4मई 2017 के दिन सीता जयंती का उत्सव संपूर्ण भारत में
उत्साह व श्राद्धा के साथ मनाया जाएगा. यह पर्व माँ सीता के जन्म दिवस के रुप में जाना
जाता है. वैशाख मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को भी जानकी-जयंती के रूप में मनाया
जाता है, परंतु भारत के कुछ क्षेत्रों में फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष को सीता-जयंती
के रूप में भी मनाने की परंपरा रही है. इस तथ्य का उदघाटन निर्णयसिंधु से भी प्राप्त
होता है जिसके अनुसार फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष के दिन सीता जी का जन्म हुआ था इसीलिए
इस तिथि को सीताष्टमी के नाम से भी संबोद्धित किया जाता है. सीता शक्ति, इच्छा-शक्ति
तथा ज्ञान-शक्ति तीनों रूपों में प्रकट होती हैं वह परमात्मा की शक्ति स्वरूपा हैं.
सीता जयंती का पौराणिक संदर्भ :- जोती हुई भूमि
तथा हल के नोक को भी 'सीता' कहा जाता है, इसलिए बालिका का नाम 'सीता' रखा गया था। अत:
इस पर्व को 'जानकी नवमी' भी कहते हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है
एवं राम-सीता का विधि-विधान से पूजन करता है, उसे 16 महान दानों का फल, पृथ्वी दान
का फल तथा समस्त तीर्थों के दर्शन का फल मिल जाता है। सीता माँ का चरित्र सभी के लिये मार्गदर्शक रहा है और
आज भी प्रासंगिक है. सीता उपनिषद जो कि अथर्ववेदीय शाखा से संबंधित उपनिषद है जिसमें
सीता जी की महिमा एवं उनके स्वरूप को व्यक्त किया गया है. इसमें सीता को शाश्वत शक्ति
का आधार बताया गया है तथा उन्हें ही प्रकृति में परिलक्षित होते हुए देखा गया है. सीता
जी को प्रकृति का स्वरूप कहा गया है तथा योगमाया रूप में स्थापित किया गया है.सीता
जी ही प्रकृति हैं वही प्रणव और उसका कारक भी हैं. शब्द का अर्थ अक्षरब्रह्म की शक्ति
के रूप में हुआ है यह नाम साक्षात 'योगमाया' का है. देवी सीता जी को भगवान श्रीराम
का साथ प्राप्त है, जिस कारण वह विश्वकल्याणकारी हैं. सीता जी जग माता हैं और श्री
राम को जगत-पिता बताया गया है एकमात्र सत्य यही है कि श्रीराम ही बहुरूपिणीमाया को
स्वीकार कर विश्वरूप में भासित हो रहे हैं और सीता जी ही वही योगमाया है.वाल्मीकि रामायण
में तथा वेद-उपनिषदों में सीता के स्वरूप का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है. ऋग्वेद
में एक स्तुति के अनुसार कह अगया है कि असुरों का नाश करने वाली सीता जी आप हमारा कल्याण
करें. गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस में सीताजी को संसार की उत्पत्ति, पालन तथा
संहार करने वाली माता कहते हुए नमस्कार करते हैं, एक पुत्री, पुत्रवधू, पत्नी और
मां के रूप में उनका आदर्श रूप सभी के लिए पूजनीय रहा है.
सीता जयंती पूजन :- सीता जयंती के उपलक्ष्य पर भक्तगण माता की उपासना करते
हैं. परम्परागत ढंग से श्रद्धा पूर्वक पूजन अर्चन किया जाता है. सीता जी की विधि-विधान
पूर्वक आराधना की जाती है. इस दिन व्रत का भी नियम बताया गया है जिसे करने हेतु व्रतधारी
को व्रत से जुडे सभी नियमों का पालन करना चाहिए. सुबह स्नान आदि से निवृत होकर माता
सीता व श्री राम जी की पूजा उपासना करनी चाहिए. पूजन में चावल, जौ, तिल आदि का प्रयोग
करना चाहिए.इस व्रत को करने से सौभाग्य सुख व संतान की प्राप्त होती है, माँ सीता लक्ष्मी
का हैं इसकारण इनके निमित्त किया गया व्रत परिवर में सुख-समृ्द्धि और धन कि वृद्धि
करने वाला होता है. एक अन्य मत के अनुसार माता का जन्म क्योंकि भूमि से हुआ था, इसलिए
वे अन्नपूर्णा कहलाती है. माता जानकी का व्रत करने से उपावसक में त्याग, शील, ममता
और समर्पण जैसे गुण आते है. इस दिन माता सीता के मंगलमय नाम 'श्री सीतायै नमः' और
'श्रीसीता-रामाय नमः' का उच्चारण करना लाभदायी रहता है।
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