पौराणिक
ग्रंथों में गुरु गोरखनाथ के अनेक उद्धरणों तथा सन्दर्भों का विपुल भंडार मिलता है।
ये शिव के शिष्य भी थे और अंशावतार भी। कहीं कहीं तो उन्होंने स्वयं ही सृष्टि का संचालन
किया है तो कहीं कहीं माता पार्वती का सहयोग भी लिया है। उनके किस्से तथा प्रसंगों
को प्रस्तुत कर पाना आसान नहीं हैं । यहां कुछ रोचक प्रसंग प्रस्तुत किये जा रहे हैं।
11वीं शताब्दी के
महापुरुष :- महायोगी गोरखनाथ मध्ययुग 11वीं शताब्दी के एक
विशिष्ट महापुरुष थे। गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ (मछंदरनाथ) थे। इन दोनों ने
नाथ सम्प्रदाय को सुव्यवस्थित कर इसका विस्तार किया। इस सम्प्रदाय के साधकों को योगी,
अवधूत, सिद्ध, औघड़ कहा जाता है। गुरु गोरखनाथ हठयोग के आचार्य और एक नाथपंथी योगी थे।
सिद्धों से सम्बद्ध सभी जनश्रुतियाँ इस बात पर एकमत हैं कि नाथ सम्प्रदाय के आदि प्रवर्तक
चार महायोगी हुए हैं। आदिनाथ स्वयं शिव ही हैं। उनके दो शिष्य हुए, जालंधरनाथ और मत्स्येन्द्रनाथ
या मच्छन्दरनाथ। जालंधरनाथ के शिष्य कृष्णपाद थे और मत्स्येंन्द्र नाथ के शिष्य गोरख
अथवा गोरक्षनाथ थे। इस प्रकार ये चार सिद्ध योगीश्वर नाथ सम्प्रदाय के मूल प्रवर्तक
हैं। हम यह भी कह सकते हैं कि गुरु की परम्परा का निर्वहन करने वाला शिव अपने गुरु
की समस्त शक्तियां और सिद्धियां स्वयं में समेट लेता रहा है। इस प्रकार गुरु गोरखनाथ
को भी शिव का अवतार या अंशावतार कहा जा सकता है।
योग शिक्षा के लिए
गोरखनाथ का अवतार :-
कहा जाता है कि एक बार गोरखनाथ समाधि में लीन थे। इन्हें गहन समाधि में देखकर माँ पार्वती
ने भगवान शिव से उनके बारे में पूछा। शिवजी बोले, लोगों को योग शिक्षा देने के लिए
ही उन्होंने गोरखनाथ के रूप में अवतार लिया है। इसलिए गोरखनाथ को शिव का अवतार भी माना
जाता है। इन्हें चैरासी सिद्धों में प्रमुख माना जाता है। इनके उपदेशों में योग और
शैव तंत्रों का सामंजस्य है। वे नाथ साहित्य के आरम्भकर्ता माने जाते हैं। गोरखनाथ
की लिखी गद्य-पद्य की चालीस रचनाओं का परिचय प्राप्त होता है। इनकी रचनाओं तथा साधना
में योग के अंग क्रिया-योग अर्थात् तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान को अधिक महत्व
दिया है। गोरखनाथ का मानना था कि सिद्धियों के पार जाकर शून्य समाधि में स्थित होना
ही योगी का परम लक्ष्य होना चाहिए। शून्य समाधि अर्थात् समाधि से मुक्त हो जाना और
उस परम शिव के समान स्वयं को स्थापित कर ब्रह्मलीन हो जाने में परम शक्ति का अनुभव
होता है। हठयोगी कुदरत को चुनौती देकर कुदरत के सारे नियमों से मुक्त हो जाता है और
जो अदृश्य कुदरत है, उसे भी लाँघकर परम शुद्ध प्रकाशवत हो जाता है।
गोरखनाथ का विश्व
जनित प्रभाव:-
गुरु गोरखनाथ जी ने पूरे भारत का भ्रमण किया और अनेकों ग्रन्थों की रचना की। गोरखनाथ
