अवैध बांग्लादेशी हैं रोहिंग्या :- बौद्ध बहुल म्यांमार में करीब 10 लाख रोहिंग्या मुसलमान हैं. इनको मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी माना जाता है. म्यांमार सरकार ने कई पीढ़ियों से रह रहे इस समुदाय के लोगों की नागरिकता छीन ली है. लगभग सभी रोहिंग्या म्यांमार के रखाइन (अराकान) राज्य में रहते हैं. यह सुन्नी इस्लाम को मानते हैं। सरकार ने इन्हें नागरिकता देने से इनकार कर दिया है। ये म्यामांर में पीढ़ियों से रह रहे हैं। ये
रोहिंग्या या रुयेन्गा भाषा बोलते हैं। जो रखाइन और म्यांमार के दूसरे भागों में बोली जाने वाली भाषा से कुछ अलग है। इन्हें आधिकारिक रूप से देश के 135 जातीय
समूहों में शामिल नहीं किया गया है। ये 12वीं सदी में म्यांमार चले गए थे. ब्रिटिश शासन के दौर में 1824 से 1948 तक भारत और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में मजदूर म्यांमार ले जाए गए. चूंकि म्यांमार भी ब्रिटेन का उपनिवेश था इसलिए वह उसे भारत का ही एक राज्य मानता था. इसी वजह से तब इस आवाजाही को देश के भीतर की आवाजाही ही मान जाता रहा. ब्रिटेन से आजादी मिलने के बाद म्यांमार की सरकार ने इस प्रवास को अवैध घोषित कर दिया. इसी के आधार पर 1982 में रोहिंग्या मुसलमानों की नागरिकता समाप्त कर दी गई. जिसके बाद से वे बिना नागरिकता के जीवन बिता रहे हैं।
ब्रिटेन से आजादी के बाद, इस
देश की सरकार ने ब्रिटिश राज में होने वाले इस प्रवास को गैर कानूनी घोषित कर दिया। जिसके चलते अधिकांश बौद्ध रोहिंग्या मुसमानों को बंगाली समझने लगे और उनसे नफरत करने लगे। वर्ष 1948 में म्यांमार की आजादी के बाद देश का नागरिकता कानून बना. इसमें रोहिंग्या मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया. जो लोग दो पीढ़ियों से रह रहे थे उनके पहचन पत्र बनाए गए. बाद में कुछ रोहिंग्या मुसलमान सांसद भी चुने गए. सन 1962 में म्यांमार में सैन्य विद्रोह होने के बाद रोहिंग्या मुसलमानों के बुरे दिन शुरू हो गए. उनको विदेशी पहचान पत्र ही जारी किए गए. उन्हें रोजगार, शिक्षा सहित अन्य सुविधाओं से वंचित कर दिया गया. उन्हें शिक्षा, रोजगार, यात्रा, विवाह, धार्मिक आजादी और स्वास्थ्य सेवाओं के लाभ से भी उनको महरूम कर दिया गया.
आवागमन प्रतिबंधित :-रोहिंग्या मुसलमानों को बिना अधिकारियों की अनुमति के अपनी बस्तियों और शहरों से देश के दूसरे भागों में आने जाने की इजाजत नहीं है। यह लोग बहुत ही निर्धनता में झुग्गी झोपड़ियों में रहने के लिए मजबूर हैं। पिछले कई दशकों से इलाके में किसी भी स्कूल या मस्जिद की मरम्मत की अनुमति नहीं दी गई है। नए स्कूल, मकान,
दुकानें और मस्जिदों को बनाने की भी रोहिंग्या मुसलमानों को इजाजत नहीं है और अब उनकी जिंदगी प्रताड़ना, भेदभाव,
बेबसी और मुफलिसी से ज्यादा कुछ नहीं है। उनको बिना अधिकारियों की अनुमति के देश के दूसरे हिस्सों में जाने-आने की अनुमति नहीं है. इनके इलाके में किसी भी स्कूल या मस्जिद की मरम्मत की इजाजत नहीं है. इसके अलावा वे नए स्कूल, मकान, दुकान और मस्जिद भी नहीं बना सकते हैं.
