Friday, September 19, 2025

गंगा सागर है आस्था त्याग और विश्वास की कहानी ,सगर पुत्रों की कुर्बानी और भगीरथ प्रयास की जुबानी ✍️आचार्य डॉ.राधेश्याम द्विवेदी



कर्दम ऋषि ब्रह्मा जी के पुत्र थे, वे भगवान के प्रेमी, पिता के आज्ञाकारी और जन्मजात विरक्त थे। ब्रह्मा जी ने उनको आदेश दिया कि सृष्टि का कार्य आगे बढाओ। कर्दम ऋषि का गृहस्थाश्रम में जाने का मन नहीं था पर पिता की आज्ञा को मानना भी आवश्यक था अत: उन्होंने बीच का रास्ता निकाला।

घोर तपस्या से कपिल पुत्र की प्राप्ति:- 

ऋषि कपिल एक महत्वपूर्ण ऋषि हैं और उन्हें इसलिए भी अधिक महत्व दिया जाता है क्योंकि उन्हें भगवान विष्णु (हिंदू त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का एक अंश) का पाँचवाँ अवतार माना जाता है ।कर्दम ऋषि ने विवाह पूर्व सतयुग में सरस्वती नदी के किनारे भगवान विष्णु की घोर तपस्या की थी। उसी के फलस्वरूप भगवान विष्णु कपिल मुनि के रूप में कर्दम ऋषि के यहां अवतरित हुए थे। इनकी माता स्वायंभुव मनु की पुत्री देवहूति थी। कला, अनुसुइया, श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरुंधती तथा शान्ति आदि कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल मुनि की बहनें थीं।

कपिलवस्तु रहा कपिल का जन्म स्थान 

कपिलवस्तु, नेपाल भारत सीमा पर बसे नगर में बुद्ध पैदा हुए थे, कपिल के नाम पर बसा नगर था और सगर के पुत्र ने सागर के किनारे कपिल को क्रुद्ध रूप में  शाप पाया तथा बाद में सगर के पौत्र भागीरथ ने वहीं गंगा नदी का सागर के साथ संगम कराया। इससे मालूम होता है कि कपिल का जन्मस्थान कपिलवस्तु और तपस्या क्षेत्र गंगासागर था। इससे कम-से- कम इतना तो अवश्य कह सकते हैं कि बुद्ध के पहले कपिल का नाम फैल चुका था। यदि हम कपिल के शिष्य आसुरि का शतपथ ब्राह्मण के आसुरि से अभिन्न मानें तो कह सकते हैं कि कम-से-कम ब्राह्मण काल में कपिल की स्थिति रही होगी। इस प्रकार 700 वर्ष ई.पू. कपिल का काल माना जा सकता है। कहा गया है - 

शंकर तेरी जटा से बहती है गंग धारा।

सागर में मिलके पुत्रों को जिसने तारा।

पौराणिक कथा के अनुसार, जब माता गंगा भगवान शिव की जटा से निकलकर पृथ्वी पर पहुंची थीं तब वह भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम में जाकर सागर में मिल गई थीं। मां गंगा के पावन जल से राजा सागर के साठ हजार शाप ग्रस्त पुत्रों का उद्धार हुआ था। इस घटना की याद में तीर्थ गंगा सागर का नाम प्रसिद्ध हुआ। कहा भी गया है - 

सब तीर्थ बार बार, गंगासागर एक बार"

ये वह भजन हैं जो हर साल देश भर से गंगासागर के पवित्र तट पर पहुँचने के लिए यात्रा करने वाले हर तीर्थयात्री के दिल में अमर हो गया है। गंगासागर मेले की गंभीरता भक्तों की भावना से खूबसूरती से भरी हुई है, जो मानते हैं कि गंगासागर के पवित्र जल में डुबकी लगाने से उन्हें मोक्ष प्राप्त करने में मदद मिलेगी। 

