शरद पूर्णिमा को जागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं; हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा पड़ती हैं। पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है।हिन्दू धर्म में इस दिन को जागर व्रत या कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है।
एक परंपरागत कहानी
एक साहुकार के दो पुत्रियाँ थी।दोनो पुत्रियाँ पुर्णिमा का व्रत रखती थी। परन्तु बडी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधुरा व्रत करती थी। परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की सन्तान पैदा ही मर जाती थी। उसने पंडितो से इसका कारण पूछा तो उन्होने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी जिसके कारण तुम्हारी सन्तान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पुरा विधिपुर्वक करने से तुम्हारी सन्तान जीवित रह सकती है। उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। उसके लडका हुआ परन्तु शीघ्र ही मर गया। उसने लडके को पीढे पर लिटाकर ऊपर से कपडा ढक दिया। फिर बडी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढा दे दिया। बडी बहन जब पीढे पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छुते ही रोने लगा। बडी बहन बोली-” तु मुझे कंलक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता।“ तब छोटी बहन बोली, ” यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। “उसके बाद नगर में उसने पुर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।
पूजा का विधान
इस दिन मनुष्य विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखे और जितेन्द्रिय भाव से रहे। व्यक्ति ताँबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढँकी हुई स्वर्णमयी लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करके भिन्न-भिन्न उपचारों से उनकी पूजा करें, तदनंतर सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर सोने, चाँदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए 100 दीपक जलाए। इसके बाद घी मिश्रित खीर तैयार करे और बहुत-से पात्रों में डालकर उसे चन्द्रमा की चाँदनी में रखें। जब एक प्रहर (3 घंटे) बीत जाएँ, तब लक्ष्मीजी को सारी खीर अर्पण करें। तत्पश्चात भक्तिपूर्वक ग़रीबों को इस प्रसाद रूपी खीर को बांटे और उनके साथ ही मांगलिक गीत गाकर तथा मंगलमय कार्य करते हुए रात्रि जागरण करें। अरुणोदय काल में स्नान करके लक्ष्मीजी की वह स्वर्णमयी प्रतिमा किसी दीन दुःखी को अर्पित करें। इस रात्रि की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं वह मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस समय भूतल पर कौन जाग रहा है? जागकर मेरी पूजा में लगे हुए उस मनुष्य को मैं आज धन दूँगी।
यह व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है। इससे प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा और माता लक्ष्मी के पूजन का विधान है। इस दिन माता लक्ष्मी का पूजन मुख्य रूप से फलदायी होता है। इसलिए पूरे श्रद्धा भाव से माता का पूजन करें और उन्हें खीर का भोग अर्पित करें। ऐसा माना जाता है कि इस दिन माता लक्ष्मी के पूजन का अलग महत्व है। यह समस्त पापों से मुक्ति दिलाता है। इस दिन चंद्रमा की किरणों से निकलने वाले अमृत से मिलकर बनी खीर का भोग व्यक्ति को निरोगी करने के साथ कई कष्टों से मुक्ति दिलाता है। इस दिन मां लक्ष्मी रात्रि भर भ्रमण करती हैं और इनके पूजन से घर में धन-संपदा का आगमन होता है।
माता लक्ष्मी का प्राकट्य दिवस
समुद्र मंथन की पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन मां लक्ष्मी का आविर्भाव समुद्र से हुआ था। इसलिए इस दिन को माता लक्ष्मी के अवतरण दिवस और प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है और इसे अत्यंत शुभ माना जाता है। मां लक्ष्मी के जन्मदिन पर इन उपायों को करने से आपके घर में होगी धनवर्षा
खीर का महत्व
शरद पूर्णिमा की रात में चांद की किरणों में खीर रखने की परंपरा है। रात्रि के समय जब चंद्रमा अपनी संपूर्ण कलाओं से युक्त हो उस समय खीर से भरा बर्तन चांद की रोशनी में रखकर उसे भोग के रूप में ग्रहण करें। चंद्रमा की रोशनी में रखी हुई खीर खाने से मन और तन को शीतलता मिलती है। ऐसा माना जाता है कि यह खीर अमृत से युक्त होती है। इसलिए इसे घर के सभी लोगों को खाना चाहिए और प्रसाद के रूप में सभी को वितरित करना चाहिए।
धार्मिक दृष्टिकोण
