(भा. पु. स. परिचायिका सिरीज -2)
कनिंघम युग:-सन
1861 भारतीय पुरातत्व के इतिहास में
एक महत्वपूर्ण वर्ष था। इसी वर्ष से शासकीय स्तर
पर देश की पुरानिधियों एवं
पुरावशेषों के तरफ ध्यान
दिया गया। कुछ अपवादों को छोड़कर तबसे
आजतक केन्द्रीय सरकार ही भारतीय पुरातत्व
विषयक गतिविधियों का सूत्रधार रहा
है। केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त वरिष्ठ अधिकारी ही पुरातत्व की
राति नीति की रुपरेखा निर्धारित
करते रहे हैं। जनरल कनिघम ने तत्कालीन गवर्नर
जनरल लार्ड केनिंग को भारत के
विपुल पुरातात्विक धरोहरांे को सुव्यवस्थित अध्ययन
के लिए एक मेमराण्डम स्मरणपत्र लिखा
था। इसे गवर्नर जनरल लार्ड केनिंग ने स्वीकार कर
लिया था और सर्वेक्षण
का दायित्व जनरल कनिघम को ही सौंप
दिया था। परिणाम स्वरूप दिसंबर 1861 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की स्थापना की
गई थी। 47 वर्षीय मेजर जनरल ( उस समय कर्नल)
कनिंघम नार्थ वेस्टर्न प्राविंस की सेना के
मुख्य अभियन्ता थे। उनकी प्रथम नियुक्ति भारत के प्रथम पुरातत्व
महासर्वेक्षक के पद पर
हुआ था। उसने अपना कार्य दिसंबर 1861 में शुरु कर दिया था।
यद्यपि उसके नियुक्ति की अधिसूचना 22 जनवरी
1862 को प्रकाशित हुई थी। उस समय भारतीय
पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) का मुख्यालय शिमला
में था। जो समस्त उत्तर
भारत के पुरातात्विक गतिविधियों
का नियंत्रण करता रहा। एक उतार इस
विभाग में तब आया जब
1866 में पुरातत्व महासर्वेक्षक का पद समाप्त
कर दिया गया। इस अवधि में
उसने विहार से सिन्धु तक
तथा कालसी देहरादून से नर्वदा नदी
तक की यात्रायें कर
सर्वेक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत किया था। 1867 ई. के एक
परिपत्र में भारत सरकार ने प्रादेशिक सरकारों
को महत्वपूर्ण एतिहासिक इमारतों के चित्र एवं
छाप बनाने का दायित्व सौंपा
था , परन्तु इसमें कोई विशेष प्रगति नहीं हुई थी। मि. ई.सी. बेली
, गृह सचिव भारत सरकार ने 11 जनवरी 1870 को भारत सरकार
को पुरावशेषों व पुरानिधियों को
ध्यान देने का आग्रह किया
था। इसका अनुकूल प्रभाव पड़ा। प्रस्ताव संख्या 649 एवं 650 दिनांक 2 फरवरी 1871 को भारत सरकार
ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) नामक स्वतंत्र विभाग के महानिदेशक पद
पर एलेक्जेंडर कनिंघम की नियुक्ति किया।
वह 1885 ई. तक महानिदेशक
पद पर कार्य करता
रहा। उसने पुरातात्विक, कलात्मक और स्थापत्य खोजो
की श्रृंखलाओं में मुगल राजधानियों आगरा व दिल्ली के
पुरातत्व सर्वेक्षण एवं जांच पड़ताल का काम किया।
इसके साथ ही साथ उसने
प्रसिद्ध चीनी तीर्थ यात्री हुआनसांग एवं फाहयान के मार्ग का
पता लगाते हुए अपने दो सहायकांे कालाइल
एवं बेगलर के सहयोग से
