माननीय उच्चतम
न्यायालय ने 2017 पी जी काउंसिलिंग से सम्बंधित डा.राम दिवाकर एवं अन्य बनाम भारत सरकार
के रिट पर इलाहाबाद के दिनांक 29 मई के आदेश
को निरस्त कर दिया था
। उत्तर प्रदेश शिक्षा चिकित्सा ने 25 मई को माप अप काउंसिलिंग से लगभग 90 प्रतिशत
प्रवेश कार्य पूरा कर लिया था। प्रशिक्षणार्थी चिकित्सक अपनी फीस जमाकर प्रवेश पा लिये
थे, कि अचानक इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 29 मई के एक आदेश में उ. प्र. सरकार के सारे
कार्य को निरस्त कर दिया था
। माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध (CIVIL APPEAL NO. 8268 to
8274 OF 2017 [@ SLP (C) NO. 16240 OF 2017 @ DIARY NO. 16874 OF 2017]DR. SAURABH
DWIVEDI AND ORS. ... APPELLANTS (& 6
OTERS APPEALS) VERSUS UNION OF INDIA AND ORS. ...RESPONDENTS.) दाखिल हो गयी थी ।माप अप डॉक्टरों की तरफ
से माननीय उच्चतम न्यायालय में 30 मई को एक सिविल रिट डा. सौरभ द्विवेदी एवं
अन्य बनाम भारत सरकार दाखिल हो गयी थी । इसके बाद 6 अन्य अपीलें विभिन्न चिकित्सक शिक्षणार्थियों
तथा ए एम यू तथा बी एच यू की तरफ से भी दाखिल इुई थी। जिसमें
माननीय उच्चतम न्यायालय के विद्वान न्यायाधीश ने सारे तर्कों को घ्यान से सुना तथा
इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दिनांक 29 मई का आदेश निरस्त कर दिया। माननीय उच्चतम न्यायालय के विद्वान
न्यायाधीश ने अपने निर्णय के 21वें पैरा में हाई कोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए
उसके अनुपालन में उत्तर प्रदेश तथा किसी अन्य सम्बद्ध प्राधिकरी के आदेश को भी निरस्त
कर दिया है।
(ORIGINAL ORDER : Para 21. In view of the above discussion, we set
aside the judgment and order of the High Court and all consequential action
taken by the State of U.P. and/or any other authority pursuant to that order. It is clarified that those who were
counselled and granted admission prior to the impugned judgement of the High
Court shall be permitted to continuing their respective courses. The time for filling up the vacant seats, if
any, in AMU, BHU and Government run medical colleges/institutions in the State
of U.P. is extended up to 12th June, 2017 in the peculiar facts and circumstances
of the case. We further permit the AMU,
BHU and Government run medical colleges/institutions in the State to fill up
the seats in the post graduate courses in the AMU, BHU and Government run medical colleges/ institutions up to 12.06.2017.)
उक्त आदेश का परिपालन करते हुए चिकित्सा शिक्षा की गाड़ी अपने पटरी पर चल रही थी । डा. भावना तिवारी नामक एक परिवादी ने दिनांक 3 जुलाई को 28550/2017 संख्यक एक रिट याचिका माननीय उच्चतम न्यायालय के तथ्यों को छिपाते हुए तथा माननीय इलाहाबाद न्यायालय को गुमराह करते हुए दाखिल कर दी है। जिस पर दिनांक 4 अगस्त को माननीय न्यायालय ने आदेश पारित किया है। यद्यपि यह मामला प्राइवेट मेडिकल कालेज के रेजिडेन्ट डाक्टर से सम्बन्धित है। परन्तु शिक्षा चिकित्सा तथ अन्य सरकारी विभाग इसे गंभीरता से ना लेते हुए अप्रभवित होने वाले रेजिडेन्ट डाक्टरों को न्यायालय के रिट के बारे में सूचना देकर अपना पल्ला झाड़ लिया है। परिणाम स्वरुप इस बार भी प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था प्रभावित हुई है और रेजिडेन्ट डाक्टरों ने अपना काम बन्द कर कोर्ट कचहरी का चक्कर काटने के लिए मजबूर हो गये है। ज्ञातब्य है कि प्रदेश के मेडिकल कालेजों में चिकित्सा का सारा दारोमदार इन शिक्षणार्थी रेजिडेन्ट डाक्टरों पर निर्भर है। इन दिनों सारे प्रभावित तथा अप्रभावित रेजिडेन्ट डाक्टर इस कारण अपने कार्यो से विरत हाने को मजबूर हो गये हैं। वही आम जनता चिकित्सा सुविधावों से महरुम हो रही है। इतना ही नहीं माननीय उच्च न्यायालय के आदेश से भ्रम की स्थिति भी हो रही है। यह सम्भव है कि दानों शीर्ष न्यायालयों में टकराव की स्थिति भी बन सकती है। माननीय इलाहाबाद न्यायालय को माननीय उच्चतम न्यायालय के तथ्यों को घ्यान में रखते हुए ही अपने आदेश तथा निर्णय जारी करना चाहिए।
उक्त आदेश का परिपालन करते हुए चिकित्सा शिक्षा की गाड़ी अपने पटरी पर चल रही थी । डा. भावना तिवारी नामक एक परिवादी ने दिनांक 3 जुलाई को 28550/2017 संख्यक एक रिट याचिका माननीय उच्चतम न्यायालय के तथ्यों को छिपाते हुए तथा माननीय इलाहाबाद न्यायालय को गुमराह करते हुए दाखिल कर दी है। जिस पर दिनांक 4 अगस्त को माननीय न्यायालय ने आदेश पारित किया है। यद्यपि यह मामला प्राइवेट मेडिकल कालेज के रेजिडेन्ट डाक्टर से सम्बन्धित है। परन्तु शिक्षा चिकित्सा तथ अन्य सरकारी विभाग इसे गंभीरता से ना लेते हुए अप्रभवित होने वाले रेजिडेन्ट डाक्टरों को न्यायालय के रिट के बारे में सूचना देकर अपना पल्ला झाड़ लिया है। परिणाम स्वरुप इस बार भी प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था प्रभावित हुई है और रेजिडेन्ट डाक्टरों ने अपना काम बन्द कर कोर्ट कचहरी का चक्कर काटने के लिए मजबूर हो गये है। ज्ञातब्य है कि प्रदेश के मेडिकल कालेजों में चिकित्सा का सारा दारोमदार इन शिक्षणार्थी रेजिडेन्ट डाक्टरों पर निर्भर है। इन दिनों सारे प्रभावित तथा अप्रभावित रेजिडेन्ट डाक्टर इस कारण अपने कार्यो से विरत हाने को मजबूर हो गये हैं। वही आम जनता चिकित्सा सुविधावों से महरुम हो रही है। इतना ही नहीं माननीय उच्च न्यायालय के आदेश से भ्रम की स्थिति भी हो रही है। यह सम्भव है कि दानों शीर्ष न्यायालयों में टकराव की स्थिति भी बन सकती है। माननीय इलाहाबाद न्यायालय को माननीय उच्चतम न्यायालय के तथ्यों को घ्यान में रखते हुए ही अपने आदेश तथा निर्णय जारी करना चाहिए।
(Reporting by : Dr.Radhey Shyam
Dwivedi, Advocate,
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