भारत में तंत्र साधना :-
भारत में तंत्र साधना एक प्राचीन आध्यात्मिक अभ्यास है जिसका उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिक विकास प्राप्त करना है।यह वेदों, उपनिषदों और पुराणों से उत्पन्न हुई है और इसमें दीक्षा, अनुष्ठान, मंत्रोच्चार, योग, हस्त मुद्राएं, आंतरिक और बाह्य पूजा, और जटिल ब्रह्मांडीय सिद्धांतों का उपयोग शामिल होता है। तंत्र शरीर को दिव्य मानता है और कुंडलिनी शक्ति के जागरण के माध्यम से मुक्ति प्राप्त करने पर केंद्रित है, जो साधक को व्यक्तिगत बुराइयों (जैसे काम, क्रोध, लोभ, और मोह) पर विजय पाने में मदद करती है।
कौन होता है योगी :-
योगी तकनीकी रूप से पुरुष है, और योगिनी शब्द महिला अभ्यासियों के लिए प्रयुक्त होता है। दोनों शब्दों का प्रयोग आज भी उन्हीं अर्थों में किया जाता है, लेकिन योगी शब्द का प्रयोग सामान्य रूप से किसी भी धर्म या आध्यात्मिक पद्धति से संबंधित योग और संबंधित ध्यान साधनाओं के पुरुष और महिला दोनों अभ्यासियों के लिए भी किया जाता है।पुरुष शरीर में योग का अभ्यास करने वाले मनुष्य को योगी कहा जाता है। स्त्री शरीर में योग का अभ्यास करने वाली को योगिनी कहा जाता है।
कौन होती हैं योगिनी:-
योगिनी वह स्त्री है जो योग और तंत्र के रास्ते पर चलकर आध्यात्मिक साधना करती है। ये देवी शक्ति के विभिन्न रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं और इन्हें अलौकिक शक्तियों का वाहक माना जाता है। सामान्य रूप से ऊपरी तौर पर सप्त मातृका समूह में सात देवियां - ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इंद्राणी (ऐंद्री) और चामुंडी) आती हैं। इनमें चंडी और महालक्ष्मी दो और देवियों को मिलाकर नौ-मातृका समूह बनाती हैं। प्रत्येक मातृका को एक योगिनी मान लिया जाता है और वह 8 अन्य योगिनियों से संबद्ध होती है जिसके परिणामस्वरूप 81 (9 गुणा 9) का समूह बन जाता है।
वास्तव में योगिनियाँ ना तो सप्त मात्रिकाएं हैं, ना ही दश महाविद्याएं हैं। वे नव दुर्गा भी नहीं हैं। वे यक्षिणियों के समूह हैं जो सदैव साथ रहती हैं तथा साथ ही कार्य करती हैं। पारंपरिक ग्रंथों में योगिनियों को देवताओं की परिचारिकाओं के रूप में वर्णित किया गया है, जबकि सामान्य अर्थ में योग करने वाली स्त्री को योगिनी कहा जाता है।
चौसठ/ इक्यासी योगिनियाँ :-
चौसठ योगिनियाँ हिंदू धर्म में शक्तिशाली स्त्री देवियां होती हैं । 64 योगिनियों को समर्पित अनेक प्राचीन मंदिर है। जो 9वीं और 12वीं शताब्दी के बीच चंदेल, कलचुरी, गुर्जर-प्रतिहार वंश और शाही चोल जैसे राजवंशों द्वारा निर्मित हुए हैं, ये मंदिर मुख्यतः मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और तमिलनाडु में स्थित हैं। इनकी गोलाकार, खुली संरचनाएँ तांत्रिक और शैव परंपराओं को दर्शाती हैं।
बीस चौसठ योगिनी मन्दिर:-
