3 मई को अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा दिवस
बताया गया है। साधारणत: कार्य कर सकने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं। जब धनुष से शिकार करनेवाला कोई शिकारी
धनुष को झुकाता है तो धनुष में ऊर्जा आ जाती है जिसका उपयोग बाण को शिकार तक चलाने
में किया जाता है। बहते पानी में ऊर्जा होती है जिसका उपयोग पनचक्की चलाने में अथवा किसी दूसरे काम
के लिए किया जा सकता है। इसी तरह बारूद में ऊर्जा होती है, जिसका उपयोग
पत्थर की शिलाएँ तोड़ने अथवा तोप से गोला दागने में हो सकता है। बिजली
की धारा में ऊर्जा होती है जिससे बिजली
की मोटर चलाई जा सकती है। सूर्य के प्रकाश में ऊर्जा होती है जिसका उपयोग प्रकाशसेलों द्वारा बिजली की धारा उत्पन्न
करने में किया जा सकता है। ऐसे ही अणुबम में नाभिकीय
ऊर्जा रहती है जिसका उपयोग शत्रु का विध्वंस करने अथवा
अन्य कार्यों में किया जाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि ऊर्जा कई रूपों में पाई
जाती है। झुके हुए धनुष में जो ऊर्जा है उसे स्थितिज
ऊर्जा कहते हैं; बहते पानी की ऊर्जा गतिज ऊर्जा है; बारूद की ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा है; बिजली की धारा की ऊर्जा वैद्युत ऊर्जा है; सूर्य के प्रकाश
की ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा कहते हैं। सूर्य में जो ऊर्जा है वह उसके
ऊँचे ताप के कारण है। इसको उष्मा
ऊर्जा कहते हैं।
उर्जा
के स्रोत:- आधुनिक भौतिक
विज्ञान में प्रत्येक कार्य के लिए ऊर्जा को आवश्यक बताया गया है। ऊर्जा संरक्षण सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा
को न तो जना जा सकता है और ना तो नष्ट किया जा सकता, केवल इसका स्वरूप बदला जा सकता
है। हम अपने दैनिक जीवन में प्रयोग करने हेतु ऊर्जा के इस्तेमाल कई रूपों में करते
हैं, यथा - यांत्रिक ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा, ऊष्मीय ऊर्जा, प्रकाश ऊर्जा, रसायनिक ऊर्जा
इत्यादि। मोटर में विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदल कर काम लिया जाता है तो
बैटरी में रसायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में। मानव शरीर खाद्य पदार्थों की रासायनिक
ऊर्जा को पचा कर उससे यांत्रिक कार्य करता है। इसी प्रकार एक विद्युत बल्ब विद्युत
ऊर्जा को प्रकाय़ तथा ऊष्मीय ऊर्जा में बदल देता है। कार या बस का ईंजन पेट्रोल की
रासायनिक ऊर्जा को पहले ऊष्मीय ऊर्जा में बदलता है तथा उसे फिर यांत्रिक ऊर्जा में।
इन सभी कार्यों के लिए प्रयुक्त ऊर्जा कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक
गैस,
पवन
ऊर्जा,
सौर
ऊर्जा,
लहर
ऊर्जा (या तरंग ऊर्जा) नदी
घाटी परियोजनाएं
इन स्रोतों से प्राप्त होती है
उर्जा
एवं औद्योगिक
क्रांति :- उर्जा की अवधारणा
(कांसेप्ट) उन्नीसवीं शताब्दी में आयी। यह मानव द्वारा आविष्कृत एक अत्यन्त महत्वपूर्ण
एवं मौलिक अवधारणा है। यह विभिन्न प्रकार की घटनाओं में होने वाली अन्तर्क्रियाओं
(इन्टरैक्शन्स्) को संख्यात्मक रूप में व्यक्त करने में बहुत उपयोगी है। इसे एक तरह
से विभिन्न भौतिक फेनामेना के बीच होने वाली अन्तःक्रियाओं के लिये सर्वनिष्ट (कॉमन)
मुद्रा की तरह समझा जा सकता है। उर्जा की अवधारणा से ही परिवर्तन (ट्रान्स्फार्मेशन)
