उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के बस्ती सदर तहसील के बहादुर व्लाक में नगर क्षेत्र
में खड़ौवा खुर्द नामक गांव के आस पास इलाके में नगर राज्य में गौतम क्षत्रियों के पुरोहित
के रूप में भारद्वाज गोत्रीय में इस वंश के पूर्वजों का आगमन के हुआ था । नगर के राजा
उदय प्रतापसिंह के समकालीन उपाध्याय कुल के पूर्वज लक्ष्मन दत्त एक फौजी अफसर थे। इसी
संस्कारयुक्त कुल परम्परा में सरस जी के पिता पं. केदार नाथ उपाध्याय का जन्म हुआ था।
बाद में डा.मुनिलाल उपाध्याय ‘सरस’ जी का जन्म 10.04.1942 ई. में सीतारामपुर में श्री
नाथ उपाध्याय के परिवार में हुआ था। उनकी पढ़ाई 1947 से नगर के प्राइमरी विद्यालय में
शुरू हुआ था पास कर वह नगर के मिडिल स्कूल में दाखिला लिया था। 1955 में कक्षा 5 पास
करके सरस जी ने खैर इन्टर कालेज बस्ती में प्रवेश लिया था। 1956 तक यह एक संयुक्त परिवार
की शक्ल में रहा। इसी बीच 12.10.1957 को सरस जी के पिता की असामयिक मृत्यु हो गयी।
उस समय सरस जी 16 साल के तथा कक्षा 11 के छात्र थे। वह श्री गोविन्द राम सक्सेरिया
इन्टर कालेज में पढते थे। उनके पिता का असमय निधन हो जाने के कारण उन पर घर परिवार
की सारी जिम्मेदारी आ गयी थी। उनकी मां ने बहुत मेहनत और त्याग करके उनकी अधूरी शिक्षा
पूरी कराई थी। वह 1958 में सक्सेरिया इन्टर कालेज से इन्टर, 1962 में किसान डिग्री
कालेज बस्ती से बी. ए. तथा 1963 में साकेत डिग्री कालेज फैजाबाद से बी.एड्. की परीक्षायें
बहुत ही कठिनाइयों को झेलते हुए पास किये थे।
शिक्षा जगत
के अग्रणी साधक:– डा. सरस 1 जुलाई 1963 से किसान इन्टर कालेज
मरहा,कटया बस्ती में सहायक अध्यापक के रूप में पहली नियुक्ति पाये थे। जहां वह जून
1965 तक अध्यापन किये थे। इसी बीच मार्च 1965 में नगर बाजार में संभ्रान्त जनों की
एक बैठक हुई और नगर बाजार में एक जनता माध्यमिक विद्यालय की स्थापना श्री मोहरनाथ पाण्डेय
के प्रबंधकत्व में हुआ था । डा. सरस जुलाई 1965 से इस विद्यालय के संस्थापक प्रधानाध्यापक
हुए। 1968 में विद्यालय को जूनियर हाई स्कूल, 1970-71 में हाईस्कूल तथा 1973 में इन्टर
कालेज की मान्यता मिलती गयी। 1965 से 2006 तक जनता उच्चतर माध्यमिक विद्यालय नगर बाजार
बस्ती आजीवन प्रधानाचार्य पद के उत्तरदायित्व का निर्वहन भी किये। अध्यापन के साथ ही
साथ सरस जी ने हिन्दी, संस्कृत, मध्यकालीन इतिहास, प्राचीन इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व
विषय से एम. ए. करने के बाद हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग का साहित्यरत्न, तथा सम्पूर्णानन्द
संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी का साहित्याचार्य उपाधि भी प्राप्त किये थे। वे अच्छे
विद्वान कवि तथा शिक्षा जगत के एक महान हस्ती थे। उन्हें राष्ट्रपति द्वारा दिनांक
5.9.2002 को वर्ष 2001 का शिक्षक सम्मान भी मिल चुका है। उनकी लगभग 4 दर्जन पुस्तकें प्रकाशित. 'बाल त्रिशूल' विधा का
प्रवर्तन किया. बाल पत्रिका 'बालसेतु' (मासिक हिंदी बालपत्र);का संपादन-प्रकाशन किया.