शास्त्रों के अनुसार इस तिथि को चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है। जिसकी अमृत वर्षा से खीर भी अमृत के समान हो जाती है। सुबह इसका सेवन करने से रोग खत्म हो जाते हैं और रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इस दिन खीर चंद्रमा की रोशनी में रखने से उसमें खास तरह के विटामिन आ जाते हैं है। इसलिए यह खीर बहुत स्वास्थ्यवर्धक होती है। दूध में लैक्टिक नामक ऐसिड पाया जाता है। इसके साथ ही चावल में स्टार्च पाया जाता है हैं। जिस वजह से खीर में कई तत्व मिल जाते हैं और इसे स्वास्थवर्धक बना देते हैं।
त्वचा रोग में फायदेमंद
स्किन रोग से परेशान लोगों को शरद पूर्णिमा की खीर खाने से काफी फायदे मिलते हैं। मान्यता है कि अगर किसी भी व्यक्ति को चर्म रोग हो तो वो इस दिन खुले आसमान में रखी हुई खीर खाएं। इसे खाने से कफ और श्वांस संबंधी बीमारी भी दूर होती है।
इस प्रकार शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र दर्शन, लक्ष्मी पूजन और खीर के भोग का अलग महत्व है। इसलिए इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए पूजन विशेष रूप से फलदायी होगा। वर्ष के बारह महीनों में शरद पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, तो धन की देवी महालक्ष्मी रात को यह देखने के लिए निकलती हैं कि कौन जाग रहा है और वह अपने कर्मनिष्ठ भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं।
शरद पूर्णिमा का एक नाम कोजागरी पूर्णिमा भी है यानी लक्ष्मी जी पूछती हैं- कौन जाग रहा है? अश्विनी महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है इसलिए इस महीने का नाम अश्विनी पड़ा है। एक महीने में चंद्रमा जिन 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, उनमें यह सबसे पहला है और आश्विन नक्षत्र की पूर्णिमा आरोग्य देती है। केवल शरद पूर्णिमा को ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण होता है और पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट भी। चंद्रमा की किरणों से इस पूर्णिमा को अमृत बरसता है।
आयुर्वेद में महत्व:-
जीवनदायिनी रोगनाशक जड़ी-बूटियों को वह शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं। अमृत से नहाई इन जड़ी-बूटियों से जब दवा बनायी जाती है तो वह रोगी के ऊपर तुंरत असर करती है। चंद्रमा को वेद-पुराणों में मन के समान माना गया है- चंद्रमा मनसो जात:। वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक बताया गया है। प्राचीन ग्रंथों में चंद्रमा को औषधीश यानि औषधियों का स्वामी कहा गया है। ब्रह्मपुराण के अनुसार- सोम या चंद्रमा से जो सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरता है उसी से औषधियों की उत्पत्ति हुई और जब औषधी 16 कला संपूर्ण हो तो अनुमान लगाइए उस दिन औषधियों को कितना बल मिलेगा।
खीर से रोग होते हैं दूर :-
शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है, शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी खीर खाने से पित्त बाहर निकलता है। हालांकि, इस खीर को एक विशेष विधि से बनाया जाता है। पूरी रात चांद की चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट यह खीर खाने से सभी रोग दूर होते हैं, शरीर निरोगी होता है।
कृष्ण का रास:-
शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं। स्वयं सोलह कला संपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है यह पूर्णिमा। इस रात को अपनी राधा रानी और अन्य सखियों के साथ श्रीकृष्ण महारास रचाते हैं। कहते हैं जब वृंदावन में भगवान कृष्ण महारास रचा रहे थे तो चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना भाव-विभोर हुआ कि उसने अपनी शीतलता के साथ पृथ्वी पर अमृत की वर्षा आरंभ कर दी। गुजरात में शरद पूर्णिमा को लोग रास रचाते हैं और गरबा खेलते हैं। मणिपुर में भी श्रीकृष्ण भक्त रास रचाते हैं। पश्चिम बंगाल और ओडिशा में शरद पूर्णिमा की रात को महालक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस पूर्णिमा को जो महालक्ष्मी का पूजन करते हैं और रात भर जागते हैं, उनकी सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। ओडिशा में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। आदिदेव महादेव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म इसी पूर्णिमा को हुआ था। गौर वर्ण, आकर्षक, सुंदर कार्तिकेय की पूजा कुंवारी लड़कियां उनके जैसा पति पाने के लिए करती हैं। शरद पूर्णिमा ऐसे महीने में आती है, जब वर्षा ऋतु अंतिम समय पर होती है। शरद ऋतु अपने बाल्यकाल में होती है और हेमंत ऋतु आरंभ हो चुकी होती है और इसी पूर्णिमा से कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाता है।
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