Tuesday, September 30, 2025

गयाजी के तीर्थ (6) प्रेत शिला मंदिर ✍️आचार्य डॉ.राधेश्याम द्विवेदी

प्रेतशिला, बिहार के गया जिले में स्थित एक अत्यंत पवित्र स्थल है, जो पितृ तर्पण और पिंडदान के लिए प्रसिद्ध है । यह न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। यहाँ के लोकगीत, पुरानी परंपराएं और धार्मिक विधियाँ इसे विशेष बनाती हैं। यह गया शहर के उत्तर-पश्चिम में स्थित एक पर्वत है जिसके ऊपर प्रेतशिला वेदी है। यह स्थान गया शहर से लगभग 10 किलोमीटर उत्तर- पश्चिम दिशा में स्थित है। रामशिला से यहां की दूरी 4 मील पश्चिम की तरफ है। नारद पुराण में है इसका वर्णन गया की प्रमुख वेदी प्रेतशिला शहर के पश्चिमोत्तर दिशा में स्थित प्रेतगिरि पहाड़ी पर है।
अशांत आत्माओं को मुक्ति 
हिंदू धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता है। मान्यताओं के अनुसार जबतक पुनर्जन्म या मोक्ष नहीं मिलता, आत्माएं भटकती रहती हैं। अकाल मृत्यु के कारण आत्माओं को शांति नहीं मिलती और वो भटकती रहती हैं। ऐसे में गया के प्रेतशिला पिंडवेदी में पिंडदान करने से अशांत आत्माओं को मुक्ति मिलने की मान्यता है।
पवित्र पहाड़ी
प्रेतशिला में स्थित एक पवित्र पहाड़ी माना जाता है कि पूर्वजों के उद्धार के लिए हिंदू अनुष्ठानों से जुड़ा हुआ है। तीर्थयात्री अपने दिवंगत प्रियजनों को मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त करने में मदद करने के लिए पिंड दान करने के लिए इस साइट पर जाते हैं। पहाड़ी आसपास के परिदृश्य का एक सुंदर दृश्य भी प्रदान करती है, जिससे यह एक आध्यात्मिक और सुरम्य स्थान दोनों बन जाता है।
पिंडदान करने से मोक्ष
मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहां के पिंडदान के साथ ब्रह्म कुंड का भी पिंडदान किया जाता है। प्राचीन ग्रंथों में इसका उल्लेख “प्रेतशिला तीर्थ” के रूप में मिलता है। 
यमराज का मंदिर
इस पर्वत पर भगवान यमराज का मंदिर है, जहाँ श्रद्धालु विशेषकर पितृ पक्ष मेला के समय आते हैं। इस स्थान पर की गई पूजा-अर्चना को स्वर्गलोक तक पहुँचने वाला कर्म माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां की पड़ाही पर मृत्यु के देवता भगवान यम को समर्पित एक मंदिर है। मंदिर का निर्माण शुरू में इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था लेकिन इसका कई बार जीर्णोद्धार किया गया। 
भगवान श्री राम भी आए थे प्रेतशिला पिंडवेदी: 
प्रेतशिला भगवान श्री राम से भी जुड़ा है. प्रेतशिला स्थित ब्रह्मकुंड सरोवर में भगवान श्री राम ने स्नान किया था. ब्रह्म कुंड में भी पूर्वजों का पिंडदान किया जाता है. पितृ पक्ष मेले के आश्विन कृष्ण प्रतिपदा को चावल और आटे से पिंडदान करने का विधान है. चावल आटे के पिंंड के पिंडदान से पितरों को जहां प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है. वहीं, ब्रह्मलोक की प्राप्ति भी हो जाती है. जिस प्रकार भगवान विष्णु की पूजा करने पर सभी प्रकार के यज्ञ पूर्ण हो जाते हैं. उसी प्रकार प्रेतशिला में श्राद्ध, तर्पण, स्नान एवं पिंडदान करने से पितरों को प्रेत योनी से मुक्ति और ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है. वहीं, पिंडदान करने वाले को अक्षय फल की प्राप्ति भी होती है.
