Saturday, May 13, 2017

आगरा की असीमित संवेदनाएं डा. राधेश्याम द्विवेदी


समस्याओं का मकड़जाल :- मैं समस्याओं के मकड़जाल में उलझ गया हूं। लगभग 70 साल हो गये इस देश की आजादी के। बहुत दिनों के बाद देश प्रदेश में कुछ अलग ही किस्म के सत्ताधारी सेवकों का अस्तित्व बना हैं जो अपने परिवार कुटुम्ब के बंधनों से मुक्त कुछ आम जनता के दुख दर्दों को समझने वाले देखे जा रहे है। हमें भी कुछ नई आस जगी है। इसलिए आज हम अपनी वेदना व्यक्त कर देना ही चाहता हूं। ना जाने इस बहाने हमारे नगर के निवासियों का कुछ भला ही हो जाय। मैं सिसक रहा हूं। मैं रो भी नहीं पा रहा हॅू। मैं तड़प रहा हूं। मैं दुखी हूं। मैं उलझन में हूं। सरकार आती है, चली जाती है और मैं वहीं का वहीं रह जाता हूं। मेरी बात विधायक सुनता है, ना सांसद। ना मंत्री सुनता है और नाही संतरी। मुझे अपना अक्षुण्य  गौरवशाली अतीत चाहिए। मुझे चाहिए कल-कल करती यमुना की पहले जैसी निर्मल जल धारा। मुझे सरपट चलती गाड़ियां चाहिए और आसमान में उड़ने वाले तेज गति के वायुयान। मुझे चाहिए मेल मिलाप भाई चारा तथा जो इतिहास मेरा छीन लिया गया है उसे पुनः सुधारा जाय दुबारा लाया जाय। मुझे सुरक्षा चाहिए शान्ति चाहिए तथा निरापद आवागमन का साधन चाहिए।
गन्दगी का अम्बार :- मेरे माथे पर गंदगी का टीका लगा हुआ है। हर मोड़ पर गंदगी का ढेर है। अब यह कहना है कि सफाई कर्मचारी कम हैं। संसाधनों का अभाव है। मेरी जनता से जमकर कर वसूला जा रहा है। मुझे तो लगता है भाजपा वाले चुनाव जीतने के लिए ही मुझे पेरिस और सूरत बनाने की बात करते हैं और फिर पांच साल तक किसी का सुध नहीं लेते। मुझे नहीं बनना पेरिस। मुझे नहीं बनना है सूरत। मुझे आगरा ही रहने दीजिए। ग्रीन आगरा क्लीन आगरा नारा तो हैं परन्तु दीखता नहीं है। आगरा वही हरित आगरा। यहां तो साल के बारहों महीने सफाई अभियान चलता रहता है। पर यहां की जनता तो साफ रहना पसन्द ही नहीं है। वह पहले जैसा उससे ज्यादा गन्दा बनना पसन्द करती है। इन अभियानों से कुछ नहीं होगा। यहां तो एक टीम बननी चाहिए और गन्दगी करने वाले का चालान  नियमित करते रहना चाहिए। विन भय होय ना प्रीति जब तक अपनायी नहीं जाएगी। आगरा की गन्दगी नहीं मिटेगी।
जाम से हाल बेहाल :-  मेरी सड़कें जाम से कराह रही हैं। में पूरे दिन में चिल्ल-पौं सुनकर परेशान हो चुका हूं। कहीं ऐसा हो कि मेरी कान की सुनने की शक्ति ही खत्म हो जाये। ट्रैफिक पुलिस वाले ट्रैफिक को संभालने की जगह वसूली में लगे रहते हैं। दूसरे प्रान्त की गाड़ी का नम्बर देखते ही वाहनों के चालान कटन शुरु हो जाते हैं इस बहाने कुछ भाइयों का धंधा भी होता रहाता है। आप कह सकते हैं कि आगरा वालों में ट्रैफिक सेंस नहीं है, लेकिन इसे कौन लाएगा ? यही आगरा वाले हैं, जो हरियाणा या ताज एक्सप्रेस वे पर आते ही सीट बेल्ट लगा लेते हैं, लेकिन यहां नहीं। बाईपास तो नाम का रह गया है। यमुना किनारा, ग्वालियर रोड मथुरा रोड सब पर भी जाम रहता है। मैं इससे ऊब सा गया हॅू और बीमार सा हो गया हूं।
