एक
बार उत्तर कोशल में सम्पूर्ण भारत के ऋषि मुनियों का सम्मेलन हुआ था। इसकी अगुवाई ऋषि
उद्दालक ने की थी । वे सरयू नदी क उत्तर पश्चिम
दिशा में टिकरी बन प्रदेश में तप कर रहे थे। यही उनकी तप स्थली थी। पास ही मखौड़ा
नामक स्थल भी था। मखौड़ा ही वह स्थल हैं जहां गुरू वशिष्ठ की सलाह से तथा श्रृंगी ऋषि
की मदद से राजा दशरथ ने पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। जिससे उन्हें रामादि चार पुत्र
पैदा हुए थे। उस समय मखौड़ा के आस पास कोई नदी नहीं थी। यज्ञ के समय मनोरमा नदी का अवतरण
कराया गया था। गोण्डा जिला मुख्यालय से 19 किमी. की दूरी पर इटिया थोक नामक जगह स्थित
है। यहां उद्दालक ऋषि का आश्रम मनोरमा मंदिर तथा तिर्रे नामक एक विशाल सरोवर है। इस
स्थान की उत्पत्ति महाभारत के शल्य पर्व में वर्णित है। उद्दालक द्वारा यज्ञ का अनुष्ठान
करके सरस्वती नदी को मनोरमा के रूप में यहीं प्रकट किया था। तिर्रे तालाब के पास उन्होंने
अपने नख से एक रेखा खीचंकर गंगा का आहवान किया तो गंगा सरस्वती ( मनोरमा ) नदी के रूप
में अवतरित हुई थीं। इटियाथोक के पास स्थित उद्यालक के आश्रम के पास एक विशाल मेले
का आयोजन किया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा को यहां मेला लगता है। लगता है कि यही मनोरमा
का प्राकट्य दिवस हो सकता है। उद्दालक ऋषि के पुत्र नचिकेता ने मनवर नदी से थोड़ी दूर
तारी परसोइया नामक स्थान पर ऋषियों एवं मनीषियों को नचिकेता पुराण सुनाया था। नचिकेता
पुराण में मनोरमा महात्म्य का वर्णन इस प्रकार किया है-
अन्य क्षेत्रे कृतं पापं काशी क्षेत्रे विनश्यति।
काशी
क्षेत्रे कृतं पापं प्रयाग क्षेत्रे विनश्यति।
प्रयाग
क्षेत्रे कृतं पापं मनोरमा विनश्यति।
मनोरमा
कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति।।
पुराणों में इसे सरस्वती की सातवीं धारा
भी कहा गया है। मूल सरस्वती अपने वास्तविक स्वरूप को खोकर विलुप्त हो चुकी हैं परन्तु
मनोरमा आज भी हम लोगों को अपना स्वरूप दिखलाती है। इसके नाम के बारे में यह जनश्रुति
है कि जहां मन रमे वही मनोरमा होता है। जहां मन का मांगा वर मिले उसे ही मनवर कहा जाता
है। इसकी एक धारा छावनी होकर रामरेखा बनकर सरयू या घाघरा में मिलकर तिरोहित हो जाती
है। और एक अलग धारा अमोढा परगना के बीचोबीच परशुरामपुर, हर्रैया, कप्तानगंज , बहादुर
पुर एवं कुदरहा आदि विकासखण्डों तथा नगर पूर्व एवं पश्चिम नामक दो परगनाओं से होकर
बहती हुई गुजरती है। यह हर्रैया तहसील के बाद
बस्ती सदर तहसील के महुली के पश्चिम में लालगंज में पहुचकर कुवानो नदी में मिलकर तिरोहित
हो जाती है। हर्रैया तहसील के मखौड़ा सिंदुरिया मैरवा, श्रृंगीनारी, टेढ़ा घाट, सरौना
ज्ञानपुर ओझागंज , पंडूलघाट , कोटिया आदि होकर यह आगे बढती है। इसे सरयू का एक शाखा
भी कही जाती है। अवध क्षेत्र के 84 कोसी परिक्रमा पथ पर इस नदी के तट के मखौड़ा तथा
श्रृंगीनारी आदि भी आते हैं। मनोरमा नदी के तटों पर अनेक सरोवर तथा मन्दिर आज भी देखे
जा सकते हैं। पाण्डव आख्यान के आधार पर पण्डूल घाट में चैत शुक्ला नवमी को विशाल मेले