भारत में लगभग बीस चौसठ योगिनी मंदिर मौजूद होने के प्रमाण मिलते हैं, जिनमें से अकेले मध्य प्रदेश में दस मन्दिर स्थित हैं। जो मितावली- मुरैना ; भेड़घाट - जबलपुर; खजुराहो ; हिंगलाजगढ़; शहडोल; नरेश्वर(नारेसर) - ग्वालियर; बादोह - विदिशा ; उज्जैन ; जीरापुर धार; और आगर मालवा में स्थित हैं। इसके बाद उत्तर प्रदेश का नम्बर आता है जहां चार योगिनी मन्दिर लोखड़ी और रिखियाँ बांदा; दुधई - ललितपुर और वाराणसी में स्थित हैं। उड़ीसा में दो, हीरापुर और रानीपुर झरिया में एक एक मन्दिर अवस्थित है। तमिलनाडु के कांचीपुरम, कावेरी पक्कम में एक; दिल्ली में एक योगमाया/योगिनी मंदिर तथा झारखंड के गोड्डा में भी एक योगिनी मंदिर अवस्थित है। नये शोध और अनुसंधान से ये संख्या और भी बढ़ सकती है। मितावली मुरैना (मध्य प्रदेश) के मन्दिर की प्रेरणा से भारतीय संसद के पुराने भवन की परिकल्पना की गई थी।
छत विहीन हाइपेथ्रल शाक्त मंदिर :-
ये योगिनी मंदिर आठवीं से बारहवीं शताब्दी के छत विहीन हाइपेथ्रल मंदिर हैं जो हिंदू तंत्र में योग की महिला गुरु योगिनियों के लिए हैं, जिन्हें व्यापक रूप से देवी विशेष रूप से पार्वती के समान माना जाता है। शक्ति साधना के विभिन्न साधनों के रूप में इस पद्धति का विकास हुआ है। शक्ति पूजा में तांत्रिक परंपराएं शामिल होती हैं, जो देवी की पूजा के लिए विशिष्ट अनुष्ठानों और मंत्रों का उपयोग करती हैं। भारत में योगिनियों की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न कथाएं हैं।
मां काली का अवतार:-
चौसठ योगिनी मंदिर या चौंसठ योगिनियां प्रायःआदिशक्ति मां काली का अवतार या अंश होती हैं। 64 योगनियों की उत्पत्ति माँ काली से हुआ है। इनमें से हर एक योगिनी की अपनी एक ख़ास विशेषता है। इन 64 योगिनों की उत्पत्ति 8 मातृकाओं से हुई है। इन आठ देवियों ने शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज राक्षसों के नाश में माँ दुर्गा की सहायता की थी। हर एक मातृका की सहायक आठ शक्तियाँ थीं।
दो प्रकार का समूह :-
मोटे रूप में योगिनी मुख्यत: दो प्रकार की होती हैं: अष्ट योगिनियो और चौसठ योगिनियो का समूह । अष्ट योगिनी, 8 योगिनियों का समूह है, और चौसठ योगिनी, 64 योगिनियों का समूह है। इसीलिए सबको मिलाकर इनकी संख्या 64 हो जाती है। इन आठ योगनियों से ही समस्त योगिनियां अलौकिक शक्तिओं से सम्पन्न हैं और इंद्रजाल, जादू, वशीकरण, मारण, स्तंभन इत्यादि कर्म इन्हीं की कृपा द्वारा ही सफल हो पाते हैं। जब भी कोइ शक्तियां सिद्ध करने के लिए माता काली की अराधना करता है, तो अप्रत्यक्ष रूप से माता काली के साथ ये 64 योगिनियाँ उनके साथ होती हैं।
योगिनियों को " वास्तविक रूप से मादा पशुओं का रूप धारण करने" और अन्य लोगों को रूपांतरित करने की क्षमता से जोड़ा जाता है। इन्हें भैरव से जोड़ा जाता है, ये अक्सर खोपड़ी और अन्य तांत्रिक प्रतीकों को धारण करती हैं, और श्मशान घाटों और अन्य सीमांत स्थानों में साधना करती हैं। ये शक्तिशाली और खतरनाक होती हैं।
योगिनी मंदिर:-
वर्तमान मंदिर या तो गोलाकार होते हैं या आयताकार हैं। ये मध्य और उत्तरी भारत में उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश और ओडिशा राज्यों में फैले हुए हैं। ये लुप्त मंदिर है जिनके स्थान जीवित योगिनी प्रतिमाओं से पहचाने जाते हैं। पूरे उपमहाद्वीप में, उत्तर में दिल्ली से लेकर पश्चिम में राजस्थान की सीमा तक, पूर्व में वृहत्तर बंगाल और दक्षिण में तमिलनाडु तक,ये मन्दिर व्यापक रूप से फैले हुए हैं ।