(जैसे रसायन एवं धातुकर्म में) एवं ट्रान्समिशन से सम्बन्धित है जो कि औद्योगिक
क्रांति के आधार हैं।
जब तक केवल मानवी या पाशविक उर्जा से ही काम होता था, तब तक उर्जा सीमित थी; उसे स्वचालित
एवं नियंत्रित करना कठिन कार्य था। किन्तु वाष्प आदि से चलने वाली मशीनों के आविष्कार
से यह स्थिति बदल गयी जिससे औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात हुआ। आधुनिक काल में किसी
देश द्वारा खपत की जाने वाली उर्जा उसके विकास की प्रमुख माप है। नवीकरणीय अथवा नव्य संसाधन:- वे संसाधन हैं जिनके भण्डार
में प्राकृतिक/पारिस्थितिक प्रक्रियाओं द्वारा पुनर्स्थापन (replenishment) होता रहता
है। हालाँकि मानव द्वारा ऐसे संसाधनों का दोहन (उपयोग) अगर उनके पुनर्स्थापन की दर
से अधिक तेजी से हो तो फिर ये नवीकरणीय संसाधन नहीं रह जाते और इनका क्षय होने लगता
है। उपरोक्त परिभाषा के अनुसार ऐसे संसाधनों में ज्यादातर जैव संसाधन आते है जिनमें
जैविक प्रक्रमों द्वारा पुनर्स्थापन होता रहता है। उदाहरण के लिये एक वन क्षेत्र से
वनोपजों का मानव उपयोग वन को एक नवीकरणीय संसाधन बनाता है किन्तु यदि उन वनोपजों का
इतनी तेजी से दोहन हो कि उनके पुनर्स्थापन की दर से अधिक हो जाए तो वन का क्षय होने
लगेगा।
सामान्यतया
नवीकरणीय संसाधनों में नवीकरणीय उर्जा संसाधन भी शामिल किये जाते हैं जैसे सौर
ऊर्जा, पवन
ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा इत्यादि। भारतीय
वानिकी
वन क्षेत्र मानव उपयोग के योग्य बहुत सारी चीजें उत्पन्न करते हैं जिनका घरेलू कार्यों
से लेकर औद्योगिक उतपादन तक मनुष्य उपयोग करता है। अतः वन एक महत्वपूर्ण संसाधन हैं
और चूँकि वन में पेड़-पौधे प्राकृतिक रूप से वृद्धि करते हुए अपने को पुनःस्थापित कर
सकते हैं, यह नवीकरणीय संसाधन भी हैं। वनोपजों में सबसे निचले स्तर पर जलाने के लिये
लकड़ी, औषधियाँ, लाख, गोंद और विविध फल इत्यादि आते हैं जिनका एकत्रण स्थानीय लोग करते
हैं। उच्च स्तर के उपयोगों में इमारती लकड़ी या कागज उद्द्योग के लिये लकड़ी की व्यावसायिक
और यांत्रिक कटाई आती है। जैसा कि सभी नवीकरणीय संसाधनों के साथ है, वनों से उपज लेने
की एक सीमा है। लकड़ी या पत्तों की एक निश्चित मात्रा निकाल लेने पर उसकी प्राकृतिक
रूप से समय के साथ पुनः भरपाई हो जाती है। यह मात्रा सम्पोषणीय उपज कहलाती है। किन्तु
यदि एक सीमा से ज्यादा दोहन हो और समय के सापेक्ष बहुत तेजी से हो तो वनों का क्षय
होने लगता है और तब इनका दोहन सम्पोषणीय नहीं रह जाता और ये नवीकरणीय संसाधन भी नहीं
रह जाते।
विश्व में और
भारत में भी जिस तेजी से वनों का दोहन हो रहा है और वनावरण घट रहा है, इन्हें सभी जगह
नवीकरणीय की श्रेणी में रखना उचित नहीं प्रतीत होता। वन अंतरराष्ट्रीय दिवस के मौके
पर वन संसाधन पर जारी आंकड़ों में खाद्य
एवं कृषि संगठन (एफ॰ए॰ओ॰) के
अनुसार वैश्विक स्तर पर वनों के क्षेत्रफल में निंरतर गिरावट जारी है और विश्व का वनों
वाला क्षेत्र वर्ष 1990 से 2010 के बीच प्रतिवर्ष 53 लाख हेक्टेयर की दर से घटा है। इसमें यह भी कहा गया है कि उष्णकटिबंधीय वनों में सर्वाधिक
नुकसान दक्षिण
अमेरिका और अफ्रीका में हुआ है।
मौजूदा आंकलनों
के अनुसार भारत में वन और वृक्ष क्षेत्र 78.29 मिलियन हेक्टेयर है, जो देश के भैगोलिक