रामकुंड तालाब
मंदिर के पास रामकुंड नामक एक तालाब देखा जा सकता है। माना जाता है कि भगवान राम ने एक बार इसमें स्नान किया था। यहां पहुंचने के लिए लगभग 380 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, लेकिन जो लोग चढ़ नहीं पाते हैं, वे डोली का सहारा लेते हैं। यहां पिण्ड दान करने से और प्राणी प्रेत योनि से मुक्त होते हैं, खासकर अकाल मृत्यु वाले लोगों की आत्माओं को मुक्ति मिलती है।आश्विन कृष्ण प्रतिपदा को प्रेतशिला पिण्ड दान करने का विधान है। 
भूतों का पहाड़
प्रेतशिला को भूतों का पहाड़ कहा जाता है। अकाल मृत्यु से परलोक सिधारने वाले गया जी में स्थित मुख्य वेदियों में से एक प्रेतशिला पिंडवेदी में निवास करते हैं।यहां अकाल मृत्यु से मरने वालों के निमित पिंडदान से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। वह अपने वंंश परिवार को आशीर्वाद देते हैं। लोगों का मानना है कि इस स्थान पर पिंडदान करने के बाद आत्मा को मोक्ष मिलता है। यहां तिल मिश्रित सत्तु के पिंडदान की विशेष महत्ता है। इस पहाड़ी पर स्थित मंदिर तक पहुंचने के लिए 380 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। 
पितरों की आत्मा को मिलती है मुक्ति
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रेतशिला पिंड वेदी पर श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को तुरंत मुक्ति मिल जाती है और उन्हें भटकना नहीं पड़ता है. यहां पर एक बहुत बड़ी चट्टान है. जिसका संबंध परलोक से माना जाता है। गरुड़ पुराण की कथा के अनुसार इस शिला की दरारों से पितरों का आगमन होता है। वह पिंड ग्रहण करके अपने लोक वापस लौट जाते हैं. इस पर्वत की चोटी पर स्थित प्रेतशिला वेदी पर श्राद्ध करने से भूत-प्रेत योनी में भटकती आत्माओं को भी मुक्ति मिल जाती है।
ब्रह्मा जी ने अपने अंगुठे से खीचीं थी लकीरें:- 
देर संध्या होते ही इस पहाड़ पर कोई नहीं जाता।अकाल मृत्यु वाले पितर जो यहां वास करते हैं, उनकी तरह-तरह की आवाजें यहां सुनाई पड़ती है। यह वह पिंडवेदी है, जहां ब्रह्मा जी ने अपने अंगूठे से तीन लकीरें खींची थी। यहां ब्रह्मा जी के चरण चिह्न हैं और यह धर्मशिला के रूप में जाना जाता है।
सत्तू उड़ाने का विधान:- 
प्रेतशिला में सत्तू उड़ाने का विधान है. यहां पिंडदान और सत्तू उड़ा कर अकाल मृत्यु से मरे पितरों को मोक्ष दिलाने की मान्यता है. मान्यता है, कि यहां सबसे उंची चोटी पर प्रेत वेदी यानि कि जो चट्टान है और उसमें जो दरार है, वह पिंडदान और सतू उड़ाने से पितरों के लिए स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त कर देता है. इस पहाड़ पर यम देवता का भी निवास है और मंदिर है.
पितृपक्ष मेले के तीसरे दिन प्रेतशिला में पिंडदान का विधान है. यहां सतू उड़ाकर पिंडदानी अपने पितर के लिए मोक्ष की कामना करते हैं. यहां पिंडदान से पितर को स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. यहां सत्तू उड़ाकर पिंडदान का अति महत्व है. बताया जाता है कि अकाल मृत्यु जिनके यहां होती है, उनके यहां सूतक काल लगा रहता है. सूतक काल में सत्तू का सेवन वर्जित माना गया है.