वे बाल साहित्यकारों के लिए भी एक सेतु जैसे थे .अपने खर्चे पर बस्ती में बाल
साहित्यकार सम्मलेन किया करते थे.बहुत मिलनसार और सह्रदय इंसान थे. डा.
सरस पचीसों बार आकाशवाणी तथा दूरदर्शन के गोरखपुर तथा लखनऊ के केन्द्रो पर अपना कार्यक्रम
प्रस्तुत किया है। उन्होंने बाल साहित्य कला विकास संस्थान की स्थापना करके
अखिल भारतीय बाल साहित्यकार सम्मेलन करके 50 से अधिक राष्ट्रीय स्तर के बाल साहित्यकारों
को सम्मानित किया है। साथ ही ‘‘बालसेतु’’ नामक त्रयमासिक पत्रिका
प्रकाशन भी किया है।
पुरस्कार-सम्मान
:-बाल कल्याण संस्था कानपुर,नागरी बालसाहित्य संस्थान बलिया। वह जून 2006 तक अपने पद पर रहकर लगभग 42 साल तक शिक्षा जगत
जे जुड़े रहे। अगौना कलवारी में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल स्मारक व्याख्यानमाला, कवि सम्मेलन
तथा कन्याओं के विद्यालय को खुलवाने में उनकी महती भूमिका रही है। सेवामुक्त होने के
बाद वह अयोध्या के नयेघाट स्थित परिक्रमा मार्ग पर ‘केदार आश्रम’ बनवाकर रहने लगे।
उनका जीवन एक बानप्रस्थी जैसा हो गया था और वह निरन्तर भगवत् नाम व चर्चा से जुड़े रहे।
70 वर्षीया डा. सरस की मृत्यु 30 मार्च 2012 को लखनऊ के बलरामपुर जिला चिकित्सालय में
हुई थी। उनकी मृत्यु से शिक्षा तथा साहित्य जगत में एक बहुत ही अपूर्णनीय क्षति हुई
थी।
डा. 'सरस' का साहित्यिक एवं यायावरी जीवन:-हिन्दी
साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान होने के कारण कविता , नाटक कथा उपन्यास तथा यात्रा वृतान्त डा.
सरस जी के प्रिय विषय व अभिरूचि हो गये थे। वह एक शिक्षाविद् प्रतिष्ठित कवि एवं उत्कृष्ट
साहित्यकार के रूप में जाने जाते थे। काव्य गोष्ठियों में आने जाने के कारण उनमें यायावरी
प्रवृति आ गई थी। फलतः वे भारत के कोने से कोने सभी क्षेत्रों का अनेक बार भ्रमण किये
हंै। 1975 में नागपुर में होने वाले प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन में समलित होकर बस्ती
जनपद का प्रतिनिधित्व किया था। इसके उपरान्त उन्होने कामरूप, गोहाटी, शिलांग, चेरापूंजी,
जयगांव, गंटोक, कोलकाता , गंगा सागर, जगन्नाथपुरी, जमशेदपुर, गया ,वैद्यनाथ धाम, कोणर्क,
नन्दन कानन,नाथद्वारा, चित्तौड़गढ़, जयपुर, उदयपुर, अजमेर, जोधपुर ,आगरा दिल्ली, मथुरा,
नैनीताल मंसूरी ,हरिद्वार, ऋषिकेश, काठमाण्डू, पोखरा तानसेन, दाड़ग, नेल्लौर, तिरूपति
मदुरै, रामेश्वरम, कन्याकुमारी, धनुषकोटि, मद्रास, कांचीपुरम, महाबलीपुरम, हैदराबाद,
सासाराम, मुम्बई , नसिक, औरंगाबाद, एलोरा, देवगिरि, त्रयम्बकेश्वर, खुल्दाबाद, ओंकारेश्वर,
भोपाल झांसी, मथुरा,उज्जैन, चित्रकूट, रेणकूट हरिद्वार, देहरादून ,यमनोत्री, गंगोत्री,
केदानाथ, त्रजुगी नाराण्ण, बद्रीनाथ, देवप्रयाग, जोशीमठ मैहर, पन्ना,खजुराहो, जम्बू,
