Monday, November 15, 2021

यज्ञोपवीत के लौकिक और वैज्ञानिक पहलू (2) संकलन डा. राधे श्याम द्विवेदी



       शास्त्र सम्मत विवेचना में मैने कुछ शास्त्रीय पक्ष का अवलोकन किया था।अब इसके लौकिक और वैज्ञानिक पहलुओं का अवलोकन करेंगे। जनेऊ को हर उस हिन्दू को धारण करना चाहिए जो मांस और शराब को छोड़कर सादगीपूर्ण जीवन यापन करना चाहता है। जनेऊ के नियमों का पालन करके हम निम्न प्रकार से निरोगी जीवन जी सकते हैं।
1.जीवाणुओं-कीटाणुओं से बचाव : जो लोग जनेऊ पहनते हैं और इससे जुड़े नियमों का पालन करते हैं, वे मल-मूत्र त्याग करते वक्त अपना मुंह बंद रखते हैं। इसकी आदत पड़ जाने के बाद लोग बड़ी आसानी से गंदे स्थानों पर पाए जाने वाले जीवाणुओं और कीटाणुओं के प्रकोप से बच जाते हैं। एक तरह से जनेऊ धारी अदृश्य मास्क जैसी सुरक्षा चक्र में आ जाता है।
2.गुर्दे की सुरक्षा : खानपान में यह नियम है कि बैठकर ही जलपान करना चाहिए अर्थात खड़े रहकर पानी नहीं पीना चाहिए। इसी नियम के तहत बैठकर ही मूत्र त्याग करना चाहिए। उक्त दोनों नियमों का पालन करने से किडनी पर प्रेशर नहीं पड़ता। गुर्दे सुरक्षित रह जाते हैं। जनेऊ धारण करने से यह दोनों ही नियम अनिवार्य हो जाते हैं।
3.हृदय रोग व ब्लडप्रेशर से बचाव : शोधानुसार मेडिकल साइंस ने भी यह पाया है कि जनेऊ पहनने वालों को हृदय रोग और ब्लडप्रेशर की आशंका अन्य लोगों के मुकाबले कम होती है। जनेऊ शरीर में खून के प्रवाह को भी कंट्रोल करने में मददगार होता है। ‍चिकित्सकों अनुसार यह जनेऊ के हृदय के पास से गुजरने से यह हृदय रोग की संभावना को कम करता है, क्योंकि इससे रक्त संचार सुचारू रूप से संचालित होने लगता है।
4.लकवे से बचाव : जनेऊ धारण करने वाला आदमी को लकवे मारने की संभावना कम हो जाती है क्योंकि आदमी को बताया गया है कि जनेऊ धारण करने वाले को लघुशंका करते समय दांत पर दांत बैठा कर रहना चाहिए। मल मूत्र त्याग करते समय दांत पर दांत बैठाकर रहने से आदमी को लकवा नहीं मारता है।
5.कब्ज से बचाव : जनेऊ को कान के ऊपर कसकर लपेटने का नियम है। ऐसा करने से कान के पास से गुजरने वाली उन नसों पर भी दबाव पड़ता है, जिनका संबंध सीधे आंतों से है। इन नसों पर दबाव पड़ने से कब्ज की श‍िकायत नहीं होती है। पेट साफ होने पर शरीर और मन, दोनों ही सेहतमंद रहते हैं।
6.शुक्राणुओं की रक्षा : दाएं कान के पास से वे नसें भी गुजरती हैं, जिसका संबंध अंडकोष और गुप्तेंद्रियों से होता है। मूत्र त्याग के वक्त दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से वे नसें दब जाती हैं, जिनसे वीर्य निकलता है। ऐसे में जाने-अनजाने शुक्राणुओं की रक्षा होती है। इससे इंसान के बल और तेज में वृद्ध‍ि होती है।
7.स्मरण शक्ति‍ की रक्षा : जनेऊ पहनने से याददाश्त तेज होती है, इसलिए कम उम्र में ही बच्चों का यज्ञोपवीत संस्कार कर दिया जाता है। कान पर हर रोज जनेऊ रखने और कसने से स्मरण शक्त‍ि का क्षय नहीं होता है। इससे स्मृति कोष बढ़ता रहता है। कान पर दबाव पड़ने से दिमाग की वे नसें एक्ट‍िव हो जाती हैं, जिनका संबंध स्मरण शक्त‍ि से होता है। दरअसल, गलतियां करने पर बच्चों के कान पकड़ने या ऐंठने के पीछे भी मूल कारण यही होता था।
8.आचरण की शुद्धता से बढ़ता मानसिक बल : कंधे पर जनेऊ है, इसका मात्र अहसास होने से ही मनुष्य बुरे कार्यों से दूर रहने लगता है। पवित्रता का अहसास होने से आचरण शुद्ध होने लगते हैं। आचरण की शुद्धत से मानसिक बल बढ़ता है।
9.बुरी आत्माओं से रक्षा : बार-बार बुरे सपने आने की स्थिति में जनेऊ धारण करने से इस समस्या से मुक्ति मिल जाती है।ऐसी मान्यता है कि जनेऊ पहनने वालों के पास बुरी आत्माएं नहीं फटकती हैं। इसका कारण यह है कि जनेऊ धारण करने वाला खुद पवित्र आत्मरूप बन जाता है और उसमें स्वत: ही आध्यात्म‍िक ऊर्जा का विकास होता है।
     आज के वैज्ञानिक युग में लोग संस्कारों की पवित्रता की अनदेखी करते रहते हैं,परंतु हमारे मनीषियों ने बहुत सोच समझ कर ये नियम निर्धारित किए थे।इनका पालन करने से अवश्य लाभ मिलता रहेगा।

No comments:

Post a Comment