(भा.पु.स.उत्तरी मण्डल कड़ी 4 )
मंदी एवं द्वितीय विश्व युद्ध के समय की गतिविधिया:-
1937-38 की वार्षिक रिपोर्ट की प्रतियां ही
प्रकाशित हुई है। इसके बाद आर्थिक मंदी एवं द्वितीय विश्व युद्ध के कारण भापुस
के खर्चों एवं गतिविधयों में कटौती के कारण पुरातत्व
के वार्षिक विवरण प्रकाशित होना बन्द हो गये। भारत
सरकार के परामर्श पर
लियोनार्ड वूली को पुरातत्व सर्वेक्षण
के कार्य में सुधार के लिए आमंत्रित
किया गया। उसने 1938-39 में 45 स्थानों का निरीक्षण कर
अपनी संस्तुतियां सरकार को प्रस्तुत की
उसके सुझाव के आधार पर
1940-44 में बरेली के रामनगर अहिछत्रा
का विशद उत्खनन कार्य सम्पन्न हुआ था।। फरवरी 1945 में भापुस के अनेक निर्देशनों
को पुनः प्रस्तावित किया गया। राष्ट्रीय महत्व के प्राचीन स्मारकों
तथा पुरातत्वीय स्थलों तथा अवशेषों के रखरखाव के
लिए सम्पूर्ण देश को बड़ी संख्या
में मंडलों
में विभाजित किया गया है। स्वतंत्र उत्खनन शाखा का गठन हुआ।
संरक्षण का अखिल भारतीय
स्तर का निर्देशन हुआ।
प्रीहिस्ट्री, विज्ञान पुराभिलेख शाखा बनायी गयी। इसके अलावा संग्रहालयों, उत्खनन शाखाओं, प्रागैतिहासिक शाखाओं, पुरालेख शाखाओं, विज्ञान शाखाओं, उद्यान शाखाओं, भवन सर्वेक्षण परियोजनाओं, मंदिर सर्वेक्षण परियोजनाओं तथा अन्तरजलीय पुरातत्व स्कंन्धओ के माध्याम से
पुरातत्वीय अनुसंधान परियोजनाओं के संचालन के
लिए बड़ी संख्या में प्रशिक्षित पुरातत्वविदों, संरक्षकों, पुरालेखविदों, वास्तुकारों तथा वैज्ञानिकों का कार्य दल
भी है। 1945 में ही केन्द्रीय पुरातत्व
सलाहकार समिति का गठन किया
गया। यह शोध संरक्षण
तथा अन्य भावी योजनाओं के विषय में
केन्द्र को सलाह देता
था।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद
की गतिविधिया:-
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारतीय
पुरातत्व सर्वेक्षण का प्रकाशन भी अस्त व्यस्त हो गया। काफी दिनों के बाद 1946 में
एन्सेन्ट इण्डिया का प्रकाशन शुरु हुआ। इसमें दो तरह के लेख सम्लित किये गये। सामान्य
रुचि के तथा व्यवसायिक विशेषज्ञता वाले लेख। 22
अंको में प्रकाशित इस पत्रिका में शोध, उत्खनन, संरक्षण आदि से सम्बंधित विषयों
को समावेशित किया जाने लगा। यह श्रृंखला ह्वीलर के निर्देशन में शुरु हुई थी। श्री
माधो स्वरुप बत्स ने ताज महल के संरक्षण पर एक सारगर्भित इतिहास परक आलेख प्रस्तुत
किया है। अमलानन्द घोष तथा के. सी. पाणिग्रही ने अहिछत्रा के उत्खनन से निकली मृदभाण्डों
का विस्तृत एवं गवेषणात्मक विवेचना प्रस्तुत किया है। एन्सेन्ट इण्डिया के 1947-48
के 4 नम्बर के अंक में वासुदेव शरण अग्रवाल ने अहिछत्रा की 33 प्रकार की मृणमूर्तियों
का विशद एवं वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत किया है। जनवरी 1950 के एन्सेन्ट इण्डिया के
6 नम्बर के अंक में आगरा के ताजमहल, ईदगाह, आगरा किला तथा फतेहपुर सीकरी के दरगाह स्मारकों
का 1944-49 के बीच हुए संरक्षण कार्यों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। 1953 के 8 नं.
