Tuesday, August 8, 2017

सोमनाथ मंदिर के तर्ज पर राम मन्दिर का निर्माण -- डा. राधेश्याम द्विवेदी


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दोनों मंदिर बिद्वेष की भावना से तोड़े गये थे :- इतिहास हमेशा वर्तमान पर हमले करता है और वर्तमान को बचाने के लिए बलिदान दिया जाता है तब यही वर्तमान फिर इतिहास बनता है. हिन्दुओ का इतिहास काफी संघर्षपूर्ण रहा है. एक समय था जब हिन्दू अपने देश में शांतिपूर्वक रहते थे. उनके शान्ति का गुणगान विश्व के हर कोने में होती थी। वे सारी दुनिया को बसुधौव कुटुम्बकम कह कर पुकारते थे। उनके यहां अतिथि देवो भव का नारा दिया जाता था। भारत देश को सोने की चिड़िया बोला जाता था. विदेशियों ने यह हिन्दुओं की कमी जानकर उनसे छल कपट करना शुरु कर दिया था। कुछ इंसानियत के दुश्मन देश में आते हैं और इस देश की शांति भंग हो जाती है. यहाँ लूट होती है. महिलाओं की इज्जत उतारी जाती हैं. बच्चों का क़त्ल होता है. हिन्दुओं के धार्मिक स्थान को तोड़ा और लूटा जाता है. जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता है। जो एसा नही करता था उसको निर्दयता पूर्वक मार दिया जाता था। ऐसा ही कुछ गुजरात का सोमनाथ मंदिर एवं अयोध्या का राम मंदिर के बारे में सुना जाता है. सोमनाथ मंदिर एवं अयोध्या का राम मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटन स्थल है।
ये मंदिर करोड़ो हिन्दुओं के आस्था के साथ जुड़ा है। फिर भी यहां का तथाकथित सेकुलर सरकारें, मीडिया तथा न्याय मंदिर के अधिकारियों को यह सत्य ना तो दिखलाई पड़ रहा है और ना अनुभव हो पा रहा है। एसे मामलों को वरीयता के साथ स्वतः संज्ञान लिया जाना चाहिए और विना किसी की प्रार्थना या आवेदन के निर्णय व आदेश पारित कर दिया जाना चाहिए। इतनी बड़ी जन संख्या को अधेरे में रखना लोकतंत्र का सबसे बड़ा अपूर्णनीय अपराध कहा जा सकता है।
सौराष्ट्र के मुख्यमन्त्री उच्छंगराय नवल शंकर ढेबर ने 19 अप्रैल 1940 को सोमनाथ में उत्खनन कराया था। इसके बाद भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने उत्खनन द्वारा प्राप्त ब्रह्मशिला पर शिव का ज्योतिर्लिग स्थापित किया है। सौराष्ट्र के पूर्व राजा दिग्विजय सिंह ने 8 मई 1950 को मंदिर की आधार शिला रखी । भारतीय स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद राष्ट्र के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने देश के स्वाभिमान को जाग्रत करते हुए 11 मई 1951 को पुनः सोमनाथ मन्दिर का भव्य निर्माण कराया। सोमनाथ का मूल मन्दिर जो बार-बार नष्ट किया गया था, वह आज भी अपने मूलस्थान समुद्र के किनारे ही है। स्वाधीन भारत के प्रथम गृहमन्त्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने यहाँ भव्यमन्दिर का निर्माण कराया था। पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया। नवीन सोमनाथ मंदिर 1962 में पूर्ण निर्मित हो गया। 1970 में जामनगर की राजमाता ने अपने स्वर्गीय पति की स्मृति में उनके नाम से दिग्विजय द्वार बनवाया। इस द्वार के पास राजमार्ग है और पूर्व गृहमन्त्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा है। मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक स्तंभ है। उसके ऊपर एक तीर रखकर संकेत किया गया है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भूभाग नहीं है।