जी का मन्दिर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर नगर मे स्थित है। गोरखनाथ के नाम पर इस जिले
का नाम गोरखपुर पड़ा है। गुरु गोरखनाथ जी के नाम से ही नेपाल के गोरखाओं ने नाम पाया।
नेपाल में एक जिला है गोरखा, का नाम गोरखा भी इन्हीं के नाम से पड़ा। माना जाता है कि
गुरु गोरखनाथ सबसे पहले यही दिखे थें। गोरखा जिला में एक गुफा है जहाँ गोरखनाथ का पग
चिन्ह है और उनकी एक मूर्ति भी है। यहाँ हर साल वैशाख पूर्णिमा को एक उत्सव मनाया जाता
है जिसे रोट महोत्सव कहते है और यहाँ मेला भी लगता है।
भगवान गुरु गोरक्षनाथ
शक्ति का आधार:-
भगवान गुरु गोरक्षनाथ को नाथ पंथ में मुख्य रूप से शिव गोरक्षनाथ के नाम से जाना जाता
है। शिव गोरक्षनाथ का अर्थ है भगवान शिव ही भगवान गुरु गोरक्षनाथ स्वरुप धारण कर हर
युग में पृथ्वी पर निवास करते हैं। धूनी रमाने वाले महायोगी के स्वरुप में उनकी सम्पूर्ण
विश्व में ख्याति है। एक समय की बात है माता गौरी ने भोलेनाथ को कहा, जहाँ जहाँ आप
हो वहां वहां मैं हूँ और जहाँ जहाँ मैं हूँ वहां वहां आप हो। भगवान भोलेनाथ बोले, जहाँ
जहाँ तुम हो वहां वहां मेरा होना आवश्यक है किन्तु जहाँ जहाँ मैं हूँ, वहां वहां तुम्हारा
होना आवश्यक नहीं। यह सुनकर देवी पार्वती क्रोधित हो गयी और बोलीं मैं ही सम्पूर्ण
सृष्टि में योगमाया के स्वरुप में व्याप्त हूँ। सृष्टि में कोई भी मेरी माया से नहीं
बच सकता। उन्होंने कहा भोलेनाथ आप स्वयं भी मेरी माया में ही हो। यह सुनकर भगवान भोलेनाथ
बोले, गौरां तुम्हे एक स्थान बताता हूँ उस स्थान पर जाओ। एक 12 वर्ष का महायोगी उस
स्थान पर ध्यान में लींन है। अपनी माया से अगर तुम उसको विचलित कर दो तो मैं जान जाऊँगा
की सम्पूर्ण सृष्टि तुम्हारी माया के अन्दर ही है। देवी पार्वती नव दुर्गा का स्वरुप
धारण कर उस स्थान पर जा पहुंची। उन्होंने देखा एक बारह वर्ष का बालक योग ध्यान में
लीन है। देवी पार्वती ने नव दुर्गा सहित अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा दी लेकिन वह बालक
विचलित भी नहीं हुआ। बालक ने प्रेम पूर्वक माता को प्रणाम किया और उन्हें वहां से जाने
के लिए कहा। किन्तु माता हट करने लगी की वह बालक उनकी कोई तो बात मान ले और संसार की
कोई वस्तु स्वीकार कर। बालक ने क्रोध में आकर भयंकर योग अग्नि को प्रकट किया जिससे
देवी पार्वती नव दुर्गा सहित जलने लगी। देवी पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को रक्षा के
लिए पुकारा। भगवान भोलेनाथ प्रकट हुए और बालक ने योग अग्नि को शांत किया। देवी पार्वती
ने भगवान भोलेनाथ से पूछा कौन हैं यह बालक ? भगवान भोलेनाथ बोले मैं ही हूँ यह बालक।
यह मेरा वह विरल स्वरुप है जिसमे मैं सम्पूर्ण सृष्टि का गुरु हूँ। भगवान भोलेनाथ बोले
इस बालक का नाम गोरक्ष है।
बालक
ने पूछा, देवी पार्वती कौन हो तुम ? और क्या है तुम्हारी शक्ति ?