आस्था और विश्वास का अद्भुत समन्वय:- 

पश्चिम बंगाल के सुदूर दक्षिण मेखलाकार सागर द्वीप अवस्थित है। इस डेल्टा द्वीप के दक्षिण तरफ फ़ेनिल समुद्र है जो अपनी उत्तल लहरों से दूरदूर तक शुभ्र बालुकामय सुविस्तृत स्थल खण्ड का विस्तार है। चारों ओर फैले  बन इसकी शोभा में चार चांद लगाते हैं। गंगासागर, वह भूमि है,जहाँ आस्था और विश्वास का संगम होता है, कोलकाता से लगभग 118 किलोमीटर दूर गंगा डेल्टा के दक्षिणी सिरे पर, पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना के क्षेत्र में स्थित है। गंगासागर या सागर द्वीप, मुख्य भूमि से कटा हुआ एक भूभाग है, जो चांदी की रेत, साफ आसमान, गहरे नीले समुद्र और प्रतिष्ठित कपिल भगवान के आश्रम के साथ एक अद्वितीय धार्मिक माहौल बनाता है। ये वह तट हैं जहाँ पवित्र गंगा हज़ारों किमी. की यात्रा के बाद समुद्र से मिलकर विलीन हो जाती है।

एक जीवन्त कविता :- 

गंगासागर जीवन्त कविता है। गंगासागर की तीर्थयात्रा संसार (जीवन, मृत्यु और अस्तित्व की चक्रियता ) से निर्वाण (मोक्ष/ मुक्ति) तक की आकर्षक यात्रा काप्रतिबिंब है। यह एक ऐसी यात्रा जिसने विद्वानों, लेखकों, तर्कवादियों और अध्यात्म वादियों को सदियों से आकर्षित किया है। गंगा सागर दर्शन की भीड़ सांसारिक से आध्यात्मिक दोनों दृष्टियों से मनुष्य की अथक खोज की एक अंतर्दृष्टि है। समय बीतने के साथ मिथक किंवदंतियों में बदल गए, किंवदंतियों कहानियों में और कहानियाँ विश्वासों में बदल गईं। राजा भगीरथ के नाम पर गंगा को भी "भागीरथी" नाम दिया गया और सगर राजा के नाम पर समुद्र का नाम "सागर" रखा गया और द्वीप का नाम "सागर द्वीप" रखा गया। 

पौराणिक महत्व:- 

गंगासागर की पौराणिक कथा जीवन और मृत्यु के चक्र और मोक्ष के आकर्षण के बीच के मिलन के बारे में है। और इस भक्तिमय नियति का केंद्र प्रतिष्ठित कपिल भगवान का मंदिर है। भागवत पुराण के अनुसार, महर्षि कपिल मुनि (या ऋषि कपिल) का जन्म ऋषि कर्दम और पृथ्वी के शासक स्वायंभुव मनु की पुत्री देवहुति के घर हुआ था। महाभारत में ये सांख्य के वक्ता कहे गए हैं। इनको अग्नि काअवतार और ब्रह्मा का मानसपुत्र भी पुराण मेंकहा गया है। श्रीमद्भगवत के अनुसार कपिल विष्णु के पंचम अवतार माने गए हैं।

        कर्दम मुनि ने अपने पिता भगवान ब्रह्मा के वचनों का पालन करते हुए समर्पित रूप से कठोर तपस्या की। उनके समर्पण से प्रसन्न होकर, सर्वोच्च आत्मा भगवान विष्णु अपने दिव्य रूप में प्रकट हुए। परमानंद में, कर्दम मुनि ने भगवान की महिमा की प्रशंसा की। प्रसन्न होकर, भगवान ने उन्हें देवहुति से विवाह करने के लिए कहा और भविष्यवाणी की किउनकी नौ बेटियाँ होंगी और समय के साथ, पूरी सृष्टि जीवों से भर जाएगी। और वह एक अवतार के रूप में जन्म लेंगे और दुनिया को सांख्य दर्शन सिखाएँगे। कपिल मुनि ने अपने प्रारंभिक वर्षों में ही वेदों का अथाह ज्ञान प्राप्त कर लिया और सांख्य दर्शन को अमर कर दिया। सभ्भवत: कपिल ने  ही सर्वप्रथम ध्यान और तपस्या का मार्ग बतलाया था। उनके पहले कर्म ही एक मार्ग था और ज्ञान केवल चर्चा तक सीमित था। ज्ञान को साधना का रूप देकर कपिल ने त्याग, तपस्या एवं समाधि को भारतीय संस्कृति में पहली बार प्रतिष्ठित किया।