रेगिस्तान हो गई मां यमुना की घाटी :-कल कल करने वाली यमुना के तट पर होते हुए मैं प्यासा हूं। कारण यह है कि यमुना नें प्यास मिटाने की क्षमता खो दी है। पहले मेरी प्यास बुझाने के लिए यमुना काफी थी, लेकिन सरकारी नीतियों ने हत्या कर दी है। मेरी यमुना में पानी के नाम पर मलमूत्र और फैक्ट्रियों के कचरे मात्र है। दिल्ली, हरियाणा से ही मलमूत्र रहा है। मेरी यमुना को शुद्ध करने के लिए हजारों करोड़ रुपये जल निगम वाले डकार चुके हैं। सिर्फ बारिश में यमुना कुछ समय के लिए भरी हुई दिखती है। इसके बाद तो सिर्फ नाला ही नजर आती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी यमुना में गंदगी डाली जा रही है। अब ना तो भैंसें स्नान कर पा रही हैं। ना धोबी कपड़े धो पा रहे हैं। नालों की गंदगी जा रही है। कोई रोकने वाला नहीं। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बस देखने के लिए हैं। यमुना में पानी नहीं है तो मेरी कोख से पानी निकाला जा रहा है। आखिर मैं इतना पानी कहां से लाऊं। आज मेरा आंचल तो राजस्थान का रेगिस्तान हो गया है। तालाबों को विल्डर पाट पाटकर आलीशन भवन बनवाते चले जा रहे हैं। बारिश का पानी यूं ही बह जाता है। यमुना को शुद्ध कीजिए और भूजल स्तर को सुधारने के लिए अभियान चलाइए। यमुना पर बैराज बनवाइए ताकि बारिश का पानी रोका जा सके।
बेरोजगारी का बोलबाला :-आज आगरा एक पर्यटक स्थल है। इसके वावजूद मेरे बच्चे जरुरत भर के रोजगार नहीं पा रहे हैं। ताज ट्रिपेजियम के कारण सारे उद्योग धन्धे बन्द हो चुके हैं या मेरे आंचल से दूर कर दिये गये हैं। इसलिए यहां घोर बेरोजगारी बढ़ी है। अधिकांश युवा तो लपके की शकल में पूरे प्रशासन तथा पर्यटन तंत्र को हाईजैक कर लिये हैं। सब विभागों में पैठ बना लिये हैं और कोई विना इनके सहयोग के अपना कोई काम निकाल ही नहीं सकता है। जो थोडे शर्मदार थे उन्हें मेरी भूमि को छोड़ना पड़ा और मेरे युवा रोजगार के लिए दिल्ली, नोएडा, मुंबई या विदेशों में जाना पड़ गया हैं। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण रोकने के नाम पर यहां के उद्योगों पर ताला लगा दिया, लेकिन गैर प्रदूषणकारी उद्योग भी नहीं खुलवा सका है। आईटी पार्क, लेदर पार्क जैसे प्रोजेक्ट दशकों से लंबित चल रहे हैं। समय समय पर आगरा ने अनेक मंत्री भी दिये पर कोई दमदार नहीं निकला और सभी अपनी झोली भरने में ही लगे रहे। यहां आईटी पार्क तक नहीं बनवा पाये है । अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम का सपना भी मेरा ज्यों का त्यों बना हुआ है। हमने हर सत्ता दल को पर्याप्त विधायक जितवा कर दिये परन्तु सब के सब भोगी निकले एक भी मोदी या योगी जैसे नहीं बन पाया। लगता है यह मोदी योगी युगलवन्दी कुछ तो करा सकती है।