अयोध्या ईश्वरीय नगरी रही है :- पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार एक बार ब्रह्माजी के पास पहुंचकर मनु ने सृष्‍टिलीला में निरत होने के लिए उपयुक्‍त स्‍थान सुझाने का आग्रह किया। इसपर ब्रह्माजी उन्‍हें लेकर भगवान विष्‍णु के पास पहुंचे। तब भगवान विष्‍णु ने मनु को आश्‍वासन दिया कि समस्‍त ऐश्‍वर्यसंपूर्ण साकेतधाम मैं अयोध्‍यापुरी भूलोक में प्रदान करता हूं। भगवान विष्‍णु ने इस नगरी को बसाने के लिए ब्रह्मा जी तथा मनु के साथ देवशिल्‍पी विश्‍वकर्मा को भेज दिया। इसके अलावा अपने रामावतार के लिए उपयुक्‍त स्‍थान ढूंढ़ने के लिए महर्षि वसिष्‍ठ को भी उनके साथ भेजा। मान्‍यता है कि वसिष्‍ठ द्वारा सरयू नदी के तट पर लीलाभूमि का चयन किया गया जहां विश्‍वकर्मा ने नगर का निर्माण किया। स्‍कंद पुराण के अनुसार अयोध्‍या भगवान विष्‍णु के चक्र पर विराजमान है। इसी पुराण के अनुसार अयोध्‍या में अ’ कार ब्रह्मा, ‘य’ कार विष्‍णु और ‘ध’ कार रुद्र का ही रूप है। वेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है, "अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या" और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। यह पुरी सरयू के तट पर बारह योजन (लगभग 144 कि.मी) लम्बाई और तीन योजन (लगभग 36 कि.मी.) चौड़ाई में बसी थी । कई शताब्दी तक यह नगर सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रहा। अयोध्या मूल रूप से मंदिरों का शहर है।
अयोध्या एतिहासिक राजधानी रही है :-  एतिहासिक राजधानी रही:- इसका महत्व इसके प्राचीन इतिहास में निहित है क्योंकि भारत के प्रसिद्ध एवं प्रतापी क्षत्रियों (सूर्यवंशी) की राजधानी यही नगर रहा है। उक्त क्षत्रियों में दाशरथी रामचंद्र अवतार के रूप में पूजे जाते हैं। पहले यह कोसल जनपद की राजधानी था। प्राचीन उल्लेखों के अनुसार तब इसका क्षेत्रफल 96 वर्ग मील था। यहाँ पर सातवीं शाताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहाँ 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे। राम के जन्मस्थान के रूप में विश्वास के कारण, अयोध्या सात सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों से एक के रूप में माना गया है। अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि को भगवान श्री राम की जन्मस्थली होने के कारण हिंदुओं में बहुत ही पवित्र धार्मिक स्थान माना जाता है। सन् 1528 में मुगल आक्रमण के दौरान इस इमारत को ध्वस्त कर मस्जिद बनाई गई जिसे बाबरी मस्जिद का नाम दिया गया। बाबर का मुगल सेनापति मीरबाकी ने वहां का भगवान श्रीराम के मंदिर को नष्ट कराया और हिंदुओं की आस्था के विपरीत इस स्थान पर बाबरी मस्ज्दि बनवाया था। सन् 1859 में ब्रिटिश सरकार ने इस स्थान पर लोहे के घेराबंदी लगाते हुए हिंदुओं का प्रवेश वर्जित कर दिया था। तब से लेकर आज तक यह स्थान एक पवित्र स्थल होने की जगह एक विवादित स्थान बना हुआ है।
80 व 90 के दशक में मंदिर आन्दोलन जारों पर:- सन् 1980 में विश्व हिंदू परिषद ने इस स्थान पर पुनः राम मंदिर बनाने की घोषणा की जिसे भारतीय जनता पार्टी का पूरा समर्थन मिला। सन् 1986 में फैजाबाद जिला जज द्वारा हिंदुओं के पुनः प्रवेश के आदेश ने इस आंदोलन को कहीं ज्यादा बल दिया। भारतीय जनता पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवानी ने सितंबर 1990 में मंदिर निर्माण हेतु रथ यात्रा शुरू की थी परंतु उन्हें बिहार में ही गिरफ्तार कर लिया गया। इस घटना से आक्रोशित लाखों कारसेवक अयोध्या पहुंचे और 6 दिसंबर 1992 को पुलिस प्रशासन के प्रतिरोध के बावजूद कारसेवकों ने मस्जिद को ध्वस्त कर उस स्थान पर भगवान श्री राम के मूर्ति की स्थापना कर दी। जवाब में सरकार ने पुलिस को कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया जिसमें 2000 से ज्यादा कारसेवक मारे गए। सरकार ने मुस्लिम तुष्टिकरण की नीतियों पर चलते हुए सभी बड़े हिंदू नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था। इससे देश का माहौल ज्यादा खराब हो गया था।  