मखौड़ा धाम की अवस्थिति :- यह स्थल
बस्ती जिला मुख्यालय से 57 किमी. पश्चिम तथा अयोध्या से 20 किमी.उत्तर की ओर मनोरमा
नदी के तट पर स्थित है। विक्रमजोत अयोध्या मार्ग एन एच 28 पर सिकन्दरपुर से कटकर परशुरामपुर
रोड पर जाने पर यहां पहुचा जा सकता है। इस समय पूर्वाचल ग्रामीण बैंक की एक शाखा भी
यहां पर खुली हुई हैं तथा आदर्श इन्टर कालेज भी यहां पर स्थित हैं। प्राचीन समय में यह कोशल राज्य का हिस्सा हुआ करता
था। त्रेता में राजा दशरथ के जिस मखौड़ा धाम पर पुत्रेष्टि यज्ञ का जिक्र मिलता है वहां
रामजानकी मंदिर के रूप में दशरथमहल की संपदा अभी भी पूरी जीवंतता से विद्यमान है। एक
बार उत्तर कोशल में सम्पूर्ण भारत के ऋषि मुनियों का सम्मेलन हुआ था। इसकी अगुवाई ऋष्
उद्दालक ने की थी । वे सरयू नदी क उत्तर पश्चिम
दिशा में टिकरी बन प्रदेश में तप कर रहे थे। यही उनकी तप स्थली थी। पास ही मखौड़ा
नामक स्थल भी था। मखौड़ा ही वह स्थल हैं जहां गुरू वशिष्ठ की सलाह से तथा श्रृंगी ऋषि
की मदद से राजा दशरथ ने पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। जिससे उन्हें रामादि चार पुत्र
पैदा हुए थे। उस समय मखौड़ा के आस पास कोई नदी नहीं थी। यज्ञ के समय मनोरमा नदी का अवतरण
कराया गया था।यहां पर श्री राम जानकी के मुख्य रूप से दो मन्दिर है।
बस्ती मण्डल में ऋषियों व मुनियों के आश्रम :- उन दिनों देवता व अप्सरायें पृथ्वी लोक में आते-जाते रहते थे। बस्ती
मण्डल में हिमालय का जंगल दूर-दूर तक फैला हुआ करता था। जहां ऋषियों व मुनियों के आश्रम
हुआ करते थे। आबादी बहुत ही कम थी। आश्रमों के आस-पास सभी हिंसक पशु-पक्षी हिंसक वृत्ति
और वैर-भाव भूलकर एक साथ रहते थे। परम पिता ब्रहमा के मानस पुत्र महर्षि कश्यप थे।
उनके पुत्र महर्षि विभाण्डक थे। वे उच्च कोटि के सिद्ध सन्त थे। पूरे आर्यावर्त में
उनको बड़े श्रद्धा व सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। उनके तप से देवतागण भयभीत हो
गये थे। इन्द्र को अपना सिंहासन डगमगाता हुआ दिखाई दिया था। भारतवर्ष में अवध व कोशल
का नाम किसी से छिपा नहीं है। भगवान राम का चरित्र आज न केवल सनातन धर्मावलम्बियों
में अपितु विश्व के मानवता के परिप्रेक्ष्य में बड़े आदर व सम्मान के साथ लिया जाता
है। उनके जन्म भूमि को पावन करने वाली सरयू मइया की महिमा पुराणों में भी मिलती है
तथा राष्ट्रीय कवि मैथली शरण गुप्त आदि हिन्दी कवियों ने बखूबी व्यक्त किया है। हो
क्यों ना, आखिर मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम के चरित्र से जो जुड़ा है। परन्तु किसी
पुराणकार या परवर्ती साहित्यकार ने राम को धरा पर अवतरण कराने वाले मखौड़ा नामक पुत्रेष्ठि
यज्ञ स्थल और उसको पावन करने वाली सरस्वती ( मनोरमा ) के अवतरण व उनके वर्तमान स्थिति
के बारे में ध्यान नहीं दिया है।
एक प्रातः 7 बजे
से शाम 6 बजे तक तथा दूसरा प्रातः 4 वजे से 8 वजे तक ही खुला रहता है। एक का व्यवस्थापन
अयोध्या के हनुमान गढ़ी द्वारा तथा दूसरे का अयोध्या के दशरथ महल द्वारा किया जाता है।
इनकी हालत वहुत अच्छी नही है। चैरासी कोस की परिक्रमा के समय यहा काफी चहल पहल रहती
है। परिक्रमा चैत पूर्णिमा को शुरू होकर बैसाख पूर्णिमा तक चलता है। गुजरात के स्वामी
नारायण सम्प्रदाय के श्रद्धालु बड़ी संख्या में इस मन्दिर में दर्शन हेतु आते है।
पुत्रेष्टि यज्ञ कुण्ड का निर्माण :- जब अयोध्या के राजा दशरथ के कोई सन्तान नहीं हो रही थी। तब उन्होने
अपनी चिन्ता महर्षि बशिष्ठ से कह सुनाई थी। महर्षि बशिष्ठ ने श्रृंगी ऋषि के द्वारा
अश्वमेध तथा पुत्रेष्टि कामना यज्ञ करवाने का सुझाव दिया। दशरथ नंगे पैर उस आश्रम में
गयें थे। तरह-तरह से उन्होंने महर्षि श्रृंगी की बन्दना की। ऋषि को उन पर तरस आ गया।
महर्षि बशिष्ठ की सलाह को मानते हुए वह यज्ञ का पुरोहिताई करने को तैयार हो गये। उन्होने
