयोध्या को चमका दिया। नया एयरपोर्ट दिया, रेलवे स्टेशन दिया।500 सालों के बाद राम मंदिर बनवाकर दिया। पूरी की पूरी एक मंदिर इकोनॉमी बनाकर दी। उस पार्टी को अयोध्या की सीट पर हार का सामना करना पड़ा।बीजेपी प्रत्याशी लल्लू सिंह इससे पहले 2014 और 2019 में सांसद चुने जा चुके हैं। इन 10 वर्षों में वे क्षेत्र में अपेक्षाकृत रूप से ज्यादा सक्रिय नहीं रहे। बीजेपी संगठन ने भी श्रीराम मंदिर की आंधी में कार्यकर्ताओं या क्षेत्रीय नेताओं से कोई सलाह मशविरा नहीं किया। नतीजा यह हुआ कि सच्चिदानंद पांडेय जैसे नेता बीजेपी से दूर चले गए। चुनाव के ऐलान से पहले ही पांडेय बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए थे। बसपा ने उन्हें फैजाबाद से टिकट भी दे दिया। अब नतीजों में उन्हें 40 हजार से ज्यादा वोट मिले। यानी लल्लू सिंह जो 54 हजार वोटों से हारे हैं, उसमें सच्चिदानंद ने भी उन्हें नुकसान पहुंचाया। 
        इतिहास गवाह रहा है कि अयोध्या ने हमेशा सच्चे राजा के साथ विश्वास घात किया है। आज अयोध्या के हिंदुओ को देखकर रामलला भी दुखी होंगे। कुछ ऐसे ही लाखों पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हैं। इसके उलट एक दूसरा धड़ा वहां पिछले दिनों हुई अतिक्रमणरोधी कार्रवाई को लेकर बीजेपी को घेर रहा है। 
       कुल मिलाकर अयोध्या में बीजेपी हार गई। देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में इस बात की चर्चा है। हर कोई वहां के मतदाताओं को कोस रहा है। 22 जनवरी को अवध में रामलला के मंदिर निर्माण के उद्घाटन के बाद यह दूसरा मौका है, जब वर्चुअल दुनिया में अयोध्या छाई हुई है। 
       दरअसल, अयोध्या यूपी के फैजाबाद संसदीय क्षेत्र में आता है। यहां बीजेपी ने यहां लल्लू सिंह को प्रत्याशी बनाया था। वे दो बार इससे पहले सांसद रहे चुके हैं। उनके सामने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी अवधेश प्रसाद थे। अवधेश प्रसाद ने लल्लू सिंह को 54 हजार 567 वोटों से हराया है। 
         इस बार 400 पार के नारे के साथ शुरू हुए भाजपा और एनडीए के प्रचार के बाद अत्यंत विपरीत आए परिणाम ने सबको बहुत चौंकाया है। अनेक स्थानों पर अच्छी जीत पाकर भी भाजपा केवल उत्तर प्रदेश में इतना पिछड़ गई है कि उसको 272 का आंकड़ा भी नहीं मिल पाया है। यह परिणाम निश्चित रूप से विश्लेषण और मंथन तलाश रहा है। कहा जाता है कि दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर गुजरता है, लेकिन दिल्ली के रास्ते में पी एम श्री नरेंद्र मोदी के लिए सबसे बड़ा अवरोध लखनऊ ही बन गया । इस बार के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी को उत्तर प्रदेश में अनापेक्षित परिणाम से संतोष करना पड़ा है। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने 2024 के आम चुनाव में अयोध्या में अपनी पकड़ कायम ना रख सकी। जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी टाट - पट्टी में रहते थे तो बीजेपी अयोध्या में राम की गरिमामय देवत्थान बनाने के संकल्प को लेकर दो सदस्य संख्या को बढ़ाते- बढ़ाते कई बार प्रदेश और केंद्र में अपना पूर्ण बहुमत बना कुशल पूर्वक सरकार चलाई है। वर्तमान में माननीय श्री नरेंद्र मोदी जैसे कुशल प्रधान मंत्री और माननीय श्री योगी आदित्यनाथ जी जैसे दक्ष मुख्य मंत्री को जनता की सेवा का अवसर पाने में अयोध्या की पुनर्स्थापना में महत्व पूर्ण भूमिका रही है। देश प्रदेश तथा अंतराष्ट्रीय जगत में इस प्रकरण को बहुत ही अहमियत मिली है,परन्तु 2024 के आम चुनाव में भाजपा ने अपनी स्थिति बरकरार बनाए रखने में विफल रही । उत्तर प्रदेश की सबसे हॉट सीट बनी फैजाबाद-अयोध्या लोकसभा सीट तथा उससे लगे हुए अंबेडकर नगर,बस्ती ,खलीलाबाद सुलतानपुर अमेठी रायबरेली आदि पर भी भारतीय जनता पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है। यूपी के सियासी मैदान में अखिलेश यादव और राहुल गांधी एक साथ आए । एक बार पहले भी ये साथ साथ आए थे तब ये कामयाब नही हो सके थे, लेकिन इस बार की अपने मकसद में कामयाब होते देखे जा रहे हैं। भाजपा को पिछले एक दशक में सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। इस सीट पर सपा के अवधेश प्रसाद विजय प्राप्त कर चुके हैं। इसके कारणों और परिस्थितियों पर एक बार विहंगम दृष्टि डालना अनुचित ना होगा।