रोहिंग्या समुदाय का दमन :- म्यांमार में पिछले माह मौंगडोव सीमा पर नौ पुलिस अधिकारियों की हत्या हो गई. इसके बाद रखाइन स्टेट में म्यांमार के सुरक्षा बलों ने बड़ी कार्रवाई शुरू की. सरकार का दावा है कि पुलिस पर हमला रोहिंग्या मुसलमानों ने किया. सुरक्षा बलों ने मौंगडोव जिले की सीमा सील कर दी है और वे व्यापक अभियान चला रहे हैं. सुरक्षा बलों की कार्रवाई में सौ सै ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. म्यामांर के सुरक्षा बलों पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लग रहे हैं. बताया जाता है कि रोहिंग्या समुदाय पर हेलिकॉप्टरों से भी हमले किए जा रहे हैं. पिछले छह हफ्तों में रोहिंग्या मुसलमानों के 1200 घरों को तोड़ दिया गया.
आंग सान सू ची की दुनिया भर में निंदा :- म्यांमार में पिछले साल हुए चुनाव में नोबेल विजेता आंग सान सू ची की पार्टी नेशनल लीग फोर डेमोक्रेसी को जबर्दस्त जीत मिली. यहां यह चुनाव 25 वर्ष बाद हुए थे.संवैधानिक नियमों के चलते सू ची चुनाव जीतकर भी राष्ट्रपति नहीं बन सकीं. वे स्टेट काउंसलर की भूमिका में हैं. माना जाता है कि सू ची के हाथ में ही देश की वास्तविक कमान है. आरोप है कि देश की सरकार और सेना रोहिंग्या समुदाय का नरसंहार कर रही है, उनकी बस्तियों को जलाया जा रहा है, उनकी जमीनें हड़पी जा रही हैं. उन्हें देश से बाहर खदेड़ा जा रहा है. सू ची ने रखाइन में हो रहे जुल्म को कानूनी कार्रवाई बताया है. इस पर उनकी दुनिया भर में आलोचना हो रही है.
बांग्लादेश को ऐतराज :- बांग्लादेश रोंहिग्या मुसलमानों को अपनाने के लिए तैयार नहीं है. परेशान लोग सीमा पार करके सुरक्षित ठिकाने की तलाश में बांग्लादेश आ रहे हैं. बांग्लादेश अथॉरिटी की तरफ से सीमा पार करने वालों को फिर से म्यांमार वापस भेजा जा रहा है. बांग्लादेश रोहिंग्या मुसलमानों को शरणार्थी के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. रोहिंग्या लोग 1970 के दशक से ही म्यांमार से बांग्लादेश आ रहे हैं.संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के अनुसार पिछले दो हफ्तों में करीब 1.23 लाख रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार से पलायन कर चुके हैं। म्यांमार में 25 अगस्त को भड़की हिंसा के बाद करीब 400 लोग मारे जा चुके हैं। म्यांमार
में बौद्ध बहुसंख्यक हैं। म्यांमार में बहुत से लोग रोहिंग्या
को अवैध प्रवासी मानते हैं। म्यांमार की सरकार रोहिंग्या
को राज्य-विहीन मानती है और उन्हें
नागरिकता नहीं देती। म्यांमार सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों
पर कई तरह के
प्रतिबंध लगा रखे हैं। ऐसे प्रतिबंधों में आवागमन, मेडिकल सुविधा, शिक्षा और अन्य सुविधाएं
शामिल है। हालांकि ताजा विवाद के बाद म्यांमार
की काउंसलर और नोबल पुरस्कार
विजेता आंग सान सू की ने
कहा है कि सरकार
रोहिंग्या मुसलमानों के अधिकारों की
रक्षा करेगी।
कई बार खूनी झड़प :- कट्टरपंथी बौद्ध संगठनों और कट्टरपंथी रोहिंग्या मुसलमानों के बीच कई बार खूनी झड़प हो चुकी है। मौजूदा विवाद भी 25 अगस्त को रोहिंग्या मुसलमानों के एक हथियारबंद संगठन द्वारा सुरक्षा बलों पर किए गए हमले से शुरू हुआ। रोहिंग्या मुसलमानों के अनुसार कई गांवों में सेना ने निहत्थे लोगों पर गोली चलाई। म्यांमार की सेना पर गोलीबारी में मारे गए लोगों की लाशों को जला देने के भी आरोप लगे हैं। अक्टूबर 2016 में म्यांमार के नौ सुरक्षालबों की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी। हत्या का आरोप रोहिंग्या कट्टपंथियों पर लगा था। साल 2012 में राखिन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्धों के बीच भारी हिंसा हुई थी। 2012 में हुई हिंसा में कम से कम 80 लोग मारे गए थे और करीब एक लाख पलायन कर गये थे। बौद्ध भिक्षु अशीन विराथु रोहिंग्या विरोधी भड़काऊ भाषणों के लिए जाने जाते हैं। साल 2012 में हुई हिंसा को भड़काने में उनकी अहम भूमिका मानी गयी थी। साल 2015 में रोहिंग्या मुसलमानों का एक बार फिर बड़े पैमाने पर पलायन शुरू हुआ। एक रिपोर्ट के अनुसार करीब 100 रोहिंग्या पलायन के दौरान मारे गए। ज्यादातर रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश, भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड में शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं।
