चीन विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक है । चीन की सभ्यता एवं संस्कृति छठी शताब्दी से भी पुरानी है। चीन की लिखित भाषा प्रणाली विश्व की सबसे पुरानी है जो आज तक उपयोग में लायी जा रही है और जो कई आविष्कारों का स्रोत भी है। चीन व भारत विश्व के दो बड़े विकासशील देश हैं। दोनों ने विश्व की शांति व विकास के लिए अनेक काम किये हैं। चीन और उसके सब से बड़े पड़ोसी
देश भारत के बीच लंबी सीमा रेखा है। लम्बे अरसे से चीन सरकार भारत के साथ अपने संबंधों
का विकास करने को बड़ा महत्व देती रही है। इस वर्ष की पहली अप्रैल को चीन व भारत के
राजनयिक संबंधों की स्थापना की 55वीं वर्षगांठ है। वर्ष 1949 में नये चीन की स्थापना के बाद के अगले वर्ष, भारत
ने चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये। इस तरह भारत चीन लोक गणराज्य को मान्यता
देने वाला प्रथम गैरसमाजवादी देश बना। चीन व भारत के बीच राजनयिक संबंधों की औपचारिक
स्थापना के बाद के पिछले 55 वर्षों में चीन-भारत संबंध कई सोपानों से गुजरे। उनका विकास
आम तौर पर सक्रिय व स्थिर रहा, लेकिन, बीच में मीठे व कड़वी स्मृतियां भी रहीं। इन
55 वर्षों में दोनों देशों के संबंधों में अनेक मोड़ आये।
अनसुलझी सीमा समस्या:-चीन व भारत के बीच सीमा समस्या भी लम्बे अरसे से अनसुलझी रही है। इस समस्या के समाधान के लिए चीन व भारत ने वर्ष 1981 के दिसम्बर माह से अनेक चरणों में वार्ताएं कीं और उनमें कुछ प्रगति भी प्राप्त की। वर्ष 2003 में पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चीन की सफल यात्रा की। चीन व भारत ने चीन-भारत संबंधों के सिद्धांत और चतुर्मुखी सहयोग के ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये। चीन व उसके पड़ोसी देशों के राजनयिक संबंधों के इतिहास में ऐसे ज्ञापन कम ही जारी हुए हैं। दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों द्वारा सम्पन्न इस ज्ञापन में दोनों देशों ने और साहसिक नीतियां अपनायीं, जिन में सीमा समस्या पर वार्ता के लिए विशेष प्रतिनिधियों को नियुक्त करना और सीमा समस्या का राजनीतिक समाधान खोजना आदि शामिल रहा। चीन और भारत के इस घोषणापत्र में यह भी स्पष्ट किया गया है कि तिब्बत स्वायत्त प्रदेश चीन का एक अभिन्न और अखंड भाग है। सीमा समस्या के हल के लिए चीन व भारत के विशेष प्रतिनिधियों के स्तर पर सलाह-मश्विरा जारी है। वर्ष 2004 में चीन और भारत ने सीमा समस्या पर यह विशेष प्रतिनिधि वार्ता व्यवस्था स्थापित की। भारत स्थित पूर्व चीनी राजदूत च्यो कांग ने कहा, इतिहास से छूटी समस्या की ओर हमें भविष्योन्मुख रुख से प्रस्थान करना चाहिए। चीन सरकार ने सीमा समस्या के हल की सक्रिय रुख अपनाई है। चीन आशा करता है कि इसके लिए आपसी सुलह औऱ विश्वास की भावना के अनुसार, मैत्रीपूर्ण वार्ता के जरिए दोनों को स्वीकृत उचित व न्यायपूर्ण तरीकों की खोज की जानी चाहिए। विश्वास है कि जब दोनों पक्ष आपसी विश्वास, सुलह व रियायत देने की अभिलाषा से प्रस्थान करेंगे तो चीन-भारत सीमा समस्या के हल के तरीकों की खोज कर ही ली जाएगी।
