Monday, December 4, 2017

अयोध्या एवं राम जन्मभूमि का इतिहास (भाग 1 ) डा. राधेश्याम द्विवेदी

ayodhya के लिए इमेज परिणाम                                                        वेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है, "अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या" और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। यह पुरी सरयू के तट पर बारह योजन (लगभग 144कि.मी) लम्बाई तीन योजन (लगभग 36 कि.मी.) चौड़ाई में बसी थी। कई शताब्दी तक यह नगर सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रहा। अयोध्या मूल रूप से मंदिरों का शहर है। यहां आज भी हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम ऐवम जैन धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं। जैन मत के अनुसार यहां आदिनाथ सहित पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। इसका महत्व इसके प्राचीन इतिहास में निहित है क्योंकि भारत के प्रसिद्ध एवं प्रतापी क्षत्रियों (सूर्यवंशी) की राजधानी यही नगर रहा है। उक्त क्षत्रियों में दाशरथी रामचंद्र अवतार के रूप में पूजे जाते हैं। पहले यह कोसल जनपद की राजधानी था। प्राचीन उल्लेखों के अनुसार तब इसका क्षेत्रफल 96 वर्ग मील था। यहाँ पर सातवीं शाताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहाँ 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे।
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वाल्मीकि रामायण में स्‍मार्ट सिटी पहले से ही दिखया जा चुका :- मोदी सरकार ने भले ही देश में 100 स्‍मार्ट सिटी बनाने का लक्ष्‍य रखा हो और फिलहाल इसके लिए 20 शहरों के नामों की घोषणा भी कर दी हो लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि दुनिया की पहली ‘स्‍मार्ट सिटी’ अयोध्‍या थी। हैरान रह गए ना आप। लेकिन, ये हम नहीं कह रहे बल्‍कि इसके सबूत हमें वाल्‍मीकि रामायण के भीतर ही मिलते हैं। वाल्‍मीकि रामायण के पांचवे सर्ग में अयोध्‍या पुरी का वर्णन विस्‍तार से किया गया है। आइए जानते हैं क्‍यों थी अयोध्‍या दुनिया की सबसे पुरानी स्‍मार्ट सिटी। साकेतपुरी अयोध्या का वर्णन करते हुए महर्षि वाल्मीकि, रामायण के बालकांड के पांचवें सर्ग के पांचवें श्लोक में लिखते हैं:
”कोसल नाम मुदित: स्फीतो जनपदो महान। निविष्ट: सरयूतीरे प्रभूतधनधान्यवान्।। (1/5/5)
अर्थात : सरयू नदी के तट पर संतुष्ट जनों से पूर्ण धनधान्य से भरा-पूरा, उत्तरोत्तर उन्नति को प्राप्त कोसल नामक एक बड़ा देश था। वाल्मीकि आगे लिखते हैं –”इसी देश में मनुष्यों के आदिराजा प्रसिद्ध महाराज मनु की बसाई हुई तथा तीनों लोकों में विख्यात अयोध्या नामक एक नगरी थी।(1/5/6) नगर की लंबाई चौड़ाई और सड़कों के बारे में महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं –”यह महापुरी बारह योजन (96 मील) चौड़ी थी। इस नगरी में सुंदर, लंबी और चौड़ी सड़कें थीं। (1/5/7)   