गंगासागर की कथा:- 

भगवान राम के पूर्वज और इक्ष्वाकु वंश के शासक "राजा सगर" या "सगर राजा" ने ऋषि और्व के निर्देशानुसार अश्वमेध यज्ञ करने का निर्णय लिया था। ऐसा माना जाता है कि 100 अश्वमेध यज्ञ करने से पूरी पृथ्वी पर आधिपत्य प्राप्त करने में मदद मिलती है। देवताओं के राजा भगवान इंद्र 100 अश्वमेध यज्ञ को पूरा करने वाले एकमात्र व्यक्ति थे। उन्हें डर था कि वे किसी नश्वर के हाथों अपना प्रभुत्व खो देंगे, और उन्होंने राजा सगर के घोड़े को कपिल मुनि के आश्रम के पास छिपा दिया था।

60,000 सगर पुत्रों का वीभत्स अन्त:- 

क्रोध से भरकर, सगर राजा ने अपने 60,000 पुत्रों (सगर पुत्रों) को खोए हुए घोड़े का पता लगाने के लिए भेजा। सगर पुत्रों ने अपने रास्ते में आने वाली हर चीज़ को नष्ट कर दिया और ऋषि के आश्रम पहुँच गए। घोड़े को खोजने पर, सगर पुत्रों ने ऋषि को चोर समझ लिया और ध्यान कर रहे ऋषि को गालियाँ देनी शुरू कर दीं। इसके बाद होने वाले हंगामे ने ऋषि की तपस्या में बाधा डाली। क्रोधित होकर, कपि मुनि ने अपनी आँखें खोलीं और 60,000 सगर पुत्रों को जलाकर राख कर दिया, जिससे उनकी आत्माएँ नरक में चली गईं।

सगर पौत्र अंशुमान ने खोज निकाला:- 

कई वर्षों बाद, सगर राजा के वंशज अंशुमान ने कपिल मुनि के आश्रम में घोड़े को अभी भी खड़ा पाया। उन्होंने ऋषि को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। अंशुमान के प्रयास से संतुष्ट होकर ऋषि ने घोड़े को वापस लाने की अनुमति दी और उन्हें पता चला कि उनके पूर्वजों की आत्माएँ केवल गंगा के पवित्र जल से श्राद्ध करने के बाद ही मुक्त हो सकती हैं। हालाँकि राजा अंगशुमान और उनके बेटे दिलीप श्राद्ध पूरा नहीं कर पाए क्योंकि भयंकर सूखे के कारण अगस्त्य मुनि ने समुद्र का सारा पानी पी लिया था।

भागीरथ की घोर तपस्या:- 

एक पीढ़ी बाद, राजा भगीरथ ने निंदित आत्माओं को मुक्त करने का कार्य अपने हाथ में लिया और सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा से अपने पूर्वजों की आत्माओं को मुक्त करने के लिए प्रार्थना की। उन्होंने उनसे भगवान विष्णु से प्रार्थना करने के लिए कहा कि वे पवित्र गंगा को धरती पर आने दें। सहमत होने पर, उन्होंने चेतावनी दी कि अगर गंगा को अनियंत्रित किया गया तो इसका विशाल बल पूरी सृष्टि को मिटा देगा और उन्हें भगवान शिव से प्रार्थना करने के लिए कहा। शिव अपनी जटाओं पर गंगा का पूरा बल धारण करने के लिए सहमत हो गए। शिव की जटाओं की घुमावदार भूलभुलैया में, गंगा ने अपना क्रूर बल खो दिया और धीरे-धीरे पूरे अस्तित्व को सहलाते हुए धरती पर उतरीं। भगीरथ अपने पूर्वजों का अंतिम संस्कार करने में सक्षम हुए, जिससे आत्माओं को पाताल लोक की आग से मुक्ति मिली।