21वीं शताब्दी के चीन व भारत प्रतिद्वंदी:-इस समय चीन व भारत अपने-अपने शांतिपूर्ण विकास में लगे हैं। चीन व भारत प्रतिद्वंदी हैं और मित्र भी। अंतरराष्ट्रीय मामलों में दोनों में व्यापक सहमति है। आंकड़े बताते हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ में विभिन्न सवालों पर हुए मतदान में अधिकांश समय, भारत और चीन का पक्ष समान रहा। अब दोनों देशों के सामने आर्थिक विकास और जनता के जीवन स्तर को सुधारने का समान लक्ष्य है। इसलिए, दोनों को आपसी सहयोग की आवश्यकता है। अनेक क्षेत्रों में दोनों देश एक-दूसरे से सीख सकते हैं।
'चिकन-नेक' के पास का इलाका है डोकलाम:- भूटान का डोकलाम पठार भारत (सिक्किम), चीन, भूटान के ट्राइजंक्शन पर है. डोकलाम को चीन डोंगलांग कहता है. इस इलाके में चीन की दखलंदाजी और सड़क बनाकर अपनी स्थिति मजबूत करने से भारत और भूटान को परेशानी है.दरअसल, ‘चिकन नेक’ उस इलाके को कहते हैं जो सामरिक रूप से किसी देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है, लेकिन संरचना के आधार पर कमजोर होता है. सिलीगुड़ी कॉरिडोर ऐसा ही क्षेत्र है. साथ ही सिलीगुड़ी कॉरिडोर साउथ की तरफ से बांग्लादेश और नॉर्थ की तरफ से चीन से घिरा है. ट्रेन, रोड नेटवर्क से संपन्न ये इलाका चीन के किसी भी संभावित हमले में सैनिक साजो-सामान और दूसरी जरूरी चीजों की आपूर्ति के लिए अहम है. ये पूरा इलाका सामरिक रूप से भारत के लिए बेहद अहम है. अगर चीन यहां सड़क बनाने में कामयाब होता है, तो उसके लिए भारत के चिकन नेक कहे जाने वाले सिलीगुड़ी तक पहुंच काफी आसान हो जाएगी.
सिलीगुड़ी कॉरिडोर की अहमियत:-डोकलाम से सिलीगुड़ी कॉरिडोर की दूरी महज 50 किलोमीटर के करीब है. सिलीगुड़ी कॉरिडोर ऐसा इलाका है, जिससे शेष भारत, नॉर्थ ईस्ट के 7 राज्यों से जुड़ता है. 200 किलोमीटर लंबे और 60 किलोमीटर चौड़ा ये कॉरिडोर देश की एकता के लिए काफी जरूरी है. जानकार मानते हैं कि अगर चीन ने डोकलाम में सड़क बना ली, तो दुश्मन हमसे और करीब हो जाएगा.
भूटान की जिम्मेदारी भारत की है
:-भूटान के भारत के साथ खास रिश्ते हैं और 1949 की संधि के मुताबिक, ये विदेशी मामलों में भारत सरकार की ‘सलाह से निर्देशित’ होगा. 1949 में हस्ताक्षर की गई संधि और फिर 2007 दोहराई गई संधि के मुताबिक, भूटान के भू-भाग के मामलों को देखना भी भारत की जिम्मेदारी है. ऐसे में अगर चीन, भूटान के किसी भी हिस्से पर दावा ठोकता है या उसकी संप्रभुता में दखल देता है, तो भारत के लिए भी विरोध करना जरूरी है.
चीन डोकलाम पर नजर गड़ाए हुए है
:-चीन का डोकलाम पठार पर सड़क बना देना उसके सैनिकों को सिलीगुड़ी कॉरिडोर के और करीब पहुंचा देगा. चीन ये नहीं मानता है कि डोकलाम पठार का 'डोका ला' इलाका 'ट्राइजंक्शन' है. चीन 'डोका ला' इलाके को अपना हिस्सा मानता है और भूटान अपना. इस सड़क का मकसद है 'ट्राइजंक्शन' को हमेशा के लिए शिफ्ट कर देना. सड़क बनने के साथ ही चीन का डोका ला पर दावा और मजबूत हो जाएगा. ऐसे में चीन एक तरह से भूटान के कुछ इलाकों पर कब्जा हासिल कर लेगा.
