Saturday, August 5, 2017

जल साक्षरता यात्रा का आयोजन एवं 101 दलों का विशाल जल सम्मेलन -आचार्य डा.राधेश्याम द्विवेदी


तरुण भारत संघ और जल जोड़ो अभियान के संयुक्त तत्वावधान में जलपुरुष डा. राजेन्द्र सिंह के निर्देशन में दो प्रमुख अखिल भारतीय जल यात्रायें जल साक्षरता के उद्देश्य से आयोजित की गयी हैं। एक यात्रा गांधी मण्डप कन्याकुमारी से काश्मीर के लिए 28 मई 2017 को चली है। दूसरी जल यात्रा विजय नगर कर्नाटक से 20 मई 2017 से चली है। यह दल गोवा से गौहाटी के लिए चला है। जल साक्षरता यात्रा का एक दल 15 मई को दिल्ली से आरम्भ हुआ है। इसके अलावा देश के अलग अलग भागों से चलकर 101 यात्रायें पूरे देश में जन जागरण फैलाने के उद्देश्य से विभिन्न तिथियों से चल रही है। इन यात्राओं में जल को समझने, सहेजने, समझाने और सामुदायिक जलाधिकार सुरक्षित करने हतेु जल का अतिक्रमण, प्रदूषण और शोषण करने वालों से सत्याग्रह करने वालों ने जुड़कर साथ ही कन्याकुमारी से कश्मीर और गोवा से गुवाहाटी के साथ-साथ अपने-अपने कार्यक्षेत्र से जल साक्षरता यात्रा करते हुए स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त की शाम 4 बजे तक 101 दल बीजापुर, कनार्टक पहुँचेगे। सम्मलेन एव जल साक्षरता यात्राओं का उद्देश्य राज-समाज-महाजन को जल संरक्षण एव इसके अनुशासित उपयोग अपनी भूमिका समझाना है। इस सम्मलेन में सभी तीनो दलों को एक साथ ही आमंत्रित किया है। नदियो से गन्दे नाले अलग रखने वाली व्यवस्था बनवाना। भूजल शोषण को रोकना । इन सभी कार्यों के साथ वर्षाचक्र को फसलचक्र से जाडे़ना है। ये सभी कार्य राज-समाज-महाजन मिलकर करे। एसी व्यवस्था बनाने की शुरुआत इस सम्मेलन से हो एसा प्रयास किया जा रहा है। बाढ़-सुखाड़ मुक्ति का उपाय नदी जोड़ नहीं है। नदियो से हम सभी को  जुड़ना चाहिए। नदियो  से तलाबो  को जोड़ना, गरीब किसानों गरीब किसानों विशेषज्ञ के हित का काम होगा। इन सभी बातो की स्पष्टता देने वाले सभी तरह के जल विशेषज्ञ जल-योद्धा, जल-नायक, जल-दूत, जल-प्रेमी, जल-सेवक व जल-कर्मी भाग ले रहे हैं। इस सम्मेलन को सफल बनाने के लिए आम आमंत्रण जारी किया गया है। केन्द्र सरकार की ओर सेजल साक्षरता अभियानचलाने की घोषणा की गई है। जैसे देश में स्वच्छता अभियान चल रहा है। नदियों को पवित्र बनाए जाने के लिए विचार और प्रयास आरम्भ हुए हैं औद्योगिक विकास के लिए नई नीति बनी है। यदि इसी कड़ी में भारत सरकारजल साक्षरता अभियानचलाना चाहती है तो निश्चित ही उसकी यह एक अभिनव पहल है।
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून,
पानी गए ऊबरे मोती, मानुष, चून।
पानी के महत्व को प्रतिपादित करते हुए भक्तिकाल में सन्त रहीम दास यह पंक्तियाँ आज से कई वर्ष पहले लिख गए हैं, जिसका अर्थ यही है कि पानी के बिना यह संसार सूना है। इसके बिना मनुष्य तो मनुष्य, जीव जगत और वनस्पति भी अपना उद्धार नहीं कर सकते हैं। जल से ही जीवन, सृष्टि एवं समष्टि की उत्पत्ति और जल प्लावन से ही प्रकृति का विनाश, यह बात हमारे प्राचीन श्रीमद्भागवत महापुराण जैसे कई ग्रन्थों में बताई गई है। जल से जीवन का प्रारम्भ है तो जीवन के महाप्रलय के बाद अन्त भी जल ही है। जीवन-मरण और भरण-पोषण का आधार  जल ही है।हमारी पृथ्वी की सेहत और इस पर बसने वाले जीवन के लिए पानी बिना किसी बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती, परन्तु यही जल जब विषाप्त हो जाता है, तो जीवन देने वाला नीर पूरी दुनिया के लिए मौत का कारण बनकर सामने आता है। इस वक्त हो यही रहा है कि विश्व की अस्सी प्रतिशत तमाम् बीमारियाँ केवल इसीलिए हो रही हैं, क्योंकि पानी का उपयोग सही तरीके से नहीं किया जा रहा है। देश के अधिकांश भाग के पानी में प्रदूषण की समस्या उसमें फ्लोराइड तथा अन्य विषैले तत्वों की प्रधानता का पाया जाना इतना अधिक भयावह है कि वह जीवन के लिए घातक सिद्ध रहा है। देश में इस समय पानी के विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था इतनी चरमराई हुई है कि उसके बारे में कुछ भी सार्थक संवाद किया जाना व्यर्थ प्रतीत होता है। एक तरफ राज्यों की राजधानियों के साथ बड़े-बड़े शहर हैं, जहाँ राजनैतिक दबाव के चलते अथाह पानी प्रतिदिन सिर्फ सप्लाई के वक्त ही बर्बाद चला जाता है तो दूसरी ओर भारत की वह तस्वीर है, जहाँ आदमी और जानवर दोनों ही बूँद-बूँद पानी के लिए तरस रहे हैं, फिर वनस्पतियों का क्या हाल यहाँ होता होगा, सहज ही अन्दाजा लगाया जा सकता है। केन्द्रीय पर्यावरण मन्त्री प्रकाश जावड़ेकर आज सही कह रहे हैं कि जल संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा के लिए लोक जागरुकता सबसे ज्यादा जरूरी है। जब तक इस विषय पर लोगों में जागरुकता नहीं आती, तब तक इस लक्ष्य को किसी भी अधिनियम अथवा कानून से सुनिश्चित नहीं किया जा सकता।
जिन राज्यों मेंराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना’ (एनपीपी) के तहत् अन्तरराज्यीय नदियों को जोड़ने के लिए चिन्हित किए गए 30 सम्पर्कों में से राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (एनडब्ल्यूडीए) द्वारा तीन सम्पर्कों पर विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करने की प्रक्रिया चल रही है, उसका काम शीघ्र पूरा किया जाना भी बहुत जरूरी हो गया है। जिससे कि देश को इससे 35 मिलियन हेक्टेयर अतिरिक्त सिंचाई क्षमता 34 हजार मेगावाट पनबिजली का उत्पादन का लाभ मिलना शुरू हो जाए। वहीं, जिन भी राज्यों में जैसे तमिलनाडु-केरल ने पाम्बा अछानकोविल वायपर लिंक परियोजना का विरोध है, ओडीशा सरकार महानदी-गोदावरी लिंक परियोजना पर सहमत नहीं हो पा रही है। 
कर्नाटक-तमिलनाडु राज्यों जल सम्बन्धी विवाद:- कर्नाटक-तमिलनाडु राज्यों के बीच कावेरी नदी के विभिन्न राज्यों के बीच जल सम्बन्धी जो तमाम विवाद है, पहले उनको हल करने के लिए सरकार को अपने सख्त और लचीले कदम उठाने चाहिए। इसके लिए केन्द्र की सरकार उसी प्रकार राज्य सरकारों को समझाए और राजी करे, जिस प्रकार उसने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लेकर सभी राज्यों को मनाने में सफलता हासिल की है, वह सभी को यह बात प्रमुखता से बताए कि इससे देश की जनसख्या का भविष्य में कितना अधिक भला होने वाला है। आज इस बात की बेहद जरूरत है कि हम नदियों को जोड़ने की अवधारणा पर तेजी से काम करें, क्योंकि भारत को प्रकृति ने जितना जल उपयोग के लिए दिया है, अभी वह उसका एक तिहाई भी अपने लिए उपयोग नहीं कर पा रहा है। इस सम्बन्ध में हमें जल के भण्डारण को भी जानना चाहिए। विश्व का 70 प्रतिशत भू-भाग जल से आपूरित है, जिसमें पीने योग्य जल मात्र 3 प्रतिशत ही है। मीठे जल का 52 प्रतिशत झीलों, और तालाबों का 38 प्रतिशत, मृदनाम (एक्यूफर) 8 प्रतिशत, वाष्प 1 प्रतिशत, नदियों और 1 प्रतिशत वनस्पतियों में निहित है। इसमें भारत की स्थिति देखें तो आजादी के बाद से लगातार हमारी मीठे जल को लेकर जरूरत कई गुना बढ़ चुकी है।

