Thursday, November 16, 2017

पी जाऊ जहर घुटके - डा. राधेश्याम द्विवेदी


आगरा मण्डल तूने कैसा ये सबक दे दिया ?
जीवन समर्पित तुझपर तुमने ये सिला दिया।
दिलमें जगह बनाकर सांसों में तुम्हें बसाया।
तुम अन्त में एसे अटके हमको सिला दिया।।
सांसों  में ख्वाब सपने सब इर्द गिर्द आते।
बीते हुए वे लमहे सब रील बनकर चलते।
कुछ कर्ज रह गया है कुछ फर्ज रह गया है।
बार बार तेरी यादें दिल में जो बस गया है।।
आये अनेक अफसर पर एसा नही था कोई।
हम जी जान भी लुटाये कीमत ना आंका कोई।
पद अवसर शरीर सब कुछ छूटेगा यहीं पर।
नेकनीयती ही जाती सब रह जाती धरा पर।।
पाया बहुत यहां पर यहां का होकर जो रहा मैं।
पर अन्त सबक कड़वा भोगा ना कोई जहां पर।
सब स्वार्थ में भरे हैं अपनी ही अपनी देखें।
आने पर खुशी बांटे जाने पर दुख वे देते।।
हम तरस खाते तुमपर तुम भले जैसे भी हो।
हम झेल लेंगें सबकुछ हर कष्ट भी कैसे हो।
जीवन का ये सफर भी कट जाएगा एसे तैसे।
पर तुम यदि खुशी पाओं पीजाऊ जहर घुटके।।



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