वामन अवतार, भगवान विष्णु का पाँचवाँ अवतार है, जो छोटे कद के ब्राह्मण बालक के रूप में प्रकट हुआ था. इस अवतार का उद्देश्य अहंकारी असुर राजा बलि को पराजित कर तीनों लोकों में संतुलन स्थापित करना था, जिसने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था. वामन देव ने राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी और अपने विराट रूप में दो पगों से पूरी पृथ्वी और स्वर्ग को नाप लिया, तीसरे पग के लिए बलि के सिर को भूमि के रूप में उपयोग किया और उसे पाताल लोक भेज दिया. आज भाद्रपद शुक्ल द्वादशी के दिन वामन जयंती वामन भगवान के अवतरण दिवस के रूप में मनायी जाती है। वामन देव का जन्म माता अदिति व कश्यप ऋषि के पुत्र के रूप में हुआ था। वामन देव की पूजा में आप श्री वामन स्तोत्र और वामन अवतार (हिन्दी) का पाठ कर सकते है। इससे आपके ऊपर भगवान विष्णु की कृपा भी बनी रहती है।
🙏🙏श्री वामन स्तोत्र🙏🙏
अदितिरुवाच ।
नमस्ते देवदेवेश सर्वव्यापिञ्जनार्दन ।
सत्त्वादिगुणभेदेन लोकव्य़ापारकारणे ॥ 1
नमस्ते बहुरूपाय अरूपाय नमो नमः ।
सर्वैकाद्भुतरूपाय निर्गुणाय गुणात्मने ॥ 2
नमस्ते लोकनाथाय परमज्ञानरूपिणे ।
सद्भक्तजनवात्सल्यशीलिने मङ्गलात्मने ॥
यस्यावताररूपाणि ह्यर्चयन्ति मुनीश्वराः ।
तमादिपुरुषं देवं नमामीष्टार्थसिद्धये ॥ 4 ॥
यं न जानन्ति श्रुतयो यं न जायन्ति सूरयः ।
तं नमामि जगद्धेतुं मायिनं तममायिनम् ॥ 5
यस्य़ावलोकनं चित्रं मायोपद्रववारणं ।
जगद्रूपं जगत्पालं तं वन्दे पद्मजाधवम् ॥ 6
यो देवस्त्यक्तसङ्गानां शान्तानां करुणार्णवः
करोति ह्यात्मना सङ्गं तं वन्दे सङ्गवर्जितम् ॥
यत्पादाब्जजलक्लिन्नसेवारञ्जितमस्तकाः ।
अवापुः परमां सिद्धिं तं वन्दे सर्ववन्दितम् ॥
यज्ञेश्वरं यज्ञभुजं यज्ञकर्मसुनिष्ठितं ।
नमामि यज्ञफलदं यज्ञकर्मप्रभोदकम् ॥ 9 ॥
अजामिलोऽपि पापात्मा यन्नामोच्चारणादनु
प्राप्तवान्परमं धाम तं वन्दे लोकसाक्षिणम्
ब्रह्माद्या अपि ये देवा यन्मायापाशयन्त्रिताः
न जानन्ति परं भावं तं वन्दे सर्वनायकम् ॥
हृत्पद्मनिलयोऽज्ञानां दूरस्थ इव भाति यः ।
प्रमाणातीतसद्भावं तं वन्दे ज्ञानसाक्षिणम् ॥
यन्मुखाद्ब्राह्मणो जातो बाहुभ्य़ः क्षत्रियोऽजनि ।
तथैव ऊरुतो वैश्याः पद्भ्यां शूद्रो अजायत।
मनसश्चन्द्रमा जातो जातः सूर्यश्च चक्षुषः ।
मुखादिन्द्रश्चाऽग्निश्च प्राणाद्वायुरजायत ॥
त्वमिन्द्रः पवनः सोमस्त्वमीशानस्त्वमन्तकः
त्वमग्निर्निरृतिश्चैव वरुणस्त्वं दिवाकरः ॥
देवाश्च स्थावराश्चैव पिशाचाश्चैव राक्षसाः ।
गिरयः सिद्धगन्धर्वा नद्यो भूमिश्च सागराः ॥
त्वमेव जगतामीशो यन्नामास्ति परात्परः ।
त्वद्रूपमखिलं तस्मात्पुत्रान्मे पाहि श्रीहरे ॥
इति स्तुत्वा देवधात्री देवं नत्वा पुनः पुनः ।
उवाच प्राञ्जलिर्भूत्वा हर्षाश्रुक्षालितस्तनी ॥
अनुग्राह्यास्मि देवेश हरे सर्वादिकारण ।
अकण्टकश्रियं देहि मत्सुतानां दिवौकसाम्
अन्तर्यामिन् जगद्रूप सर्वभूत परेश्वर ।
तवाज्ञातं किमस्तीह किं मां मोहयसि प्रभो।।
🙏 वामन का अवतार🙏
नन्हे रूप में आए प्रभु, वामन बनकर आए,
त्रिलोकी से भिक्षा माँगी, सबका मन हर लाए।
राजा बलि ने दान दिया, तीन कदम की भूमि,
वामन ने धरती, अम्बर, समूची ली धूमि।
एक पैर से भूमि ढंकी, दूजे से आकाश,
तीसरे ने तज दी राजा बलि की सारी आश।
प्रभु की लीला अपरंपार, कौन इसे समझ पाए,
वामन रूप में नारायण ने, जग का कल्याण कराए।
अधर्म पर विजय पाई, धर्म का मान बढ़ाया,
वामन अवतार ने फिर से, न्याय का दीप जलाया।
राजा बलि ने झुका मस्तक, समर्पण कर दिया,
प्रभु के चरणों में अपना, जीवन अर्पित किया।
वामन ने दिया आशीर्वाद, संतोष का वरदान,
पाताल में स्थान दिया, फिर किया सम्मान।
युगों-युगों तक गूँजेगी, वामन की ये गाथा,
धर्म पर चलने वालों को, मिलेगी सदैव राह।
छोटे रूप में आई शक्ति, महान थी उसकी माया,
वामन अवतार ने जग में, सत्य का पाठ पढ़ाया।
राजा बलि ने पाई थी, प्रभु की सच्ची प्रीति,
भक्ति के इस अद्भुत फल से, वो हुए अति रीति।
प्रभु ने किया संतुष्ट उन्हें, स्नेह दिया अपार,
वामन के इस अवतार ने, किया जगत उद्धार।
धन्य हुआ वो राज बलि, जिसने प्रभु पहचाना,
वामन रूप में विष्णु ने, सत्य धर्म को माना।
भक्ति की ये गाथा सुन, जन-जन ने समझा,
सच्चे मन से जो भी मांगे, प्रभु का द्वार न बंद हुआ।
प्रभु की महिमा गाते हैं, सब देव और मुनि,
वामन का रूप अद्वितीय, अचरज भरे सभी।
धन, वैभव और बल से, बड़ा नहीं इंसान,
जो झुके प्रभु चरणों में, वही है सच्चा महान।
राजा बलि की भक्ति ने, सबको राह दिखाई,
वामन अवतार ने फिर से, सच्चाई जग में लाई।
युगों-युगों तक यह कथा, अमर रहेगी सदा,
धर्म और भक्ति के पथ पर, चलेगा जो, वही बढ़ेगा।।
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