बस्तीका इतिहासः- प्राचीन काल में बस्ती के चारों ओर
कोशल देश का हुआ करता
था। शतपथ ब्राह्मण के एक सूत्र
में इसका उल्लेख हुआ है। राम के बडे पुत्र
कुश को कोशल अयोध्या
तथा छोटे पुत्र लव को श्रावस्ती
का भार दिया गया था लक्ष्मण के
पुत्र अंगद को अंगदीया बस्ती
के भाग के रुप में
मिला था। राम से 93 इक्ष्वाकु से पीढ़ी और
30 वीं राजा वृहदवल महाभारत लड़ाई लड़े थे। बाद में धीरे-धीरे यह बस्ती क्षेत्र
छठी शताब्दी ईस्वी में उजाड़ने लगा था। किंवदंतियों के अनुसार, सदियों
से बस्ती एक जंगल था
इसका अधिक से अधिक भाग
अवध के कब्जे में
था। इसके प्रारंभिक इतिहास के बारे में
कोई निश्चित प्रमाण उपलब्ध नहीं है। अकबर और उनके उत्तराधिकारी
के शासनकाल के दौरान यह
जिला अवध के गोरखपुर सरकार
का एक हिस्सा बना।
उसके शासनकाल के पहले के
दिनों में जिले के बागियो के
शरण के रूप में
अफगान अली कुली खान, खान जमान, जौनपुर के गवर्नर जैसे
नेता यहां शासन किये थे। औरंगजेब के चकलेदार काजी
खलील-उर-रहमान ने
खलीलाबाद बसाते हुए यहां शासन किया था। यहां बांसी के मूल राजा
को हटाकर बासीं में जाना पड़ा था। उसी समय प्रमुख सड़क अयोध्या गोरखपुर का निर्माण किया
गया था। फरवरी 1690 में, इलाहाबाद के सूबेदार खान
जहान बहादुर जफरजंग कोलतास का पुत्र हिम्मत
खान यहां का शासक नियुक्त
किया गया जो अवध की
ओर से गोरखपुर का
फौजदार (सैन्य कमांडर) एक लंबे समय
के लिए बना था। बस्ती और आसपास के
जिले उसी के प्रभार के
अन्र्तगत आते थे। व्रिटिश काल में यह पहले बनारस
और बाद में गोरखपुर मण्डल का भाग रहा।
1801 में बस्ती तहसील मुख्यालय बना। 6 मई 1865 को गोरखपुर जिले
से कटकर से बस्ती जनपद
का मुख्यालय बना। 1988 में इस विशाल जिले
के उत्तरी हिस्से को काटकर सिद्धार्थनगर
जिला बनाया गया। 1997 में बस्ती के पूर्वी खलीलाबाद
को केन्द्रित हिस्से को काटकर संतकबीरनगर
जिला बनाया गया। बाद में जुलाई 1997 में बस्ती मंडल मुख्यालय बनाया गया। इसमें तीन जिले बस्ती, सिद्धार्थनगर तथा संतकबीरनगर तथा तीन संसदीय क्षेत्र बस्ती डुमरियागंज तथा खलीलीबाद बने। यदि वर्तमान सरकार व जनप्रतिनिधि अपनी
भूमिका का बेहतर निर्वहन
करें तो कल्याणकारी योजनाओं
के क्रियान्वयन में होने वाले भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश
लगाया जा सकता है।
बेरोजगारी, अशिक्षा, चिकित्सा, शिक्षा क्षेत्र का अभाव बस्ती
मण्डल की बडी चुनौतियां
है। आजादी के 7 दशक बाद भी बाढ पर
प्रभावी नियंत्रण नहीं हो सका है।
औद्योगिक विकास के लिये प्रभावी
संसाधन जुटाये जाने की जरूरत है,
जिससे युवाओं के पलायन पर
रोक लग सके। बस्ती
मण्डल का स्वरूप तभी
विकसित होगा जब कल कारखानें
चलें और पौराणिक, ऐतिहासिक
स्थलों को पर्यटन के
रूप में विकसित किया जाय।