               चुनाव हारने के प्रमुख कारण:- 

1.माननीय प्रधान मंत्री और मुख्यमंत्री की अतिसक्रियता:- 

जब देश और प्रदेश के मुखिया जहां ज्यादा सक्रिय रहेंगे वहां स्थानीय सांसद और विधायक की पकड़ ढीली हो जायेगी।वह लोगों में वह अपनी इमेज नही बना पाएगा। वह आम जनता से दूर होता जायेगा। इस कारण स्थानीय सांसद और विधायक अपना कर्तव्य बखूबी से निभाने में विफल रहे।

2. पुराने जन प्रतिनिधियों का सहयोग ना ले पाना :- 

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि अयोध्या आंदोलन के प्रणेता माननीय आडवाणी जी,विनय कटियार जी, उमा भारती जी ,रितंभरा जी,मुरली मनोहर जोशी जी, कल्याण सिंह जी के उत्तराधिकारी आदि का सहयोग नहीं लिया गया। सब कोई प्रधान मंत्री और मुख्यमंत्री की सक्रियता के कारण पुराने अनुभवी लोगों को भूल वर्तमान प्रत्याशी ने अपने कर्तव्यों का सम्यक निर्वहन ना कर सके।

 3. विकास योजनाएं जनता को पसन्द नहीं :- 

अयोध्या में राम लला मंदिर के निर्माण के साथ करोड़ों की विकास योजनाओं को पूरा कराया गया। पिछले दिनों पीएम मोदी ने 15,700 करोड़ की योजनाओं का शिलान्यास-लोकार्पण किया था। अयोध्या में भव्य रेलवे स्टेशन का पुननिर्माण किया गया है। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्‌डा का विकास किया गया ।अयोध्या रामलला मंदिर के साथ-साथ सड़कों से लेकर गलियों तक को दुरुस्त किया गया।अयोध्या में विकास करना कोई काम नहीं आया। अयोध्या में 2017 के बाद से हर साल दिवाली पर दीपोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस प्रकार के आयोजनों का भी प्रभाव नहीं दिखा। लोकसभा चुनाव 2019 के बाद अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया। इसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त 2020 को रामलला के मंदिर की आधार शिला रखने अयोध्या आए। कोरोना के खतरे के बीच रामलला का मुद्दा देश भर में गरमाया था । 22 जनवरी 2024 को इस साल रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई। इस समारोह में भाग लेने पीएम नरेंद्र मोदी पहुंचे थे। उनके साथ-साथ देश भर से विशिष्ट लोगों का यहां आगमन हुआ। कुछ स्वार्थी तत्व इससे दूरी बनाए रखी। ये सब मिलाकर जन आयोजन ना होकर सरकारी आयोजन बन कर रह गए ।

4. राम लहर काम ना आई :- 

राम मंदिर का मुद्दा वैसे तो पूरे देश के लिए अहम था, लेकिन उत्तर प्रदेश के लिहाज से कुछ सीटों पर इसका सबसे ज्यादा प्रभाव था। अब फैजाबाद सीट तो केंद्र में थी ही, इसके अलावा अमेठी, सुल्तानपुर, अंबेडकरनगर,बस्ती सीट पर भी राम मंदिर का काफी प्रभाव था। यह सारी सीटें फैजाबाद के आसपास ही पड़ती हैं, ऐसे में माना जा रहा था यहां से बीजेपी को ज्यादा चुनौती नहीं रही। इस क्षेत्र के चुनावी नतीजों ने सभी को हैरान कर दिया है। जिस अयोध्या को लगातार राम नगरी कहकर संबोधित किया गया, जहां पर सबसे ज्यादा बीजेपी ने राम के नाम पर वोट मांगा, उसी सीट को राम विरोधी समाजवादी पार्टी ने हथिया लिया है।