उड़ने के लिए बेचैन:- मैं उड़ने के लिए बेचैन हूं। मेरे आंचल पर स्थित विश्व प्रसिद्ध ताजमहल को देखने के लिए हजारों पर्यटक रोज आते हैं, लेकिन उनके लिए नियमित हवाई उड़ान नहीं है। खेरिया हवाई अड्डा है, लेकिन वायुसेना के कब्जे में है। मेरे नागरिकों के हिस्से में कुछ भी नही है। यहां पर सिविल एनक्लेव बनना है। पुरानी सपा तथा वसपा सरकारें अपने अपने परिवार तथा जाति आधारित राजनीति करती रहीं हैं। अब मोदी योगी जी को देखना है। मैं तो बड़ी आस लगा लिया हॅू। आगे परमात्मा जाने क्या क्या हो पायेगा ? 0 प्र0 सरकार 64 करोड़ रुपये सिविल एनक्लेव को देने की बात कह रही है। आज पैसे देंगे तो काम शुरू होने में भी समय लगेगा। वरना आधा अधूरा लखनऊ एक्सप्रेस वे की तरह इसका भी हाल होगा। इसलिए जो कुछ भी करना है जल्दी कीजिए और तुरन्त कीजिए। सिर्फ बातों से काम नहीं चलने वाला है। मैं तो पहले की सरकार से भी यह कहता था और नई सरकार से भी यही कह रहा हूं, और आगे भी कहता रहूंगा। हमारे धैर्य की परीक्षा कब तक ली जाएगी ? मेरे कहने से यदि कोई बात बने तो हमें लगता ही क्या है ? हमारा काम तो कहना ही तो है।
आकंठ भ्रष्टाचार में डूबा सरकारी महकमा :- यह बताते हुए मैं शर्मशार हूं कि मेरी पहचान भ्रष्टाचारी के रूप में होने लगी है। आरटीओ आफिस, खाद्य विभाग, पुलिस विभाग, शिक्षा विभाग, तहसील, कलक्ट्रेट, नगर निगम, आगरा विकास प्राधिकरण, विकास खंड कार्यालय, डूडा, लोक निर्माण विभाग, सिंचाई विभाग, विकास भवन आदि सभी राज्य के सरकारी महकमे सबके सब भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। भ्रष्टाचार को जल्द से जल्द दूर कराइए ताकि मुझे शरमिन्दित ना होना पड़े और मैं चैन से सांसे ले सकूं। भ्रष्टाचार के नाम पर दिल्ली में केजरीवाल सत्ता पर काविज हुए और सबसे ज्यादा आगे भ्रष्टाचार में बढ़ गये। शायद दिल्ली वासी अब पछताते होंगे। पर अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।
हाईकोर्ट की खंडपीठ :- आगरा में कभी हाईकोर्ट था। अब मैं हाईकोर्ट की खंडपीठ के लिए तरस रहा हूं। वकील आंदोलन पर आंदोलन कर रहे हैं। इसके लिए वे ताज महल तक को बन्द कराने की कोशिस कर चुके हैं। आखिर कब तक मैं हाईकोर्ट की खंडपीठ के लिए तरसता रहूंगा। अब तो केन्द्र तथा राज्य में एक ही दल की सरकार है। अगर अब भी जसवंत सिंह आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, आगरा में हाईकोर्ट की खंडपीठ नहीं बनती है तो यह माना जाएगा कि बातें हैं बातों का क्या ?