हरीश द्विवेदी उदीयमान जुझारु नेता :-उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के एक साधारण
परिवार जन्में श्री हरीश द्विवेदी जुझारू तेवर के उदीयमान नेता
थे। 2014 के सोलहवीं लोकसभा
चुनावों में वे उत्तर प्रदेश
की बस्ती सीट से भारतीय जनता
पार्टी के टिकट पर
चुनाव लड़कर सांसद निर्वाचित हुए। उन्होंने जिले के एक एतिहासिक
व पिछड़े अमोढ़ा ग्राम पंचायत को संासद आदर्श
ग्राम योजना में चयन किया है। वे विकसित बस्ती
के संकल्प को साकार करने
के लिए सतत प्रयासशील हैं। विजली पानी सड़क मेडिकल कालेज, रिंग रोड ,रेलवे, विद्दुतिकरण सहित आम जनमानस के
मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के
लिए वह केंद्र सरकार
द्वारा हर संभव विकास
कार्य जनपद करवा रहे हैं। पिछले तीन वर्षों से बस्ती जनपद
सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा के क्षेत्र में
निरंतर विकास कर रहा है।
उनके अथक प्रयास से केंद्र के
कई मंत्री जनपद में आये जिससे विभिन्न मंत्रालयों के सहयोग से
अलग अलग विभागों के द्वारा विकास
कार्य करवाये जा रहे हैं।
बस्ती विगत तीन वर्षों में जो मुकाम बना
लिया है और जो
सम्भावना दिख रही है वह विगत
कई दशकों से नही दिख
रही थी। आजादी के बाद केवल
फोर लेन और केंद्रीय विद्यालय
ही इस मण्डल की
उपलब्धि रही है। भाजपा के अटल जी
के शासन में कई जनोपयोगी योजनाएं
शुरू हुए कुछ के सकारात्मक परिणाम
भी दिखे किन्तु सहयोगी दलों ने बहुत अवरोध
समय समय पर डाले। वर्तमान
माननीय मोदी जी की सरकार
तथा हरीश जी के निरन्तर
प्रयास से जिले ने
बड़ी मजबूती से अपनी पहचान
बनानी और छाप छोड़नी
शुरू कर दी है।
कालेज में एडमिशन भी एक भयंकर समस्या :- असंवेदनशील
प्रशासन कैसे दीमक की तरह आम
आदमी को चाट जाती
है, इसका उदाहरण उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले
में देखने को मिल रहा
है. बस्ती जिले में नौकरी मिलना तो दूर की
कौड़ी है, छात्रों को कालेज में
एडमिशन तक नहीं मिल
रहा है. एक छात्र नेता
ने जब छात्रों के
हक की बात की
तो मामला कालेज प्रबंधन मारपीट पर उतर आया.
प्रशासन को हांकने वाले
डीएम-एसपी अपनी नाकामी छुपाने के लिए छात्र
नेता सहित दर्जन भर छात्रों के
खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया. ये
वही जिला है जहां पीड़ित
आदमी को अपनी एफआईआर
दर्ज कराने के लिए नाको
चने चबाने पड़ते है. एसपी साब अपनी पहली पोस्टिंग में कुछ कर गुजरने का
हौसला रखते हैं. लेकिन छात्रों को लेकर ऐसी
असंवेदनशीलता निंदा योग्य है. दिल्ली से लेकर कश्मीर
घाटी तक में छात्रों
पर केवल तभी मामला दर्ज होता है जब वो
दुर्दांत आपराधों में शामिल रहे हो. लेकिन युवा पुलिस कप्तान धैर्य खो दे तो
बस्ती जिले के छात्र भी
पुलिस के कागजों में
अपराधी बन जाते हैं.