पार्वती
बोलीं, आज से सम्पूर्ण सृष्टि की हूँ माई। मुझको अपनी चेली बनाओ हे गोरक्ष राई।
गोरक्ष
बोले, पहले अपनी शक्ति है दिखलाओ। तत्पश्चात ही मेरी शिष्या कहलाओ।
देवी
पार्वती ने अपनी शक्ति दिखलायी। और दस महाविद्या संसार में है आई।
तो
इस प्रकार सम्पूर्ण तंत्र का आधार कहलाने वाली दस महाविद्या संसार में आई जिनके नाम
इस प्रकार हैं - कालिका, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी छिन्नमस्ता, धूमावती, बंगला,
मातंगी और कमला। भगवान भोलेनाथ ने माता पार्वती को एक स्थान पर योग की शिक्षा दी। वही
स्थान अमरनाथ गुफा के नाम से विश्व में प्रख्यात है।तत्पश्चात भगवान भोलेनाथ ही भगवान
गुरु गोरक्षनाथ के स्वरुप में जगत माता के गुरु कहलाते हैं। महादेवी चामुण्डा (कालिका)
भगवान गुरु गोरक्षनाथ की ही शिष्या हैं। माँ भगवती के 52 शक्ति पीठ पृथ्वी पर स्थापित
हैं और भगवान गुरु गोरक्षनाथ ने अनेकों शक्ति पीठों पर अपनी लीलाएं दिखायीं हैं।
गुरु गोरक्षनाथ भैरव
प्रसंग :- एक समय की बात है भगवान गुरु गोरक्षनाथ अपने 300
चेलों के साथ भ्रमण को निकले। भ्रमण करते हुए वह एक स्थान पर पहुंचे जहाँ उनका एक महा
तेजस्वी शिष्य पहले से तपस्या कर रहा था। चेले ने अपने गुरु को उसकी तरफ आता देख यह
सोचा की आज कौन सा दुर्लभ दिन है जो मेरे गुरु मुझसे मिलने आ रहे हैं। चेले ने गुरु
के श्री चरणों में प्रणाम किया और बोला, हे गुरु गोरक्षनाथ आज कैसे आना हुआ। गुरु बोले,
चेला भैरव भ्रमण को निकले थे, सोचा तुमसे भी मिलकर चलते हैं। चेला भैरव बोला, हे गुरु
गोरक्षनाथ आप तो त्रिकालदर्शी हैं सब कुछ जानते हैं और आपका अचानक आना मुझको किसी घटना
के होने का संकेत दे रहा है। नजदीक के ही गाँव में एक श्रीधर नाम का भक्त देवी त्रिकुटा
की भक्ति में लींन है। देवी त्रिकुटा त्रेतायुग से त्रिकुटा पर्वतों पर तपस्या कर रही
थी। देवी त्रिकुटा ने त्रेतायुग में भगवान राम की तपस्या कर उनको प्रसन्न किया किन्तु
जब भगवान राम से वर माँगते हुए कहा, आप स्वयं ही उनके पति परमेश्वर बन जाएँ। तो भगवान
राम ने अपने को मर्यादा पुरुषोत्तम बता कर कहा, वह पहले से ही सीता के साथ विवाहित
हैं। भगवान राम ने त्रिकुटा को आशीर्वाद दिया की कलियुग में वह नारायणी के स्वरुप में
प्रख्यात होंगी।
वैष्णव देवी की कथा :-- एक दिन देवी त्रिकुटा ने
अपने भक्त श्रीधर को आदेश दिया की वह भंडारा करवाये और पूरे गाँव को बुलाये। श्रीधर
ब्राह्मण ने अपनी आर्थिक स्थिति को देखते हुए सोचा कैसे मैं पूरे गाँव को भोजन करवा
सकता हूँ । देवी त्रिकुटा ने भक्त श्रीधर को दर्शन दिए और कहा, चिंता न करो और पूरे
गाँव को बुलवाओ। श्रीधर जब गाँव में गया तो उसका सभी जन ने परिहास उड़ाया। उसी गाँव
में भगवान गुरु गोरक्षनाथ अपने 300 चेलों के साथ आये हुए थे और भैरव से भी मुलाकात
की। श्रीधर जब भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी के चेलों के पास पहुंचा तो भैरव इत्यादि चेलों
ने भी श्रीधर को यही कहा की वह भंडारा करवाने का निश्चय त्याग दे। चेलों और श्रीधर
की बात सुनकर भगवान गुरु गोरक्षनाथ बोले, हे श्रीधर हम अपने सभी शिष्यों के साथ भंडारे
में आएंगें। भंडारे के दिन देवी त्रिकुटा का चमत्कार हुआ और पूरा गाँव श्रीधर की छोटी
सी कुटिया में समां गया। यह चमत्कार देखकर भैरव ने सोचा श्रीधर तो साधारण ब्राह्मण
दीखता है तो ये चमत्कार कौन कर रहा है। उसने देखा श्रीधर के साथ एक छोटी कन्या सबको
भोजन परोस रही थी । जब वह भैरव के पास पहुंची तो भैरव ने बोला मुझको मॉस और मदिरा का