का आयोजन किया जाता है। लालगंज मे जहां यह कुवानों में मिलकर खत्म हो जाती है वहां
भी चैत शुक्ला पूर्णिमा को विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।
महर्षि
विभाण्डक के पुत्र ऋषि श्रृंगी का श्रृंगीनारी आश्रम भी यही पास ही में है ,जहां त्रेता
युग में ऋषि श्रृंगी ने तप किया था। वे देवी
के उपासक थे। इस कारण इस स्थान को श्रृंगीनारी कहा गया है। यह भी कहा जाता है कि श्रृंगी
ऋषि ने सरस्वती देवी का आह्वान मनोरमा के नाम से किया था। इससे वहां मनोरमा नदी की
उत्पत्ति हुई थी। इसके पूजा अर्चना तथा इसमें
स्नान दान से बहुत ही पुण्य लाभ होता है। इसके साफ सफाई तथा अवाध गति से प्रववाहित
होने के लिए सरकारी तथा सामाजिक रुप में सभी को निरन्तर प्रयास करते रहना चाहिए।
पौराणिक स्थलः-मनोरमा तट पर अनेक पावन स्थल स्थित हैं। इनमें से कुछ
का वर्णन आगे की पंक्तियों में किया जा रहा है।
1. मखौड़ा धाम:-पौराणिक
संदर्भ में एक उल्लेख मिलता है कि एक बार उत्तर कोशल में सम्पूर्ण भारत के ऋषि मुनियों
का सम्मेलन हुआ था। इसकी अगुवाई ऋष् िउद्दालक ने की थी । वे सरयू नदी क उत्तर पश्चिम दिशा में टिकरी बन प्रदेश में तप कर रहे थे। यही
उनकी तप स्थली थी। पास ही मखौड़ा नामक स्थल भी था। मखौड़ा ही वह स्थल हैं जहां गुरू वशिष्ठ
की सलाह से तथा श्रृंगी ऋषि की मदद से राजा दशरथ ने पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। जिससे
उन्हें रामादि चार पुत्र पैदा हुए थे। उस समय मखौड़ा के आस पास कोई नदी नहीं थी। यज्ञ
के समय मनोरमा नदी का अवतरण कराया गया था। वर्तमान समय में यह धाम बहुत ही उपेक्षित
है। मन्दिर जीर्ण शीर्ण अवस्था में हैं। नदी के घाट टूटे हुए हैं। 84 कोसी परिक्रमा
पथ पर होने के बावजूद इसका जीर्णोद्धार नहीं हो पा रहा है।
2. श्रृंगीनारी आश्रमः- महर्षि विभाण्डक के पुत्र ऋषि श्रृंगी का श्रृंगीनारी आश्रम
भी यही पास ही में है ,जहां त्रेता युग में ऋषि श्रृंगी ने तप किष्या था। वे देवी के
उपासक थे। इस कारण इस स्थान को श्रृंगीनारी कहा गया है। यह भी कहा जाता है कि श्रृंगी
ऋषि ने सरस्वती देवी का आह्वान मनोरमा के नाम से किया था। इससे वहां मनोरमा नदी की
उत्पत्ति हुई थी। यहां हर मंगल को मेला लगता है। यहां दशरथ की पुत्री शान्ता देवी तथा
ऋषि का मंदिर व समाधियां बनी है। आषाढ माह के अन्तिम मंगलवार को यहां बुढवा मंगल का
मेला लगता है। माताजी को हलवा और पूड़ी का भोग लगाया जाता है। मां शान्ता यहां 45 दिनों
तक तप किया था। वह ऋषि के साथ यहां से जाने को तैयार नहीं हुई और यही पिण्डी रूप में
यही स्थाई रूप से जम गई थीं।
3. पंन्डूलघाटः- यह महाभारतकालीन स्थल है ।
यहां अपने बनवास के समय पाण्डवों ने विश्राम किया था।पहले यहां विशाल टीला हुआ करता
था जो नदी क कटान तथा सिंचाई विभाग द्वारा बंधा बनवाने से नष्ट हो गया । पाण्डव आख्यान
के आधार पर पण्डूल घाट में चैत शुक्ला नवमी को विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। पास
ही में झुंगीनाथ का एतिहासिक शिव मंदिर पर शिवरात्रि में विशाल मेला लगता है। यहां