भूटान के लिए क्यों अहम है डोकलाम
:-भारत के साथ भूटान की साझेदारी बरसों पुरानी है. इस लिहाज से डोकलाम का इलाका भूटान किसी भी हालत में चीन को नहीं सौंपना चाहता है. भूटान-चीन के बीच सीमा का विवाद साल 1959 से चला आ रहा है.1959 से ही चीन की सेना ने भूटान में दखल देना शुरू कर दिया था. ये वो समय भी था जब भारत-भूटान के रिश्तों काफी मजबूत हो रहे थे. 1984 में भूटान ने चीन के साथ बातचीत शुरू की. उसके बाद से दोनों देशों के बीच 24 बार बातचीत हुई.फिलहाल ये भी बताया जा रहा है कि डोकलाम के अलावा भी भूटान के दूसरे इलाकों में चीन अपना दावा ठोक रहा है. ये कहा जा रहा है कि चीन चाहता है कि इस दबाव के बदले भूटान डोकलाम को सौंप दे.ऐसे में तीनों देशों के पास डोकलाम के लिए अपनी-अपनी वजह है. लेकिन हालात अब बिगड़ते जा रहे हैं. चीन की ओर से इस तरह के भी बयान आए हैं कि भारत को पूरे विवाद की कीमत चुकानी होगी.चीनी दस्तावेज़ में कहा गया है, "16 जून 2017 को चीन डोंग लांग (डोकलाम) इलाके में सड़क बना रहा था. 18 जून को 270 से अधिक भारतीय सैनिक हथियारों समेत दो बुल्डोजरों को लेकर सिक्किम सेक्टर से डो का ला (डोका ला) पास से सीमा पार आए. भारतीय सैनिक सड़क बनाने के काम में बाधा डालने के मक़सद से चीनी इलाक़े में 100 मीटर अंदर तक घुस आए. एक समय वहां भारतीय सैनिकों की तादाद 400 तक पहुँच गई थी."
चीन और भारत में विवाद जारी:-डोकलाम पर चीन और भारत में जारी विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। डोकलाम मुद्दे पर चीन पिछले डेढ़ महीने से लगभग हर रोज भारत को धमकी दे रहा है। पेइचिंग ने बुधवार को एकबार फिर भारत को डोकलाम से सेना हटाने को लेकर चेतावनी दी। चीन ने कहा है कि ऐसा होने के बाद ही मौजूदा विवाद हल होने की उम्मीद है। चीन ने डोकलाम से सेना नहीं हटाने पर कड़े कदम उठाने की भी धमकी दी है। चीनी विदेश मंत्रालय ने भारतीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के स्टेट काउंसलर येन जेइची के बीच 28 जुलाई को हुई बैठक के बारे में पीटीआई से जानकारी साझा की है। चीन ने बताया कि बैठक में दोनों अधिकारियों ने ब्रिक्स के बीच सहयोग, आपसी संबंधों और मौजूदा बड़ी समस्याओं पर चर्चा की। डोभाल पिछले महीने ब्रिक्स एनएसए की बैठक में हिस्सा लेने के लिए चीन में थे। डोभाल और येन दोनों देशों के बीच सीमा विवाद पर बात करने के लिए विशेष प्रतिनिधि भी हैं। इस बैठक में डोकलाम मुद्दे पर भी बातचीत हुई। येन ने इस मसले पर चीन के कड़े रुख से भारत को अवगत कराया। भारत ने डोकला में चीनी सैनिकों द्वारा बनाए जा रहे सड़क का विरोध किया था। भारत ने इसे अपनी रणनीतिक सुरक्षा के लिहाज से खतरा बताया था। भारत ने चीन द्वारा डोकला इलाके में सड़क बनाने का विरोध करते हुए इसपर नई दिल्ली की आपत्ति पेइचिंग से दर्ज करा दी थी। भारत ने कहा था कि इस निर्माण से यथास्थिति में बदलाव आएगा। डोभाल और येन के बीच हुई बातचीत के दौरान चीनी विदेश मंत्रालय ने भारत से चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता का आदर करने का आग्रह किया था। चीन से नई दिल्ली से कहा कि वह अंतरराष्ट्रीय कानून और अंतरराष्ट्रीय संबंधो के बेसिक नियम का पालन करते हुए डोकलाम से सेना वापस बुला ले। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने डोकलाम मसले पर भारत का रुख स्पष्ट कर दिया था। उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों को पहले डोकलाम से सेना हटाना चाहिए तभी कोई बातचीत हो सकती है। सुषमा ने सीमा विवाद का शांतिपूर्ण निपटारे का भी आह्वान किया था।
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