Friday, November 24, 2017

जल ही जीवन यमुना मइया की कामना (कविता) डा. राधेश्याम द्विवेदी


 मेरे पद पंकज का वंदन   चाहे मत एक बार करो ।
गाल बजाने वालो के सब ढोंगो का प्रतिकार करो ।
भाव सुमन के नहीं दिखावटी माला मुझे चढ़ाते हो ।
सड़ी गली बदबुओं से    मेरी पवित्रता मिटाते हो ।।


मुझको चुनरी नहीं चढ़ाओ मत दीपो का दान करो ।
दीन हीन को कपड़े बाँटो इनके तन को ढ़कोभरो।
टूटी फूटी प्रतिमायें तस्वीरें सब मुझमे डाली जाती ।
जिनकी किरचें कोर नुकीली सब लोगो को चुभती ।।
बची हवन पूजन सामग्री   घर से तुम ले आते हो ।
वेरहमी से मेरे जल को    गंदा तुम कर जाते हो ।
मूर्ति यहां विसर्जित कर क्या तुमने कुछ पुण्य किया।
जहरीले रंगों तत्वों से तुमने जल मेरा बदरंग किया ।।
डाल शवो की भस्म अस्थियां  क्या उनको स्वर्ग मिलेगा ।
जिंदा परिवारों की सोचो जल के बिना उन्हें नरक दीखेगा ।
सोडा साबुन प्रतिवन्धित हो  जल पीने के लायक करो ।
शहरों के गंदे नालों से     मुझको पूरा ही मुक्त करो ।।
कालिन्दी पर्वत से निकली कालिन्दी मैं कहलाती हूं।
यमनोत्री से नीचे उतरके संगम प्रयाग तक जाती हूं ।
शहर गांव उपवन फुलवारी सबको सींचती जाती हॅं।
संग सरस्वती गंगा में मिल    त्रिवेणी बन जाती हूं।।
मैं सूर्यदेव की बेटी हूं इस जगको जीवन देने आई ।
शीतलता के साथ धरा की भी प्यास बुझाने आयी ।
यमदेव हमारे भाई हैं    उनकी असीम करुणा है।
स्नान किया जिसने मुझमें यमबंधन में ना बंधता है।।
वृन्दावन में मेरे तट पर सुन्दर घाटों की श्रृंखला है  
मंदिर-देवालय, छतरियां मेरे तट पर धर्मशाला है  ।
मथुरा बृन्दावन गोकुल बरसाना मेरे तट पर बसते हैं।
बाग महल मकबरे हवेलियां मेरे तट पर बनते हैं ।।
कालियामर्दन हमने देखा कंस शिरच्छेदन देखा है।
कृष्ण की लीला देखा है वंशी की तान भी देखा है।
गौवों का गोचर देखा है पक्षी का कलरव देखा है।
गीता की वाणी सुनकर भारत का कौशल देखा है।।
मेरा पानी फसल उगाता वरना मरण तुम्हारा है ।
मेरे रहने से ही तो सम्पूर्ण अस्तित्व तुम्हारा है    ।
पशुपक्षी मेरा पान करें जलचर भी मुझमें पलते हैं।
विश्व कोनों से आये पथिक हम पर जान लुटांते हैं।।
अगली पीढ़ी का तुम सोचो  कैसे वह रह पाएगी   
जल के खातिर युद्ध करे जलबिन जलभुन जाएगी ।
रेत माफिया कुछ तो सोचो गर्दन को रेत रहे मेरी ।
मुठ्ठी से बालू खिसकी तो जीवन गया बिना देरी   ।।
मेरे तट पर आज अनेक कालोनिया बनती जाती हैं।
कचरे को घर से निकाल मुझमें फैलायी जाती है  ।
मेरे तट पर जंगल थे अब एक भी नहीं दीखते हैं  ।
खग भी मेरे तट पर अपने बसेरों के लिए तरसते हैं।।
अगर भेंट करना है कुछ तो तट पर यह संकल्प करो ।
पीड़ा नही किसी को देकर निर्वल के दुख दूर करो   ।
भक्तो सबसे हाथ जोड़कर मैं यही कामना करती हूं ।
गांठ बांध लो जल ही जीवन सत्य यही मैं कहती हूं  ।।
डा. राधेश्याम द्विवेदी

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