कहा जाता है कि घोर नामक दैत्य के साथ युद्ध करते हुए माता ने उक्त 64 अवतार लिए थे । यह भी माना जाता है कि ये सभी माता पार्वती की सखियां हैं। इन 64 देवियों में से 10 महाविद्याएं और सिद्ध विद्याओं की भी गणना की जाती है। चौसठ योगिनी हिंदू धर्म की तांत्रिक परंपरा में देवी शक्ति के 64 रूपों का एक समूह है।
स्कंदपुराण का काशीखंड खंड ,जो वाराणसी में 64 योगिनियों के भेष बदलकर आने की पौराणिक कथा का वर्णन करता है, कहता है कि पूजा सरल हो सकती है, क्योंकि योगिनियों को केवल फल, धूप और प्रकाश के दैनिक दान की आवश्यकता होती है। यह शरद ऋतु के लिए एक प्रमुख अनुष्ठान का वर्णन करता है, जिसमें अग्नि आहुति, योगिनियों के नामों का पाठ और अनुष्ठानिक प्रसाद शामिल हैं, जबकि वाराणसी के सभी निवासियों को वसंत ऋतु में होली के त्योहार पर देवियों का सम्मान करने के लिए मंदिर जाना चाहिए ।
चौसठ योगिनी मंदिर को लेकर आस-पास के लोगों का कहना है कि आज भी यह मंदिर शंकर भगवान की तंत्र साधना के कवच से ढका हुआ है। यहां पर किसी को भी रात में ठहरने की इजाजत नहीं है। ये योगिनियां देवी के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करती हैं, जैसे ज्ञान, शक्ति, सौंदर्य और करुणा आदि। चौसठ योगिनी मंदिरों को अक्सर गोलाकार या आयताकार संरचनाओं में बनाया जाता है, जिनमें प्रत्येक में 64 छोटे कक्ष या आले होते हैं, जो प्रत्येक योगिनी को समर्पित होते हैं। यहां सूर्य के गोचर के आधार पर ज्योतिष और गणित की शिक्षा प्रदान की जाती थी। इनके मंदिर में 64 कमरे होते हैं और हर कमरे में भगवान शिव और योगिनी की मूर्ति स्थापित होती है। इसी कारण इसे चौसठ योगिनी मंदिर कहा जाता है। दिन ढलने के पश्चात् यहां तंत्र साधक(अघोरी) आते हैं और भगवान शिव की योगिनियों को जाग्रत करने का प्रयास करते हैं। मंदिर को "तांत्रिक विश्वविद्यालय" के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यह माना जाता है कि यहां तंत्र-मंत्र की शिक्षा दी जाती थी।
भारत में बीस चौसठ योगिनी मंदिर :-
भारत में लगभग बीस चौसठ योगिनी मंदिर हैं, जिनमें से 10 मध्य प्रदेश में स्थित हैं। ये मंदिर 64 योगिनियों को समर्पित हैं, जिनमें से प्रत्येक एक दिव्य स्त्री शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। समस्त योगिनियां अलौकिक शक्तिओं से सम्पन्न हैं तथा इंद्रजाल, जादू, वशीकरण, मारण, स्तंभन इत्यादि कर्म इन्हीं की कृपा द्वारा ही सफल हो पाते हैं।
अष्ट योगिनियां :-
प्रमुख रूप से आठ योगिनियों के नाम इस प्रकार हैं:-
1.सुर-सुंदरी योगिनी,
2.मनोहरा योगिनी,
3. कनकवती योगिनी,
4.कामेश्वरी योगिनी,
5. रति सुंदरी योगिनी,
6. पद्मिनी योगिनी,
7. नतिनी योगिनी और
8. मधुमती योगिनी।
चौंसठ योगिनियों के नाम :-