5. ग्रामीण क्षेत्रों की उपेक्षा हुई, फोकस अयोध्या धाम पर रहा :- 

बीजेपी ने अयोध्या धाम के विकास पर सबसे ज्यादा फोकस किया।सोशल मीडिया से लेकर चुनाव-प्रचार में अयोध्या धाम में हुए विकास कार्यों को बताया गया लेकिन बीजेपी ने अयोध्या के ग्रामीण क्षेत्रों पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया। अयोध्या धाम से अलग ग्रामीण क्षेत्र की तस्वीर बिल्कुल अलग रही। ग्रामीणों ने इसी आक्रोश के चलते बीजेपी के पक्ष में मतदान नहीं किया।

6.जमीनों का अधिग्रहण :- 

अयोध्या में श्रीराम मंदिर के बाद जमीन अधिग्रहण का मुद्दा सबसे आगे था। सड़क चौड़ीकरण और बाकी निर्माण कार्यों के लिए सरकार ने कब्जे हटाए। इससे लोगों में नाराजगी थी। बीजेपी इस नाराजगी को समझ नहीं पाई और इसका बदला लोगों ने चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी लल्लू सिंह को हराकर लिया। बीजेपी तो पूरे समय इसी मोड में रही कि राम मंदिर के मुद्दे पर लोग पार्टी को बढ़-चढ़कर वोट करेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ। अयोध्या में रामपथ के निर्माण के लिए जमीन का अधिग्रहण किया गया। कई लोगों के घर-दुकान तोड़े गए। कई लोगों को मुआवजा नहीं मिला। इसकी नाराजगी चुनाव परिणाम में साफ नजर आ रही है। कुछ ऐसी ही स्थिति चौदह कोसी परिक्रमा मार्ग के चौड़ीकरण में भी देखने को मिली। बड़ी संख्या में घर- दुकान तोड़े गए लेकिन प्रभावितों को उचित मुआवजा नहीं मिला।

7. प्रत्याशी को एंटी इन्कंबैंसी का असर :- 

निवर्तमान सांसद श्री लल्लू सिंह के खिलाफ क्षेत्र में एंटी इन्कंबैंसी थी। उम्मीदवार के प्रति यह गुस्सा लोगों के भीतर बदलाव के रूप में उभरने लगा। वे प्रधान मंत्री मुख्य मंत्री और बड़े बड़े मठों से तो जुड़े पर छोटे तपकों से दूर होते गए। स्थानीय प्रत्याशी लल्लू सिंह के प्रति लोगो की बहुत नाराजगी रही। बीजेपी हाई कमान ने सांसद लल्लू सिंह पर भरोसा जताते हुए तीसरी बार चुनावी मैदान में उतारा था। यह निर्णय लोगों को अनुकूल ना लगा। भाजपा उम्मीदवार लगातार 10 साल से सांसद थे। उनको बदले जाने का दबाव स्थानीय स्तर के नेताओं की ओर से भी बनाया जा रहा था। इसके बाद भी भाजपा ने इस पर ध्यान नहीं दिया। नया चेहरा ना उतरना ही बीजेपी को यहां भारी पड़ गया। नतीजतन बीजेपी को प्रतिष्ठित सीट गंवानी पड़ी। लल्लू सिंह ने चुनाव-प्रचार के दौरान संविधान बदलने का बयान भी दिया था। बयान पर काफी हो-हल्ला भी मचा था।

8.आवारा पशु को लेकर नाराजगी : - 

अयोध्या के ग्रामीण क्षेत्रों में किसान आवारा पशुओं से खासे परेशान रहे हैं। सरकार ने गोशाला जरूर बनाई हैं लेकिन स्थायी समाधान नहीं निकाल पाई है। आवारा पशुओं के मुद्दे को समाजवादी पार्टी ने मुद्दा बनाया था। जिससे बीजेपी को इस मुद्दे पर नाराजगी झेलनी पड़ी और हार का दंश झेलना पड़ा।