लक्ष्मीनारायण, हनुमान तथा दुर्गा के आकर्षक मंदिर भी स्थित है।
4. तपसी धाम कसौला जगदीशपुर :- ब्रह्मालीन तपसी दास महाराज का आश्रमए कसौला.जगदीशपुरए गुलरिहा घाट ए मनोरमा तटए निकट भदावल पेट्रोल पम्प
एहरैया एजिला बस्ती उत्तर प्रदेश पर स्थित है जो एक सिद्ध संत के साथ भगवान हनुमान के अवतार भी कहे जाते है। मयार्दा
पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के महान भक्त महाबली हनुमान जी का कलयुग में अवतरण एक रोचक
घटना है। परम कृपालु महाबली हनुमान जी ने एक महायोगी का अवतार धारण किया और भक्तों
पर कृपा कर उन्हें सत्य का मार्ग दिखाने के लिए भारतवर्ष में उत्तर प्रदेश राज्य के
बस्ती जिले में मनोरमा तटए निकट भदावल पेट्रोल पम्प एहरैया में 8 दिसम्बर 2005 दिन गुरूवार की मंगलमय सुबह में
समय 10 बजे हरैया गाँव में कलकल बहती मनोरमा नामक पौराणिक नदी के पावन तटएकसौला.जगदीशपुरए
पर प्रगट हुए थे। उनके व्यक्तित्व का तेज देखकर लोगों ने उन्हें कोई महान तपस्वी समझा
और उन्हें तपसी सरकार ;तपस्वी सरकारद्ध नाम से जानने लगे। वे तपस्या की साक्षात् मूर्ति
ही दीख पड़ते थे। वे ज्यादातर साधना.ध्यान में ही लीन रहते थे। वे लोगों के लिए भगवान
थे। उनकी उपस्थिति मात्र से सब तरफ सुख.शांति और समृद्धि छा गयी थी। लोग उन्हें आदरवश
सरकार कहकर सम्बोधित करते थे। वास्तव में वे कौन थेघ् यह सामान्य मनुष्यों के लिए जानना
आसान नहीं था। वे मनोरमा के पावन तट पर घास की एक छोटी.सी गुफानुमा कुटिया में रहते
थे।
5. लालगंज :- महर्षि उद्दालक मुनि की
तपो भूमि और मनोरमा कुआनों के संगम तट पर लालगंज में इस वर्ष भी मेले का आयोजन 15 अप्रैल
से किया गया है। मेले का समापन 20 अप्रैल को होगा। पांच दिनों तक चलने वाले इस मेले
में प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु आते हैं। लोगों का आगमन शुरू हो गया है।
संगम तट पर स्नान.दान का अपना अलग की महत्व है। पौराणिक मान्यता है कि इस तट पर स्नान
कर दान देने से पाप का नाश होता है। पूर्णमासी से एक दिन पूर्व चतुर्दशी शाम को श्रद्धालु
घाट के किनारों पर लिट्टी.चोखे का सेवन कर सुबह स्नान.दान करते हैं। श्रद्धालु पांच
दिनों तक मेले का आनंद लेते हैं। चैत्र पूर्णिमा से शुरू होने वाले इस मेले में शामिल
होने के लिए दूर.दूर से लोगों का जमावड़ा होने लगा है।
हर्रैया तहसील के मखौड़ा सिंदुरिया
मैरवा, श्रृंगीनारी, टेढ़ा घाट, सरौना ज्ञानपुर ओझागंज , पंडूलघाट , कोटिया आदि होकर
यह आगे बढती है। इसे सरयू का एक शाखा भी कही जाती है। अवध क्षेत्र के 84 कोसी परिक्रमा
पथ पर इस नदी के तट के मखौड़ा तथा श्रृंगीनारी आदि भी आते हैं। मनोरमा नदी के तटों पर
अनेक सरोवर तथा मन्दिर आज भी देखे जा सकते हैं। किसी समय में यहां पूरा का पूरा जल
भरा रहता था। यह नदी बहुत ही शालीन नदी के रूप में जानी जाती है। यह अपने तटों को सरयू
तथा राप्ती जैसे कटान नहीं करती है। इससे बस्ती जिले के दक्षिणी भाग में सिंचाई की
जाती रही है।
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