1.बहुरूप, 3.तारा, 3.नर्मदा, 4.यमुना, 5.शांति, 6.वारुणी 7.क्षेमंकरी, 8.ऐन्द्री, 9.वाराही, 10.रणवीरा, 11.वानर-मुखी, 12.वैष्णवी, 13.कालरात्रि, 14.वैद्यरूपा, 15.चर्चिका, 16.बेतली,17.छिन्नमस्तिका, 18.वृषवाहन, 19.ज्वालाकामिनी, 20.घटवार, 21.कराकाली, 22.सरस्वती, 23.बिरूपा, 24.कौवेरी. 25.भलुका, 26.नारसिंही, 27.बिरजा,28.विकतांना, 29.महालक्ष्मी, 30.कौमारी,31.महामाया, 32.रति, 33.करकरी, 34.सर्पश्या, 35.यक्षिणी, 36.विनायकी, 37.विंध्यवासिनी, 38. वीरकुमारी, 39. माहेश्वरी, 40.अम्बिका, 41.कामिनी, 42.घटाबरी, 43.स्तुती, 44.काली, 45.उमा, 46.नारायणी, 47.समुद्र, 48.ब्रह्मिनी, 49.ज्वालामुखी,50.आग्नेयी, 51.अदिति, 51.चन्द्रकान्ति, 53.वायुवेगा, 54.चामुण्डा, 55.मूरति, 56.गंगा, 57.धूमावती, 58.गांधार, 59.सर्व मंगला, 60.अजिता, 61.सूर्यपुत्री 62.वायु वीणा, 63.अघोर और 64. भद्रकाली।
चौसठ योगिनी मंदिर की वास्तुकला :-
मंदिर का लेआउट गोलाकार है, जिसमें मुख्य देवता को समर्पित केंद्रीय मंदिर है और उसके चारों ओर गोलाकार पैटर्न में 64 सहायक मंदिर हैं । प्रत्येक सहायक मंदिर में एक अलग देवी की मूर्ति है, जो स्त्री देवत्व के विभिन्न रूपों का प्रतीक है। चौसठ योगिनी मंदिर, 64 योगिनियों को समर्पित भारतीय मंदिर स्थापत्य कला की उत्कृष्ट कृतियाँ हैं, जो दिव्य स्त्री और पुरुष ऊर्जाओं के गतिशील अंतर्संबंध का प्रतिनिधित्व करती हैं। पहाड़ियों की चोटियों पर स्थित, इन मंदिरों में जटिल डिज़ाइन तत्व हैं, जिनमें मंदिर और मूर्तियाँ ब्रह्मांडीय ऊर्जा, प्रकृति और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक हैं।
64 योगिनियों के योगिनी प्रधान मंदिर 64 योगिनियों के मंदिर, विशेष रूप से योगिनी-प्रधान, भारत में स्थित हैं और ये मंदिर तांत्रिक प्रथाओं और देवी योगिनी की पूजा के लिए जाने जाते हैं। ये मंदिर गोलाकार होते हैं और 64 छोटे-छोटे कमरों से युक्त होते हैं, जिनमें से प्रत्येक में एक शिवलिंग और एक योगिनी की मूर्ति होती है। प्रत्येक मंदिर में एक योगिनी की छवि या प्रतिमा होती है, जिसे अक्सर पशु के सिर या रूपात्मक विशेषताओं के साथ दर्शाया जाता है, जो प्रकृति, वनों और भैरव पंथ से उनके संबंध को दर्शाता है।योगिनियों को गतिशील नृत्य, ध्यान या राजसी मुद्रा में दिखाया जाता है, जो उनकी विविध शक्तियों और पहलुओं का प्रतीक है।
एक केंद्रीय मंदिर का विधान : -
64 योगिनियों के मंदिर में एक केंद्रीय मंदिर का विधान होता है, जिसमें आमतौर पर भगवान शिव या शक्ति की मूर्ति होती है। यह मंदिर, 64 योगिनियों के कक्षों से घिरा होता है, जो दिव्य पुरुष और स्त्री ऊर्जा की एकता का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसमें आमतौर पर भगवान शिव या शक्ति की मूर्ति होती है, जो आसपास के प्रत्येक कक्ष से दिखाई देती है, जो दिव्य पुरुष और स्त्री ऊर्जा की एकता का प्रतिनिधित्व करती है।
एक खुला केंद्रीय प्रांगण : -
64 योगिनियों के मंदिर में एक खुला केंद्रीय प्रांगण होता है, जिसके चारों ओर 64 योगिनियों की मूर्तियाँ स्थापित होती हैं। यह प्रांगण आमतौर पर एक गोलाकार या अर्धवृत्ताकार आकार का होता है, और इसके केंद्र में एक मंडप या मंदिर होता है, जो मुख्य देवता को समर्पित होता है। प्रांगण खुला होता है, जो प्रकृति और ईश्वर के बीच के संबंध को और पुष्ट करता है। प्रांगण के चारों ओर स्तंभ हैं, जिन पर अक्सर जटिल नक्काशी की गई है, जो अलग- अलग मंदिरों को सहारा देते हैं।
