Monday, June 26, 2017

आपके आशीर्वाद और स्नेह की आकांक्षा के लिए प्रार्थित, शायद अब इसकी और जरुरत है, साठवी साल गिरह के अवसर पर

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हम जहां से चले थे, आज भी हम हैं वहीं
जिन्दगी का सफर, कट गया कुछ यूं सही।
रास्तों की मुसीबतें, कैसे कटी कैसे सही।
ना बताना चाहता ,जख्म अभी भी है हरी।।

अजनवी कितने मिले, दिखलाई हमदर्दी कभी।
उम्मीद से ज्यादा दिया, अपनत्व बेमिसाल है।
फर्ज मैं करता रहा, जो कर्ज मिट्टी का रहा।
किसके प्रति क्या किया, आज कुछ ना याद है।।

जिनके लिए जन्म भर, बाहर का रस्ता नापा है।
आज अपने खास भी, मुंह मोड़ने की बिसात है।
कम मिले सज्जन हमें , जो याद आयेंगे कभी।
दुर्जनों की करतूत भी, विसराये भी ना जात है।।
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कट गया लम्बा सफर पर, हाथ कुछ आया नहीं।
जिसका लिया उसका दिया, पन्ना खुली किताब है।
माध्यम हम मात्र थे जो, उनके लिए कर दिये।
उनके कर्म उनकी किस्मत, हमपर क्यों जज्बात है।।

आपकी यादों को लेकर, जा रहें हम देश अपने।
भूल चूक माफ करना , हम तो मानव जात है।
कभी कोई भी कमी, आयेगी मेरी जब कभी।
याद कर लेना पथिक, मेरी क्या औकात है।।
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