सामाजिक महत्व:- 

गंगासागर सिर्फ़ एक तीर्थस्थल नहीं है; यह भावना, संस्कृति, आस्था और विश्वास का संगम है - जीवन का उत्सव है । धर्म हमेशा से ही इस भूमि की संस्कृति में समाया हुआ है। मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर मनाया जाने वाला गंगासागर कोई अपवाद नहीं है। मकर संक्रांति का भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व है। यह एक ऐसा उत्सव है जो विभिन्न क्षेत्रीय संस्कृतियों के लिए एक साझा केंद्र बिंदु बन जाता है, जो एक साथ मिलकर एकता का परिचय देते हैं। गंगासागर की महत्ता बताते हुए नारद मुनि युधिष्ठिर से कहते हैं कि दस अश्व मेघ यज्ञ जैसा पुण्य एक बार गंगा सागर स्नान से मिलता है। वैसे तो गंगा हर जगह पवित्र हैं किन्तु हरिद्वार प्रयाग और गंगा सागर में स्नान से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। स्कन्द पुराण में ऐसा वर्णन आया है कि तीर्थ दर्शन सब प्रकार का दान सर्व देवता का पूजा सर्व विधि तपस्या सर्व प्रकार के दान करने से जो पुण्य मिलता है वह एक बार गंगा सागर स्नान से ही प्राप्त हो जाता है। गंगा सागर आज नित्य तीर्थ बन गया है फिरभी मकर संक्रांति के अवसर पर गंगा सागर तीर्थ स्नान परम पुण्य दायक है।

बैतरणी पार:- 

गरुड़ पुराण के अध्याय 47 में एक रहस्यमय नदी का नाम "बैतरणी" बताया गया है। यह नदी नश्वर दुनिया की भौतिक संपत्ति का प्रतीक है, जिसे छोड़ना मुश्किल है। ऐसा माना जाता है कि मृतकों की आत्माओं को नदी पार करनी चाहिए, और जो लोग दयालु नहीं रहे हैं या दूसरों की मदद के लिए आगे नहीं आए हैं, वे नदी में गिर जाएंगे और अनंत काल के रसातल में नष्ट हो जाएंगे। असहाय आत्मा गाय की पूंछ से चिपके हुए नदी पार करने में सक्षम होती है ।

पुण्य स्नान:- 

मोक्ष पुनर्जन्म से मुक्ति का एक अंतर्निहित अर्थ है जिसे धरती पर रहते हुए प्राप्त किया जा सकता है। कुछ भारतीय परंपराओं ने दुनिया के भीतर नैतिक कार्यों पर मुक्ति पर जोर दिया है, एक रहस्यमय परिवर्तन जो व्यक्ति को अहंकार और दुख के धुंधले बादल से परे परिस्थितियों की वास्तविकता का सामना करने कीअनुमति देता है। मोक्ष की यह मुक्ति मकर संक्रांति की शुभ महातिथि पर गंगासागर में दिव्य स्नान के माध्यम से भक्तों की आत्माओं में जागृत होती है। एक ऐसा नजारा जिसे देखना मुश्किल है। दुनिया भर में लाखों भक्त पवित्र संगम के अमृत में डुबकी लगाने के लिए सांस रोककर इंतजार करते हैं।

मोक्ष का सोपान :- 

इस पौराणिक कथा में आस्था रखते हुए, दुनिया भर से लाखों तीर्थयात्री मोक्ष की तलाश में पितृ पक्ष और मकर संक्रांति के दौरान गंगासागर मेले में आते हैं। माना जाता है कि पवित्र जल में डुबकी लगाने से सभी दुख और पाप धुल जाते हैं। इस विश्वास के साथ, लाखों लोग कपिल मुनि आश्रम में "सब तीर्थ बार बार गंगा सागर एकबार" भजन गाते हुए आते हैं।

             लेखक सपत्नीक


कपिल भगवान का मन्दिर 

1)प्राचीन मंदिर:- 

गंगासागर की तट पर स्थित कपिल मुनि मंदिर काफी पुराना है. इस जगह के साथ पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं. इसका विशेष महत्व है. गंगासागर की तट पर स्थित कपिल मुनि आश्रम गंगा और सागर के मिलन के पहले से ही प्रतिष्ठित है। सन 434 अब्द में इस तीर्थ क्षेत्र में एक मन्दिर अवस्थित था। यह मंदिर बार बार समुद्र द्वारा ग्रास किए जाने के कारण अपना स्थान बदलता रहा है। पता चलता है कि मन्दिर का निर्माण रानी सत्य भामा ने 430 अब्द में कराया था। इस जगह के साथ पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं. इसका विशेष महत्व है. 

