Thursday, November 27, 2025

गार्गेय गोत्र के दूबे/द्विवेदी ब्राह्मण ( द्विवेदी ब्राह्मण का इतिहास कड़ी 15) ✍️आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी


महामुनि गर्ग या गर्गाचार्य जी ज्योतिष शास्त्र के महान आचार्य व गणितज्ञ थे। अखिल ब्रह्मांड से लेकर सूक्ष्म पिण्ड पर्यन्त ज्योतिष महाविज्ञान का क्षेत्र है। अनादि काल से शाश्वत चली आ रही इस महा विज्ञान  गणित भी शाश्वत सत्य है। संसार की समस्त विद्याएँ इसमें समाई हुई है। जिन भारतीय दिव्य ऋषियों ने वेद ज्ञान अपने तपोबल से प्राप्त किया जिसमें महर्षि गर्ग का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के प्रधान प्रवर्तक भगवान गर्गाचार्य जी रहे है जो अठारह ज्योतिष शास्त्र वैदिक प्रवर्तकों जैसे ब्रह्मा, गर्ग,  पराशर, कश्यप, सूर्य, मरीचि, मनु, वशिष्ठ, अत्रि, नारद, अंगिरा, लोमश, पोलिश, च्यवन , भृगु, शौनक, व्यास, एवं यवन आदि गुरु परम्परा में प्रमुख रहें हैं। ऐसा महर्षि  ने अपने शास्त्र होरा में लिखा हैं-

वेदेभ्य समुद्धृत्य ब्रह्मा प्रोवाच विस्तृतम्। गर्गस्तमा मिदं प्राह: मया तस्माद्यथा: तथा।

