Wednesday, November 29, 2017

श्रीकृष्ण की गीता और चालीसा आचार्य डा.राधेश्याम द्विवेदी

                                                                           

महाभारत धर्म ,अर्थ , काम और मोक्ष को प्रदान करने वाला कल्पवृक्ष है। इस ग्रन्थ के मुख्य विषय तथा इस महायुद्ध के महानायक भगवान श्रीकृष्ण हैं। निःशस्त्र होते हुए भी भगवान श्रीकृष्ण ही महाभारत के प्रधान योद्धा हैं। इसलिये सम्पूर्ण महाभारत भगवान वासुदेव के ही नाम, रुप, लीला और धामका संकीर्तन है। नारायण के नाम से इस ग्रन्थ के मङ्गलाचरण में व्यास जी ने सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण की वन्दना की हैं। पाण्डवों के एकमात्र रक्षक तो भगवान श्रीकृष्ण ही थे, उन्कीं की कृपा और युक्ति से ही भीम सेन के द्वारा जरासन्ध मारा गया और युधिष्ठिर का राजसूययज्ञ सम्पन्न हुआ। घूत में पराजित हुए पाण्डवों की पत्नी द्रौपदी जब भरी सभा में दुःशासन के द्वारा नग्न की जा रही थी , तब उसकी करुण पुकार सुनकर उस वनमाली ने वस्त्रावतार धारण किया। शाक का एक पत्ता खाकर भत्तभयहारी भगवान ने दुर्वासा के कोप से पाण्वों की रक्षा की। युद्ध को रोकने के लिये श्रीकृष्ण शान्तिदूत बने , किंतु दुर्योधन के अहंकारके कारण युद्धारम्भ हुआ और राजसूययज्ञ के अग्रपूज्य भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथि बने। संग्रामभूमि में उन्हों ने अर्जुन के माध्यम से विश्व को गीता रुपी दुर्लभ रत्न प्रदान किया। भीष्म, द्रोण, कर्ण और अश्वत्थामा जैसे महारथियों के दिव्यास्त्रों से उन्होंने पाण्डवोंकी रक्षा की। युद्ध का अन्त हुआ और युधिष्ठिर का धर्मराज्य स्थापित हुआ। पाण्डवों का एकमात्र वंशधर उत्तराका पुत्र परीक्षित अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से मृत उत्पन्न हुआ , किंतु भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से ही उसे जीवनदान मिला। अन्त में गान्धारी के शाप को स्वीकार करके महाभारत के महानायक भगवान श्रीकृष्ण ने उद्दण्ड यादवकुल के परस्पर गृहयुद्ध में संहार के साथ अपनी मानवी लीला का संवरण किया।
श्रीमद्भगवद गीता:-श्रीमद्भगवद गीता को हिंदू धर्म में सर्वोपरि माना गया है। मार्गशीर्ष माह की एकादशी के दिन गीता के उपदेश भगवान कृष्ण ने पांडव पुत्र अर्जुन को दिए थे। इस दिन के लिए मान्यता है कि कुरुक्षेत्र की भूमि पर जब अर्जुन ने शत्रुओं को देखकर वो विचलित हो गए और उन्होनें शस्त्र उठाने से मना कर दिया। उस समय भगवान कृष्ण ने अर्जुन को मनुष्य धर्म और कर्म का उपदेश दिया। गीता में भगवान कृष्ण के दिए हुए मानव और उसके कर्म से जुड़े उपदेश लिखे हुए हैं। माना जाता है कि कुरुक्षेत्र की भूमि पर ही गीता का जन्म हुआ था। गीता का जन्म लगभग 5 हजार वर्ष पूर्व हुआ था।
गीता सिर्फ हिंदू धर्म को मार्गदर्शित नहीं करती है बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति को ज्ञान देती है। गीता में 18 अध्याय हैं और इसमें मानव जीवन से जुड़े कर्मों और धर्मों का ब्योरा है। गीता की प्रमुखता है कि इसमें सतयुग से लेकर कलयुग तक के मनुष्यों के कर्म और धर्म का ज्ञान है। श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया ज्ञान गीता में लिखा गया, ये मनुष्य जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। गीता जयंती के दिन लोग भगवद गीता का पाठ करते हैं। देश के सभी भगवान कृष्ण के मंदिरों में गीता का पाठ होता है और उसका पूजन किया जाता है। इस दिन भजन और आरती किए जाने का भी विशेष विधान माना जाता है।
अक्षरश सत्य हुआ 5000 सालों पहले की गई भविष्यवाणी :-आज की राजनीति में नैतिकता का जो पतन हो रहा है, इसका संकेत श्री मद् भगवत गीता में भगवान कृष्ण 5000 साल पूर्व ही दे चुके हैं। श्रीकृष्ण द्वारा 5000 सालों पहले की गई भविष्यवाणी अक्षरश सत्य हुआ है।