2)एक और मंदिर :- 

कपिल मुनि का मंदिर 1437 में स्वामी रामानंद ने स्थापित किया था. पहला मंदिर वर्तमान जगह से लगभग 20 किमी की दूरी पर था. लेकिन जलस्तर बढ़ने से यह समुद्र में समा गया. इसे फिर दूसरी जगह स्थापित किया गया. पर कुछ सालों बाद यह मंदिर भी समुद्र में समा गया. बताया जाता है कि इसी तरह कपिल मुनि के तीन मंदिर समुद्र में समा चुके हैं. अब वर्तमान मंदिर पर भी खतरा मंडरा रहा है. बताया जाता है कि वर्तमान मंदिर का निर्माण 1970 के दशक में किया गया था. लेकिन जब यह बना था, उस समय सागर से करीब चार किमी की दूरी पर था. वर्तमान समय में सागर से कपिल मुनि मंदिर की दूरी कम होकर मात्र 500 मीटर रह गयी है.

 3)गुप्त काल का एक मंदिर:- 

इस स्थान पर गुप्त काल का एक मंदिर था।  तटीय कटाव के कारण यह मंदिर नष्ट हो गया था । 19वीं शताब्दी के शुरुआती दौर में, जब वॉरेन हेस्टिंग्स ने द्वीप से वनस्पति साफ़ करवा दी और यह स्थल पूर्व मेदिनीपुर के एक स्थानीय बंगाली हिंदू ज़मींदार यदुराम की ज़मींदारी के अंतर्गत आ गया, जिन्होंने कपिलमुनि के मंदिर को पुनः प्राप्त किया। फिर यह स्थल अयोध्या के रामानंदी साधुओं के नियंत्रण में आ गया । पुराना मंदिर बांस से बना था जो 50 के दशक के अंत या 60 के दशक की शुरुआत में चक्रवातों के कारण नष्ट हो गया था। पहला ईंट से बना मंदिर 1961 में 20,000 रुपये में बनाया गया था, और मंदिर की छत एस्बेस्टस से बनी थी । पूर्व मुख्यमंत्री बिधान चंद्र रॉय ने मंदिर के निर्माण में 11,000 रुपये का योगदान दिया था।

4.)नया मंदिर: 1974 में वर्तमान:- 

वर्तमान मंदिर 1974 ई में बनाया जाना कहा जाता है। इसे सात बार परिवर्तन के दौर से गुजरना पड़ा है। वर्तमान में यह मंदिर अयोध्या स्थित हनुमान गढ़ी द्वारा नियंत्रित होता है। चूँकि मंदिर और मंदिर परिसर गंगा नदी और बंगाल की खाड़ी के तट पर हैं, इसलिए कभी-कभी उच्च ज्वार या चक्रवाती तूफानों के दौरान समुद्र और नदी का पानी मंदिर और मंदिर परिसर में प्रवेश कर जाता है । मई 2021 के अंत में बंगाल की खाड़ी में यास नाम का एक शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय चक्रवात बना । इस तूफान के प्रभाव से ज्वार का पानी कपिल मुनि के आश्रम और मंदिर में प्रवेश कर गया। 

ग्लोबल वार्मिंग ने बढ़ाई मुश्किलें:- 

ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बंगाल सहित पूरे देश के तटवर्ती इलाकों में समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है. इन क्षेत्रों में मौसम में भी तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है. बंगाल समेत देश के तटवर्ती इलाकों में आये दिन चक्रवाती तूफान आ रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों में चक्रवाती तूफानों की संख्या, गति व तीव्रता में काफी वृद्धि देखी गयी है. इसका असर सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थल गंगा सागर पर भी पड़ रहा है.

110 मीटर भू-भाग हो गया था जलमग्न:- 

कोलकाता से करीब 100 किमी दूर दक्षिण 24 परगना जिले के सागर द्वीप पर स्थित यह तीर्थस्थल हर साल छोटा होता जा रहा है. सागर द्वीप वर्तमान में करीब 224.3 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है. यहां 43 गांव हैं. इनमें सबसे बड़ा गांव है, गंगा सागर. समुद्र के बढ़ते जलस्तर ने इस पूरे द्वीप को खतरे में डाल दिया है. जानकार बताते हैं, 1969 से 2022 तक लगभग 52 वर्षों में सागरद्वीप का 31 वर्ग किमी ( लगभग छह किमी का इलाका) क्षेत्र पानी में समा गया है. 1969 के आसपास सागरद्वीप का कुल क्षेत्रफल 255 वर्ग किमी के आस-पास था, जो अब कम होकर 224.3 वर्ग किमी हो गया है. यानी हर साल औसतन 110 मीटर (0.6 वर्ग किमी  का भू-भाग जलमग्न हो रहा है.