भोजन चाहिए। भैरव यह जानना चाहता था की कौन है यह कन्या ? कन्या के मना करने पर भैरव
ने उस कन्या का हाथ पकड़ लिया। कन्या अपनी शक्ति को दिखाते हुए वहां से भाग खड़ी हुई
। भैरव ने अपने गुरु भगवान गुरु गोरक्षनाथ से पूछा की कौन है यह कन्या ? भगवान गुरु
गोरक्षनाथ बोले भैरव क्या करोगे जानकार की यह कन्या कौन है ? भैरव बोला गुरुदेव मुझको
इसकी चमत्कारी शक्तियों को पता करना है । भगवान गुरु गोरक्षनाथ बोले भैरव हम तुमको
इसकी आज्ञा नहीं देते हैं आगे तुम्हारी इच्छा है। किन्तु भैरव हट करने लगा । गुरु गोरक्षनाथ
अपने 300 चेलों के साथ वहां से भ्रमण को आगे निकल गए। भैरव कन्या का पीछा करते हुए
त्रिकुटा पर्वतों पर जा पहुंचा। कन्या ने अपने को नौ माह तक एक गुफा में छुपाके रखा
और अपने सेवक हनुमान को रक्षा के लिए वहां खड़ा कर दिया। भैरव कन्या को ढूंढ़ता हुआ वहां
पहुँच ही गया। हनुमान ने भैरव को गुफा के द्वार पर रोका। भैरव और हनुमान के बीच घमासान
युद्ध हुआ जिसमे हनुमान को पराजित होता देख देवी त्रिकुटा स्वयं भैरव के समुख आ गयी
और भैरव का वध कर दिया। इस प्रकार देवी त्रिकुटा संसार में प्रख्यात हो गयी। त्रिकुटा को लोग वैष्णो देवी के नाम से आज जानते
हैं । अगर भगवान गुरु गोरक्षनाथ श्रीधर का निमंत्रण स्वीकार नहीं करते तो वैष्णो देवी
को आज कोई नहीं जानता। भगवान राम ने त्रिकुटा को जो आशीर्वाद दिया था उनके शब्दों को
सार्थक करने के लिए ही कलियुग में भगवान गुरु गोरक्षनाथ ने यह लीला रची थी।
ज्वाला देवी की कथा:-
एक समय की बात है भगवान गुरु गोरक्षनाथ नर-नारायण
पर्वत की ओर अपने शिष्यों के साथ जा रहे थे । रास्ते में माता का प्रख्यात शक्ति पीठ
पड़ गया। माता ने भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी को जाता देख उनका रास्ता रोक लिया और उनसे
निवेदन किया की वह कुछ समय उनके मंदिर में विश्राम करें। भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी ने कहा, हे माता तुम्हारे
मंदिर में लोग मदिरा और मॉस का भोग चढ़ाते हैं और हम एक महायोगी हैं। माता हठ करने लगी
और उनका रास्ता रोक लिया। माता के हठी स्वाभाव को देख भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी ने उनके
निवेदन को स्वीकार करते हुए कहा हम अपने शिष्यों से भिक्षा मंगवाते हैं और आप हमें
उसका भोजन बनवाकर खिलाएं। यह सुनकर माता अत्यंत प्रसन्न हुई और अपने मंदिर में चली
गयी। माता ने अपने मंदिर में आंच प्रज्वलित कर ली यह मान कर कि भगवान गुरु गोरक्षनाथ
थोड़ी ही देर में अपने शिष्यों के साथ भिक्षा लेकर आएंगे। कई दिन बीत गए लेकिन भगवान
गुरु गोरक्षनाथ नहीं आये। माता ने जो आंच प्रज्वलित करी थी वह आज तक जल रही है । इसके
बाद माता का वह स्थान ज्वाला देवी के नाम से प्रख्यात हो गया, जो हिमांचल प्रदेश के
काँगड़ा जिले में है ! एसा सा माना जाता है कि माता ज्वाला देवी आज भी भगवान गुरु गोरक्षनाथ
जी का इंतजार कर रही हैं और आंच ज्वाला देवी के मंदिर में आज तक जल रही हैं। आदि शक्ति
देवी अन्नपूर्णा सृष्टि का पालन करने हेतु जानी जाती हैं। भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी
का रोट का भोग माता अन्नपूर्णा ही बनाती हैं ! भगवान गुरु गोरक्षनाथ जो धुनि रमाने
वाले महायोगी हैं। उनका रोट आदि शक्ति देवी अन्नपूर्णा का नाम लेकर ही उनको अर्पित
किया जाता । इसी प्रकार अनेकों कहानियाँ यह बताती है की माता (शक्ति) के गुरु और आधार
भी भगवान गुरु गोरक्षनाथ (शिव) ही हैं !
No comments:
Post a Comment