9.जनरल सीट पर सपा द्वारा दलित उम्मीदवार उतरना :- 

जातीय समीकरण को साधने में भाजपा सफल नहीं हो पाई। अखिलेश यादव इस सीट पर पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए को एकजुट करने में सफल हो गए। यह भाजपा की हार का कारण बन गई। समाजवादी पार्टी ने एक बड़ा प्रयोग करते हुए मंदिरों के इस शहर से एक दलित को उम्मीदवार बनाया था।उसकी यह रणनीति काम कर गई ।

10.जातिगत समीकरण और जमीनों का अधिग्रहण :- 

फैजाबाद (अयोध्या) लोकसभा क्षेत्र में 22 फीसदी ओबीसी मतदाता हैं। इसके बाद 21 फीसदी दलित, 19 प्रतिशत मुस्लिम, 6 फीसदी ठाकुर, 18 प्रतिशत ब्राह्मण और करीब 10 फीसदी वैश्य वोटर्स हैं। विपक्ष ने दलित, मुस्लिम और ओबीसी कॉम्बिनेशन को साधा। लिहाजा, मुस्लिमों ने इंडिया गठबंधन यानी सपा प्रत्याशी को वोट दिए। इसी के साथ जिस हिंदू वोट के सहारे बीजेपी को जीत मिल रही थी, इंडिया गठबंधन उसे बांटने में कामयाब रहा। बसपा का दलित वोट, ओबीसी और ब्राह्मण और ठाकुर वोटों की नाराजगी भी एक वजह रही, जिससे भाजपा को बड़ा झटका लगा। अयोध्या के जानकारों के मुताबिक जातिगत समीकरण और अयोध्या के विकास के लिए जमीनों का अधिग्रहण को लेकर जनता में जबरदस्त नाराजगी है। इसके साथ ही कांग्रेस का आरक्षण और संविधान का मुद्दा काम कर गया।लल्लू यादव का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वो संविधान में बदलाव के लिए बीजेपी को 400 से अधिक सीटें जिताने की बात कर रहे थे। वहीं बसपा का कमजोर होना भी सपा की बढ़त में बड़ा काम किया।

11.मुस्लिम वोटरो की एकजुटता :- 

कांग्रेस-सपा के जिस गठबंधन को 2017 में नहीं चल पाया था, वह गठबंधन 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में जमकर वोट बटोरे हैं। उत्तर प्रदेश के जानकारों के मुताबिक इस चुनाव में मुस्लिम वोट ने एकजुट होकर इंडिया गठबंधन के उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान किया। संविधान और आरक्षण बचाने के मुद्दे को हवा देकर इंडिया गठबंधन ने बीजेपी के कोर हिंदू वोट बैंक को भी बांट दिया। विपक्ष के इस नैरेटिव ने बड़ी संख्या दलितो, पिछड़ों और आदिवासियों को बीजेपी से दूर किया। महंगाई और बेरोजगार के मुद्दे ने भी का मुद्दा भी काम करता दिखा।

12.मोदी मैजिक काम ना आया :- 

एक तथ्य तो स्पष्ट है कि केवल मोदी मैजिक के सहारे रहना भाजपा के लिए बहुत भारी पड़ा है। पिछले दो महीनों में बीजेपी और एनडीए में उसके सहयोगी दलों का चुनाव प्रचार देखें, तो एक बात साफ तौर पर नजर आती है कि इन्होंने केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा। चुनावी रैलियों और सभाओं में पार्टी के छोटे-बड़े सभी नेता स्थानीय मुद्दों से बचते हुए नजर आए। पूरा प्रचार केवल और केवल पीएम मोदी के करिश्मे पर टिका था। बीजेपी के प्रत्याशी और कार्यकर्ता भी जनता से कनेक्ट नहीं हो पाए, जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा।

 13. बीजेपी के पारंपरिक मतदाताओं की नाराजगी:- 

लोकसभा चुनाव के नतीजे इस बात के भी संकेत दे रहे हैं कि कई बड़े मुद्दों पर बीजेपी को अपने ही वोटर्स की नाराजगी झेलनी पड़ी। अग्निवीर और पेपर लीक जैसे मुद्दे साइलेंट तौर पर बीजेपी के खिलाफ काम करते रहे। वोटर्स के बीच सीधा संदेश गया कि सेना में चार साल की नौकरी के बाद उनके बच्चों का भविष्य क्या होगा? पेपर लीक के मुद्दे पर युवाओं की नाराजगी को समझने में बीजेपी ने चूक की। पुलिस भर्ती परीक्षा के मुद्दे पर यूपी के लखनऊ में हुआ भारी विरोध प्रदर्शन इसका गवाह है। पार्टी के नेता ये मान बैठे थे कि केवल नारेबाजी से वो अपने समर्थकों और वोटर्स को खुश कर सकते हैं।