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सड़कों की सफाई और सुंदरता:-वाल्‍मीकि जी सड़कों की सफाई और सुंदरता के बारे में लिखते हैं :”वह पुरी चारो ओर फैली हुई बड़ी-बड़ी सड़कों से सुशोभित थी। सड़कों पर नित्‍य जल छिड़का जाता था और फूल बिछाये जाते थे। (1/5/8) महर्षि आगे लिखते हैं –  ”इंद्र की अमरावती की तरह महाराज दशरथ ने उस पुरी को सजाया था। इस पुरी में राज्‍य को खूब बढ़ाने वाले महाराज दशरथ उसी प्रकार रहते थे जिस प्रकार स्‍वर्ग में इन्‍द्र वास करते हैं।”  (1/5/9)
साकेत पुरी की सुंदरता :- साकेत पुरी की सुंदरता का बखान करते हुए वाल्‍मीकि लिखते हैं : ”इस पुरी में बड़े-बड़े तोरण द्वार, सुंदर बाजार और नगरी की रक्षा के लिए चतुर शिल्‍पियों द्वारा बनाए हुए सब प्रकार के यंत्र और शस्‍त्र रखे हुए थे।” (1/5/11) उसमें सूत, मागध बंदीजन भी रहते थे, वहां के निवासी अतुल धन सम्‍पन्‍न थे, उसमें बड़ी-बड़ी ऊंची अटारियों वाले मकान जो ध्‍वजा पताकाओं से शोभित थे और परकोटे की दीवालों पर सैकड़ों तोपें चढ़ी हुई थीं। (1/5/12)
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बाग-उद्यान :- नगर के बागों उद्यानों पर प्रकाश डालते हुए महर्षि वाल्‍मीकि लिखते हैं :”स्‍त्रियों की नाट्य समितियों की भी यहां कमी नहीं है और सर्वत्र जगह-जगह उद्यान निर्मित थे। आम के बाग नगरी की शोभा बढ़ाते थे। नगर के चारो ओर साखुओं के लंबे-लंबे वृक्ष लगे हुए ऐसे जान पड़ते थे मानो अयोध्‍या रूपिणी स्‍त्री करधनी पहने हो।” (1/5/13)
 नगर की सुरक्षा और पशुधन :-नगर की सुरक्षा और पशुधन का वर्णन करते हुए महर्षि वाल्‍मीकि लिखते हैं : ”यह नगरी दुर्गम किले और खाई से युक्‍त थी तथा उसे किसी प्रकार भी शत्रु जन अपने हाथ नहीं लगा सकते थे। हाथी, घोड़े, बैल, ऊंट, खच्‍चर जगह-जगह दिखाई पड़ते थे। (1/5/14) ”राजभवनों का रंग सुनहला था, विमान गृह जहां देखो वहां दिखाई पड़ते थे।”  (1/5/16) ”उसमें चौरस भूमि पर बड़े मजबूत और सघन मकान अर्थात बड़ी सघन बस्‍ती थी। कुओं में गन्‍ने के रस जैसा मीठा जल भरा हुआ था।” (1/5/17) ”नगाड़े, मृदंग, वीणा, पनस आदि बाजों की ध्‍वनि से नगरी सदा प्रतिध्‍वनित हुआ करती थी। पृथ्‍वीतल पर तो इसकी टक्‍कर की दूसरी नगरी थी ही नहीं।”  (1/5/18)उस उत्‍तम पुरी में गरीब यानी धनहीन तो कोई था ही नहीं, बल्‍कि कम धन वाला भी कोई न था, वहां जितने कुटुम्‍ब बसते थे, उन सब के पास धन-धान्‍य, गाय, बैल और घोड़े थे।(1/6/7)
ब्रह्मा विष्‍णु और रुद्र तीनों का संयुक्त स्वरुप अयोध्या :-  पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार एक बार ब्रह्माजी के पास पहुंचकर मनु ने सृष्‍टिलीला में निरत होने के लिए उपयुक्‍त स्‍थान सुझाने का आग्रह किया। इसपर ब्रह्माजी उन्‍हें लेकर भगवान विष्‍णु के पास पहुंचे। तब भगवान विष्‍णु ने मनु को आश्‍वासन दिया कि समस्‍त ऐश्‍वर्यसंपूर्ण साकेतधाम मैं अयोध्‍यापुरी भूलोक में प्रदान करता हूं। भगवान विष्‍णु ने इस नगरी को बसाने के लिए ब्रह्मा जी तथा मनु के साथ देवशिल्‍पी विश्‍वकर्मा को भेज दिया। इसके अलावा अपने रामावतार के लिए उपयुक्‍त स्‍थान ढूंढ़ने के लिए महर्षि वसिष्‍ठ को भी उनके साथ भेजा। मान्‍यता है कि वसिष्‍ठ द्वारा सरयू नदी के तट पर लीलाभूमि का चयन किया गया जहां विश्‍वकर्मा ने नगर का निर्माण किया। स्‍कंद पुराण के अनुसार अयोध्‍या भगवान विष्‍णु के चक्र पर विराजमान है। इसी पुराण के अनुसार अयोध्‍या में ‘अ’ कार ब्रह्मा, ‘य’ कार विष्‍णु और ‘ध’ कार रुद्र का ही रूप है।