200 से ज्यादा बीजेपी कार्यकर्ताओं पर भी संगीन मुकदमा :- इस बात का विरोध बस्ती
जिले के बीजेपी सांसद
हरीश द्विवेदी ने अपने कार्यकर्ताओं
के साथ किया. नतीजा हुआ कि 200 से ज्यादा बीजेपी
कार्यकर्ताओं पर भी संगीन
मुकदमा दर्ज कर लिया और
उन्हें प्रताड़ित किया जाने लगा है. इसके विरोध में बस्ती में बीजेपी सांसद को 19 सितंबर 2017 को अपने जिले
के तीन विधायकों के साथ बस्ती
कोतवाली पर अनशन पर
बैठना पड़ा। यूपी के सीएम योगीजी
को जमीनी हकीकत पता ही नहीं चल
पा रहा है क्योंकि सीएम
योगीजी अधिकारियों के मुंह से
ही सच्चाई सुन रहे हैं। वे जन प्रतिनिधियों
की भावना या तो सुनना
नहीं चाहते हैं या जानबूझकर अनसुनाकर
रहे हैं। उन्हें अपनी गद्दी सुरक्षित दिख रही है। शायद इसी कारण प्रशासन व संगठन में
तालमेल का अभाव दिख
रहा है। इसका खामियाजा छात्रों और आम लोगों
को भुगतना पड़ रहा है.
प्रशासन नहीं जागा तो हालात बिगड़
भी सकते हैं।
प्रशासन निरंकुश :- अगर लोकतंत्र के पहरी या
जनप्रतिनिधि नहीं जागरुक नहीं हुए तो प्रशासन निरंकुश
हो जाता है। अगर पत्रकार जागरुक नहीं हुए तो जनप्रतिनिधियों के
निरंकुश होने की आशंका बढ़
जाती है। यदि कहीं इन तीनों का
गठजोड़ हो जाये तो
न्यायपालिका ही अंतिम सहारा
होती है। बस्ती जिले में मामला पहले स्तर का है। योगीजी
की सरकार को तय करना
होगा कि जिले की
सच्चाई किससे सुनना पसन्द करेंगे? प्रशासन से या जनप्रतिनिधियों
से। हिंदी भाषा के महान आचार्य
रामचंद्र शुक्ल, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना तथा महान शिक्षक डा. सरस की जन्मभूमि बस्ती
बिलख रही है। उसकी संताने कालेज में प्रवेश लेने के लिए मुकदमे
झेल रही है। बस्ती जिले के हालात इतने
बिगड़ते जा रहे हैं
कि योगीजी का प्रशासन नहीं
चेता तो नक्सली, आरक्षण
विरोधी, किसान आंदोलन यहां अपनी जड़े जमा सकता है. जिसके लिए खाद और पानी का
इंतजाम जिला प्रशासन बखूबी उपलब्ध करा रहा है।
इतिहास माफ नहीं करता :-अभी
ज्यादा विगड़ी स्थिति नहीं आयी है। इसे संभाला जा सकता है।
शासन व संगठन में
सामंजस्य स्थापित कर विकास की
गति को अंजाम दिया
जा सकता है। पूर्वांचल को प्रदेश का
नेतृत्व करने का अवसर सदियों
में कभी कभी ही आता है।
कांग्रेस के नेता स्व.
बीरबहादुर सिंह के बाद यह
दायित्व माननीय योगीजी पर आया है।
इसका सार्थक समाधान माननीय योगीजी को ही खोजना
है कि उनके अधिकारी
उनकी नीतियों को सही ढ़ंग
से क्रियान्वित कर सकें तथा
जनता की समस्याओं का
निदान भी जनप्रतिनिधियों के
सुझाव व सम्मान के
साथ हो सके। अन्यथा
इतिहास किसी को माफ नहीं
करता है। चाहे व भगवान राम
हों भगवान बुद्ध या उनके आज
के उत्तराधिकारी।
No comments:
Post a Comment