बस्ती । राजा दशरथ का पुत्रकामेष्टि यज्ञ स्थल मखौड़ा जनपद का पवित्र तीर्थ स्थल माना जाता है। राजा दशरथ ने भगवान राम सहित चारो पुत्रों की प्राप्ति के लिए मनोरमा नदी के ही तट पर मखभूमि यानी मखौड़ा में यज्ञ किया था। मनोरमा के ही तट पर जनपद के अन्य प्रसिद्ध तीर्थ स्थल ऋंगीनारी, पांडव नगर, झुंगनाथ शिव मंदिर, मोक्षेश्वर नाथ शिव मंदिर स्थापित हैं। जिनका वर्णन पुराणों में भी मिलता है। जनश्रुतियों के मुताबिक ऋंगी ऋषि ने राजा दशरथ का यज्ञ कराते समय इस नदी को सरस्वती नदी की सातवीं धारा के नाम से संबोधित किया था। इस नदी की खासियत यह भी है कि चौरासी कोसी परिक्रमा का प्रथम पड़ाव मखौड़ा तथा ऋंगीनारी इसी नदी के तट पर हैं। मनोरमा नदी के तटों पर अनेक सरोवर तथा
मन्दिर आज भी देखे जा सकते हैं। किसी समय में यहां पूरा का पूरा जल भरा रहता था।
यह नदी बहुत ही शालीन नदी के रूप में जानी जाती है। यह अपने तटों को सरयू तथा
राप्ती जैसे कटान नहीं करती है। इससे बस्ती जिले के दक्षिणी भाग में सिंचाई की
जाती रही है।
मघौड़ाधाम में 1 अप्रैल को परिक्रमा, नदी तट की सफाई :-चौरासीकोसी परिक्रमा में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं को स्नान करने में परेशानी न हो इसके लिए प्रशासन ने भी पहल शुरू कर दी है। क्षेत्रीय लोगों की श्रद्धा एवं आस्था की प्रतीक पौराणिक कालीन मनोरमा नदी के मघौड़ाधाम में स्थित तट पर श्रद्धालु आसानी से स्नान कर 1 अप्रैल
को परिक्रमा में शामिल हो सकें इसके लिए व्यवस्था बनाई जा रही है। यात्रा प्रारंभ होने से पूर्व प्रशासन द्वारा नदी तट की विधिवत सफाई कराई जाएगी। नदी में जगह-जगह खरपतवार, जलकुंभी
व गंदगी जमा है। पानी दूषित हो गया है। 84 कोसी
परिक्रमा से पहले मखौड़ा धाम में मनोरमा नदी तट की सफाई की कवायद शुरू कर दी है। इस संबंध में उप जिलाधिकारी हरैया दिनेश कुमार सिंह
ने कहा कि चौरासी कोसी परिक्रमा एक अप्रैल को शुरू हो रही है। यात्रा शुरू होने से पहले नदी की सफाई करा दी जाएगी। इसके लिए परशुरामपुर के खंड विकास अधिकारी को निर्देशित कर दिया गया है। परशुरामपुर की खंड विकास अधिकारी विमला चौधरी ने बताया कि जल्द ही बड़ी संख्या में सफाई कर्मियों को लगा कर मखौड़ा में मंदिर परिसर, घाट
और मनोरमा नदी तट की साफ-सफाई कराई जाएगी। श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होगी।
लालगंज में मेले
का आयोजन
:- महर्षि उद्दालक मुनि की तपो भूमि और मनोरमा कुआनों के संगम तट पर लालगंज में इस वर्ष भी मेले का आयोजन 31 मार्च से किया गया है। मेले का समापन 04 अप्रैल को होगा। पांच दिनों तक चलने वाले इस मेले में प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु आते हैं। लोगों का आगमन शुरू हो गया है।संगम तट पर स्नान-दान का अपना अलग की महत्व है। पौराणिक मान्यता है कि इस तट पर स्नान कर दान देने से पाप का नाश होता है। पूर्णमासी से एक दिन पूर्व चतुर्दशी शाम को श्रद्धालु घाट के किनारों पर लिट्टी-चोखे का सेवन कर सुबह स्नान-दान करते हैं। श्रद्धालु पांच दिनों तक मेले का आनंद लेते हैं। चैत्र पूर्णिमा से शुरू होने वाले इस मेले में शामिल होने के लिए दूर-दूर से लोगों का जमावड़ा होने लगा है। बताया जाता है कि चैत पूर्णिमा, परुवा और द्वितीया को मेला का विशेष महत्व है। श्रद्धालु तीनों दिन संगम में स्नान कर दान-पुण्य करते हैं। मेले का आयोजन ग्राम पंचायत और व्यापार मंडल के सहयोग से किया जा रहा है। पुलिस और जिला प्रशासन की ओर से सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। साथ ही श्रद्धालुओं की हर सुविधाओं का ध्यान रखा गया है। इसके अलावा ग्राम सुरक्षा समिति तथा मनोरमा संगम विकास सेवा समिति को भी मेला को सफल बनाने के लिए जिम्मेदारियां दी गई हैं।
