Monday, August 14, 2023

विभाजन विभीषिका एक विदेशी षडयंत्र डॉ. राधे श्याम द्विवेदी

 
14 अगस्त 1947 को आर्यावर्त भारत देश का विभाजन ही नही हुआ अपितु वैदिक सनातन संस्कृति की धज्जियां एक बहुत बडे़ षडयंत्र के तहत उड़ाई गई और ऐसा विष वृक्ष रोप दिया गया जिसका दंश आज भी देश झेल रहा है। अनेक जातीय और अल्पसंख्यक संस्थानों को अलग अलग विशेषधिकार पूर्ण संस्था बना कर विदेशी एजेंडा लागू किया गया। तथकथित पंडित जी तथा कथित राष्ट्रपिता और कोलोनोजियम सिस्टम सब इसी प्रकार के मनमाने सोपान बना दिए गए जिन्हें सामान्य करने में पूर्ण बहुमत की सरकार को चने चबाने पड़ रहे हैं।
विभाजन विभीषिका स्मरण एक राष्ट्रीय स्मारक दिवस :-
विभाजन विभीषिका स्मरण दिवस भारत में 14 अगस्त को मनाया जाने वाला एक वार्षिक राष्ट्रीय स्मारक दिवस है , जो 1947 के भारत विभाजन के दौरान लोगों के पीड़ितों और पीड़ाओं की याद में मनाया जाता है । प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद इसे पहली बार 2021 में मनाया गया था । यह दिन विभाजन के दौरान कई भारतीयों की पीड़ा को याद करता है। विभाजन में कई परिवार विस्थापित हुए और कईयों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।इसका उद्देश्य भारतीयों को सामाजिक विभाजन, वैमनस्य को दूर करने और एकता, सामाजिक सद्भाव और मानव सशक्तिकरण की भावना को और मजबूत करने की याद दिलाना है। विभाजन के कारण 10 से 20 मिलियन लोग विस्थापित हुए और 2 लाख से 2 मिलियन लोग मारे गए। 
विभाजन की पृष्ठभूमि:-
विभाजन ब्रिटिश भारत दो स्वतंत्र राष्ट्रों का विभाजन था जो भारत और पाकिस्तान के रूप में बने। तब से दोनों राज्य आगे पुनर्गठन से गुजरे हैं। भारत का राष्ट्र 1950 से भारत गणराज्य के नाम से जाना जाता है जबकि पाकिस्तान का राष्ट्र उस चीज़ से बना था जिसे 1956 से इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ पाकिस्तान और 1971 से पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ बांग्लादेश के रूप में जाना जाता है। विभाजन में जिला-व्यापी गैर-मुस्लिम या मुस्लिम के आधार पर दो प्रांतों, बंगाल और पंजाब का विभाजन शामिल था। विभाजन में ब्रिटिश भारतीय सेना , रॉयल इंडियन नेवी , भारतीय सिविल सेवा , रेलवे और केंद्रीय खजाने का विभाजन भी हुआ । विभाजन की रूपरेखा भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 में दी गई थी और इसके परिणामस्वरूप ब्रिटिश राज , यानी भारत में क्राउन शासन का विघटन हुआ । भारत और पाकिस्तान के दो स्वशासी स्वतंत्र राष्ट्र 15 अगस्त 1947 की आधी रात को कानूनी रूप से अस्तित्व में आए।
धार्मिक आधार पर विभाजन :-
विभाजन के कारण धार्मिक आधार पर 10 से 20 मिलियन लोग विस्थापित हुए, जिससे नवगठित उपनिवेशों में भारी शरणार्थी संकट पैदा हो गया। बड़े पैमाने पर हिंसा हुई, विवादित विभाजन के साथ या उससे पहले जानमाल के नुकसान का अनुमान कई लाख से दो मिलियन के बीच था। विभाजन की हिंसक प्रकृति ने भारत और पाकिस्तान के बीच शत्रुता और संदेह का माहौल बनाया जो आज तक उनके संबंधों को प्रभावित करता है।
स्मरण दिवस का मानने का कारण :-