मन्दिर की संरचना : -
64 योगिनियों के मंदिर की संरचना गोलाकार है, जिसमें 64 छोटे कमरे हैं, प्रत्येक में एक शिवलिंग है। यह मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है और इसकी बाहरी त्रिज्या 170 फीट है. मंदिर का डिज़ाइन इस तरह से किया गया है कि यह भूकंप जैसी आपदाओं को झेलने में सक्षम है. इसके केंद्रीय भाग में स्लैब के आवरण हैं जिनमें छिद्र हैं, जिससे बारिश का पानी एक बड़े भूमिगत भंडारण में जमा हो जाता है. मंदिर आमतौर पर एक मंजिला होते हैं और इनकी छत सपाट पत्थर की स्लैब से बनी होती है। पत्थर की भार वहन करने वाली संरचनाएँ मंदिर को स्थायित्व प्रदान करती हैं।
पहाड़ी की चोटी पर स्थित स्थान :-
मंदिर आमतौर पर पहाड़ी की चोटी पर बनाए जाते हैं, जो सांसारिक और दिव्य क्षेत्रों के बीच संबंध का प्रतीक हैं।पहाड़ी की चोटी पर लगभग 100 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह अद्भुत मंदिर, अपनी गोलाकार संरचना के कारण उड़न तश्तरी जैसा प्रतीत होता है। पहाड़ी की चोटी पर योगिनी मंदिर बनाने के पीछे कई कारण हैं, जिनमें आध्यात्मिक, भौगोलिक और सांस्कृतिक महत्व शामिल हैं। ये मंदिर अक्सर एकांत और ऊंचे स्थानों पर बनाए जाते थे, जो ध्यान और साधना के लिए उपयुक्त माने जाते थे। पहाड़ की चोटी को ऊर्जा का केंद्र माना जाता है, और योगिनियों को शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। इस प्रकार, मंदिर को पहाड़ी पर बनाने से आध्यात्मिक शक्ति और पवित्रता की भावना बढ़ जाती है. पहाड़ी की चोटी पर स्थित मंदिर, एकांत और शांति प्रदान करते हैं, जो ध्यान और साधना के लिए आदर्श वातावरण बनाते हैं। यह योगिनियों की पूजा और उनके साथ जुड़ने के लिए एक उपयुक्त स्थान माना जाता है. कुछ योगिनी मंदिरों को तंत्र साधना के लिए भी जाना जाता है। पहाड़ी की चोटी पर स्थित मंदिर, तंत्र साधकों को एकांत और गुप्त वातावरण प्रदान करते थे, जहां वे अपनी साधना कर सकते थे. कुछ मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन काल में देवी-देवता पहाड़ों पर निवास करते थे, इसलिए मंदिरों को पहाड़ों पर बनाना शुभ माना जाता था. पहाड़ी की चोटी पर स्थित मंदिर, निचले इलाकों की तुलना में अधिक सुरक्षित होते थे। प्राचीन काल में, इन मंदिरों को हमलों से बचाने के लिए भी पहाड़ों पर बनाया जाता था. पहाड़ी की चोटी पर मंदिर बनाने से वास्तुकला को भी एक अनूठा रूप मिलता है। यह मंदिर को आसपास के वातावरण के साथ एकीकृत करता है और एक विशिष्ट दृश्य प्रभाव पैदा करता है. पहाड़ी की चोटी पर स्थित मंदिर, पर्यटकों और तीर्थयात्रियों के लिए भी एक आकर्षक स्थान होते हैं। यह मंदिर के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को भी बढ़ाता है।
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।
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