ताजमहल सोने का अंडा :- मेरे विकास का धुरी है पर्यटन। पर्यटन के लिए क्या हो रहा है ? पर्यटन पुलिस है, फिर भी मेरे पर्यटक लुट रहे हैं। ताजमहल देखने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ रहा है। शनिवार और रविवार तथा अन्य अवकाशों को बड़ी संख्या में पर्यटक ताजमहल जाते हैं, लेकिन कुव्यवस्थाओं के शिकार हो जाते हैं। वे प्रायः लपकों से परेशान हो जाते हैं। आगरा विकास प्राधिकरण पर्यटकों से पथकर वसूल रहा है और इस धन को कहीं और खर्च कर रहा है। कोई रोकने वाला नहीं है। पर्यटकों के लिए हवाई उड़ान चाहिए। पर्यटकों के लिए ऐसा वातारवरण चाहिए कि उसे कोई छेड़े नहीं। जयपुर की तरह पर्यटक मित्र वातावरण यहां भी चाहिए। ताजमहल सोने का अंडा देने वाली मुर्गी तो सभी मानते हैं परन्तु उसे जीवित तथा स्वस्थ रखने के लिए कुछ नहीं किया जाता है। एसा सदा तो चल नहीं पायेगा। इसको दुरुस्त कीजिए। इसकी सेवा कीजिए ताकि सोने का अंडा आगे भी हर रोज मिलता रहे।
मैट्रो लोकल ट्रेन : - आज बड़े बड़े सिटी में मैट्रो सज रही हैं। लखनऊ में तो कुछ दूर तक दिखावटी इसका निर्माण करा दिया गया है। आगरा में भी सर्वे हो गया है और पता नहीं कब यह चल सकेगी ? लेकिन लोकल ट्रेनें तो चला ही सकते हैं। बिल्लोचपुरा, सिटी स्टेशन, यमुना ब्रिज, राजामंडी, आगरा कैंट, ईदगाह, फतेहपुरसीकरी, टूंडला रेलवे स्टेशनों को जोड़ते हुए एक लोकल ट्रेन चल ही सकती है। इससे रोड पर कुछ लोड कम होगा। बटेसर वाले नये रुट पर कुछ लोकल ट्रेन तो दिया जा सकता है। वाजपेयी जी का ख्याल रखकर आगरा को विकसित किया जा सकता है। केन्द्र तथा राज्य में एक ही दल की सरकार है। रेल मंत्री प्रभुजी आगरा के लिए कुछ तो कीजिए। फरह से दीन दयाल उपाध्याय जी की स्मृति को जोड़ते हुए भी लोकल ट्रेन चलाने में कोई हर्ज नहीं है।

आपको मैं अपनी क्या क्या वेदनाएं और संवेदनाएं गिनाऊ ? इसका कोई ना तो ओर है और ना ही छोर। प्रिंट मीडिया भी इसे रोज रोज गिनाते थक गया है। पता नहीं कब आगरा की तस्बीर और तकदीर बदलेगी ? मैंने आस नहीं छोड़ा है। जब अब तक जिन्दा रहा गया तो योगी जी को भी देख लूंगा। मोदी जी पर ज्यादा भरोसा नहीं है। उन्हें तो 2019 और 2024 का लक्ष्य दिखाई दे रहा हैं। वे राष्ट्र के नहीं विश्व के नेता हो गये हैं। मन की बात तो कहते हैं सबके मन की, पर करते हैं अपने मन की। काश ! मेरी भी सुध मन से लेते तो यहां फर्क दिखाई देने लगता। भाषण मात्र देने से पेट की आग नहीं बुझती जनाब। उसके लिए पेट में कुछ अन्न जल जाना चाहिए। जमीनी स्तर पर काम दिखना भी चाहिए। हम जब पुराना इतिहास संजो लेते हैं तो आपके विकास की गंगा के साक्षी बन जायेंगे या सूखी रेगिस्तानी यमुना का बेहाल कारस्तानी भी झेल लेगें। मैं तो यही सूत्र वाक्य दुहराऊंगा-
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।
(सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।)




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