सोमनाथ की ही तरह इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश से सरकार ने पुरातत्व विशेषज्ञों की एक टीम भेजकर अयोध्या के उस स्थान की खुदाई भी कराई जिससे मंदिर या मस्जिद होने का प्रमाण मिल सके। जांच कमेटी की रिपोर्ट सरकार को सौंपी गई. रिपोर्ट में मंदिर के अवशेष और प्रमाण बतलाये गयें हैं ,परन्तु उस रिपोर्ट को दबा दिया गया और प्रकाशित नहीं किया गया। कांग्रेसी सरकार ने राम जन्मभूमि स्थान पर किसी भी मंदिर होने के प्रमाण को नकार दिया। बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक फैसला आया जिसने इस स्थान पर चल रहे विवाद को तीन भागों में बांटकर समाधान तो कर दिया था परन्तु इसे कुछ पक्षकारों ने नहीं  माना और केस को अपने पक्ष में ना आता देखकर केस को उलझा दिया है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है :-राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने दोनों पक्षों को बैठकर बातचीत से इस मसले को सुलझाने की सलाह दी थी। उन्होंने यह भी कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का कोई जज या वह खुद इसमें मध्यसता कर सकते हैं। लेकिन उनके इस प्रस्ताव को माना नहीं गया था। अयोध्या में राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास कहते हैं किहम चाहते हैं कि दोनों पक्ष बैठकर सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का पालन करें और कहां वो मस्जिद बनाएंगे. मंदिर के संबंध में यहां के 10 हजार लोगों ने हस्ताक्षर करके सुप्रीम कोर्ट में दे दिया है कि जहां रामलला विराजमान हैं, वहां  मंदिर बनेगा और कुबेरटीला के दक्षिण की तरफ मस्जिद बनेगी.
मंदिर-मस्जिद के मसले को हल करने के लिए 1986 से अब तक 10 कोशिशें नाकाम रही हैं. देश के छह प्रधानमंत्रियों राजीव गांधी, वीपी सिंह, चंद्रशेखर, नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह के वक्त बातचीत हुई. इसमें पूर्व राष्ट्रपति आर वेंकटरमन, तांत्रिक चंद्रा स्वामी, शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास, पर्सनल लॉ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष अली मियां, मौजूदा अध्यक्ष राबे हसन नदवी, उपाध्यक्ष मौलाना कल्बे सादिक और जस्टिस पलोक बसु इस बातचीत का हिस्सा रहे. बाबरी मस्जिद के सबसे बुज़ुर्ग पैरोकार हाशिम अंसारी, हनुमानगढ़ी के महंत ज्ञान दास के साथ अपने आखिरी वक्त में वहां मंदिर मस्जिद साथ-साथ बनवाने की कोशिश में थे. मस्जिद पक्ष के लोग भी चीफ जस्टिस की पेशकश का स्वागत करते हैं. बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के कन्वेनर ज़फरयाब जिलानी कहते हैंजब सीजेआई कोई ऑर्डर पास करेंगे, एडवाइज़ देंगे तो उस पर बोर्ड गौर करेगा. हम उनका रिस्पेक्ट करते हैं. उन पर भरोसा करते हैं. कोई उनका ऑर्डर तो आए तभी तो गौर करेंगे.”
अयोध्या के राम मंदिर बाबरी मस्जिद टाइटल विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त से सुनवाई करने का फैसला किया है। सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की स्पेशल बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट पिछले महीने की 21 तारीख को कहा था कि वह अयोध्या के राम मंदिर बाबरी मस्जिद टाइटल विवाद मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिका पर जल्दी सुनवाई के बारे में फैसला लेगा। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में एक याचिकाकर्ता बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने मामले को उठाया था और कहा था कि अयोध्या के टाइटल विवाद मामले की जल्दी सुनवाई की जानी चाहिए। तब चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अगुआई वाली बेंच ने कहा था कि हम जल्दी सुनवाई के मुद्दे पर फैसला लेंगे। सुप्रीम कोर्ट अडिशनल रजिस्ट्रार की ओर से जारी नोटिस में कहा गया है कि मामले की सुनवाई 11 अगस्त को दो बजे की जाएगी।

