ब्रह्माण्ड
में वैसे तो कई सौरमण्डल
है, लेकिन हमारा सौरमण्डल या सौर परिवार
( Solar System ) सभी
से अलग है, जिसका आकार एक तश्तरी जैसा
है। हमारे सौरमण्डल में सूर्य और वे सभी
खगोलीय पिंड जो सूर्य के
चारों ओर चक्कर लगाते
हैं, सम्मलित हैं, जो एक दूसरे
से गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा बंधे
हैं। कॉपरनिकस ने सबसे पहले
यह सिद्धांत दिया था कि सभी
ग्रह सूर्य के चारों ओर
घूमते हैं। सौरमण्डल में सूर्य का आकार सब
से बड़ा है जिसका प्रभुत्व
है, क्योंकि सौरमण्डल निकाय के द्रव्य का
लगभग 99.999 द्रव्य सूर्य में निहित है। सौरमण्डल के समस्त ऊर्जा
का स्रोत भी सूर्य ही
है। सौरमण्डल के केन्द्र में
सूर्य है तथा सबसे
बाहरी सीमा पर नेप्च्युन ग्रह
है। नेपच्युन के परे प्लूटो
जैसे बौने ग्रहो के अलावा धूमकेतु
भी आते हैं। सूर्य सौरमण्डल का प्रधान है
और इसके केंद्र में स्थित एक तारा है।
सूर्य का व्यास 13 लाख
92 हज़ार किलोमीटर है, जो पृथ्वी के
व्यास का लगभग 110 गुना
है। सूर्य पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है, और पृथ्वी को
सूर्यताप का 2 अरब वाँ भाग मिलता है। पृथ्वी से सूर्य की
दूरी 149 लाख कि.मी है.
सूर्य प्रकाश को पृथ्वी में
आने में 8 मिनिट 18 सेकंड लगते हैं। सूर्य से दिखाई देने
वाली सतह को "प्रकाश मंडल" कहते है. सूर्य कि सतह का
तापमान 6000 डिग्री सेल्सिअस होता है. इसकी आकर्षण शक्ति पृथ्वी से 28 गुना ज़्यादा है। परिमंडल (Corona) सूर्य ग्रहण के समय दिखाई
देने वाली उपरी सतह है.. इसे सूर्य मुकुट भी कहते हैं।
सौरमण्डल के पिण्ड:-अंतर्राष्ट्रीय खगोलशास्त्रीय संघ ( International
Astronomical Union - IAU ) की
प्राग सम्मेलन , 24 अगस्त 2006 के अनुसार सौरमण्डल
में मौजूद पिण्डों को तीन श्रेणियों
में बाँटा गया है —
प्रधान परम्परागत ग्रह ( प्रधान परम्परागत ग्रह
( Major Planets ) - सूर्य से उनकी दूरी
के बढते क्रम में हैं - बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण ( यूरेनस ) एवं वरुण ( नेप्च्यून ) । ( आठ ग्रह हैं
- चार पार्थिव / स्थलीय आंतरिक ग्रह और चार विशाल
गैस से बने बाहरी
ग्रह ) शुक्र सूर्य से सब से
क़रीब है और नेपच्यून
उस से सब से
दूर हैं। ग्रह वे खगोलिय पिण्ड
हैं, जो कि निम्न
शर्तों को पूरा करते
हैं—
जो सूर्य के चारों ओर
परिक्रमा करता हो, उसमें पर्याप्त गुरुत्वाकर्षण बल हो, जिससे
वह गोल स्वरूप ग्रहण कर सके, उसके
आसपास का क्षेत्र साफ़
हो यानि उसके आसपास अन्य खगोलिए पिण्डों की भीड़–भाड़ न हो।
बुध :-बुध ग्रह
सूर्य से सबसे पहला
/ पास का ग्रह है
और द्रव्यमान में आंठवा सबसे बड़ा ग्रह है और गुरुत्वाकर्षण
शक्ति पृथ्वी की अपेक्षा एक
चौथाई है। यह सौर मंडल
का सबसे छोटा ग्रह है, जिसके पास कोई उपग्रह नहीं है।
शुक्र - शुक्र पृथ्वी का निकटतम ग्रह,
सूर्य से दूसरा और
सौरमण्डल का छठवाँ सबसे
बड़ा ग्रह है। शुक्र पर कोई चुंबकिय
क्षेत्र नहीं है। इसका कोई उपग्रह ( चंद्रमा ) भी नहीं है।
आकाश में शुक्र को नंगी आंखो
से देखा जा सकता है।
यह आकाश में सबसे चमकिला पिंड है।
बृहस्पति :- यह
सौरमण्डल का सबसे बड़ा
ग्रह है, जिसका रंग पीला है। इस ग्रह को
