मोटे रूप में दो वेद को जानने वाले को द्विवेदी तीन वेद को जानने वाले को त्रिवेदी और चार वेद को जानने वाले को चतुर्वेदी ब्राह्मण कहा जाता है पर इसे इतर एक और भी मत है जो उक्त मत से थोड़ा हटकर है, जहां द्वि का मतलब ईश्वरीय/ आध्यात्मिक, त्रि का मतलब तीनों युग या काल भूत वर्तमान और भविष्य होता है। चतुर का मतलब चारों दिशाओं उत्तर दक्षिण पूरब और पश्चिम से होता है। इसे इस रूप में अलग-अलग भी समझ सकते हैं।
ईश्वर के बारे में जानने वाला होता है
द्विवेदी
परंपरागत रूप में द्विवेदी का शाब्दिक अर्थ दो वेदों का जानने वाला होता है।पर इसका एक अलग विश्लेषण भी है जिससे बहुत कम लोग ही विज्ञ हैं। द्विवेदी द्वि और वेदी दो शव्दों से बना है। द्वि का मतलब अघ्यात्मिक , ईश्वर से सम्बन्धित तथा वेदी का तात्पर्य जानने वाला होता है। इस प्रकार द्विवेदी का मतलब ईश्वर के बारे में जानने वाला होता विज्ञ या विद्वान् होता है।
तीनों काल को जानने वाला त्रिवेदी
इसी प्रकार त्रिवेदी का मतलब आम जन तीन वेदों के ज्ञाता ही जनता है। हिन्दू धर्म के अनुसार ब्राहमण को दो या तीन वेदों को ही नहीं अपितु चारो वेद का अध्ययन करना चाहिए। नए विश्लेषण से त्रिवेदी में त्रि का ताप्पर्य तीन (भूत,वर्तमान व भविष्य समय काल) तथा वेदी का तात्पर्य जानने वाला होता है। इस प्रकार भूत वर्तमान तथा भविष्य तीनों कालों के जानने वाले को त्रिवेदी कहा जाता है। इस प्रकार का ज्ञान ज्योतिष के विद्वान में होता था। प्राचीन और मध्य काल में ज्येतिषी को त्रिवेदी कहा जाता था।
ब्रम्हाण्ड का ज्ञाता चतुर्वेदी
इसी प्रकार चतुर्वेदी को चारों वेदों के ज्ञाता को प्रायः माना जाता है। नए विश्लेषण से
चतुर का तात्पर्य चारो दिशाओं- उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम से होता है तथा वेदी का तात्पर्य जानने वाला होता है। इस प्रकार चतुर्वेदी का तात्पर्य पूरे ब्रम्हाण्ड का ज्ञाता ब्रह्मऋषि समझना चाहिए।
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