जम्बू नामक
प्राकृतिक द्वीप में आर्यावर्त नामक भूखण्ड को भारत खण्ड के नाम से जाना जाता है। इसी
के अन्तर्गत ब्रजमण्डल की धरती भी है। इसमें
स्थित 12 बनों तथा 24 उपबनों का नाम बहुत ही आदर व श्रद्धा के साथ लिया जाता है। इसी
ब्रजमण्डल में एक अगर बन भी रहा है, जहां अगर नामक जंगली वृक्षों की कभी बहुलता रही।
इसी अगर वन से ही मेरा अस्तित्व बनते बनते आज एक विश्व प्रसिद्ध ताजनगरी आगरा के रुप
में आ बना है। अगर वन की पावन भूमि को अभिसिंचित करते हुए मेरा सांस्कृतिक स्वरूप अति
समृद्ध रहा है। भारत पाकिस्तान
तथा बांग्लादेश के मुस्लिमों के पूर्वज हिन्दू ही रहे हैं। जो धर्म बदले उन्हें अच्छी
अच्छी जागीरें दी गयीं। वे बड़ी संख्या में
यहां के प्राचीन किलों व मंदिरों को तोड़कर नये किले मस्जिद तथा सैरगाहें बनवाने लगे।
हमारे पुरानी करीगरों को काम मिल गया। वे भी अपने जी जान से इस काम को करने लगे। जहां
मौका पाया वहां अपने सनातनी चिन्हों व प्रतीकों को भी इन भवनों पर उकेरने लगे। आगरा
में इमारतों पर इसे आसानी से देखा व समझा जा सकता है। सदियों से सियासतदारों ने आगरा को लूटा
और दोहन किया बादलगढ़ पर ही अकबर ने भव्य किला बनवाया था। ताजेश्वर महादेव मंदिर पर
ताजमहल बनाने की बात विल्कुल काल्पनिक तो नहीं है। इसी तरह फतेहपुर सीकरी भी जंगली
व पहाड़ी किला नहीं था। यहां जैनियों के इतनी मूर्तियां मिली हैं कि इसे नया कहने के
बजाय अतिक्रमण की संज्ञा देना किसी भी सूरत में गलत नहीं होगा। अकबर का मकबरा भी पंचायत
हिन्दू मंदिर की शैली में बना देखा जा सकता है। इसी तरह एत्माउद्दौला, मेहताब बाग जैसे
दर्जनों स्मारक मेरे ही वक्षस्थल पर ही बने हैं। कुछ की संरक्षण व व्यवस्था के लिए
भारत सरकार एक निश्चित शुल्क भी निर्धारित कर रखी है। कुछ निःशुल्क भी है। मेरा ताजमहल
तो दुनिया के सात अजूबों में शुमार है। पहले सप्ताह में एक दिन शुक्रवार को यह निःशुल्क
देखा जाता था। बाद में यह व्यवस्था वन्द कर दी गयी अब तो इस दिन नागरिकों के लिए ताज
बन्द रहता है। केवल नमाजियों के लिए दोपहर बाद खोला जाता है। परम्परा के नाम पर आज
ना केवल स्थानीय अपितु भारत व विदेशों के मुस्लिम इस मस्जिद में नमाज पढ़ने से ना तो
अपने को रोक पाते हैं और ना ही प्रशासन उसे रोक पाता है। परम्परा के नाम पर ताज परिसर
में दशहरा के दिन मेला लगता था जो अब नहीं करने दिया जाता हैं। ताज के अन्दर आंवले
की पूजा भी सदियों से चली आ रही थी। जिसे अब हमेशा हमेशा के लिए पेड़ कटवाकर खत्म करवा
दिया गया। गौशाला का नाम आज भी चला आ रहा है। इसे हिन्दू जन अपने शिव मंदिर का एक भाग
आज भी मानते हैं । आज भी यमुना की रेती या कोरिडोर से ही ताज की पूजा होने की बात मरे
कुछ भक्त करते रहते हैं। मैं अपनी वेदना में क्या क्या गिनाऊ आप मुझे क्या क्या समझने
लगेगें ? परन्तु यह सत्य है कि एक समय था जब मैं पहले देश की राजधानी था। बाद में मैं
आगरा सूबे का, फिर पश्मिोत्तर प्रान्त का और बहुत बाद में आगरा एक मण्डल का मुख्यालय