पितरों का फोटो लगाकर पिंडदान करने की प्रथा:- 
प्रेतशिला में अपने पितरों का फोटो लगाकर तीर्थ यात्री पिंडदान करते हैं. पिंडदान का कर्मकांड पूरा होने के बाद फोटो को विसर्जित कर दिया जाता है. पितरों के फोटो को पीपल के वृक्ष या बरगद के वृक्ष के पास समर्पित कर दिया जाता है. प्रेतशिला में पितरों के फोटो के साथ पिंडदान के उपरांत तस्वीर को प्रेतशिला स्थित बरगद के वृक्ष या फिर प्रेत शिला में स्थित ब्रह्मकुंड तालाब के पास छोड़ देते हैं. पूर्वजों का पिंडदान के बाद उनकी फोटो को पिंडदानी वापस नहीं ले जाते हैं. उनके द्वारा छोड़े गए फोटो को विभिन्न पुजारी कई स्थान पर बरगद या पीपल के वृक्ष के समीप रख देते हैं या फिर उसे टांग देते हैं.
प्रेत वेदी की परिक्रमा करना आवश्यक:  
पिंडदानी जब सत्तू उड़ाते हैं, तो इस प्रेत वेदी की तीन से पांच बार परिक्रमा करते हैं और सत्तू को चट्टान की दरार में उड़ाते हैं. चट्टान की दरार में जब सत्तू डालकर अपने पितरों के प्रेत योनि से मुक्ति की कामना करते हैं और पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. सत्तू पितरों को प्रिय होता है, क्योंकि इससे उन्हें मोक्ष और स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. इसलिए पहाड़ी की चोटी पर चट्टान के पास हवा में पिंडदानी सत्तू उड़ाते हैं, जिससे अकाल मृत्यु में मरे पूर्वज प्रेतयोनी से मुक्त हो जाते हैं. अकाल मृत्यु को प्राप्त लोगों का श्राद्ध पिंडदान प्रेत शिला में करने का विशेष महत्व है.
ताली बजाकर लगाया जाता है ठहाका 
कहा जाता है कि अकाल मृत्‍यु से मरने वाले पूर्वजों का प्रेतशिला की वेदी पर श्राद्ध और पिंडदान करने का विशेष महत्‍व है। पिंडदान के बाद परिजन ताली बजाकर ठहाका लगाते हैं। इसके पीछे मान्यता है कि अकाल मृत्यु के कारण किसी की मौत होती है, तो उनके घर में लोग रोते हैं। लेकिन प्रेतशिला में पिंडदान करने से उन्हें मोक्ष मिलती है और आज के दिन पितरों का द्वार खुला होता है। यही कारण है कि उनके परिजन तीन बार ताली बजाकर ठहाका लगाकर खुशी का इजहार करते हैं।
शाम के बाद कोई नहीं रहता यहां:- कहा जाता है कि यहां प्रेतशिला के चट्टानों के छिद्रों में अकाल मृत्यु के शिकार पितरों का वास होता है. चूंकि मृत्यु दो तरीके से होती है. एक प्राकृतिक और एक अप्राकृतिक यानि कि अकाल मृत्यु का शिकार होने वाले पितरों का इस प्रेत पर्वत पर वास होता है. यही वजह है, कि इस प्रेत पर्वत को भूतों का पहाड़ भी कहा जाता है. यहां संध्या के बाद कोई व्यक्ति पहाड़ पर नहीं जाता. सिर्फ पुजारी साधु संतों को ही या अपवाद स्वरूप किसी व्यक्ति को ही संध्या पहर के बाद यहां देखा जा सकता है। प्रेत शिला की कहानी इस लिंक द्वारा और स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है - 

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लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवंसूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिकविषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, धर्म, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। लेखक स्वयं चारों धाम की यात्रा कर गया जी के तथ्यों से अवगत हुआ है।
वॉट्सप नं.+919412300183

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