के अंक में अहिछत्रा के 16 मुख्य प्रकार तथा 10 शीशें के मनको का वैज्ञानिक शोधपरक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। बाद में 1963-65 में
भी अहिछत्रा उत्खनन हुआ था। 1953 के स्पेशल जुबली के 9 नंबर के अंक में भापुस के प्रारम्भिक
50 वर्षों के सभी अनुभागों व शाखाओं के क्रमबद्ध
विकास व इतिहास को समावेश कया गया है। 1954-55 के 10वें तथा 11वें अंक में हस्तिनापुर
उत्खनन तथा गंगा सतलुज घाटी के मध्य हुए 1950-52 के अन्वेषणों का अत्यन्त विस्तृत बर्णन
प्रस्तुत किया गया है।
स्वतंत्रोत्तर विकास यात्रा
:- 14/15 अगस्त 1947 को देश के विभाजन के फलस्वरुप
हड़प्पन सभ्यता के प्रमुख केन्द्र पाकिस्तान में चले गये। उत्तर भारत में आगरा माण्डू दिल्ली तथा अजमेर के
मुगल स्मारक ही भारत के पास बचे रह गये।देश में स्थित विभिन्न देशी रियासतों को मिलाने
से कुछ भरपाई तो हो गयी तथा नये शिरे से 1953-54 में केन्द्रीय सलाहकार परिषद के
10वें बैठक के अवसर पर प्राचीन वार्षिक रिपोर्ट की श्रृंखला को पुनः संचालित करते हुए
इण्डियन आर्कालाजी ए रिव्यू नामक नये वार्षिक शोध पत्रिका का प्रकाशन शुरु किया गया।
इसमें पुरातत्व से सम्बंधित केन्द्र, राज्य , विश्वविद्यालय तथा अन्य समकक्षीय संस्थानों
की सभी प्रकार की पुरातात्विक शोध परक सूचनायें समाहित की जाने लगी। जैसे पुरातत्व
अन्वेषण, उत्खनन, संरक्षण, पुरालेख, रसायन संरक्षण, संग्रहालय, पुरातात्विक उद्यान,
महत्वपूर्ण अभिलेख, निखात तथा अन्यानेक शोध परक सूचनायें। से सब अब अखिल भारतीय स्तर
पर संकलित व प्रकाशित की जा रही हैं। इसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, राज्य पुरातत्व
संगठन, विश्वविद्यालय एवं शोध संस्थानों का पूर्ण समावेश किया जाने लगा है।
1953-68 में कौशाम्बी, 1953-54 जगतग्राम देहरादून,
1954-78 में मथुरा , 1955-56 में कन्नौज व बांदा, 1956-57 में अष्टभुजा मंदिर व बनमिलिया
दोनों मिर्जापुर , लखनेश्वर डीह बलिया, 1956-65 ऊंचगांव तथा बड़ागांव दोनो सीतापुर,
1956-78 जाजमऊ कानपुर , 1957-70 राजघाट वाराणसी, 1958-59 में आलमगीरपुर मेरठ एवं श्रावस्ती
का उत्खनन हुआ है। 1961-65 ललितपुर, 1961-76 सोहगौरा गोरखपुर, 1962-64 काकेरिया, प्रहलादपुर
बाराबंकी, भिनसौर मिर्जापुर, 1962-71 में मैनवा नजीराबाद एवं मैनवाडीह सीतापुर,
1963-65 में लखनिया,हथनियां पहाड़ वाराणसी, अम्बखेरी सहारनपुर, कोटिया मैनाही इलाहाबाद,
1963-72 नोह भरतपुर, 1963-80 अतरंजीखेड़ा एटा, 1964-65 में भदहवा चोटी, वाराणसी,
1964-71 में महावो मिर्जापुर, 1965-66 बूढ़ागांव झांसी, 1965-71 काशीपुर नैनीताल,
1966-67 में बहरिया सहारनपुर, 1966- 74 में सोख मथुरा, 1966-84 में चोपानी माण्डों
इलाहाबाद, 1967-69 में सराय मोहाना वाराणसी, 1968-72 में लालकिला बुलन्दशहर,भीतरी गाजीपुर,
1969-70में कसेरी मेरठ, 1969-74में सराय नाहर राय प्रतापगढ़,1969-81में अयोध्या,
1970-71में सैफई इटावा, अल्लापुर मेरठ, 1970-78में पिपरहवा सिद्धार्थ नगर, 1971-73में
तकिया पेड़ वाराणसी, 1971-77में कोलडिहवा इलाहाबाद, 1972-74 में जीवनगढ़ देहरादून,
1973-74 में आनन्द भवन इलाहाबाद, वीरभद्र देहरादून, 1974-77 में गनवरिया सिद्धार्थनगर,
19774-77 तथा 1985-87 में जखेड़ा एटा, 1975-79 में कंपिल फरुखाबाद, सालारगढ़ सिद्धार्थनगर,
