यह अवधि मेरे
लिए असामान्य रही। माताजी को सदा सदा के लिए खोया। उनके प्रति हुए दुरव्यवहार जो मैंने
नहीं किये, परन्तु हमारे जिस भी परिवारी जनने किये उसके अभिशाप से आज तक मुक्ति नहीं
मिल पायी हैं । उनकी ही स्मृतियों तथा सम्पत्ति का उपभोग करते हुए उनकी आत्मा या शाया
निरन्तर अपने पुराने कर्मों का हिसाब पूछती रहती है और प्रायः एक भी काम सामान्य गति
से सम्पन्न नहीं होने देती है। अपने लोंगों के किये का कर्मफल भुगतने से मैं स्वयं
को अलग नहीं कर सकता परन्तु यदि अन्त भला हो तो सब कुछ विसराने में हमें कोई गुरेज
नहीं हैं। हमारे नियोक्ता ने मुझे एक साल की व्यथा देकर इस घड़ी को और ही दुगर्म बनाने
का प्रयास किया। इसे अंगीकार करते हुए परम पिता से प्रार्थना करता हूं कि संकट की घड़ी
को अवाध गति से काटते हुए अपने शरण में स्थान दीजिए और सांसारिक बस्तुओं तथा संचय की
प्रवृत्ति से छुटकारा दिलाइये।
Tuesday, June 26, 2018
एक और साल गुजर गया और हम कुछ भी नहीं कर पाये
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