Friday, March 4, 2022

जन्म और मृत्यु चक्र ----- डा. राधे श्याम द्विवेदी

जन्म और मृत्यु चक्र  
डा. राधे श्याम द्विवेदी
सृष्टि में जन्म और मृत्यु चक्र चलता रहता है । ब्रह्मा जी अपने 4 सिरों से 2-2 ब्रहम ऋषि उत्पन्न करने का संकल्प लेते हैं। ताकि सृष्टि का आरंभ किया जा सके! ब्रह्मा जी अपने शरीर से कितने प्राणी उत्पन्न करते। ब्रह्मा जी के शरीर से पहले मनुष्य मनु जिन्हें स्वयंभू मनु कहा जाता है और उनकी जोड़ीदार शतरूपा का नाम नामक नारी बनाई । सप्त ऋषियों के लिए सप्त स्त्रियां बनाई गई । जिनमें छह कृतिकाये थी और जिन्होंने पृथ्वी पर जाने से मना कर दिया। सातवीं सतरूपा थी जो पृथ्वी पर तो गई परंतु उन्होंने ऋषियों से विवाह करने से मना कर दिया । परंतु मनु के साथ उन्होंने विवाह किया और सृष्टि की रचना करने लगे। सप्तर्षियों ने छह अलग-अलग स्त्रियों से विवाह कर योनिजा सृष्टि की शुरुआत की। उदाहरण के लिए कश्यप ऋषि की पहली पत्नी दिती हुई और दूसरी अदिति हुई । कालांतर में महाराज स्वयंभू मनु और ब्रह्म ऋषियों की संतानों के ही आपस में विवाह हुए और परिवार बने। 
त्रिगुणात्मक प्रकृति भाव से जन्म-मरण व पुनर्जन्म शुरु:-
 अभाव से भाव पदार्थ उत्पन्न नहीं होता और भाव पदार्थों का अभाव नहीं होता। इसी आधार पर ईश्वर, जीवात्मा और इस सृष्टि का उपादान कारण त्रिगुणात्मक प्रकृति भाव पदार्थ सिद्ध होते हैं । सृष्टि के लिये ईश्वर, जीव तथा प्रकृति इन तीन अनादि व नित्य पदार्थों का अस्तित्व होना आवश्यक एवं अपरिहार्य है।
 ईश्वर, जीवात्मा तथा प्रकृति तीनों सत्तायें अनादि, नित्य एवं अविनाशी हैं । अतः इसके आधार पर जीवात्माओं का जन्म-मरण व पुनर्जन्म होना तर्कसंगत सिद्धान्त हैं। जन्म-मरण व पुनर्जन्म का सिद्धान्त वेद तथा सभी वैदिक शास्त्रों सहित तर्क एवं युक्ति से भी सिद्ध है। इस सिद्धान्त के आधार पर हम अनादि काल से जन्म व मृत्यु को प्राप्त होते आ रहे हैं और ऐसा ही अनन्त काल तक जारी रहेगा। 
कर्मों के अनुसार पुनर्जन्म:-
शहत्राब्दियों वर्ष पूर्व से हमारे अनन्त बार जन्म व मृत्यु हो चुकी है। जीवात्मा को उसके कर्मों के अनुसार पुनर्जन्म मिलता रहता है। इस सिद्धान्त से मनुष्य का अगला जन्म मनुष्य व अन्य किसी भी प्राणी योनि में हो सकता है।वेदों के  अनुसार ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप,  सर्वज्ञ, निराकार,  सर्वशक्तिमान,  न्यायकारी,  दयालु, अजन्मा, अनादि,  अनन्त,  सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र, सृष्टिकर्ता, जीवात्माओं के लिये सृष्टि की रचना व पालन करने वाला, सृष्टि की प्रलय करने वाला, जीवात्माओं को उनके पूर्वजन्मों के कर्मों के अनुसार मनुष्य आदि विभिन्न योनियों में  जन्म देने वाला तथा  उन्हें  कर्मानुसार सुख  व दुःख प्रदान करने  वाला है। परमात्मा वेदानुसार कर्म करने वाले मनुष्यों, इच्छा व द्वेष से ऊपर उठकर ईश्वर की उपासना कर उसका साक्षात्कार करने वालों तथा स्वहित के कार्यों को छोड़ परहित के कार्यों को करने वाली जीवात्माओं को मोक्ष भी प्रदान करते हैं। 
सुख दुख जन्म मृत्यु:-
जीव कर्मानुसार बन्धनों में बन्ध कर भिन्न भिन्न योनियों में जन्म लेकर सुख व दुःख भोगता रहता है।  मनुष्य  का आत्मा अनादि  होने से अविनाशी है। यह सदा इस ब्रह्माण्ड में अस्तित्व में बना  रहेगा। इसी कारण परमात्मा द्वारा इसके कर्मों के  आधार पर  आत्मा का जन्म-मरण होता रहेगा ।अतः दुःख के कारण जन्म व मृत्यु से  बचने के लिये मुक्ति प्राप्त करने के लिये प्रयत्न करने चाहिये।सभी प्रणियों में विद्यमान आत्मा अमर व अविनाशी है। यह  अनन्त  काल तक अपने सत्यस्वरूप में बना रहेगा। अनन्त  काल  तक  इसके जन्म व मरण होते रहेंगे। वेद एवं सभी  ऋषि-मुनि पुनर्जन्म के सिद्धान्त को मानते हैं। 
जन्म - मृत्यु सुनिश्चित है:-
जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु सुनिश्चित है। मनुष्य जीवन और मृत्यु के चक्र को यदि सही तरह से समझ ले तो काफी हद तक उसकी परेशानियां दूर हो सकती हैं। पांच तत्वों से बना यह शरीर परमात्मा की दी हुई अमूल्य धरोहर है। संसार में सब कुछ प्रत्यक्ष नहीं है, अप्रत्यक्ष भी सृष्टि का अंग है। सृष्टि प्रत्यक्ष और परोक्ष, दोनों शक्तियों से निर्मित है। जो प्रत्यक्ष है उसे अणु कहते हैं और जो अप्रत्यक्ष है उसे विभु कहते हैं। सृष्टि में दोनों महत्वपूर्ण हैं। जैसे शरीर अणुओं से निर्मित है तो प्राण विभु है। इसलिए प्राणतत्व को समझना विज्ञान की समझ से बाहर की चीज है। यही कारण है कि जन्म और मृत्यु को अभी तक विज्ञान नहीं समझ सका है। 
अध्यात्म महाविज्ञान है :-
भारत में अध्यात्म को विज्ञान के महाविज्ञान के रूप में स्वीकार किया गया। जैसे विज्ञान कहता है कि दो से दो घटा लेने पर शून्य बचता है। यह विज्ञान का सामान्य नियम है, लेकिन अध्यात्म कहता है कि जो पूर्ण है उससे जितना चाहे निकाल लो, वह पूर्ण ही बचेगा। शून्य से जितना भी निकालो शून्य ही बचेगा। इसलिए जीवन और मृत्यु के रहस्यों का उद्घाटन केवल अध्यात्म कर सकता है, विज्ञान नहीं। विज्ञान की भाषा में ब्रहमांड को तत्व कह सकते हैं। अध्यात्म इसे प्राण ऊर्जा कहता है। यह प्राण ऊर्जा संपूर्ण ब्रहमांड में व्याप्त है। मनुष्य के शरीर में जब पांच तत्व पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश समतुल्य मात्र में एकत्र होते हैं तो शरीर बन जाता है। हमें इस समतुल्यता को भलीभांति समझना चाहिए। 


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