ख़तरा हैं रोहिंग्या मुसलमान :- म्यामांर में रोहिंग्या के प्रति द्वेष कोई नई बात नहीं है, लेकिन इसे उन अल्पसंख्यकों के प्रति लंबे समय से चला आ रहा पूर्वाग्रह माना जा सकता है जिन्हें म्यांमार के नागरिक के रूप में नहीं देखा जाता है.रोहिंग्या लोगों की बोली इस प्रांत में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा से अलग है, इन्हें म्यामांर के 135 आधिकारिक जातीय समूहों में नहीं गिना जाता है.राष्ट्रवादी समूहों ने इस अवधारणा को प्रोत्साहित किया कि रोहिंग्या मुसलमान एक ख़तरा हैं, क्योंकि मुस्लिम पुरुषों की चार पत्नियां और कई बच्चे हो सकते हैं.रख़ाइन में कई लोगों का मानना है कि बढ़ती आबादी की वजह से एक दिन वो उनके ज़मीन को हथिया लेंगे.रख़ाइन प्रांत में रहने वाली एक महिला ने कहा, "वो शिक्षित नहीं है और न ही उनके पास कोई काम है. वो बहुत सारे बच्चे पैदा करते हैं. अगर आपके पड़ोसी के बहुत से बच्चे हैं और वो शोर करते हों तो क्या आप इसे पसंद करेंगे."
भारत का पनाह देने से इनकार :- क्या भारत धर्मशाला है ? जो दूसरे देश के देशद्रोहियों को शरण दे ? और 59 इस्लामिक देश हो चुके है,वहां यह शरणार्थी क्यो नही जाते ? गैर-मुसलमान देशो में क्यो आते है ? भारत ने म्यांमार से आए करीब 40 हजार रोहिंग्या मुसलमानों को देश में पनाह देने से इनकार कर दिया है. चेन्नई के एक संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है. अर्जी में कहा गया है कि रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में रहने की इजाजत देना अशांति, हंगामा और दुर्दशा को आमंत्रित करने के समान है. रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में रहने ना दिया जाए. अर्जी में रोहिंग्या मुसलमान को 'इस्लामिक आतंक' का चेहरा बताया गया है. कहा गया है कि म्यांमार ने रोहिंग्या
मुसलमान को नागरिकता देने से इनकार कर दिया था जिसके बाद म्यांमार में हिंसा करने केबाद रोहिंग्या मुसलमान भारत भागकर आ गए है और जम्मू- कश्मीर,
हैदराबाद, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली-एनसीआर आदि जगहों पर अवैध रूप से रह रहे हैं. रोहिंग्य मुसलमान 'इस्लामिक आतंक' का चेहरा है और रोहिंग्या मुसलमान को भारत में रहने की इजाजत देना अशांति, हंगामा और दुर्दशा को आमंत्रित करने के समान हैं. इंडिक कलेक्टिव ने अपनी याचिका में कहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट को यह बताना चाहता है कि रोहिंग्य मुसलमान को भारत में रहने की इजाजत देने से क्या खतरा है इस लिए रोहिंग्य मुसलमानों से संबंधित मामले में उन्हें भी सुना जाए. अर्जी
में रोहिंग्या मुसलमानों से संबंधित मामले में दखल देने इजाजत मांगी गई है. भारत सरकार देश में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों को वापस उनके देश भेजने जा रही है। हालांकि ये मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है। सर्वोच्च अदालत ने इस मामले में केंद्र सरकार को जवाब तलब किया है।
इससे पहले रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार वापस भेजने के केद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर CJI
दीपक मिश्रा की बेंच ने चार सितंबर को इस मामले में केंद्र सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए कहा था. सुप्रीम कोर्ट 11 सितंबर 2017 को इस मामले सुनवाई करेगा. उम्मीद है माननीय न्यायालय भारत के राष्टीय खतरे व देश की सुरक्षा को देखते हुए इस संवेदनशील मुद्दे पर अपनी राय अवश्य देगा।
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