एक यज्ञ कुण्ड का निर्माण कराया । इस स्थान को मखौड़ा कहा जाता है। रूद्रायामक अयोध्याकाण्ड
28 में मख स्थान की महिमा इस प्रकार कहा गया है -
कुटिला संगमाद्देवि ईषान्ये क्षेत्रमुत्तमम्।
मखःस्थानं महत्पूर्णा यम पुण्यामनोरमा।।
स्कन्द पुराण के मनोरमा महात्म्य में मखक्षेत्र
को इस प्रकार महिमा मण्डित किया गया है-
मखःस्थलमितिख्यातं तीर्थाणामुत्तमोत्तमम्।
हरिश्चन्ग्रादयो यत्र यज्ञै विविध दक्षिणे।।
मखौड़ा धाम उपेक्षित :- मखौड़ा धाम वर्तमान समय में बहुत ही उपेक्षित है। मन्दिर जीर्ण शीर्ण
अवस्था में हैं। नदी के घाट टूटे हुए हैं। 84 कोसी परिक्रमा पथ पर होने के बावजूद इसका
जीर्णोद्धार नहीं हो पा रहा है। आगामी एक अप्रैल
से शुरू होने वाली देश विदेश में चर्चित अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा में इस बार एक
हजार से ज्यादा साधु संत और श्रद्धालु हिस्सा लेंगे। परिक्रमा में हिस्सा लेने के लिए
साधुए संत और श्रद्धालु आगामी 31 मार्च को संत गया दास की अगुवाई में अयोध्या से मखौड़ा
धाम पहुंचेंगे और रात्रि विश्राम के बाद प्रातः काल पौराणिक मनोरमा नदी में स्नान के
बाद नंगे पैर परिक्रमा की शुरुआत करेंगे। परिक्रमा में हिस्सा लेने के लिए अब तक एक
हजार से ज्यादा साधु संत और श्रद्धालुओं ने अपना पंजीकरण कराया है। मखौड़ा धाम
से शुरू होने वाली अयोध्या की 84 कोसी यह परिक्रमा अंबेडकर नगर फैजाबाद बाराबंकी और
गोण्डा होती हुई आगामी 22 अप्रैल को फिर मखौड़ा धाम पहुंचकर खत्म होगी। परिक्रमा के 21 रात्रि विश्राम स्थल पहले से तय हैं। जहां स्थानीय
लोग परिक्रमा में हिस्सा लेने वाले श्रद्धालुओं के खाने और ठहरने का बंदोबस्त करते
हैं। परिक्रमा का पहला पड़ाव जिले के छावनी स्थित रामरेखा मंदिर जबकि दूसरा पड़ाव दुबौलिया
के हनुमान बाग में होगा। जिसके बाद परिक्रमा में हिस्सा ले रहे श्रद्धालु सरजू नदी
लांघकर श्रृंगी ऋषि के आश्रम के लिए प्रस्थान करेंगे। मखौड़ा धाम से शुरू होने वाली इस 84 कोसी परिक्रमा की सभी तैयारियां पूरी
की जा चुकी हैं और रास्ते में पड़ने वाले 21 पड़ाव पर श्रद्धालुओं की सुरक्षा और विश्राम
के लिए स्थानीय स्तर पर गठित समितियों को चौकस किया जा चुका है। परिक्रमा के समापन
के मौके पर मखौड़ा धाम में भंडारे का भी आयोजन किया जा रहा है। अयोध्या की विश्व प्रसिद्ध
84 कोसी परिक्रमा की यह परंपरा सदियों पुरानी है और इस परिक्रमा में हिस्सा ले रहे
श्रद्धालु भगवान राम के राज्य के 84 कोस का भ्रमण करके पुण्य फल की प्राप्ति करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि 84 कोसी परिक्रमा करने वाले
श्रद्धालुओं का 84 लाख योनियों में भटकने का क्रम खत्म हो जाता है। त्रेता युग में
चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ ने मनोरमा नदी के तट पर स्थित मखौड़ा धाम में पुत्रेष्टि
यज्ञ कराया था। जिसके बाद उन्हें चार पुत्रों की प्राप्ति हुई थी।
श्रीराम सर्किट परियोजना में शामिल :-पुत्रेष्टि यज्ञ स्थली के पर्यटकीय विकास के लिए केंद्र सरकार ने इसे
श्रीराम सर्किट परियोजना में शामिल कर 6.37 करोड़ रुपए की योजना की मंजूरी देकर यहां
पर्यटक भवन प्रसाधन केंद्र और बाउंड्री वॉल का निर्माण शुरू कराने के साथ सौंदर्यीकरण
का काम भी शुरू कराया है। जबकि भगवान राम के मंदिर यज्ञशाला और मनोरमा नदी के किनारे
पक्के घाटों का निर्माण पहले ही हो चुका है। केंद्रीय भूतल और सड़क परिवहन मंत्री नितिन
गडकरी 84 कोसी परिक्रमा यात्रा मार्ग को फोरलेन
का बनाने का एलान बीते साल ही कर चुके हैं। पर इस पर अभी तक अमल न होने से इस बार भी
परिक्रमा में हिस्सा लेने वाले साधु संतो और श्रद्धालुओं को कच्चे रास्तों पगडंडियों
और उबड़ खाबड़ रास्तों से होकर गुजरना पड़ेगा।
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