       अर्थात् भगवान ब्रह्मा जी ने वेद से निकाल कर नैत्र रूप वेदांग ज्योतिष शास्त्र को सर्व प्रथम महर्षि गर्गाचार्य ऋषि को प्रदान किया । ज्योतिष शास्त्र में महर्षि गर्ग ने महाग्रन्थ श्री गर्ग होरा की रचना की थी जो ज्योतिष का महान शास्त्र है। इस प्रकार महर्षि गर्गाचार्य अठारह वेदांग ज्योतिष शास्त्र के प्रवर्तकों में गुरु सिद्ध हुए।        भगवान गर्गाचार्य जी न केवल ज्योतिष शास्त्र के आचार्य थे, वरन् चार वेद, अठारह पुराण, एक सौ आठ उपनिषद सहित षट् दर्शन के पारगड्त महान आचार्य रहे है।
       महर्षि महामुनि गर्ग ऋषि षट् वेदांग के भी पूर्णत: आचार्य थे। यह 88 हजार ऋषियों मे एकदम से सभी सद्गुण एक साथ केवल ” महर्षि गर्गाचार्य जी” में होने के से वे सर्व ब्रह्मर्षियों में वे भगवान ” गुरु ” कहलाये। वे ही महर्षि गर्गाचार्य ऋषि द्वारिकाधाम के राजा भगवान वासुदेव श्री कृष्ण के राजगुरु पद से सुशोभित हुए।इसी वजह से महर्षि महामुनि गर्गाचार्य ऋषि के वंशज “गुरु ब्राह्माण” कहलाते हैं।
        गार्गेय गोत्र ऋषि गर्ग से संबंधित है, और यह भारद्वाज गोत्र का एक हिस्सा है। इसका अर्थ है "गर्ग गोत्र का पुरुष" और यह गर्ग नामक ऋषि के वंशजों का गोत्र है। इन्हें कृष्ण गौड़ ब्राह्मण और शुक्ल जैसे उपनामों से भी जाना जाता है। कुछ क्षेत्रों में, इन्हें जोशी उपनाम से भी पहचाना जाता है क्योंकि ये ज्योतिष शास्त्र में विशेषज्ञता रखते थे, और कुछ को गुरु के नाम से भी जाना जाता है। इनका जन्म भारद्वाज और सुशीला से हुआ था। ये ज्योतिष शास्त्र के प्रवर्तकों में से एक माने जाते हैं, और कहा जाता है कि उन्होंने भगवान श्री कृष्ण का नामकरण संस्कार किया था। कृष्ण का नामकरण करने के कारण, गर्ग ब्राह्मणों को "कृष्ण द्विज गौड़" के रूप में जाना जाता है, जो राजस्थान, मध्य प्रदेश और हरियाणा जैसे क्षेत्रों में प्रचलित है। 
        शास्त्रों के अनुसार गर्ग ऋषि का एक अन्य नाम शुक्ल भी था, इसलिए उनके वंशजों को शुक्ल उपनाम मिला। गर्ग ऋषि की ज्योतिष विद्या में गहरी विशेषज्ञता के कारण, राजवंश अपने ज्योतिषियों को "गर्गाचार्य" की उपाधि देते थे, और आज भी गर्ग ब्राह्मण समुदाय का मुख्य कार्य ज्योतिष विद्या से जुड़ा है। यह गोत्र यजुर्वेद से जुड़ा है और यह अग्रवाल समुदाय में सबसे आम गोत्रों में से एक है। गार्गेय गोत्र का संबंध महर्षि गर्ग और विदुषी गार्गी से है, जो अपने समय की एक महान ब्रह्मज्ञानी थीं। 
गर्ग गोत्र के प्रवर
गर्ग या गर्ग मुनि गर्ग संहिता के रचयिता थे। जिस प्रकार पराशर का विष्णु पुराण और कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास का महाभारत, हरिवंश पुराण और भागवत पुराण कृष्ण या विष्णु के जीवन से संबंधित हैं, गर्ग संहिता भी कृष्ण के जीवन से संबंधित है। गर्ग संहिता के ग्यारह खंड, अध्याय या अध्याय अश्वमेध खंड, बलभद्र खंड, द्वारका खंड, गिरिराज खंड, गोलोक खंड, माधुर्य खंड, मथुरा खंड, विज्ञान-खंड, विश्वजीत खंड और वृंदावन खंड हैं। गर्ग नंद परिवार के मुख्य पुजारी और राज गुरु थे। उन्होंने देवकी और वासुदेव के पुत्र का नाम सुंदर काले लड़के कृष्ण रखा। गर्ग ब्राह्मण भारद्वाज और क्षत्रिय सुशीला का पुत्र था। गर्ग और उनके वंशज ब्रह्मा क्षत्रिय हैं; वे ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों के गुणों, रुचियों और क्षमताओं को जोड़ते हैं। गर्ग अंगिरस और उनकी पांच पत्नियों सती, सुरूपा, स्मृति, स्वधा और श्रद्धा के पोते थे और अंगिरस के बृहत् भानु, बृहत् ब्रह्मा, बृहत् ज्योति संवर्त (संवर्त या शतमर्षण या सतमर्षण या सदामर्षिना), बृहत् कीर्ति उतथ्य, बृहत् मानस, बृहत् मंत्र और बृहस्पति के भतीजे थे और अंगिरस की सात पुत्रियां अर्चिष्मती, भानुमती, सिने थीं। वली, एकानेका, महिष्मती, महामती और राका। प्रसिद्ध महिला ऋषि वाचक्नवी गार्गी का जन्म गर्ग के परिवार में हुआ था। गर्ग गोत्र या गार्ग्य गोत्र के प्रवर के दो भेद हैं। वे हैं (1) अंगिरस, बृहस्पति, भारद्वाज, सैन्य और गार्ग्य और (2) अंगिरस, सैन्य और गार्ग्य।
गर्ग गोत्र के द्विवेदी ब्राह्मण के गांव 
गार्गेय गोत्र" का वेद उपवेद बहीं है जो गर्ग गोत्र का है। इस गोत्र में "द्विवेदी" वंश के लोग होते हैं, जिनकी पंक्ति नहीं है। इस गोत्र के "द्विवेदी" वंश का अभी तक ज्ञात 15 मुख्य स्थान निम्न है इनकी पंक्ति नहीं है। अध्येता स्वयं अपना अपना स्थान और अधिक रुचि से सुगमता से खोज सकता है।

1. कोड़हार-कोडवरिया,
2. महुलिया,मोहल
3. पोइला,पोहला
4. भीटी
5 .परौहा/पटौहा
6 .अमवा             
7. काटां 
8 .कठकुआं 
9 .कोड़रिहा 
10. लड़ियाई     
11 .मझवां          
12.वघोर                 
13 .खुर्दहा खुर्द महुलिया 
14. चौकड़ी।       
15. कोरिया  
निम्न गांवों में गर्ग गोत्र के दो दो गोत्र भी मिलते हैं - 
1. लाठियाई - गर्ग और गौतम 
2. नीवी- गर्ग और भारद्वाज
3. झंझवा - गर्ग और भारद्वाज
4. बढ़यापार- गर्ग और भारद्वाज
5. अमवा - गर्ग और गार्गेय 

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