मात्र रह पाया। यही पर प्रदेश का पहला उच्च न्यायालय बना था। समय चक्र ने करवटें बदली।
मैं अपनी शान दिन बदिन खोता गया।
मैं
सिसक रहा हूं। मैं रो भी नहीं
पा रहा हॅू। मैं तड़प रहा हूं। मैं दुखी हूं। मैं उलझन में हूं। सरकार आती है, चली जाती है और मैं
वहीं का वहीं रह
जाता हूं। मेरी बात न विधायक सुनता
है, ना सांसद। ना
मंत्री सुनता है और नाही
संतरी। मुझे अपना अक्षुण्य गौरवशाली
अतीत चाहिए। मुझे चाहिए कल-कल करती
यमुना की पहले जैसी
निर्मल जल धारा। मुझे
सरपट चलती गाड़ियां चाहिए और आसमान में
उड़ने वाले तेज गति के वायुयान। मुझे
चाहिए मेल मिलाप भाई चारा तथा जो इतिहास मेरा
छीन लिया गया है उसे पुनः
सुधारा जाय दुबारा लाया जाय। मुझे सुरक्षा चाहिए शान्ति चाहिए तथा निरापद आवागमन का साधन चाहिए।
मेरी यमुना में पानी के नाम पर
मलमूत्र और फैक्ट्रियों के
कचरे मात्र है। दिल्ली, हरियाणा से ही मलमूत्र
आ रहा है। मेरी यमुना को शुद्ध करने
के लिए हजारों करोड़ रुपये जल निगम वाले
डकार चुके हैं। सिर्फ बारिश में यमुना कुछ समय के लिए भरी
हुई दिखती है। इसके बाद तो सिर्फ नाला
ही नजर आती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के
बाद भी यमुना में
गंदगी डाली जा रही है।
अब ना तो भैंसें
स्नान कर पा रही
हैं। ना धोबी कपड़े
धो पा रहे हैं।
नालों की गंदगी जा
रही है। कोई रोकने वाला नहीं। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बस देखने के
लिए हैं। यमुना में पानी नहीं है तो मेरी
कोख से पानी निकाला
जा रहा है। आखिर मैं इतना पानी कहां से लाऊं। आज
मेरा आंचल तो राजस्थान का
रेगिस्तान हो गया है।
मुस्लिम आक्रान्ताओं ने हमेशा ही हमारा शोषण किया है। अपनी सियासत को पक्का करने के
लिए हर सियासतदारों ने यहां की भोली भली जनता का शोषण किया है। कारीगरों के हाथ कटवा
दिये गये। उनके परिश्रम का मूल्य नहीं दिया गया । सत्तादारों ने कर्मचारियों का भरपूर
शोषण किया है। यह क्रम आज भी जारी है । आज भी अपनी सत्ता के लिए कर्मचारियों का शोषण
बन्द नहीं हैं। कर्मचारियों तथा रिटायरियों के हितलाभ पर बड़े बड़ें कुण्डली मार कर बैठ
गये हैं। प्रशासन मे रुचि ना होने वालों को तथा भ्रष्टाचार की उगाही के लिए सामान्य
गति से काम नहीं हो रहे हैं। यह रुप प्रायः हर दफतर कार्यालय में देखा जा सकता है।
भाषण मात्र देने से पेट की
आग नहीं बुझती जनाब। उसके लिए पेट में कुछ अन्न जल जाना चाहिए।
जमीनी स्तर पर काम दिखना
भी चाहिए। हम जब पुराना
इतिहास संजो लेते हैं तो आपके विकास
की गंगा के साक्षी बन
जायेंगे या सूखी रेगिस्तानी
यमुना का बेहाल कारस्तानी
भी झेल लेगें। मैं तो यही सूत्र
वाक्य दुहराऊंगा-
सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।
(सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी
बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।)
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