अयोध्या सप्तपुरियों में एक :- अयोध्या सात सबसे महत्वपूर्ण सप्तपुरियों में एक तीर्थ स्थल के रूप में माना गया है । यह माना जाता है वेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है, "अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या" और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। यह पुरी सरयू के तट पर बारह योजन (लगभग १४४ कि.मी) लम्बाई तीन योजन (लगभग ३६ कि.मी.) चौड़ाई में बसी थी । कई शताब्दी तक यह नगर सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रहा। अयोध्या मूल रूप से मंदिरों का शहर है। यहां आज भी हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम ऐवम जैन धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं। जैन मत के अनुसार यहां आदिनाथ सहित पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। इसका महत्व इसके प्राचीन इतिहास में निहित है क्योंकि भारत के प्रसिद्ध एवं प्रतापी क्षत्रियों (सूर्यवंशी) की राजधानी यही नगर रहा है। उक्त क्षत्रियों में दाशरथी रामचंद्र अवतार के रूप में पूजे जाते हैं। पहले यह कोसल जनपद की राजधानी था। प्राचीन उल्लेखों के अनुसार तब इसका क्षेत्रफल 96 वर्ग मील था। यहाँ पर सातवीं शाताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहाँ 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे।
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श्री रामजन्मभूमि का ईसापूर्व इतिहास :-  मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जन्म भूमि का इतिहास लाखो वर्ष पुराना है । विभिन्न पुस्तकों से मिले कुछ तथ्यों को सरकारी मशीनरी और तुस्टीकरण के पुजारी उन्हें सामान्य जनमानस तक नहीं आने देते मैंने सिर्फ उन तथ्यों का संकलन करके आप के सामने प्रस्तुत किया है॥त्रेता युग के चतुर्थ चरण में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी अयोध्या की इस पावन भूमि पर अवतरित हुए थे। श्री राम चन्द्र जी के जन्म के समय यह स्थान बहुत ही विराट,सुवर्ण एवं सभी प्रकार की सुख सुविधाओ से संपन्न एक राजमहल के रूप में था। महर्षि वाल्मीकि ने भी रामायण मे जन्मभूमि की शोभा एवं महत्ता की तुलना दूसरे इंद्रलोक से की है ॥धन धान्य रत्नो से भरी हुई अयोध्या नगरी की अतुलनीय छटा एवं गगनचुम्बी इमारतो के अयोध्या नगरी में होने का वर्णन भी वाल्मीकि रामायण में मिलता है ॥
कुश अयोध्या का पुनर्निर्माण :- भगवान के श्री राम के स्वर्ग गमन के पश्चात अयोध्या तो पहले जैसी नहीं रही मगर जन्मभूमि सुरक्षित रही। भगवान श्री राम के पुत्र कुश ने एक बार पुनः राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया और सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इसकी अस्तित्व आखिरी राजा महाराजा वृहद्व्ल तक अपने चरम पर रहा॥ कौशालराज वृहद्वल की मृत्यु महाभारत युद्ध में अभिमन्यु के हाथो हुई । महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़ सी गयी मगर श्री रामजन्मभूमि का अस्तित्व प्रभुकृपा से बना रहा ॥