वर्तमान कपिल मंदिर भी खतरे में :- 

गंगा सागर में स्थित वर्तमान कपिल मुनि मंदिर भी खतरे में है. अगर अब भी केंद्र व राज्य सरकार सचेत नहीं हुई, तो अगले एक दशक में कपिल मुनि मंदिर भी पानी में समा जायेगा. वर्तमान मंदिर का निर्माण 1970 के दशक में किया गया था. लेकिन जब यह बना था, उस समय सागर से करीब चार किमी की दूरी पर था, लेकिन वर्तमान समय में सागर से कपिल मुनि मंदिर की दूरी कम होकर मात्र 500 मीटर रह गयी है. अगर इसी तरह समुद्र का जलस्तर बढ़ता रहा और कटाव जारी रहा, तो बहुत जल्द कपिल मुनि मंदिर भी पानी में समा जायेगा.विशेषज्ञों के अनुसार, तटीय पर्यावरण के मुद्दे अत्यधिक जटिल हैं, इसलिए तटीय क्षेत्र के विकास पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए. भूमि, समुद्र और वायुमंडल के बीच निरंतर भौतिक संपर्क तट को एक गतिशील क्षेत्र बनाता है. सागर द्वीप तट ज्वार-भाटा बहुल वाला क्षेत्र है. अत्यधिक उच्च ज्वार के दौरान यहां उच्च ज्वार छह मीटर तक पहुंच जाता है और कभी-कभी ये प्रभाव चक्रवातों के दौरान बहुत अधिक होते हैं, जो अक्सर तट के इस हिस्से में होते हैं. उस समय तो छह मीटर से उच्च ज्वार आते हैं, जिससे तटवर्ती क्षेत्रों में कटाव बहुत अधिक होता है.

मुख्य मन्दिर में स्थापित विग्रह;- 

यहां मूल रूप में कपिल मुनि मध्य में पद्मासन में योग निद्रा में लीन हैं । इनके बाएं हाथ में कमंडल और दाएं हाथ में जप माला धारण किए हुए हैं। उनके ऊपर पंच नाग का छत्र छाया है।सूर्य और चंदमा भी दिखाया गया है।भगवान कपिल के दक्षिण मां गंगा देवी की गोद में बालक भगीरथ को दिखाया गया है। गंगा जी मकर पर आरूढ़ चार भुजा वाली है। उनके हाथ में शंख चक्र, रत्नकुम्भ और वराभय धारण किए हुए हैं। बाएं तरफ राजा सगर की मूर्ति है।कपिल मुनि के मंदिर में पूजा करने और देवता का आशीर्वाद लेने जाते हैं।  एक और कारण है जिसकी वजह से हर साल लाखों तीर्थयात्री गंगासागर आते हैं। वे आस्था के साथ स्नान करते हैं और कपिल मुनि के मंदिर की ओर पूजा करने और देवता का आशीर्वाद लेने जाते हैं। 

      इन केंद्रीय विग्रह के बाई ओर अष्ट भुजा सिंह वाहिनी श्री जी विशालाक्षी की अलग से मूर्ति विराजमान है।इससे बाई ओर देवराज इंद्र अपने श्याम कर्ण घोड़े के साथ दृष्टव्य हैं।एक अलग भाग में हनुमान जी, देवाधिदेव महादेव कपालेश्वर सपरिवार विराजमान हैं। दीवाल पर श्री कृष्ण और राधा रानी का विग्रह अंकित है।

           अन्य आकर्षण

सागर बीच:- 

सागर बीच सागरद्वीप के सिरे पर स्थित है, जो विश्व के अधिकांश तीर्थयात्रियों में गंगासागर के नाम से लोकप्रिय है। सागर तट में हर साल लाखों पर्यटकों का मेला लगता है क्योंकि श्रद्धालुगण गंगा नदी में पवित्र डुबकी लगाने के लिए सागरद्वीप आते हैं।सुनहरी रेत और कैसुरीना के पेड़ों के साथ यह शहर का सबसे लोकप्रिय बीच है, जो सूर्योदय और सूर्यास्त के सुंदर दृश्य प्रदान करता है. एक प्रसिद्ध धार्मिक तीर्थ यात्रा का हिस्सा होने के अलावा, यह प्राचीन सागर तट सूर्यास्त का आनंद लेने के लिए एक शांत-निर्मल, सुखद वातावरण प्रदान करता है।