बटेसर आगरा, पंचोह इलाहाबाद, 1975-79 में महागरा इलाहाबाद, 1976-77में वर्डपुर सिद्धार्थ
नगर, रामबाग आगरा, 1976-88 में फतेपुर सीकरी आगरा, 1977-80 में महादहा प्रतापगढ़,
1977-85 में श्रृंगबेरपुर इलाहाबाद,
1978-79 में मोरध्वज विजनौर, 1978-83में हुलास सहारनपुर, 1978-86 में हुलास खेड़ा लखनऊ,
1979-80 व 1993-96 में मेहताबबाग आगरा, 1980-81में मघा मिर्जापुर, 1980-89 व
1996-97 में खेराडीह बलिया, 1982-83 में मलारी चमोली, भारतमाता मंदिर देहरादून,पंडूवाला
गड़वाल तथा धपली टेहरी गड़वाल, 1982-86 में दमदमा प्रतापगढ़, 1984-85 में दौलतपुर बुलन्दशहर,पड़रौना
देवरिया, 1984-86 में नरहन गोरखपुर आदि पुरा स्थलों में उत्खनन हुए हैं।
उत्तरी की जगह आगरा- उत्तरी मण्डल समाप्त तथा आगरा मण्डल
का गठन-वर्ष 1985-86 में आगरा लखनऊ तथा जयपुर मंडलों के गठन होने से उत्तरी मण्डल का
अस्तित्व समाप्त हो गया। राजस्थान के भरतपुर एवं डीग के भूभाग जयपुर मंडल में तथा मध्य
उत्तर प्रदेश का अवध का क्षेत्र लखनऊ मंडल में चला गया। अब आगरा मण्डल का आकार छोटा
हो गया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के मण्डलों के पुनर्गठन के बाद भी शोध उत्खनन तथा खोज का काम जारी रहा। 1985-87 में खजुरी
इलाहाबाद, दराऊ बुलन्दशहर, 1986-89 तथा 1991-2003 में श्रावस्ती, 1987-94 में जेनल
नौला अल्मोड़ा, 1988-89 में रतौड़ा पौड़ी गढ़वाल, बन्दरखेत टेहरी गढ़वाल एवं पुरौला उत्तरकाशी
में उत्खनन कार्य हुआ है। 1989-90 में एरिच झांसी,1990-91 में धुरियापार गोरखपुर, पतिता
एवं छिलहनिया मिर्जापुर ,शनिचरा सुल्तानपुर, में उत्खनन कार्य हुआ है। 1991-92 में
सड़वारा आगरा लद्यूरा अल्मोड़ा, बनरासिंह कलां महराजगंज का उत्खनन हुआ है। 1991-95 तक
इमलिया खुर्द गोरखपुर में उत्खनन होता रहा।1992 में सारनाथ 1997-99 में चैखण्डी स्तूप
का उत्खनन हुआ है।1995-96 में बीनाबलिया तथा मूसानगर कानपुर देहात , 1994-2001 में
झूंसी इलाहाबद में विशद उत्खनन हुए हैं। 1995-98 में भूना डीह बलिया,औनाहन कानपुर देहात,
1995-97 में भीटा इलाहाबाद सिसवनिया बस्ती, संकिसा फरुखाबाद तथा राजा नल का टीला सोनभद्र
में उत्खनन हुआ है। 1996-97 में रामसर का पुरवा लखनऊ, 1997-98 में भगवस सोनभद्र,1998-99
में मल्हर चन्दौली, विशोरकर गाजियाबाद,में तथा 1998-2000 में अगियाबीर मिर्जापुर में
उत्खनन हुआ है। 1999-2000 में बीरछबीली टीला फतेहपुर सीकरी,1999-2001 में दादूपुर लखनऊ
में उत्खनन हुआ है।2000-2001 में अनवाक आजमगढ़, मदारपुर मुरादाबाद तथा माण्डी मुजफफर
नगर में उत्खनन हुआ है। 2001-02 में कटिंगरा एटा, लखनऊ रेजीडेन्सी तथा 2001-03 में
अभयपुर पीलीभीत में उत्खनन कार्य हुआ है। 2001-04 में लहुरादेव संतकबीर नगर तथा अकठा
वाराणसी में उत्खनन कार्य हुआ है। 2002-03 में लच्छर गिरि इलाहाबाद तथा काल्पी जालौन
में उत्खनन कार्य हुआ है। 2003-04 में अहिछत्रा बरेली, राम जन्मभूमि अयोध्या, अहिरौव
राजा रामपुर , सियापुर कन्नौज, कोपिया संत कबीर नगर तथा राजघाट वाराणसी में उत्खनन कार्य हुए हैं। ये रहा उत्तरी मण्डल
आगरा के इतिहास तथा विकासक्रम का एक विहंगम दृष्टि। विशद अध्ययन के लिए किसी भी पुरातत्व
के पुस्तकालय का अवलोकन तथ संदर्भ लिया जा सकता है।
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