महाराजा विक्रमादित्य द्वारा पुनर्निर्माण : तीर्थराज प्रयागकी दैवीय प्रेरणा  : - ईसा के लगभग १०० वर्ष पूर्व उज्जैन के राजा विक्रमादित्य आखेट करते करते अयोध्या चले आये। थकान होने के कारण अयोध्या में सरयू नदी के किनारे एक आम के बृक्ष के नीचे वो आराम करने लगे। उसी समय दैवीय प्रेरणा से तीर्थराज प्रयाग से उनकी मुलाकात हुई और तीर्थराज प्रयाग ने सम्राट विक्रमादित्य को अयोध्या और सरयू की महत्ता के बारे में बताया और उस समय तक नष्ट सी हो गयी श्री राम जन्मभूमि के उद्धार के लिए कहा॥ महाराजा विक्रमादित्य ने कहा की महाराज अयोध्या तो उजड़ गयी है,मिटटी के टीले और स्तूप ही यहाँ अवशेषों के रूप में हैं, फिर मुझे ज्ञान कैसे होगा की अयोध्या नगरी कहा से शुरू होती है,क्षेत्रफल कितना होगा और किस स्थान पर कौन सा तीर्थ है ॥ इस संशय का निवारण करते हुए तीर्थराज प्रयाग ने कहा की यहाँ से आधे योजन की दूरी पर मणिपर्वत है,उसके ठीक दक्षिण चौथाई योजन के अर्धभाग में गवाक्ष कुण्ड है उस गवाक्ष कुण्ड से पश्चिम तट से सटा हुआ एक रामनामी बृक्ष है,यह वृक्ष अयोध्या की परिधि नापने के लिए ब्रम्हा जी ने लगाया था। सैकड़ो वर्षों से यह वृक्ष उपस्थित है वहा। उसी वृक्ष के पश्चिम ठीक एक मिल की दूरी पर एक मणिपर्वत है। मणिपर्वत के पश्चिम सटा हुआ गणेशकुण्ड नाम का एक सरोवर है,उसके ऊपर शेष भगवान का एक मंदिर बना हुआ है (ज्ञातव्य है की अब इस स्थान पर अयोध्या में शीश पैगम्बर नाम की एक मस्जिद है जिसे सन १६७५ में औरंगजेब ने शेष भगवान के मंदिर को गिरा कर बनवाया था ). शेष भगवान के मंदिर से ५०० धनुष पर ठीक वायव्य कोण पर भगवान श्री राम की जन्मभूमि है॥ रामनामी वृक्ष(यह वृक्ष अब सूखकर गिर चुका है) के एक मील के इर्द गिर्द एक नवप्रसूता गाय को ले कर घुमाओ जिस जगह वह गाय गोबर कर दे,वह स्थल मणिपर्वत है फिर वहा से ५०० धनुष नापकर उसी ओर गाय को ले जा के घुमाओ जहाँ उसके स्तनों से दूध की धारा गिरने लगे बस समझ लेना भगवान की जन्मभूमि वही है रामजन्मभूमि को सन्दर्भ मान के पुरानो में वर्णित क्रम के अनुसार तुम्हे समस्त तीर्थो का पता लग जायेगा,ऐसा करने से तुम श्री राम की कृपा के अधिकारी बनोगे यह कहकर तीर्थराज प्रयाग अदृश्य हो गए॥ रामनवमी के दिन पूर्ववर्णित क्रम में सम्राट विक्रमादित्य ने सर्वत्र नवप्रसूता गाय को घुमाया जन्म भूमि पर उसके स्तनों से अपने आप दूध गिरने लगा उस स्थान पर महाराजा विक्रमादित्य ने श्री राम जन्मभूमि के भव्य मंदिर का निर्माण करा दिया॥
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जयचंद अपना नाम लिखवाया :-ईसा की ग्यारहवी शताब्दी में कन्नोज नरेश जयचंद आया तो उसने मंदिर पर सम्राट विक्रमादित्य के प्रशस्ति को उखाड़कर अपना नाम लिखवा दिया। पानीपत के युद्ध के बाद जयचंद का भी अंत हो गया फिर भारतवर्ष पर लुटेरे मुसलमानों का आक्रमण शुरू हो गया। मुसलमान आक्रमणकारियों ने जी भर के जन्मभूमि को लूटा और पुजारियों की हत्या भी कर दी,मगर मंदिर से मुर्तिया हटाने और मंदिर को तोड़ने में वे सफल न हो सके॥ विभिन्न आक्रमणों के बाद भी सभी झंझावतो को झेलते हुए श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या १४वीं शताब्दी तक बची रही॥ चौदहवी शताब्दी में हिन्दुस्थान पर मुगलों का अधिकार हो गया और उसके बाद ही रामजन्मभूमि एवं अयोध्या को पूर्णरूपेण इस्लामिक साँचे मे ढालने एवं सनातन धर्म के प्रतीक स्तंभो को जबरिया इस्लामिक ढांचे मे बदलने के कुत्सित प्रयास शुरू हो गए॥
