एतिहासिक इमारतें इतिहास का आईना:-
एतिहासिक इमारतें किसी भी देश की संस्कृति, विरासत, इतिहास को समझने का महत्वपूर्ण
जरिया होती हैं। दूसरे शब्दों में इन्हें इतिहास का आईना कहा जा सकता है। इन्हें देख
कर हम अपने इतिहास को समझ सकते हैं और भविषय की रूपरेखा निर्मित कर सकते हैं। रोम,
इजिप्त, ग्रीस जैसी पुरानी सभ्यताओं वाले देश में ऐसा होते भी आया है। विश्व के अनेक
देशों में एतिहासिक इमारतों को संरक्षित कर, उनके प्राचीन स्वरूप में बिना छेड़छाड़ किए,
नई बसाहटों की नींव डाली गई है। विश्व की प्राचीन धरोहरों को संरक्षित करने के लिए
संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को निरंतर कार्य कर ही रही है, हर देश अपने स्तर पर
भी अपनी प्राचीन इमारतों का संरक्षण कर रहा है। भारत में यह काम आर्कियोलॉजिकल सर्वे
आफ इंडिया और उसके साथ-साथ इंटैक जैसी संस्थाएं कर रही हैं।
संरक्षण का इतिहास :- 19वीं सदी के प्रारंभिक दशक में आए सांस्कृतिक पुनर्जागरण से भारत में एतिहासिक धरोहरों के संरक्षण की नींव पड़ी। सबसे पहले 1810 का बंगाल रेग्युलेशन
19वां एक्ट आया।फिर 1817 का मद्रास रेग्युलेशन सातवां नामक एक्ट आया।
इन दोनों के कारण सरकार को यह अधिकार प्राप्त हुआ कि वह सार्वजनिक संपत्ति के दुरुपयोग
अथव अनैतिक इस्तेमाल होने पर रोक लगा सके। हांलाकि ये दोनों एक्ट इमारतों के निजी मालिकाना
हक पर कोई निर्देश नहीं देते थे। फिर 1863 के बीसवें एक्ट ने सरकार को यह शक्ति प्रदान
की कि वह किसी इमारत के एतिहासिक, प्राचीन महत्व को देखते हुए, व उसकी वास्तुकला के
आधार पर उसका संरक्षण करें व दुरुपयोग होने से रोके। इस तरह कह सकते हैं कि एतिहासिक
धरोहर संरक्षण की कानूनन शुरुआत 1810 से प्रारंभ हो गयी थी। एतिहासिक-सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण में एक नए युग का सूत्रपात
हुआ जब 1904 में प्राचीन स्मारक संरक्षण एक्ट नामक कानून लागू हुआ।
1951 में द एंशिएंट एंड हिस्टॉरिकल मांयूमेंट एंड आर्कियोलॉजिकल साइट्स एंड रिमेंस एक्ट, 1951 प्रभावी हुआ। अब तक एंशिएंट मांयूमेंट प्रोटेक्शन एक्ट 1904 के तहत एतिहासिक महत्व की संरक्षित की जाने वाली जिन इमारतों को चिन्हित किया गया था, उन्हें 1951 के इस नए कानून के तहत दोबारा चिन्हित किया गया। इस सूची में बी श्रेणी के अंतर्गत साढ़े चार सौ अन्य इमारतों को भी जोड़ा गया। देश की एतिहासिक धरोहर के संरक्षण व उपरोक्त कानूनों को प्रभावशाली तरीके से लागू करने के लिए 28 अगस्त 1958 को द एन्शिएन्ट मांयूमेंट एंड आर्कियोलॉजिकल साइट्स एंड रिमेंस एक्ट 1958 भी लागू किया गया। वर्तमान में राष्ट्रीय महत्व के 3650 एतिहासिक स्मारक, पुरातात्विक स्थल व अवशेष हैं।
1951 में द एंशिएंट एंड हिस्टॉरिकल मांयूमेंट एंड आर्कियोलॉजिकल साइट्स एंड रिमेंस एक्ट, 1951 प्रभावी हुआ। अब तक एंशिएंट मांयूमेंट प्रोटेक्शन एक्ट 1904 के तहत एतिहासिक महत्व की संरक्षित की जाने वाली जिन इमारतों को चिन्हित किया गया था, उन्हें 1951 के इस नए कानून के तहत दोबारा चिन्हित किया गया। इस सूची में बी श्रेणी के अंतर्गत साढ़े चार सौ अन्य इमारतों को भी जोड़ा गया। देश की एतिहासिक धरोहर के संरक्षण व उपरोक्त कानूनों को प्रभावशाली तरीके से लागू करने के लिए 28 अगस्त 1958 को द एन्शिएन्ट मांयूमेंट एंड आर्कियोलॉजिकल साइट्स एंड रिमेंस एक्ट 1958 भी लागू किया गया। वर्तमान में राष्ट्रीय महत्व के 3650 एतिहासिक स्मारक, पुरातात्विक स्थल व अवशेष हैं।
प्राचीन स्मारक स्थल
व अवशेष:- प्राचीन स्मारक का मतलब किसी भी संरचना, निर्माण
या स्मारक या स्थान से है। कोई भी स्थल व अवशेष या कोई भी गुफा, रॉक मूर्तिकला, शिलालेख या केवल पत्थर
का कलात्मक खंभा या एतिहासिक, पुरातात्विक