14 अगस्त 2021 को, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि 1947 में विभाजन के दौरान भारतीयों के कष्टों और बलिदानों की याद दिलाने के लिए 14 अगस्त को प्रतिवर्ष विभाजन भयावह स्मृति दिवस के रूप में याद किया जाएगा। "विभाजन के दर्द को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। हमारी लाखों बहनें और भाई विस्थापित हो गए और कई लोगों ने नासमझ नफरत और हिंसा के कारण अपनी जान गंवा दी। हमारे लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में, 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाएगा, विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस हमें सामाजिक विभाजन, वैमनस्य के जहर को दूर करने और एकता, सामाजिक सद्भाव और मानव सशक्तिकरण की भावना को और मजबूत करने की याद दिलाता रहे।” 
इसके अगले साल 2022 में, दिल्ली मेट्रो ने एक प्रदर्शनी स्थापित करके विभाजन भयावह स्मृति दिवस का सम्मान किया जिसमें "लाहौर और अमृतसर में क्षतिग्रस्त इमारतों पर पैनल" शामिल थे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने 2022 में सभी शैक्षणिक संस्थानों से विभाजन विभीषिका स्मरण दिवस मनाने की योजना बनाने का आग्रह किया। कश्मीर विश्वविद्यालय ने " विभाजन के लाखों पीड़ितों की पीड़ा, पीड़ा और दर्द" को उजागर करने के उद्देश्य से एक फोटो प्रदर्शनी का आयोजन करके विभाजन भयावह स्मृति दिवस का सम्मान किया। 
यह भारत का विभाजन तो नही था:-
भारत संस्कृति न्यास के संस्थापक श्री संजय तिवारी के अनुसार यह भारत का विभाजन तो नही था। अंग्रेज शासकों ने एक भारत के पूरब और पश्चिम एक एक रेखा खींच दी। कह दिया कि एक महादेश दो अलग अलग देशों में बांट रहे हैं। यानी एक हिस्सा पूरब, एक हिस्सा पश्चिम और बीच में हिंदुस्तान। पूरब और पश्चिम वाले को नाम दिया पाकिस्तान और कहा कि यह मुसलमान भाइयों के लिए है। बीच वाला हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन, ईसाई, यहूदी आदि के लिए छोड़ दिया। यह मोहम्मद अली #जिन्ना को भी समझ में नहीं आया कि इतनी जल्दी यह कैसे मिल रहा है जबकि उनकी खुद की सोच थी कि उनके जीते जी पाकिस्तान तो नहीं मिलने वाला। जिन्ना का सपना साकार हो गया और दोनों रेखाओं के भीतर एक एक राष्ट्र पिता मिल गए। बंटवारे के बाद के पिता। पाकिस्तान के कायदे आजम और हिंदुस्तान के राष्ट्र पिता। यह कोई भी बुद्धिमान बड़ी गहराई से सोच सकता है कि एक महान और महादेश को बांटने के बाद कोई उसका पिता क्यों बन जाता है? कहीं दुनिया में और ऐसा हुआ तो नहीं है।
मुसलमान समुदाय का बढ़ता अत्याचार:-
श्री संजय तिवारी के अनुसार अंग्रेज सरकार द्वारा खींची दोनों रेखाओं के बीच से मुसलमान समुदाय के लोगो ने दौड़ दौड़ कर घोषित पाकिस्तानी भूमि पर पहले से रह रहे लोगों को खदेड़ना और उनका कत्लेआम शुरू किया और खुद काबिज होने लगे। एक ही दिन पहले तक एक समग्र रहा भूभाग खंडित होकर लहू से लाल हो रहा था। पाकिस्तानी घोषित भूमि पर सदियों से रह रहे गैर मुसलमान समुदाय फसल की तरह काटा जाने लगा। बहू बेटियां माल़ असबाब बनाकर लूटी जाने लगीं। रेल गाड़ियों में भर भर कर लाशें बचे हुए भारत भूमि पर उतारी जाने लगीं। दोनो अंग्रेजी रेखाओं के पूरब और पश्चिम वाली भूमि पर कब्जे होने लगे। 
        हमारे इतिहासकारों ने जो पढ़ाया वह ही सब जन पाए।नई पीढ़ी को सही स्थिति की जानकारी नहीं है। हम जिसे आजादी कह रहे थे वह केवल देश का विभाजन भर था। लड़ तो रहे थे अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति के लिए लेकिन परिणाम मिला कि धरती बांट कर अंग्रेजों ने वह सब कर दिया जिसकी किसी भारतीय ने कभी कल्पना भी नहीं की थी। चक्रवर्ती सम्राटों का भारत वर्ष तीन टुकड़ों में बांट कर कहा गया कि अब भारत स्वाधीन हो गया।