अयोध्या भारत का एकआकर्षक केन्द्र :- अयोध्या, उत्तर प्रदेश, भारत का इतिहास एक आकर्षक एक है। प्राचीन इतिहास के अनुसार, अयोध्या पवित्रतम शहरों में जहां हिंदू, बौद्ध, इस्लाम और जैन धर्म की धार्मिक आस्थाओं को एक साथ एकजुट भारी पवित्र महत्व की एक जगह के निर्माण के लिए की गई थी। अथर्ववेद में, इस जगह एक शहर है कि देवताओं द्वारा किया गया था और स्वर्ग के रूप में ही समृद्ध था के रूप में वर्णित किया गया था। प्राचीन कोशल की शक्तिशाली राज्य के रूप में अपनी राजधानी अयोध्या थी। इस शहर में भी 600 ईसा पूर्व में एक महत्वपूर्ण व्यापार केंद्र था। इतिहासकारों Saketa, 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व (यह एक व्यापक रूप से आयोजित की धारणा है कि बुद्ध कई मौकों पर अयोध्या का दौरा किया है), जो यह 5 वीं शताब्दी ईस्वी तक बने रहे के दौरान एक महत्वपूर्ण बौद्ध केंद्र होने के लिए इस जगह की पहचान की है। वास्तव में, एफए Hien, चीनी भिक्षु, कई बौद्ध मठों कि वह यहाँ देखा की रिकार्ड रखा। अयोध्या जैन समुदाय के लिए भी एक ऐतिहासिक महत्व है। यह दो महत्वपूर्ण जैन तीर्थंकरों जो जल्दी शताब्दी में पैदा हुए थे के जन्म स्थान है। जैन ग्रंथों में भी महावीर, इस शहर में जैन धर्म के संस्थापक की यात्रा करने के लिए गवाही खड़े हो जाओ। 7 वीं शताब्दी में, जुआन झांग (ह्वेन त्सांग), चीनी भिक्षु, अयोध्या में कई हिंदू मंदिरों खोलना दर्ज की गई। महाकाव्य रामायण में अयोध्या के शहर भगवान श्री राम, एक हिंदू देवता है जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार के रूप में पूजा की थी के जन्मस्थान के रूप में पेश किया जाता है। जब रामानंद, हिंदू रहस्यवादी, राम की भक्ति संप्रदाय की स्थापना की अयोध्या 1400 में एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बन गया। 16 वीं शताब्दी में अयोध्या में मुगल साम्राज्य के शासन के अधीन आने के साथ सत्ता में बदलाव देखा। अयोध्या 1856 में ब्रिटिश शासकों द्वारा कब्जा कर लिया गया था।1857 और 1859 के बीच, इस जगह मुख्य केन्द्रों में जहां भारत की आजादी की पहली लड़ाई के स्पार्क्स उत्पन्न में से एक था। ये स्पार्क्स बाद में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के विरोध में भारतीय सैनिकों के एक राष्ट्रव्यापी विद्रोह कि कोलकाता में शुरू करने के लिए नेतृत्व किया।
