Monday, August 7, 2017

मां का शिवधाम गमन आचार्य राधेश्याम द्विवेदी

धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु 4 जुलाई 2017 से योग निद्रा में चले गए हैं। अब 21 अक्तूबर 2017 को जग के पालनहार दोबारा जग की सुध लेंगे। इस बीच पूरी सृष्टि का संचालन शिव परिवार करता है। चतुर्मास का प्रारंभ बुधवार 5 जुलाई 2017  से शुरू हो गया है। इस महीने सबसे पहले भगवान शिवशंकर का पूजन होता है। बुधवार 5 जुलाई 2017 से मांगलिक कार्य वर्जित हो गए हैं। इस बार भगवान शिव का प्रिय मास सावन में 50 साल बाद विशेष संयोग बन रहा है। खास यह कि सोमवार से इस माह की शुरुआत हो रही और समापन भी सोमवार को ही होगा। यह काफी शुभ फलदायक है। शिव और सावन का गहरा नाता है। कहते हैं अन्य दिनों के अपेक्षा सावन के महीन में शिव की पूजा और अभिषेक करने से कई गुणा अधिक लाभ मिलता है। यही वजह है कि शिव भक्तों में सावन के महीने को लेकर गजब का उत्साह रहता है। 10 जुलाई से सावन की शुरुआत होगी और 7 अगस्त को रक्षाबंधन यानी सावन पूर्णिमा है।काफी सालों बाद इस बार सावन मास में पांच सोमवार है। सावन में 5 सोमवार का होने से इस साल रोटक व्रत लग रहा है। ऐसी मान्यता है कि रोटक व्रत पूरा करने यानी पांचों सोमवार व्रत करने और भगवान शिव के साथ देवी पार्वती की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।सावन के पांच सोमवार में तीन सोमवार को सर्वार्थ सिद्ध नामक शुभ योग बना है। इसमें भी अच्छी बात यह है कि पहला सर्वार्थ सिद्ध योग पहले सोमवार के दिन ही लगा है और अंत भी इसी योग से साथ हो रहा है। इनके अलावा 24 जुलाई को भी सुबह 7.45 तक यह योग बना है।तीसरी और सबसे बड़ी खास बात यह है कि इस साल 50 वर्ष के बाद ऐसा संयोग बना है जब सोमवार से दिन भगवान शिव का महीना सावन शुरू हुआ है और सोमवार के दिन ही इसका समापन हो रहा है। इसे बड़ा ही दुर्लभ संयोग माना गया है. सावन के अंतिम सोमवार के दिन आयुष्मान योग का होना शिवभक्तों के लिए बड़ा ही कल्याणकारी है। इस दिन शहद मिश्रित दूध से शिवलिंग का अभिषेक करने से सुख और सौभाग्य प्राप्त होगा।इनकी कृपा से दैविक, दैहिक और भौतिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। निर्धन को धन और नि:संतान को संतान की प्राप्ति होती है। कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है। बाबा भोले की पूजा से भाग्य पलट सकता है। सावन मास में प्रत्येक सोमवारी का विशेष महत्व है । 
                            Image result for shiva family photo                                                वैसे तो मेरी मां मध्य मई से अपनी विशिष्ट शारीरिक व्याधि की अवस्था को प्राप्त हो गयी थी। भगवान विष्णु की कृपा से वह अपने अंतिम दिन गिन रही थी। मुझे बुलाने तथ पंचभौतिक शरीर की सद्गति करने के लिए बार-बार दबाव डाल रही थी। जब 4 जुलाई को भगवान विष्णु निद्रा में चले गये तो इस घड़ी का असर भी मेरी मां के स्वास्थ्य और व्याधि पर पड़ा। मैं आगरा छोड़कर 6 जुलाई को घर आया । सात जुलाई को  केली अस्पताल बस्ती दिखवाया। यहां वह अपनी व्यथा अपने मुख से डाक्टर को बताई थी। अस्पताल में हमे तथा हमारे पत्नी को रुकने की इच्छा जताई थी। पर यहां सुधार नहीं हुआ और कोई अनुकुल परिस्थितियां नहीं दिख रही थी। 8 जुलाई को अयोध्या धाम यह सोचकर ले गया था कि भले ही भगवान विष्णु निद्रा अवस्था में हो उनके धाम में यदि प्राण का उत्सर्जन होगा तो मां को मुक्ति अवश्य मिल सकती है। मैं 8 जुलाई को अवध धाम की पावन भूमि पर मां जी को पहुचा दिया था। एक बार चिकित्सक को पुनः दिखाने की इच्छा हुई। घर पर गो अन्न तथा अन्य दान तथा गंगाजल आदि को पिलाकर मां के मुख से राम राम का उच्चारण सुन खुशी हुई थी। समझा कि मां पुनः सचेतावस्था में आ जाएगी। राज राजेश्वर अस्पताल फैजाबाद में 8, 9 और 10 का दिन चिकित्सा उपचार में लगा दिया । कभी किसी क्षण कुछ लाभ दिखाई देता तो कभी घोर निराशा दिखती थी। यह सब आषाढ़ मास में ही हो रहा था। 9 जुलाई को गुरु पूर्णिमा था। अयोध्या में भक्तों की काफी भीड़ थी। 10 जुलाई को सावन का आगमन प्रथम दिन सोमवार के रुप में आया। इस दिन भीअयोध्या में भक्तों की काफी भीड़ थी। शिवजी से मां का कष्ट देखा ना गया और एक दिन के अनेक उतार चढ़ाव के बावजूद 10 जुलाई के शाम 8 बजे जब उन्हें वेन्टलेटर में रखा जाने लगा तो तो मेरे सामने अधेरा छा गया । मैं अपने पंचभौतिक  मां की और दुर्दशा देख सकने की स्थिति में नहीं रहा। उन्हें डिस्चार्ज कराकर केदार आश्रम अयोध्या ले आया। वैसे उनके शरीर में दवाओं के निडिल लगवा दिया था। पर भौतिक रुप में उन्हें ज्यादा समय अपने बीच रख सकने की स्थिति में नहीं था। उन्हें कम से कम कष्ट हो तथा यमदूतों के फास से वह मुक्त रहें। इसलिए घर पर गो अन्न तथा अन्य दान तथा गंगाजल आदि को पिलाकर राम धुनि सपरिवार कराने लगा। महन्थ अवध किशोर मिश्रजी की कृपा व व्यवस्था से 5 ब्रहमचारी राम धुनि के लिए तैयार हो गये। वे श्रद्धा के साथ निरन्तर सीताराम की धुनि करने लगे। भगवान शिव की कृपा से शिव के आराध्य राम की नगरी में रात के 12.35 बजे वह यह पंचभौतिक संसार छोड़ शिवत्त्व मे समाहित हो चुकी थीं। उनकी सरयू तट पर अन्तेष्टि की गयी और शेष कर्म काण्ड मैं अपने मरवटिया स्थित मां की मातृभूमि में सम्पन्न किया जिसकी वह जीते जी इजाजत दे गयी थी। आज सावन माह का पांचवां सोमवार है। मेरी मां को संसार छोड़े एक माह हो गया है। मैं भगवान भोले नाथ से यह आपेक्षा करता हू कि वह मेरी मां को अपने धाम में स्थान दे और अपने में समाहित कर मुक्ति प्रदान करें।


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