क्षेत्र का 23.81 प्रतिशत है। 2009 के आंकलनों की तुलना में, व्याख्यात्मक बदलावों
को ध्यान में रखने के पश्चात देश के वन क्षेत्र में 367 वर्ग कि॰मी॰ की कमी दर्ज की
गई है। वन संसाधनों का महत्व इसलिए भी है कि ये हमें बहुत से प्राकृतिक
सुविधाएँ प्रदान करते हैं जिनके लिये हम कोई मूल्य नहीं प्रदान करते और इसीलिए इन्हें
गणना में नहीं रखते। उदाहरण के लिये हवा को शुद्ध करना और सांस लेने योग्य बनाना एक
ऐसी प्राकृतिक सेवा है जो वन हमें मुफ़्त उपलब्ध करते हैं और जिसका कोई कृत्रिम विकल्प
इतनी बड़ी जनसंख्या के लिये नहीं है। वनों के क्षय से जनजातियों और आदिवासियों का जीवन
प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है और
बाकी लोगों का अप्रत्यक्ष रूप से। वर्तमान समय में वनों से संबंधित कई शोध हुए है और
वनावरण को बचाने हेतु कई उपाय और प्रबंधन माडल भी सुझाए गये हैं।
जल संसाधन :- पृथ्वी पर उपलब्ध
जल, संसाधन के रूप में कुछ खास दशाओं में एक नवीकरणीय संसाधन है। जल का पारिस्थितिक
तंत्र में पुनर्चक्रण
होता रहता है जिसे जल
चक्र कहते हैं। अतः
जल एक प्राकृतिक प्रक्रिया के तहत शोधित और मानव उपयोग योग्य बनता रहता है। नदियों
का जल भी मानव द्वारा डाले गये कचरे की एक निश्चित मात्रा को स्वतः जैविक प्रक्रियाओं
द्वारा शुद्ध करने में समर्थ है। लेकिन जब जल में प्रदूषण की मात्रा इतनी
अधिक हो जाए कि वह स्वतः पारिस्थितिक तंत्र की सामान्य प्रक्रियाओं द्वारा शुद्ध न
किया जा सके और मानव के उपयोग योग्य न रह जाय तो ऐसी स्थिति में यह नवीकरणीय नहीं रह
जाता। एक उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो उत्तरी भारत के जलोढ़ मैदान हमेशा से भूजल में
संपन्न रहे हैं लेकिन अब उत्तरी पश्चिमी भागों में सिंचाई हेतु तेजी से दोहन के कारण
इनमें अभूतपूर्व कमी दर्ज की गई है। भारत में जलभरों और भूजल की स्थिति पर चिंता जाहिर
की ज रही है। जिस तरह भारत में भूजल का दोहन हो रहा है भविष्य में स्थितियाँ काफी खतरनाक
होसकती हैं। वर्तमान समय में 29% विकास खण्ड या तो भूजल के दयनीय स्तर पर हैं या चिंतनीय
हैं और कुछ आंकड़ों के अनुसार 2025 तक लगभग 60% ब्लाक चिंतनीय स्थितिमें आ जायेंगे।
ध्यातव्य है कि भारत में 60% सिंचाई एतु जल और लगभग 85% पेय जल का स्रोत भूजल ही है। ऐसे में भूजल का तेजी से गिरता स्तर एक बहुत
बड़ी चुनौती के रूप में उभर रहा है।
नवीकरणीय उर्जा या अक्षय उर्जा:- नवीकरणीय उर्जा या अक्षय उर्जा (Renewable Energy) में वे सारी उर्जा शामिल हैं जो प्रदूषणकारक नहीं हैं तथा
जिनके स्रोत का क्षय नहीं होता, या जिनके स्रोत का पुनः-भरण होता रहता है। सौर
ऊर्जा, पवन
ऊर्जा, जलविद्युत
उर्जा, ज्वारीय
उर्जा, बायोमास, जैव
इंधन आदि नवीकरणीय
उर्जा के कुछ उदाहरण हैं। नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियाँ न केवल ऊर्जा प्रदान करती
हैं, बल्कि एक स्वच्छ पर्यावरण और अपेक्षाकृत कम शोरगुलयुक्त ऊर्जा स्रोत भी प्रदान
करती हैं। नवीकरणीय ऊर्जा (आरई) को "ऊर्जा सुरक्षा’’ और वर्ष 2020 तक "ऊर्जा
स्वतंत्रता" के लक्ष्य की दृष्टि से एक वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में माना
जा रहा है।
ऊर्जा संरक्षण का महत्व:- गांधी जी ने
कहा था कि पृथ्वी हर आदमी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त स्त्रोत प्रदान