पाकिस्तान अंग्रेजो का कटपुतली रहा:-
पाकिस्तान नाम पा लेने के बाद भी इस भूभाग पर अंग्रेज ही शासक रहे। कई प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बना कर समय गुजार देने वाले उस भूभाग के लिए नौ वर्षों तक कोई संविधान ही नहीं बना। बड़ी मशक्कत से बचे हुए भारत से जाकर वहां का संविधान बनाने वाले योगेंद्र मंडल किसी तरह वहां से जान बचा कर फिर भारत भाग कर आ गए और बंगाल में कहीं रह कर किसी दिन गुमनामी में मर गए। यदि यह वास्तव में कोई विभाजन होता तो उसका कोई प्रारूप भी होता। लोगो के जानमाल की चिंता के साथ स्थानांतरण की कोई व्यवस्था बनी होती। लोगों की सुरक्षा, उनके खेती, कारोबार आदि पर चिंता हुई होती। लेकिन ऐसा तो कुछ हुआ ही नहीं। खास बात यह कि इसका औपचारिक इतिहास लिखने वालों ने कभी किसी सच को भी सामने नहीं आने दिया। 
      दे दी हमें आजादी, बिना खड्ग बिना ढाल, यह गा गा कर देश और पीढ़ियों को गुमराह किया जाता रहा। यह कभी बताया ही नहीं गया कि अंग्रेजो से आजादी मांगने वाली कथित राजनीतिक आंदोलनकारी अहिंसा वाली टीम ने 1931 के गोलमेज सम्मेलन के बाद कोई आंदोलन किया ही नहीं। 1942 का भारत छोड़ो, केवल नाम का था क्योंकि दुनिया विश्वयुद्ध लड़ रही थी और अंग्रेज शासक को भारतीय सैनिकों की आवश्यकता थी। नेताजी की आजाद हिंद फौज की शक्ति से व्याकुल और विश्वयुद्ध से दरिद्र हो चुकी ब्रिटिश राजशाही के सामने भारत के विशाल भूभाग पर शासन करने की शक्ति नहीं रह गई थी। उनको नेहरू और जिन्ना में अपने भविष्य की तस्वीर दिख गई थी। दोनो को ही अपनी शर्तों पर राज देकर मुक्त भी हो गए और अधीनता भी बनाए रखा। 14 अगस्त से जब विभाजित भारत के टुकड़ों पर सांप्रदायिक आधार पर कब्जे की अंग्रेजी अनुमति मिल गई तो क्या मंजर सामनेआया , उससे अब लगभग सभी परिचित हैं।
सनातन संस्कृति बिखर गई:-
स्वतंत्र चिंतक श्री बृजेश कुमार उपाध्याय ने अपने फेसबुक पेज पर फैज साहब की पंक्तियां इस प्रकार उद्धृत किया है 
" ये दाग़ दाग उजाला ये शब गुज़ीदा शहर 
वो इंतजार था जिसका ये वो शहर तो नहीं
 ये वो शहर तो नहीं जिसकी आरजू लेकर
 चले थे यार की मिल जाएगी कहीं न कहीं । "
फैज़ ने यह पंक्तियां इसी माहौल में लिखी थीं। स्वार्थ के लिए भारत मां की मूर्ति को खंडित किया जा रहा था। हिंगलाज में तुम्हीं भवानी महिमा अमित न जात बखानी गाने वाले ,हिंगलाज की आराधना करने वाले, भारतीय समाज से मां हिंगलाज का स्थान मां ढाकेश्वरी का स्थान, लव की नगरी लाहौर तक्षशिला पराया हो रहे थे। दुनिया के किसी भी आंदोलन में इतनी हिंसा नहीं हुई इतने लोग नहीं मारे गए जितने केवल विभाजन में मारे गए । वैसे माहौल में दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल के नारे लगाए जा रहे थे। परतंत्रता के समाप्त हो जाने की खुशी तो थी लेकिन यह कुछ वैसे ही जैसे बहुत प्रतीक्षा के बाद किसी बांझ को पुत्र तो पैदा हुआ हो किंतु प्रसव में मां की मृत्यु हो गई हो, कुछ ऐसा ही माहौल था देश में। खंडित मूर्ति की पूजा नहीं होती इसलिए अपने मन के मंदिर में उस संपूर्ण विग्रह को रखने की आवश्यकता है । महर्षि अरविंद ने कहा था कि यह विभाजन टिकेगा नहीं क्योंकि यह अप्राकृतिक है।



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