भारत सेवा आश्रम:- 

सुप्रसिद्ध आध्यात्मिक लोकहितैषी संघटन है जिसमें संन्यासी और नि:स्वार्थीकार्यकर्ता भ्रातृभाव से कार्य करते हैं। यह संयासियों और नि:स्वार्थ कर्मयोगियों की संस्था है जो मानवता की सेवा के लिये समर्पित है। इसका मुख्यालय कोलकाता में है तथा पूरे भारत तथा विश्व में कोई ४६ अन्य केन्द्र हैं।एक गैर-लाभकारी संस्था का आश्रम, जो तीर्थयात्रियों को ठहरने और आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, खासकर गंगासागर मेले के दौरान. सर्वांगीण राष्ट्रीय उद्धार इसका मुख्य उद्देश्य और संपूर्ण मानवता की नैतिक तथा आध्यात्मिक उन्नति इसका सामान्य लक्ष्य है। भारत सेवाश्रम संघ की स्थापना प्रखर देशप्रेमी सन्त आचार्य श्रीमद् स्वामी प्रणवानन्द जी महाराज ने सन् 1917 में की थी।

ओंकारनाथ मंदिर:- 

ओंकारनाथ मंदिर गंगासागर में एक और बहुत ही पावन मंदिर है। यह मंदिर भगवान ओंकार और उनके उपदेशों को समर्पित है। मनोहारी हरियाली के बीच यह मंदिर अत्यंत शांतमय वातावरण में स्थित है। यहाँ भीड़ बहुत कम होती है और कोई भी व्यक्ति बड़ी शांति से, अपनी भक्ति को पूरा समय देते हुए आराम से पूजा कर सक प्रदान करता है. 

मानानंद कपिलाश्रम:- 

मानानंद कपिलाश्रम वास्तव में पश्चिम बंगाल के गंगासागर द्वीप पर स्थित कपिल मुनि का आश्रम है, जो गंगा नदी और बंगाल की खाड़ी के संगम पर है. यह एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है जहाँ लोग पवित्र स्नान करने आते हैं और भगवान कपिल की पूजा करते हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि वे भगवान विष्णु के अवतार थे. राजा सगर के 60,000 पुत्रों की आत्माओं की मुक्ति के लिए गंगा नदी को पृथ्वी पर लाने में कपिल मुनि की भूमिका से यह स्थान पौराणिक रूप से जुड़ा हुआ है. 

इस्कॉन मंदिर: - 

इस्कॉन गंगासागर मंदिर एक भव्य सांस्कृतिक और वैदिक शिक्षा केंद्र है।जो मुख्य मन्दिर के पास है. यह मंदिर तीन चरणों में बन रहा है और इसमें एक भव्य मंदिर, संग्रहालय, पुस्तकालय, अतिथि गृह और पूर्ण-गुंबद थिएटर जैसी सुविधाएं होंगी. यह बंगाल की सांस्कृतिक विरासत का जश्न मनाने और आध्यात्मिक उत्थान के लिए एक केंद्र के रूप में कार्य करता है. 

अन्य प्रमुख संस्थान :- 

श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर 

योगेंद्र मठ 

ओमकार नाथ यात्री निवास

शंकराचार्य मठ 

चिंता हरेश्वर मन्दिर 

कपिलानंद सांख्य कुटीर आश्रम

वासुदेव मठ

संख्याचार्य योगाश्रम

राम कृष्ण मिशन गंगा सागर 

बल्लभाचार्य आश्रम

श्री लोकनाथ आश्रम

इसके अलावा यहां अन्यानेक चैरिटेबल ट्रस्ट और संस्थाएं भी जन सेवा के लिए समर्पित हैं।


लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। लेखक स्वयं यात्रा करके ये रिपोर्ट बनाई है।

(वॉट्सप नं.+919412300183)




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