राजा हरिश्चंद्र अयोध्या के प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा थे जो सत्यव्रत के पुत्र थे। ये अपनी सत्यनिष्ठा के लिए अद्वितीय हैं और इसके लिए इन्हें उनकी रानी तारा (शैव्या) अनेक कष्ट सहने पड़े। रोहिताश्व राजा हरिश्चंद्र के पुत्र थे। इनके एक प्रेमिका रही जिसके लिए उन्होंने अयोध्या से बहुत दूर रोहतास में एक नगर बसाया था।अपने जीवनकाल में रोहिताश्व ने एक आदिवासी कन्या से विवाह कर लिया था। फिर इसी गढ़ में उनके वंशजों ने सदियों तक शासन किया। पर मुस्लिम आक्रमणों के बाद उनके हाथ से यह गढ़ निकल गया। आदिवासी कन्या से हुए रोहिताश्व के वंशज आज भी जीवित हैं पर अब इस गढ़ पर उनका राज नहीं है। वे अब जंगलों की खाक छान रहे हैं।
रोहित (रोहिताश्व) का पुत्र हरित था।हरित से चम्प हुआ। उसी ने चम्पापुरी बसायी। चम्प से सुदेव और उसका पुत्र विजय हुआ। विजय का पुत्र भरूरक था। भरूरुक का पुत्र वृक था। वृक का पुत्र बाहुक था।ये सब निहायत कमजोर शासक थे। इनकी सूची तो मिलती है पर ज्यादा गतिविधियां नही मिलती है।
शत्रुओं ने बाहुक से राज्य छीन लिया, तब वह अपनी पत्नी के साथ वन में चला गया। वन में जाने पर बुढ़ापे के कारण जब बाहुक की मृत्यु हो गयी, तब उसकी पत्नी भी उसके साथ सती होने को उद्यत हुई। परन्तु महर्षि और्व को यह मालूम था कि इसे गर्भ है। इसलिये उन्होंने उसे सती होने से रोक दिया। जब उसकी सौतों को यह बात मालूम हुई तो उन्होंने उसे भोजन के साथ गर (विष) दे दिया। परन्तु गर्भ पर उस विष का कोई प्रभाव नहीं पड़ा; बल्कि उस विष को लिये हुए ही एक बालक का जन्म हुआ, जो गर के साथ पैदा होने के कारण ‘सगर’ कहलाया। सगर बड़े यशस्वी राजा हुए।
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