अंग्रेज़ी में Jupiter कहते हैं। इसमें सर्वाधिक हाइड्रोजन पाया जाता है।
मंगल :-सौर मंडल
में मंगल ग्रह सूर्य से चौथे स्थान
पर है और आकार
में सातवें क्रमांक का बड़ा ग्रह
है। मंगल को रात में
नंगी आंखों से देखा जा
सकता है। मंगल ग्रह को युद्ध का
भगवान भी कहते हैं।
इसे ये नाम अपने
लाल रंग के कारण मिला।
पृथ्वी से देखने पर,
इसको इसकी रक्तिम आभा के कारण लाल
ग्रह के रूप में
भी जाना जाता है। इसका रंग लाल, आयरन आक्साइड की अधिकता के
कारण है।
शनि :-यह
आकार में बृहस्पति के बाद सौरमंडल
का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है। इस ग्रह को
अंग्रेज़ी में Saturn कहते हैं। यह आकाश में
पीले तारे के समान दिखाई
पड़ता है। इसका गुरुत्व पानी से भी कम
है और शनि के
21 उपग्रह है।
अरुण (Uranus):- यह आकार में
तीसरा सबसे बड़ा ग्रह है। इसे अंग्रेज़ी में Uranus कहते हैं। इसकी खोज 1781 ई. में विलियम
हर्सेल द्वारा की गई थी।
इसके चारों ओर नौ वलयों
में पाँच वलयों का नाम अल्फा,
बीटा, गामा, डेल्टा एवं इप्सिलॉन हैं। इसमें घना वायुमंडल पाया जाता है जिसमे मुख्य
रूप से हाईड्रोजन व
अन्य गैसे है।
वरुण (Neptune) :- नई खगोलिय व्यवस्था
में यह सूर्य से
सबसे दूर स्थित ग्रह है। इसकी खोज 1846 ई. में जर्मन
खगोलज्ञ जॉन गले और अर्बर ले
वेरिअर ने की है।
इस ग्रह को अंग्रेज़ी में
Neptune कहते हैं।
पृथ्वी (Earth):- यह आकार में
5वां सबसे बड़ा ग्रह है और सूर्य
से दूरी के क्रम में
तीसरा ग्रह है। इस ग्रह को
अंग्रेज़ी में Earth कहते हैं। यह सौरमण्डल का
एकमात्र ग्रह है, जिस पर जीवन है।
इसका विषुवतीय / भूमध्यरेखीय व्यास 12,756 किलोमीटर और ध्रुवीय व्यास
12,714 किलोमीटर है। पृथ्वी अपने अक्ष पर 23 1º/2 झुकी हुई है।
चन्द्रमा (Moon) :-चन्द्रमा वायुमंडल विहीन पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह
है, जिसकी पृथ्वी से दूरी 3,84,365 कि.मी है। यह
सौरमण्डल का पाचवाँ सबसे
विशाल प्राकृतिक उपग्रह है। चन्द्रमा की सतह और
उसकी आन्तरिक सतह का अध्ययन करने
वाला विज्ञान सेलेनोलॉजी कहलाता है। इस पर धूल
के मैदान को शान्तिसागर कहते
हैं। यह चन्द्रमा का
पिछला भाग है, जो अंधकारमय होता
है।
शरीर,
और विचारों पर ग्रहों का प्रभाव:-सौर
मण्डल के ग्रहों का प्रभाव हमारे शरीर, और विचारों पर पडना ऐक ऐसा वैज्ञानिक सत्य
है जिस से इनकार नहीं किया जा सकता। विचारों के अनुसार ही कर्म होते हैं जिन के फल
जीवन में सुख दुःख का कारण बनते हैं। ऋषियों नें ग्रहों के प्रभाव को जीवन की
घटनाओं के साथ जोडने और परखने के लिये ज्योतिष ज्ञान रचा था। भारतीय ज्योतिषियों
के अनुसार सभी ग्रहों का प्रभाव जीवों पर सदा ऐक जैसा नहीं रहता बल्कि जन्म समय के
ग्रहों की आपसी स्थिति के अनुसार घटता बढता रहता है। ग्रह अपना सकारात्मिक या
नकारात्मिक प्रभाव डालते रहते हैं। प्रत्येक मानव का व्यक्तित्व सकारात्मिक तथा
नकारात्मिक प्रभावों का सम्मिश्रण बन कर विकसित होता है। ग्रहों के हानिकारक
प्रभावों को ज्योतिषी उपचारों से लाभकारी प्रभाव में बदला जा सकता है।
भारतीय ज्योतिष की
प्रमाणिक्ता:- भिन्न भिन्न देशों में भविष्यवाणियों सम्बन्धी अपने अपने आधार हैं।