14. लल्लू सिंह का संविधान बदलने वाला बयान पर विपक्ष का दुष्प्रचार  

 एक तो लल्लू सिंह अपने पहले दो कार्यकाल में ज्यादा सक्रिय नहीं रहे। न तो वे आम जन के बीच पहुंच और न ही विकास कार्यों में ज्यादा रुचि दिखाई। लल्लू सिंह बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ते रहे। उन्होंने स्थानीय मुद्दों की तरफ गौर ही नहीं किया। दूसरा, लल्लू ने कहा था कि बीजेपी को 400 सीट इसलिए चाहिए, क्योंकि संविधान बदलना है। इस बयान को अखिलेश और राहुल गांधी ने इस तरह से सबके सामने रखा कि यदि भाजपा 400 पार जाती है, तो वह संविधान बदल सकती है।  
        इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि 400 सीट लेकर संविधान बदलने और आरक्षण खत्म कर देने के विपक्ष के नरेटिव ने काफी हद तक आरक्षित और दलित वर्ग को इंडी गठबंधन से जोड़ लिया। महंगाई के मुद्दे ने इस चुनाव पर बहुत ही गहरा असर डाला। पेट्रोल-डीजल से लेकर खाने-पीने की चीजों पर लगातार बढ़ रही महंगाई ने सरकार के खिलाफ एक माहौल पैदा किया। विपक्ष इस मुद्दे के असर को शायद पहले ही भांप गया था, इसलिए उसने हर मंच से गैस सिलेंडर सहित रसोई का बजट बढ़ाने वाली दूसरी चीजों की महंगाई को मुद्दा बनाया। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने बढ़ती महंगाई के लिए आर्थिक नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कई बार प्रधानमंत्री मोदी पर सीधा हमला बोला। दूसरी तरफ, बीजेपी नेता और केंद्र सरकार के मंत्री महंगाई के मुद्दे पर केवल आश्वासन भरी बातें करते हुए नजर आए। इस लोकसभा चुनाव में बेरोजगारी के मुद्दे ने एक बड़े फैक्टर के तौर पर काम किया। विपक्ष ने हर मंच पर सरकार को घेरते हुए बेरोजगारी के मुद्दे पर जवाब मांगा। यहां तक कि कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में वादा कर दिया कि अगर उनकी सरकार केंद्र में बनती है, तो तुरंत 30 लाख सरकारी नौकरियां दी जाएंगी। मंगलवार को घोषित चुनाव नतीजे साफ तौर पर संकेत दे रहे हैं कि राम मंदिर, सीएए लागू करने की घोषणा और यूनिफॉर्म सिविल कोड जैसे मुद्दे भी बीजेपी को बेरोजगारी के खिलाफ बने माहौल के नुकसान से नहीं बचा पाए।

15.लगातार सांसद रह चुके को ही फिर से उतार देना:- 

यहां एक बहुत बड़ा कारण रहा लगातार सांसद रह चुके चेहरों को ही फिर से उतार देना। इन चेहरों को जनता बिलकुल भी देखना नहीं चाहती थी लेकिन कई ऐसे थे जो दो से तीन बार या उससे भी अधिक टर्म सांसद रह चुके थे और उनकी स्थिति क्षेत्र में बिल्कुल अलोकप्रिय रही। इधर मौसम की तल्खी ने अलग से सबको उदासीन कर दिया। सरकार, संगठन और कार्यकर्ता के बीच ठीक से समन्वय इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि सभी अति विश्वास में थे।

16.स्थानीय सांसद द्वारा जमीन का खरीद फरोख्त:- 

स्थानीय प्रत्याशी श्री लल्लू सिंह पर क्षेत्र में जमीन खरीद और फिर उसे ऊंचे दामों में बेचने का आरोप लगा हुआ है।
श्रीराम मंदिर पर फैसले के बाद जमीन खरीद-बिक्री का मामला जोर-शोर से उठा था। इस पर बड़ा जोर दिया गया।
इससे श्री सिंह की छवि धूमिल हुई, उन्हें कम वोट मिले और हार का मुख देखना पड़ा।

लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।) 

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