1.आज की राजनीति में नैतिकता का जो पतन हो रहा है,
2. कलियुग में मनुष्य के लिए जीवन की अधिकतम अवधि 50 वर्ष तक होगी ।
3. कलियुग में मनुष्य अपने बुजुर्ग माता पिता की सेवा नहीं करेगा।
4. मनुष्य को ठंड, हवा, गर्मी, बारिश और बर्फ से बहुत नुकसान भुगतना होगा।
5. लोग अपने झगड़े, भूख, प्यास , बीमारी और गंभीर चिंता से परेशान हो जाएगे ।  
श्रीकृष्ण चालीसा :-
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।
अरुणअधरजनु बिम्बफल, नयनकमलअभिराम॥
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥
जय यदुनंदन जय जगवंदन।जय वसुदेव देवकी नन्दन॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे। जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नट-नागर, नाग नथइया॥ कृष्ण कन्हइया धेनु चरइया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो। आओ दीनन कष्ट निवारो॥
वंशी मधुर अधर धरि टेरौ। होवे पूर्ण विनय यह मेरौ॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो। आज लाज भारत की राखो॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे। मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
राजित राजिव नयन विशाला। मोर मुकुट वैजन्तीमाला॥
कुंडल श्रवण, पीत पट आछे। कटि किंकिणी काछनी काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे। छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥
मस्तक तिलक, अलक घुंघराले। आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥
करि पय पान, पूतनहि तार्‌यो। अका बका कागासुर मार्‌यो॥
मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला। भै शीतल लखतहिं नंदलाला॥
सुरपति जब ब्रज चढ़्‌यो रिसाई। मूसर धार वारि वर्षाई॥
लगत लगत व्रज चहन बहायो। गोवर्धन नख धारि बचायो॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई। मुख मंह चौदह भुवन दिखाई॥
दुष्ट कंस अति उधम मचायो॥ कोटि कमल जब फूल मंगायो॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें। चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें॥
करि गोपिन संग रास विलासा। सबकी पूरण करी अभिलाषा॥
केतिक महा असुर संहार्‌यो। कंसहि केस पकड़ि दै मार्‌यो॥
मात-पिता की बन्दि छुड़ाई। उग्रसेन कहं राज दिलाई॥
महि से मृतक छहों सुत लायो। मातु देवकी शोक मिटायो॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी। लाये षट दश सहसकुमारी॥
दै भीमहिं तृण चीर सहारा। जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥
असुर बकासुर आदिक मार्‌यो।भक्तन के तब कष्ट निवार्‌यो॥
दीन सुदामा के दुख टार्‌यो।तंदुल तीन मूंठ मुख डार्‌यो॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे। दुर्योधन के मेवा त्यागे॥
लखी प्रेम की महिमा भारी। ऐसे श्याम दीन हितकारी॥
भारत के पारथ रथ हांके। लिये चक्र कर नहिं बल थाके॥
निज गीता के ज्ञान सुनाए। भक्तन हृदय सुधा वर्षाए॥
मीरा थी ऐसी मतवाली। विष पी गई बजाकर ताली॥
राना भेजा सांप पिटारी। शालीग्राम बने बनवारी॥
निज माया तुम विधिहिं दिखायो। उर ते संशय सकल मिटायो॥
तब शत निन्दा करि तत्काला। जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई। दीनानाथ लाज अब जाई॥
तुरतहि वसन बने नंदलाला। बढ़े चीर भै अरि मुंह काला॥
अस अनाथ के नाथ कन्हइया। डूबत भंवर बचावइ नइया॥
'सुन्दरदास' आस उर धारी। दया दृष्टि कीजै बनवारी॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो। क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै। बोलो कृष्ण कन्हइया की जै॥
दोहा
यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि।

अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि॥

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