पाश्चात्य ज्योतिषी सभी गणनाओं में सूर्य को केन्द्र मान कर अन्य ग्रहों की स्थिति
का विशलेषण करते हैं, किन्तु भारतीय पद्धति में सूर्य के स्थान पर चन्द्र को अधिक
महत्व दिया गया है क्यों कि पृथ्वी का निकटतम ग्रह होने के काऱण चन्द्र मनोदशा पर
सर्वाधिक प्रभावशाली होता है। भारत के खगोल शास्त्रियों को ईसा से शताब्दियों
पूर्व 27 नक्षत्रों, सात ग्रहों तथा 12 राशियों की जानकारी प्राप्त थी। प्रत्येक
राशि में जन्में लोगों में भिन्न रुचियाँ और क्षमताये होती हैं जो अन्य राशि के
लोगों को अपने अपने प्रभावानुसार आकर्शित या निष्कासित करती हैं।पृथ्वी धीरे धीरे
अपनी धुरी पर झुकती रहती है जिस कारण पृथ्वी तथा सूर्य की दूरी प्रत्येक वर्ष लगभग
1/60 अंश से कम होती है। आज कल यह झुकाव 23 अँश है जो ऐक सम्पूर्ण नक्षत्र के
बराबर है। इन नक्षत्रों की गणना चन्द्र दूारा पृथ्वी की परिकर्मा पर आधारित है जो
चन्द्र अन्य तारों की अपेक्षा करता है। प्रत्येक व्यक्ति की गणना का आधार उस की
जन्म तिथि, समय तथा स्थल पर निर्भर करता है। भारतीय ज्योतिष उन्हीं ग्रहों के
प्रभाव का आँकलन मानव की प्रकृति, मानसिक्ता तथा शरीरिक क्षमताओं पर करता है। कर्म
क्षमताओं के आधार पर होंते हैं और कर्मों पर भविष्य निर्भर करता है। अतः व्यक्ति
के जन्म समय के नक्षत्रों की दशा जीवन के सभी अंगों को प्रभावित करती रहती है।
ग्रहों के प्रभाव को अनुकूल करने में रत्न आदि उस के सहायक होते हैं। भारत वासियों
ने प्राचीन काल से ही सौर मण्डल के प्रभाव को जन जीवन की घटनाओं तथा रस्मों के साथ
जोड लिया था। भारतीय ज्योतिष ज्ञान वास्तव में सृष्टि की प्राकृतिक ऊर्जाओं के
प्रभावों का विज्ञान है। मानव कई ऊर्जाओं का मिश्रण ही है। परिस्थितियों पर ग्रहों
के आकर्षण, भिन्न भिन्न कोणों तथा मात्राओं का प्रभाव भी पडता रहता हैं। उन्हीं
असंख्य मिश्रणों के कारण ही ऐक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से शरीरिक, मानसिक तथा
वैचारिक क्षमताओं में भिन्न होता है। भारत का ज्योतिष शास्त्र विश्व में सर्वाधिक
प्रमाणित है जिस का आधार भारतीय खगौलिक गणनायें हैं।
श्रीकृष्णलीला:- श्रीमद्भागवतम् कथा ( १.१०.२६)
भगवद्गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने दिव्य प्रादुर्भाव, तिरोधान तथा लीलाओं का
विशद वर्णन किया है । भगवान् अपनी अकल्पनीय शक्ति से किसी परिवार या स्थान विशेष
में प्रकट होते है । वे बद्धजीव की भाँति जन्म लेकर एक शरीर को त्याग कर दूसरा
शरीर धारण नहीं करते । उनका जन्म सूर्योदय तथा सूर्यास्त को भाँति होता है । सूर्य
पूर्वी-क्षितिज में उदय होता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं होता कि पूर्वी क्षितिज
उसका जनक है । सौरमण्डल के प्रत्येक भाग में सूर्य का अस्तित्व रहता है, किन्तु वह
एक निश्चित समय पर दृष्टिगोचर होता है और फिर उसी तरह किसी अन्य निश्चित समय पर
अस्त हो जाता है । इसी तरह भगवान् इस ब्रह्माण्ड में सूर्य की भाँति प्रकट होकर
फिर हमारी दृष्टि से ओझल हो जाते हैं । वे हर समय, हर स्थान पर विद्यमान रहते हैं
लेकिन जब वे अपनी अहैतुकी कृपावश हमारे समक्ष प्रकट होते हैं, तो हम मान बैठते हैं
कि उन्होंने जन्म लिया है । जो कोई इस सत्य को शास्त्रों के कथनानुसार समझ लेता