संपूर्ण उत्तरी भारत का एक यादगार
सर्वेक्षण किया और अधिकांश प्रमुख
शहरों और अन्य नगरों
की खोज की थी। उन
सबको भारत के पुरातात्विक नक्शे
पर एक साथ लेकर
आया। उसका यह कार्य 23 खण्डों
में (एक इन्डेक्स) में प्रकाशित
हुई जो आज पुरातत्व
के प्राथमिक स्रोत के रुप में
पथ प्रदर्शित करता रहता है। उसका भारत का प्राचीन भूगोल
भी एक अति प्रमाणिक
एवं प्रारम्भिक पुरातत्व का स्रोत है।
25 वर्षों तक उसने अनेक
सर्वेक्षण उत्खनन कार्य कियें। यद्यपि उसने कुछ अवैज्ञानिक व पारम्परिक विधियों
का प्रयोग भी किया है।
फिर भी उसके शुरुवाती
एवं बृहद कार्यो को देखते हुए
उसे पुरातत्व का जनक कहा
जाता है। कनिंघम के कार्यकाल में
जेम्स वर्गेस द्वारा इण्डियन एन्टीक्वेरी नामक प्रकाशन तथा पुरालिपि को समर्पित कारपस
इन्सक्रप्सन इण्डिकेरम भाग 1, 2 व 3 प्रकाशित
हुए थे। उसकी ही अवधि में
इण्डियन ट्रेजर ट्रोव एक्ट 1878 भी पास हुआ
था। जिसके अनुसार कलाकृतियों को संरक्षित एवं
पंजीकृत किये जाने के प्रारम्भिक प्रयास
शुरु किये गये थे।
एएसआई
सर जॉन मार्शल के मार्ग दर्शन
में एक अखिल भारतीय
संगठन के रूप में
विकसित हुआ, जिसके प्रयासों के परिणाम स्वरूप
हमारे प्राचीन इतिहास को सुरक्षित एवं
संरक्षित बनाए रखने के लिए अलग
से एक कानून की
घोषणा की गई। उनके
कार्यकाल में सिंधु घाटी की सभ्यता की
खोज की गई जिसने
हमारे इतिहास को ईसा पूर्व
तीसरी सहस्राब्दी में पीछे ढकेल दिया। सर जॉन मार्शल
द्वारा हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, तक्षशिला, सारनाथ, सांची इत्यादि में की गई खुदाई
भारत के इतिहास की
खोज और लोगों के
समक्ष उसकी प्रस्तुति की राह में
मील के पत्थर हैं।
इस
समय पुरातत्व सर्वेक्षण भारत सरकार के अधीन आया
था। वैसे कैप्टन एच.एच.कोल
1868 से ही ड्राइंग तथा
फोटोग्राफ की सूची बनाने
के लिए पहले से ही नियुक्त
हुआ था। फिर क्यूरेटर के पद की
नियुक्ति 3 साल के लिए की
गयी थी। कैप्टन एच.एच.कोल
ने जनवरी 1881 में यह पद संभाला
था। उसने स्मारकों का सामूहिक
रुप से संरक्षण कार्य
प्रारम्भ किया था। आर्कलाजिकल सर्वे विभाग में उनका कार्य स्वतंत्र था। उन्हें पूरे भारत के स्मारकों के
देखने की जिम्मेदारी दी
गयी। उनके ये कार्य 1881 82 1882 83 तथा
1883 84 नामक तीन वार्षिक रिपोर्टों में प्रकाशित हुए थे।
नवम्बर 1883 में मेजर कोल की सेवा समाप्ति
के बाद कोल की सूची से
नई सूची बनाने का काम भारत
सरकार ने स्थानीय सरकारों
को दे दी थी।डा.
ए. फ्यूहरर कोल की सूची के
आधार पर 3 प्रमुख तथा 2 उप प्रमुख कुल
6 प्रकार के स्मारकों की
सूची तैयार की। इसे मोनोमेंन्टल एन्टीक्वटीज एण्ड इन्सक्रप्सन्स आफ नार्थ वेस्टर्न
प्राविंसेज एण्उ अवध नाम दिया गया।
( क्रमशः)
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