पठानकोट,चण्डीगढ़, अम्बाला, वैष्णवदेवी, शिमला, चम्बा, डलहौजी, कुल्लू, मनाली, टनकपुर
कांगड़ा, मैसूर ,द्वारका, पोरबन्दर, सोमनाथ, जूनागढ़, अहमदाबाद, माउन्टआबू, बडोदरा ,उज्जैन,नरायण
सरोवर भुज, बंगलौर, तिरूवन्तपुरम, गोवा, कांगड़ा मैसूर, कालीकट, उदुपी, उड़मंगलम तथा
वृन्दावन गार्डन आदि स्थलों को अनेकों बार भ्रमण किया है। जिनका पूरा वृतान्त भी तीन
भागों में लिखकर प्रकाशित कराया है।
डा.सरस कृत
“बस्ती के छन्दकार ” :-डा. सरस जी ने वाराणसी के काशी
विद्यापीठ से ’’बस्ती के छन्दकार’’ विषय पर डा. केशव प्रसाद
सिंह के निर्देशन में पी.एच .डी. की उपधि अर्जित की है। जिसमें बस्ती जिले वर्तमान
में बस्ती मण्डल के 250 वर्षों के विखरे पड़े साहित्यिक बृतान्तों को एक में संजोया
है। इसे तीन भागों में प्रकाशित कराया गया है। इसमें लगभग 100 कवियों को स्थान दिया
गया हैं आधे से ज्यादा कवियों को सांगोपांग वर्णन तथा उपलब्ध रचनाओं का एकाधिक नमूना
प्रदर्शित करते हुए चित्रित किया गया हैं सामग्री के अभाव में लगभग आधा शतक कवियों
का संक्षिप्त उपलब्धियां तथा परिचय प्रस्तुत किया गया है। इस परिचय के आधार पर भविष्य
में काम करने वाले अध्येता को काफी सहुलियत होने का अनुमान किया गया है। ‘सरस’जी ने ‘बस्ती के छन्दकारों का साहित्यिक योगदान’ भाग 2 के में चयनित प्रथम अध्याय
आदि चरण के 14 तथा द्वितीय अध्याय मध्य चरण के 11 छन्दकारों के नामों का उल्लेख किया
है। तृतीय अध्याय से सम्बिन्धित छन्दकारों का परिचय तथा उनका काव्य वैशिष्ट्य इस भाग
दो की पुस्तक का वर्ण विषय बना है। इसे तृतीय मध्योत्तर चरण भी कहा जाता है। इसमें
20 छन्दकारों का विशद तथा 18 छन्दकारों का अति संक्षिप्त परिचय दिया गया है। इन छन्दकारों
की अपनी छोटी मोटी कृतियां ही उपलब्ध हो पायी हैं। अधिकांशतः अप्रकाशित और डायरी आदि
में सीमित रह गयी हैं, जो निरन्तर खत्म होती जा रही हैं या खत्म हो चुकी हैं। उन्होने
अपने अनेक तरह के सहयोगियों के सहयोग तथा अनेक व्यक्तिगत यात्राओं के दौरान ये सूचनायें
एकत्र की हैं। इसे अपने शोध प्रवन्ध में सूचीबद्ध करके सरस जी ने इन छन्दकारों की काव्य
कीर्ति को अमर बना दिया है। ईश्वर की विडम्बना देखिये कि लगभग एक शतक ज्ञात अज्ञात
कवियों को धरातल पर अमर करने वाले उस महान सपूत की स्मृति को चिरस्थाई बनाने का एक
भी दीपक मुझ अकिंचन को दिखाई नहीं पड़ रहा है। समाज अपने व्यक्गित समस्याओं में इतना
मशगूल है कि अपने पूर्वजों के प्रयासों व कृत्यों को साल में एक दो बार भी स्मरण करने
की अपनी क्षमता नहीं बना पा रहा है। क्या विना अतीत की बुनियाद के वर्तमान का महल स्थाई
हो सकता ? हमें अपने अंतःकरण में इसे ना केवल सोचना चाहिए, बल्कि आगे बढ़कर करना भी