करती है, लेकिन हर आदमी के लालच को पूरा करने के लिए नहीं। ऊर्जा संरक्षण की आवश्यकता
को नीचे दिये गये तथ्यों द्वारा उल्लिखित किया गया है: हम ऊर्जा का उपयोग उसके उत्पादन
करने से ज्यादा तेजी से करते हैं - कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस – सबसे अधिक उपयोग
में आने वाले हैं जिनका वर्तमाम स्वरुप हजारों सालों के बाद विकसित हुआ है। ऊर्जा संसाधन
सीमित हैं- भारत में दुनिया की आबादी 16% है और दुनिया के ऊर्जा संसाधनों का लगभग
1% भाग पाया जाता है। अधिकतर ऊर्जा स्रोतों को न तो पुन: उपयोग में लाया जा सकता है
और न नवीनीकृत किया जा सकता है । गैर अक्षय ऊर्जा स्रोतों का ईंधन उपयोग में हिस्सा
80% है। इसीलिए ऐसा कहा गया है कि अगले 40 सालों में हमारे ऊर्जा के सभी स्त्रोत समाप्त
हो सकते हैं। हम ऊर्जा की बचत करके अपने देश की बहुमूल्य मुद्रा की बचत करते हैं। लगभग
75 प्रतिशत अपनी जरूरतों का कच्चे तेल आयात से पूरा करते हैं। इस आयात का कुल मूल्य
प्रति वर्ष भारतीय रुपयों में लगभग. 50,000 करोड़ रुपये तक होता है। एक पुरानी भारतीय
कहावत है जो इसका इस तरह वर्णन करती है - पृथ्वी, जल और वायु हमारे माता पिता से प्राप्त
हमारे लिए एक उपहार नहीं है बल्कि हमारे बच्चों के लिए कर्ज़ है। इसलिए हमें ऊर्जा
संरक्षण को एक आदत बनाने की जरूरत है।
घर में ऊर्जा:- घर में ऊर्जा का उपयोग प्रकाश, खाना पकाने, हीटिंग
के लिए और अन्य घरेलू उपकरणों के संचालन के लिए किया जाता है। कुछ नीचे दिये गये तरीकों
का उपयोग कर इन क्षेत्रों में ऊर्जा के प्रयोग में बचत की जा सकती है। घरेलु प्रकाश जब उपयोग में नहीं हो तो लाइट बंद करें। ट्यूब
लाइट और बल्ब आदि उपकरणों पर जमी धूल को नियमित रूप से साफ करें। आईएसआई मार्का वाले
बिजली के उपकरणों का इस्तेमाल करें। ऊर्जा बचाने के लिए सीएफएल का प्रयोग करें। दिन
के उजाले के समय अंदर अधिकतम प्रकाश प्राप्त करने के लिए खिड़कियों पर हल्के रंग, ढीले
बुनाई पर्दे का प्रयोग करें। पारंपरिक ट्यूब रोशनी के स्थान पर T5 रोशनी ऊर्जा बचाने
के लिए प्रयोग की जा सकती है। अल्प ऊर्जा, अधिक प्रकाश – सीएफएल सामान्यतौर
पर भारत में उपयोग में लाये जा रहे लैंप, बल्ब एवं अन्य उपकरणों द्वारा अधिक
ऊर्जा खपत करने के कारण, आज लगभग 80 प्रतिशत बिजली बेकार चली जाती है। कॉम्पैक्ट फ्लूरेसेन्ट
लाइट (सीएफएल) बल्ब का उपयोग कर हम बिजली की लागत में बचत कर सकते हैं। सीएफएल
बल्ब परंपरागत बल्ब की तुलना में पाँच गुणा अधिक प्रकाश देता है। साथ ही, सीएफएल बल्ब
के टिकाऊ होने की अवधि सामान्य बल्ब से आठ गुणा अधिक है। फ्लूरेसेन्ट ट्यूब लाइट व
कॉम्पैक्ट फ्लूरेसेन्ट लाइट जलने में कम ऊर्जा ग्रहण करती है और ज्यादा गर्मी भी नहीं
देती। यदि हम 60 वाट के साधारण बल्ब के स्थान पर, 15 वाट का कॉम्पैक्ट फ्लूरेसेन्ट
लाइट बल्ब का उपयोग करते हैं तो हम प्रति घंटा 45 वाट ऊर्जा की बचत कर सकते हैं। इस
प्रकार, हम प्रति माह 11 यूनिट बिजली की बचत कर सकते हैं और बिजली पर आने वाले अपने
खर्च को कम कर सकते हैं। इस प्रकार, ऊर्जा संरक्षण कर एवं बिजली खपत में बचत कर, हम
उन गाँवों तक बिजली पहुँचाने में मदद कर सकते हैं जहाँ आज तक बिजली नहीं पहुँची है।
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