अयोध्या मामले में टाइटल विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में तमाम पक्षकारों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की हुई है। अयोध्या के विवादास्पद ढांचे को लेकर हाई कोर्ट ने जो फैसला दिया था उसके बाद तमाम पक्षों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की गई थी और याचिका सुप्रीम कोर्ट में 6 साल से लंबित है। पिछले साल 26 फरवरी को स्वामी को इस मामले में पक्षकार बनाया गया था। स्वामी ने राम मंदिर निर्माण के लिए याचिका दायर की थी। स्वामी का दावा है कि इस्लामिक देशों में किसी सार्वजनिक स्थान से मस्जिद को हटाने का प्रावधान है और उसका निर्माण कहीं और किए जा सकता है। मामले में मुख्य पक्षकार हिंदू महासभा, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड आदि हैं। 

 बाबरी मस्जिद विवादित ढ़ाचा मात्र है:- किसी भी मस्जिद की सार्थकता तब तक है जब तक वहां लगातार नमाज होती रहे। यह हम नहीं कह रहे बल्कि इस्लाम धर्म और कुरान में इसका उल्लेख है तो फिर जिस जगह पर मन्दिर है वहां कोई अजान हुई तो यह मस्जिद जिसे कहा जा रहा है वह एक नापाक जगह मानी जाती है। ऐसे में बिना मतलब का विवाद खड़ा करना सामप्रदायिक सौहाद्र को बिगाड़ने जैसा है। जिस विवादित जगह की बात की जा रही है वहां यह तय हो चुका है कि वह राम मन्दिर ही था। वहां पूजा अर्चना बराबर हो रही है हम दूसरे पक्ष का अपमान नहीं कर रहे। हमने साफ तौर पर कहा है कि सरयू के पास कही जगह ले लीजिये और अपनी मस्जिद का निर्माण कीजिये।
विवादित जगह राम मन्दिर ही था:- जिस विवादित जगह की बात की जा रही है वहां यह तय हो चुका है कि वह राम मन्दिर ही था। वहां पूजा अर्चना बराबर हो रही है हम दूसरे पक्ष का अपमान नहीं कर रहे। हमने साफ तौर पर कहा है कि सरयू के पास कही जगह ले लीजिये और अपनी मस्जिद का निर्माण कीजिये। सूत्र बताते हैं कि संघ और धर्माचार्यों के बीच जो बातचीत हुई उसमें तारीखों पर भी निर्णय हो चुका है लेकिन वह इसका खुलासा नहीं करना चाहते है। उधर संघ के एक प्रचार प्रमुख दावा करते है पत्थरों को तराशने का काम 80 प्रतिशत पूरा हो चुका है उधर मन्दिर का ऐलान होते ही हम अपने कर्म में लग जायेंगे लेकिन वह बातचीत के फार्मूले को सिरे से नकारते हैं। अध्यादेश लाकर निर्माण करना चाहिए।
 सोमनाथ मन्दिर की तर्ज पर राम मन्दिर का निर्माण कराया जाय:-
यह बात ना केवल संघ बल्कि आम जन धारणा बनती जा रही है कि अयोध्या के विवदित स्थल पर अब एक भव्य मंदिर जल्द बनवाया जाय। लोग कहते है कि हम जल्दीबाजी में नहीं है। 2017 के अन्त तक हम इस स्थिति में होंगे कि अध्यादेश लाकर कानून बनाये और सोमनाथ मन्दिर की तर्ज पर राम मन्दिर का निर्माण हो। भाजपा के नेता सुब्रमहियम स्वामी ने अपना पक्ष बिल्कुल साफ कर दिया है। उन्होंने समूचे विवादित स्थल को मंदिर निर्माण के लिए दिए जाने की बात की है और मुस्लिम याचिकाओं को कहा है कि वे सरयू नदी के किनारे एक मस्जिद बनाकर संतुष्ट हो लें। उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हम राम के जन्म का स्थल बदल नहीं सकते लेकिन मस्जिद तो कहीं भी बन सकती है।’’
जिस तरह से देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और कांग्रेस के उस समय केंद्र में सिविल सप्लाई मंत्री रहे कहैन्यालाल मुंशी जैसे नेताओं ने तत्कालीन राष्टपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद के साथ बैठकर चर्चा करके सोमनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था। उसी तर्ज पर आज राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए, यानि सरकार संसद में बने कानून के द्वारा ही मंदिर का निर्माण कराया जा सकता है। हम अपने संविधान का सम्मान करते हैं। किसी सामाजिक समस्या का समाधान संवैधानिक पद्धति से किया जाना चाहिए। वीएचपी इस विषय को लेकर आगामी रामनवमी से देश में कुल पांच हजार जगहों पर संसद में कानून के आधार मंदिर निर्माण के अपने मत को लेकर जनता के बीच जाएगी जन संकल्प तैयार करेगी । संघ तथा भाजपा की सरकार इस मामले को ज्यादा ल्टका नहीं सकती है। इसे जल्द निपटाने पर ही अगले चुनाव में एन डी ए या भाजपा को कोई लाभ मिल सकेगा। एसा ना कर पाने पर नुकसान उठाना पड़ सकता है।



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