चाहिए। वरना हम भी कीट पतंगों की तरह कब इध धरा से हमेशा- हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगें
और कोई नाम लेने वाला भी नहीं मिलेगा। स्वनाम धन्य डा. सरस जी के विशाल कार्यों पर
धूल हटाने को सोचकर हमने आज के हाईटेक युग के शोध के सर्व सुलभ आधार गूगल तथा इन्टरनेट
को जब आधार बनाकर कुछ करना चाहा तो कहीं एक भी सूत्र दिखाई नहीं पड़ा है। इस कालखण्ड
के सभी 38 छन्दकारों में केवल रामदेव सिंह
‘कलाधर’ तथा पं. मोहन प्यारे द्विवेदी ‘मोहन' नामक केवल दो ही छन्दकारों के एकाध रचनायें
ही दिखाई पड़ी हैं इससे तो कोई मजबूत नींव तो बन नहीं सकती हैं। अन्य श्रोतों को खगालने
के लिए पर्याप्त समय , संसाधन तथा अनुकूल स्वास्थ्य व उत्साह भी होना चाहिए। मुझे नहीं
पता कि मैं इस दिशा में कितना चल पाऊंगा या इस संसार के अन्य जीवों की तरह मैं भी कुछ
समय अपना काटकर हमेश हमेशा के लिए अस्तित्वविहीन हो जाऊंगा। खैर! आज हम अपने को जिस
हालत में रख पा रहे हैं, उसके हिसाब से इन
38 छन्दकारों के नामों का उल्लेख यहां कर देना अपना धर्म समझता हूं। विज्ञ और विस्तृत
अध्ययन के लिए सरसजी के प्रबन्ध को आधार बनाया जा सकता है। इन साहित्यकारों ने मूल
रुप से खड़ी बोली को तो अपनाया ही है साथ ही ब्रज अवधी तथा भोजपुरी की त्रिवेणी को भी
रसास्वादित किया है।इस त्रिवेणी के अध्येताओं को सादर नमन करते हुए उनके नामों का उल्लेख
करने की धृष्टता कर रहा हूं।
प्रमुख छन्दकार
1. श्री भास्कर
प्रसाद ‘भास’ खलीलाबाद, जन्म : माघ शुक्ल 9 ,संवत 1953 विक्रमी.
2. राजा राम शर्मा
‘अचल’ पूर्व विधायक भुजैनी, सनत कबीर नगर, जन्म : ज्येष्ठ कृष्ण 5, संवत 1958 विक्रमी.
3. बद्री प्रसाद
मिश्र ‘हरीश’ , जन्म : पौष कृष्ण 5, संवत 1965 विक्रमी.
4. रानी सौभाग्य
सुन्दरी ‘सुन्दर अली’, मूल निवास- गा्रम पोखरनी ,वर्तमान निवास- सुन्दर भवन ,अयोध्या.
5. लाल श्री कण्ठ
सिंह ‘ब्रजदेव’, जन्म: अश्विन पूर्णिमा, संवत
1961 विक्रमी .
6. बद्री प्रसाद
‘पाल’ पौष कृष्ण, जन्म जन्म: 5, संवत
1965 विक्रमी.
7. रामदेव सिंह
‘कलाधर’ घनघटा, सन्त कबीर नगर ,जन्म: 23 फरवरी सन् 1909 ई./ फागुन शुक्ल 3, 1965 विक्रमी,
मृत्यु: 4अपै्रल,1984ई.
8. अब्बास अली
‘बास’, जन्म: 2 मई 1908 ई., तदनुसार संवत 1965 विक्रमी.
9. पं. माता दीन
त्रिपाठी ‘दीन’ हरिहरपुर ,संतकबीर नगर, जन्म : कार्तिक कृष्ण 5 संवत ,1966 विक्रमी.
10. गणेश दत्त
पाण्डेय ‘विशिख’, जन्म : चैत शुक्ल 5 ,संवत 1966 विक्रमी .
11. सरस्वती प्रसाद
शर्मा ‘वारिज’ संवत 1966 विक्रमी.
12. पं. मोहन प्यारे
द्विवेदी ‘मोहन’ दुबौली दूबे, जन्म: 1 अपै्रल 1909 ई., मृत्यु: 15 अप्रैल 1889 ई.
13. राम नरायन
पाण्डेय ‘पागल’ जन्म: चैत शुक्ल 7, 1970 विक्रमी.