जल साक्षरता से ही दूर होगी पानी की समस्या :-जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा से कहा कि अगर वाकई आगे की पीढ़ियों के लिए जल की उपलब्धता को सुनिश्चित करना है, तो देश में जल साक्षरता शुरू करानी होगी। बच्चों को बचपन से ही स्कूलों में पानी की महत्ता, इसके संरक्षण के बारे में पूरा-पूरा बताना होगा। चूंकि अब इस मोर्चे पर दूसरा उपाय बच नहीं गया है। उपेंद्र कुशवाहा ने इससे पूरी सहमति जताई। राजेंद्र सिंह के अनुसार केंद्र की नई सरकार ने गंगा नदी के पुनर्जीवन की योजना बनाई हैI लेकिन हमारी समझ है कि इसके पूर्व गंगा एक्शन प्लान इसलिए सफल नहीं हो सका, क्योंकि इसमें आम लोगों की भागीदारी नहीं थी। लोगों को लगा कि की यह तो सरकार का काम है, जबकि 40-50 साल पहले बिना किसी फंडिंग, प्रोजेक्ट या एक्शन प्लान के हमारी नदियां साफ थीं, निर्मल थीं, अविरल थीं। लोग, नदियों को इस स्थिति में रखने को प्राथमिक जिम्मेदारी मानते थे। गंगा तो मां मानी जाती है। लोगों में फिर से यही सोच विकसित करनी होगी। नदियों के किनारे बसे गांव का समाज अपने सामुदायिक जल प्रबंधन पर उतर आए, तो नदियों भविष्य बेहतर हो सकता है। 

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