है, वह वर्तमान शरीर त्याग करते ही मुक्त हो जाता है । मोक्ष अनेक जन्मों के बाद
और वह भी धैर्य और लगन एवं ज्ञान तथा वैराग्य में रहते हुए गहन प्रयास के बाद
प्राप्त होता है । लेकिन यदि कोई भगवान् के दिव्य जन्म तथा कर्म के मर्म को सचमुच
समझ लेता है, तो वह तुरन्त मोक्ष पा लेता है । यह भगवद्गीता का निर्णय है । लेकिन
जो अविद्या के अन्धकार में हैं, वे यह मान बैठते हैं कि भगवान् के जन्म तथा कर्म
भौतिक जगत में एक सामान्य व्यक्ति जैसे होते है । ऐसे अपूर्ण निष्कर्ष से किसी को
भी मोक्ष नहीं मिल सकता । अतएव यदुवंश में राजा वसुदेव के पुत्र के रूप में उनका
जन्य और मथुरा भूमि में नंद महाराज के परिवार में उनका भेजा जाना-ये सब भगवान् की
अन्तरंगा शक्ति की दिव्य योजनाएँ हैं । यदुवंश तथा मथुरावासियों के सौभाग्य का
अनुमान भौतिक दृष्टि से नहीं लगाया जा सकता । यदि भगवान् के जन्य तथा कर्म की
दिव्य प्रकृति को जान लेने मात्र से सरलता से मोक्ष मिल सकता है, तो फिर जिन लोगों
ने उनके परिवारिक सदस्य के रूप में, या पडोसी रूप में, भगवान् की संगति का वास्तविक
भोग किया है, उनके भाग्य वह क्या कहना ? जिन लोगों को लक्ष्मीपति भगवान् के
सान्निध्य का सुअवसर प्राप्त हुआ, उन्हें तो निश्चित रूप से मुक्ति से बढ़कर
उपलब्धि हुई होगी । अतएव सचमुच ही भगवान् की कृपा से उनका वंश तथा उनकी भूमि,
दोनों हौ सदैव यशस्वी हैं ।
पारिवारिक सौरमंडल :- परिवर्तन प्रकृति का नियम होता है। सौरमंडल के प्रत्येक ग्रह अपनी गणना तथा चाल के अनुसार अपनी स्थिति बदलते रहते हैं। इस परिवर्तन से उनके प्रभाव में परिवर्तन दिखलाई पड़ता है। जिस प्रकार सौर मंडल में यह परिवर्तन और उसका प्रभाव देखा जाता है ठीक उसी प्रकार पारिवारिक सौर मंडल के सदस्य जिसे हम पारिवारिक सदस्य कह सकते हैं ] के परिवर्तन प्रवेश या हटने से भी प्रभाव पड़ता है। जब परिवार में कोई सदस्य खत्म होता है या जन्म लेता है अथवा दत्तक ग्रहण या शादी करके किसी बहाने प्रवेश करता है तो उस पारिवारिक सौर मंडल पर भी असर पड़ता है। उस परिवार में यातो दुख का सामना़ करना पड़ सकता है या उसके सब काम आसानी से पूरे होते देखे जा सकते हैं। मैंने अपनी माता रुपी महत्वपूर्ण ग्रह के अवसान होने के लगभग एक साल के समय को बहुत कुछ करीब से ना केवल अनुभव किया है अपितु देखा भी है। अनेक सीधे सादे काम अनावश्यक विलम्ब या अवरोध से प्रभावित होते रहे। विक्रम संवत 2074 मेरे जीवन का सबसे कठिन दौर रहा। हमारे अनेक शुभ चिन्तक एकाएक प्रतिकूल हो गये और हमारे हर काम में अवरोध डालने लगे थे। यद्यपि इसका कोई माकूल कारण खोजने पर भी नहीं मिल रहा है। आज वर्ष 2075 के प्रथम दिन मैं यह रहस्योद्घाटन कर सकने की स्थिति में आ सका हॅू। यद्यपि कई महत्वपूर्ण काम भी इस अवधि में हुए हैं वह भी परिवार के अन्य सदस्य के हित में ज्यादा रहे। और मेरे हित के काम सर्वथा प्रतिकूल दिखलाई पड़ रहे थेअपने इस अनुभव के आधार पर मैं इस निष्कष्र पर पहुचा हॅू कि सौर मण्डल की ही तरह पारिवारिक सौर मंडल की संरचना व गतिविधियां भी होती है। इसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता है।
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