इच्छाकु बंश में राजा सुमति की 55वी पीढ़ी आर्द नामक राजा हुए जिन्होंने अहिंसा और डर छोड़कर असुरों से युद्ध किया! इस युद्ध में राजा ने जिस हिरणाकश्यप को न दिन में मरू न रात में न अस्त्र से न शस्त्र से न देवता न दानव न पशु न पक्षी से मरू ऐसे वरदानी असुर को नाकों चने चबाने पर विवश कर दिया। सारे असुर आर्तनाद करते हुए भाग खड़े हुये जब भी युद्ध होता था। राजा हजारों घोड़ों के वेग से तेज बान चलाते थे ! युद्ध में हिरणाकश्यप के हांथ उठाने से पूर्व हांथो को छेदकर रथ में ही पिरो देते थे!
राजकुमार /राजा युवनाश्व
हिरणाकश्यप युवनाश्व से एक भी युद्ध नहीं जीत पाया, फिर से ब्रह्मा जी ने नर संहार रुकवाते हुए कश्यप ऋषि और सप्त ऋषियों के मध्य संधि कराई गई ।अब अयोध्या से अवध प्रदेश बन गया अर्थात अयोध्या का लगभग सारा भू भाग पुनः अयोध्या के कब्जे में आ गया। यह अयोध्या सरयू नदी के तट अब भी एक तीर्थ में विद्यमान है। इसको बसाने का श्रेय राजा युवनाश्व को है। राजा युवनाश्व के कोई पुत्र नहीं था। पुत्र प्राप्ति के लिए उन्होंने यज्ञ किया।
युवनाश्व का पुत्र मांधात्री
युवनाश्व के पुत्र मांधात्री अयोध्या के एक प्रसिद्ध राजा थे। वह इक्ष्वाकु से उन्नीस पीढ़ियों के बाद सिंहासन पर बैठे। अपने पिता की बाईं पसली से उनके जन्म का लेखा जोखा उनकी रानी के लिए पवित्र यज्ञीय पानी पीने के परिणामस्वरूप, और इंद्र के राजकुमार के जन्म के समय इंद्र द्वारा कही गई बातों के कारण उनके नाम को स्पष्ट रूप से बताने के लिए मंधात्री कहलाए।कहा जाता है कि मंधात्री ने भारत का आधा सिंहासन प्राप्त किया था और एक दिन में पूरी पृथ्वी पर विजय प्राप्त की थी, पुराणों के अनुसार मंधत्री एक महान चक्रवर्ती और सम्राट थे। उन्हें विष्णु का पांचवा अवतार (अवतार) माना जाता था। वह एक महान बलिदानकर्ता थे और कहा जाता है कि उन्होंने राजस्थान में सौ अश्वमेध यज्ञ किए थे।
राजा को गर्भ धारण करना पड़ा
एक दिन यज्ञ मंडप में ही राजा मांधात्री को नींद आ गई। कुछ काल बाद बड़े जोर की प्यास लगी, किन्तु पानी कहीं नहीं मिला। लाचार हो राजा ने मंडप में ही रखा हुआ अभिमन्त्रित जल पी लिया और फिर सो गए। सवेरे पुरोहित ब्राह्मणों ने पूछताछ की कि मंडप में रखा हुआ अभिमंत्रित जल का क्या हुआ ? राजा ने बताया, जोर की प्यास लगी थी, वह पानी मैं पी गया। पुरोहितों ने कहा महाराज बड़ा अनर्थ किया आपने। वह जल अभिमन्त्रित था। उसमें गर्भ की शक्ति थी। वह जल रानी के लिए था। अब आपके ही गर्भ रहेगा। आपके ही पेट से सन्तान उत्पन्न होगी। राजा बहुत घबराए, किन्तु उपाय ही क्या था ? समय आने पर राजा ने गर्भ धारण किया। अन्त में राजा का पेट चीरा गया और उसमें से मान्धाता का जन्म हुआ। राजा को इतना कष्ट हुआ कि उनके प्राण पखेरू उड़ गये। युवनाश्व के पुत्र मानधात्री को महान प्रतापी राजा मान्धाता हुए।
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