मनोरमा
में पानी
का अभाव :- घाघरा के समानांतर मात्र 4 से 10 किलोमीटर के फासले
पर जनपद में 40 किलोमीटर का सफर तय करने वाली पौराणिक नदी मनोरमा में पानी का अभाव
है। मनोरमा नदी अब भी बदहाल तलैया जैसी नजर आ रही है। जलकुंभी व शैवाल से भरी नदी
का पानी ठहरा हुआ है। इसके प्रवाह क्षेत्र में कई जगह तो नदी का अस्तित्व खत्म
होने के कगार पर है। कुछ सामाजिक संगठनों ने नदी के घाटों की जगह-जगह सफाई तो की,
लेकिन उससे कोई खास लाभ नहीं हुआ। मनोरमा नदी की सफाई के लिए अब तक कोई गंभीर
प्रयास नहीं हुए। कुछ जगहों पर स्वयंसेवी संस्थाएं घाटों की सफाई तो करती हैं,लेकिन
जल में प्रवाह न होने के कारण नदी का पानी स्नान व ¨सचाई के लिए उपयोग में नहीं आ
पा रहा है। बस्ती की सीमा में नकदा घाट से शुरू होते ही नदी के प्रवाह क्षेत्र में
जगह-जगह जलकुंभी, खरपतवार नजर आते हैं। कुसमौर घाट, मखौड़ा, कोहराए, टेढ़ाघाट,
रजवापुर, पंडूलघाट, पिपरौल घाट, परखती घाट सहित लालगंज तक कहीं भी नदी में प्रवाह
नहीं है। कई जगहों पर लोगों ने अतिक्रमण कर लिया है। रबी सीजन में लोग इसके इसके
किनारे खेत करते हैं। नदी को साफ करने के लिए स्थानीय स्तर पर जागरूकता अभियान
चलाने के अलावा इसके किनारे के गांवों के मनरेगा के बजट से नदी की सफाई की जा सकती
है।
पिपरौल
घाट पर पुल प्रस्तावित :- आजादी
के पहले से विधानसभा क्षेत्र
कप्तानगंज के इस क्षेत्र
में मुसीबत झेल रहे लोगों को एनडीए की भाजपा सरकार ने बहुत दिनों से लम्बित पुल की
मांग को पूरी करने की योजना बना रखी है। अभी हाल ही में प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी
आदित्यनाथ इस पुल का शिलान्यास किया है। उम्मीद की जानी चाहिए यह पुल इस क्षेत्र के
विकास में मील का पत्थर सावित होगा और विकास के पथ पर लोगों को ले जाने में कामयाब
होगा।
कई
जगह पुलों
की आवश्यकता :- विधानसभा क्षेत्र कप्तानगंज के
नरायनपुर गांव से होकर गुजर रही मनोरमा नदी के परखती घाट पर आज भी बांस के पुल का ही
सहारा है। बुधईपुर, मीता, बरहटा, अच्छतपुर, मरवटिया, छपिया, लमटी, हरिवंशपुर समेत कई
दर्जन गांवों के लोगों के आवागमन के लिए यह पुल अत्यंत महत्वूपर्ण है पूरब की ओर परखती घाट व पश्चिम की ओर पंडूल घाट के
बीच पांच किलोमीटर की दूरी में इस इकलौते पुल के सहारे नदी पार करने वाले लोगों में
शासन व प्रशासन की अनदेखी के चलते नाराजगी है। 50 वर्ष से भटहा गांव के श्रीधर व श्यामराज
के परिवार के लोग हर साल घाट पर बांस का पुल बनाते हैं। जिसकी बदौलत लोग नदी पार करते
हैं। बाढ़ आने पर यह अपनी नाव से लोगों को नदी पार कराते हैं। इसके एवज में इन्हें
हर सीजन में लोग झोला भर अनाज देते हैं। यह परिवार यहां के लोगों की सेवा तीन पीढि़यों
से कर रहा है। आवागमन की खातिर शताब्दी पुरानी सभ्यता में जी रहा यह क्षेत्र में विकास
के तमाम दावे करने वाले राजनेताओं के लिए आइना से कम नहीं है। घाट के निकट स्थित प्राचीन
हनुमान मंदिर तक आने वाले लोगों को पुल न होने से परेशानी झेलनी पड़ती है। बांस सकरे
पुल से होकर गुजरते समय काफी भय लगता है। पांडव नगर स्थित महाविद्यालय पर जाने वाले
छात्रों को इसी पुल से होकर जाना रहता है। आम दिनों में तो लोग किसी तरह नदी पार कर
लेते हैं लेकिन बाढ़ आने पर विद्यार्थियों को जान हथेली पर लेकर पुल पार करना पड़ता
है। इस दिशा में सरकारी तंत्र की रुचि न होना दुर्भाग्यपूर्ण है। बाढ़ आने पर मोटरसाइकिल
नाव में लादकर नदी पार करना कठिन कार्य है।
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