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मंदिर की नींव पर मस्जिद : राम जन्मभूमि विवाद  :- हिन्दुओं के पौराणिक ग्रन्थ रामायण और रामचरित मानस के अनुसार यहां भगवान राम का जन्म हुआ था।   भारत में अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर की नींव पर बाबरी मस्जिद बनाया गया है, 1528 में राम जन्म भूमि पर मस्जिद बनाई गई थी।, हिंदुओं का मानना है कि यह भगवान राम का जन्मस्थान रहा।  भारत में मुगल राजवंश का संस्थापक बाबर के नाम पर इसका नाम बाबरी मस्जिद पड़ा। स्वतंत्रता से पहले राम चबूतरा कहा जाता है पर जगह ले ली।1853 में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस जमीन को लेकर पहली बार विवाद हुआ। 1859 में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा।  यह कहा जाता है कि उस समय तक, हिंदुओं और मुस्लिम एक जैसे मस्जिद-मंदिर में पूजा करने के लिए इस्तेमाल करते रहे।  विवाद को रोकने के लिए बाद में ब्रिटिश शासन में एक रेलिंग लगाई गई ।  भीतर, मस्जिद में मुस्लिम प्रार्थना करते हैं, जबकि बाड़ के बाहर हिन्दुओं एक मंच पर राम लला की मूर्ति रखकर अपनी पूजा करते  थे। जिस पर वे अपने प्रसाद बनाना चाहते थे। 1949 में अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई। तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगा दिया। सन् 1986 में जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया। मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की। सन् 1989 में विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल से सटी जमीन पर राम मंदिर की मुहिम शुरू की6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई। परिणामस्वरूप देशव्यापी दंगों में करीब दो हजार लोगों की जानें गईं। उसके दस दिन बाद 16 दिसम्बर 1992 को लिब्रहान आयोग गठित किया गया। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के रिटायर्ड मुख्य न्यायाधीश एम.एस. लिब्रहान को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। लिब्रहान आयोग को16 मार्च 1993  को यानि तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया था, लेकिन आयोग ने रिपोर्ट देने में 17 साल लगाए। 30 जून 2009 को लिब्रहान आयोग ने चार भागों में 700 पन्नों की रिपोर्ट प्रधानमंत्री डॉ॰ मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदम्बरम को सौंपा। जांच आयोग का कार्यकाल  48 बार बढ़ाया गया। 31 मार्च 2009  को समाप्त हुए लिब्रहान आयोग का कार्यकाल को अंतिम बार तीन महीने यानी ३० जून तक के लिए बढ़ा गया। पिछले 17 सालों में इस रिपोर्ट पर लगभग 8 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। आयोग से जुड़े एक सीनियर वकील अनुपम गुप्ता के अनुसार 700  पन्नों के इस रिपोर्ट में यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के नाम का उल्लेख 400  पन्नों में है, जबकि लालकृष्ण आडवाणी और मुरली *मनोहर जोशी की चर्चा 200  पन्नों पर की गई है। हालांकि अध्यक्ष से मतभेद के कारण अनुपम गुप्ता इस जांच से अलग हो गए थे। इस मामले में 399  बार सुनवाई हुई है।
 सन्दर्भ:प्राचीन भारत, लखनऊ गजेटियर, लाट राजस्थान,रामजन्मभूमि का इतिहास(आर जी पाण्डेय),अयोध्या का इतिहास(लाला सीताराम),बाबरनामा

( क्रमशः---)

2 comments:

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  2. कृप्या अपना नंबर हमें मेरे मोबाोईल पर भेजे.....9891011128. मैं एक टेलिविजन पत्रकार हूं.आपके ब्लाग में वर्णित तत्यों पर मैं एक स्टोरी करना चाहता हूं।

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