महत्व वाला कलाकृति या 100 साल से ज्यादा समय की कृति भी इस श्रेणी में शामिल हैं।
उक्त किसी भी क्षेत्र की कृति हो या यथोचित
विश्वास, एतिहासिक खंडहर हो या अवशेष हो या पुरातात्विक स्थल हो इस श्रेणी में शामिल
हैं।
संरक्षण के लिए निश्चित मापदंड हों:- प्राचीन एतिहासिक स्थल, या स्मारक देश की सभ्यता व संस्कृति की परिचायक होती है। अपने देश के गौरवपूर्ण इतिहास को जानने में इन स्मारकों का बहुत अधिक महत्व है। हमारी पुरातत्विक विरासत हमारी गौरवपूर्ण संस्कृति का एक अंश हैं। अपनी संस्कृति को लंबे समय तक जीवित रखने के लिए इनका संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। पुरातात्विक विरासत स्वदेशी परंपराओं के गठन हिस्सा है। विभाग के लिए ऐसी साइटों और स्थानीय सांस्कृतिक स्मारकों का संरक्षण और सुरक्षा की भागीदारी आवश्यक है। पुरातात्विक विरासत के संरक्षण के कई विषयों से पेशेवरों के बीच सहयोग प्रभावी होना चाहिए। पुरातात्विक विरासत प्राथमिक जानकारी उपलब्ध कराने के तरीकों का हिस्सा है । पुरातात्विक विरासत की सुरक्षा नीतियों के लिए यह आवश्यक है, इसमें जनता की अधिक से अधिक भागीदारी बने। भागीदारी बनाने के जनता को इस विषय में आवश्यक ज्ञान होना चाहिए, जिसके आधार पर संरक्षित इमारतों के संरक्षण में अपनी भूमिका निभा सकेंगे। पुरातात्विक विरासत संरक्षण सब के लिए एक नैतिक दायित्व व नैतिक जिम्मेदारी के रूप में होना चाहिए। इसके लिए एक सामूहिक व सार्वजनिक, दायित्व प्रबंधन को प्रभावी स्तर पर लागू किए जाने की आवश्यकता है। पुरातात्विक विरासत हमारे समाज की अनमोल धरोहर है, तथा मानव समाज द्वारा इसका संरक्षण किया जाना चाहिए। अपने देश की इस धरोहर के संरक्षण के लिए प्रभावी कानूनों की जरूरत है। परंपराओं व पुरातात्विक विरासत, इतिहास क्षेत्र और अनुसंधान को संरक्षण प्रदान करने के लिए जागरूकता, सर्तकता व सावधानी की आवश्यकता है।
एएसआई द्वारा संरक्षण:- भारत जैसे प्राचीन सभ्यता वाले देश में एतिहासिक इमारतों का रख-रखाव, संरक्षण दुसाध्य कार्य है। उस पर जनजागरूकता का अभाव और प्रशासनिक संस्थाओं द्वारा नियम-कानूनों की अनदेखी स्थिति को और बिगाड़ देती है। नियमों का उल्लंघन करने पर थोड़ा बहुत जुर्माना लगाया जा सकता है, किंतु जब नगरीय निकाय इस मामले में कर्तव्य पालन न करें और कानून तोड़कर निर्माण कार्य करें, तो फिर अदालती हस्तक्षेप होना लाजिमी ही है। जबकि कानून के मुताबिक राष्ट्रीय संरक्षित स्मारकों के 100 मीटर के दायरे में कोई अन्य निर्माण कार्य नहीं हो सकता। देश में जिस तरह स्मारकों की उपेक्षा परिपाटी चल पड़ी है, उसमें यही सब होना है। कभी ताजमहल जैसी विश्व प्रसिद्ध इमारत पर तेल शोधन संयंत्र के काले धुएं का असर पड़ता है, तो कभी कुतुब मीनार पर विमानों के शोर से खतरा मंडराता है। कहीं प्राचीन बावड़ियों को सूखने छोड़ दिया गया तो कहीं उन्हें पाटकर भव्य इमारतें बना दी गईं। राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन से दिल्ली की कई एतिहासिक इमारतों की काया पलट हो गई, अन्यथा यहां भी स्थिति वैसी ही थी। किसी पुराने मकबरे को अवैध कब्जा कर घर बना लिया गया तो कहीं उसे मकड़ी के जालों और धूल से पट जाने दिया गया। जिस राष्ट्रीय स्मारक का संरक्षण किया जाना चाहिए, उसका ढंग से संरक्षण नहीं किया जा रहा। राजनीतिक दल, सामाजिक, गैर सामाजिक संगठनों को इसके लिए सक्रियता, सतर्कता से काम करना होगा।