14. केदार नाथ
मिश्र ‘दीन’, जन्म : ज्येष्ठ शुक्ल 10
1970 विक्रमी.
15. राम चरित्र
उपाध्याय, जन्म: फागुन कृष्ण 5, 1970 विक्रमी.
16. ब्रज विहारी
चतुर्वेदी ‘ब्रजेश’, जन्म : ज्येष्ठ कृष्ण 13, 1974 विक्रमी.
17. राम लाल श्रीवास्तव ‘लाल’, जन्म : मार्गशीर्ष शुक्ल
8, 1074 विक्रमी/ 20 दिसम्बर 1917 ई.
18. अद्या प्रसाद
पाण्डेय ‘द्विजेन्दु’, जन्म : श्रावण कृष्ण 9, 1974 विक्रमी.
19. राम कृपाल
पाण्डेय, जन्म : कार्तिक शुक्ल 5, 1977 विक्रमी.
20. रामाश्रय सिंह
‘रसिकेन्दु’, जन्म : 01.07.1923 ई / 1980 विक्रमी.
अन्य फुटकर छन्दकार
1. बुध यदुनाथ,
जन्म संवत 1960 विक्रमी .
2. आचार्य धनराज
शास़्त्री, जन्म संवत 1955 विक्रमी.
3. महात्मा गूंगदास,
जन्म संवत 1960 विक्रमी.
4. चिन्तामणि त्रिपाठी,
जन्म संवत 1966 विक्रमी.
5. सीताराम शुक्ल
, जन्म संवत विधायक 1956 विक्रमी.
6. सन्त अखण्डानन्द
जी, जन्म संवत 1950 विक्रमी,
7. सत्यदेव ब्रहमचारी
सत्य संवत 1960 विक्रमी
8. भगवती प्रसाद मिश्र ‘अग्र’, जन्म संवत 1965 विक्रमी
.
9. सन्त फागूदास,
जन्म संवत 1962 विक्रमी.
10. राम यज्ञ त्रिपाठी
, जन्म संवत 1978 विक्रमी .
11. चन्द्र शेखर
भारती , जन्म संवत 1960 विक्रमी.
12. राम लखन मिश्र,
जन्म संवत 1960 विक्रमी’.
13. कमला पति त्रिपाठी
‘जोकरेश’, जन्म संवत 1963 विक्रमी.
14. रतिनाथ, जन्म
संवत 1979 विक्रमी.
15. मातादीन लाल
मुख्तार, जन्म संवत 1965 विक्रमी.
16. नरदेव पाण्डेय,
जन्म: चैत शुक्ल 10 ,संवत 1978 विक्रमी.
17. चन्द्रबली
त्रिपाठी, जन्म : संवत 1962 विक्रमी.
18. बासुदेव लाल
मुख्तार, जन्म संवत 1960 विक्रमी.
प्रकाशित पुस्तकें :-
गूंज, नौसर्गिकी , विजयश्री, बलिदान, मधुरिमा, बासन्ती, वृतान्त, संकुल, सौरभ, जय भरत,
विवेकानन्द, बस्ती जनपद के साहित्यकार भाग 1 व 2
बाल साहित्य:- नेहा, स्नेहा, जलेबी, बाल
प्रयाण, बाल त्रिशूल भाग 1,2 व 3 , विवेकानन्द, बाल बताशा, पुलु-लुलू झॅइयक झम, गाबड़गिल,
चरणपादुका, बाल कथाएं, साहित्य परिक्रमा भाग 1 , 2 इत्यादि।
अप्रकाशित काव्य:-चन्द्रगुप्त महाकाव्य,जय भरत, क्षमा प्रतिशोध,नगर से नागपुर, बस्ती जनपद के साहित्यकार
भाग 3 विषपान, छन्द बावनी आदि।
बालसाहित्य- विवेकानंद,
साहित्य परिक्रमा; बाल बताशा विवेकानंद बालखंडकाव्य, नेहा-सनेहा, जलेबी, झँइयक झम, चरण पादुका; आकाशवाणी तथा दूरदर्शन
से दर्जनों प्रसारण।
बस्ती के साहित्यकार No. 10
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