संरक्षण के लिए निश्चित मापदंड हों:- प्राचीन एतिहासिक स्थल, या स्मारक देश की सभ्यता व संस्कृति की परिचायक होती है। अपने देश के गौरवपूर्ण इतिहास को जानने में इन स्मारकों का बहुत अधिक महत्व है। हमारी पुरातत्विक विरासत हमारी गौरवपूर्ण संस्कृति का एक अंश हैं। अपनी संस्कृति को लंबे समय तक जीवित रखने के लिए इनका संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। पुरातात्विक विरासत स्वदेशी परंपराओं के गठन हिस्सा है। विभाग के लिए ऐसी साइटों और स्थानीय सांस्कृतिक स्मारकों का संरक्षण और सुरक्षा की भागीदारी आवश्यक है। पुरातात्विक विरासत के संरक्षण के कई विषयों से पेशेवरों के बीच सहयोग प्रभावी होना चाहिए। पुरातात्विक विरासत प्राथमिक जानकारी उपलब्ध कराने के तरीकों का हिस्सा है । पुरातात्विक विरासत की सुरक्षा नीतियों के लिए यह आवश्यक है, इसमें जनता की अधिक से अधिक भागीदारी बने। भागीदारी बनाने के जनता को इस विषय में आवश्यक ज्ञान होना चाहिए, जिसके आधार पर संरक्षित इमारतों के संरक्षण में अपनी भूमिका निभा सकेंगे। पुरातात्विक विरासत संरक्षण सब के लिए एक नैतिक दायित्व व नैतिक जिम्मेदारी के रूप में होना चाहिए। इसके लिए एक सामूहिक व सार्वजनिक, दायित्व प्रबंधन को प्रभावी स्तर पर लागू किए जाने की आवश्यकता है। पुरातात्विक विरासत हमारे समाज की अनमोल धरोहर है, तथा मानव समाज द्वारा इसका संरक्षण किया जाना चाहिए। अपने देश की इस धरोहर के संरक्षण के लिए प्रभावी कानूनों की जरूरत है। परंपराओं व पुरातात्विक विरासत, इतिहास क्षेत्र और अनुसंधान को संरक्षण प्रदान करने के लिए जागरूकता, सर्तकता व सावधानी की आवश्यकता है।
एएसआई द्वारा संरक्षण:- भारत जैसे प्राचीन सभ्यता वाले देश में एतिहासिक इमारतों का रख-रखाव, संरक्षण दुसाध्य कार्य है। उस पर जनजागरूकता का अभाव और प्रशासनिक संस्थाओं द्वारा नियम-कानूनों की अनदेखी स्थिति को और बिगाड़ देती है। नियमों का उल्लंघन करने पर थोड़ा बहुत जुर्माना लगाया जा सकता है, किंतु जब नगरीय निकाय इस मामले में कर्तव्य पालन न करें और कानून तोड़कर निर्माण कार्य करें, तो फिर अदालती हस्तक्षेप होना लाजिमी ही है। जबकि कानून के मुताबिक राष्ट्रीय संरक्षित स्मारकों के 100 मीटर के दायरे में कोई अन्य निर्माण कार्य नहीं हो सकता। देश में जिस तरह स्मारकों की उपेक्षा परिपाटी चल पड़ी है, उसमें यही सब होना है। कभी ताजमहल जैसी विश्व प्रसिद्ध इमारत पर तेल शोधन संयंत्र के काले धुएं का असर पड़ता है, तो कभी कुतुब मीनार पर विमानों के शोर से खतरा मंडराता है। कहीं प्राचीन बावड़ियों को सूखने छोड़ दिया गया तो कहीं उन्हें पाटकर भव्य इमारतें बना दी गईं। राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन से दिल्ली की कई एतिहासिक इमारतों की काया पलट हो गई, अन्यथा यहां भी स्थिति वैसी ही थी। किसी पुराने मकबरे को अवैध कब्जा कर घर बना लिया गया तो कहीं उसे मकड़ी के जालों और धूल से पट जाने दिया गया। जिस राष्ट्रीय स्मारक का संरक्षण किया जाना चाहिए, उसका ढंग से संरक्षण नहीं किया जा रहा। राजनीतिक दल, सामाजिक, गैर सामाजिक संगठनों को इसके लिए सक्रियता, सतर्कता से काम करना होगा।
संसद
में प्राचीन स्थलों और स्मारकों के संरक्षण के लिए और अधिक कड़े कानून बनाने, एक विशेषज्ञ
की नियुक्ति करने, तथा उनके संरक्षण के लिए एक समिति के गठन एक बिल पारित किया गया।
प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 और अधिक सुदृढ हो गया
है तथा इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने वालों पर पर सख्त दंडात्मक
कार्रवाई करने की शक्ति देता है। प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्वीय स्थल तथा अवशेष (संशोधन
और विधिमान्यकरण) विधेयक, 2010, के अनुसार संरक्षित स्मारकों और स्थलों के सभी
दिशाओं में 100 मीटर की एक न्यूनतम क्षेत्र के दायरे में किसी भी प्रयोजन से किया गया
कोई भी निर्माण कार्य निषिध्द होगा। भारतीय पुरातत्व विभाग (एएसआई ) संरक्षित
स्मारकों और स्थलों के रखरखाव और प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होगा।
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