नारी सशक्तिकरण
के बिना
मानवता का
विकास अधूरा
है। जब
कई कार्य
एक समय
पर करने
की बात
आती है
तो महिलाओं
को कोई
नहीं पछाड़
सकता। यह
उनकी शक्ति
है और
हमें इस
पर गर्व
होना चाहिए।
महिलाओं को
खुद से
जुड़े फैसले
लेने की
स्वतंत्रता होनी
चाहिए हम
तभी नारी
सशक्तिकरण को
सार्थक कर
सकते हैं।
नारी सशक्तिकरण
में आर्थिक
स्वतंत्रता की
महत्वपूर्ण भूमिका
होती है।
चाहे वो
शोध से
जुड़ी गतिविधियां
हों या
फिर शिक्षा
क्षेत्र, महिलाएं
काफी अच्छा
काम कर
रही हैं।
कृषि के
क्षेत्र में
भी महिलाओं
का महत्वपूर्ण
योगदान है।
प्रत्येक महिला
में उद्यमिता
के गुण
और मूल्य
होते हैं।
यदि वे
आर्थिक रूप
से स्वतंत्र
हों तो
महिलाएं निर्णय
प्रक्रिया में
बड़ी भूमिका
अदा कर
सकती हैं।
महात्मा गांधी
ने कहा
था, जब
नारी शिक्षित
होती है
तो दो
परिवार शिक्षित
होते हैं।
जब हम
नारी को
शिक्षित करते
हैं तो
न केवल
दो परिवारों
बल्कि दो
पीढ़ियों को
शिक्षित करते
हैं। बेटी
बचाओ, बेटी
पढ़ाओ’ आंदोलन
तेज गति
से आगे
बढ़ रहा
है। आज
यह सिर्फ
सरकारी कार्यक्रम
नहीं रहा
है, यह
एक सामाजिक
संवेदना का,
लोक शिक्षा
का अभियान
बन गया
है।महिला - वो
शक्ति है,
सशक्त है,
वो भारत
की नारी
है, न
ज्यादा में,
न कम
में, वो
सब में
बराबर की
अधिकारी है।चाहे
खेल हो
या अंतरिक्ष
विज्ञान, हमारे
देश की
महिलाएं किसी
भी क्षेत्र
में पीछे
नहीं हैं।
वे कदम
से कदम
मिला करआगे
बढ़ रही
हैं और
अपनी उपलब्धियों
से देश
का नाम
रौशन कर
रही हैं।
मानवता की
प्रगति महिलाओं
के सशक्तिकरण
के बिना
अधूरी है।
नारी सशक्तिकरण क्यों जरूरी :-महिला और पुरुष दोनों हो समाज की धुरी हैं, एक को कमजोर करके संतुलित विकास हो ही नही सकता। जब तक देश की आधी आबादी सशक्त नही होगी हम विकास की कल्पना भी नही कर सकते। समय की मांग है और समाज की जरूरत भी कि महिलाओं को भी पुरुषों के सामान अधिकार मिले, उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलें। हमारे भारतीय समाज में महिलाओं की अवस्था में काफी सुधार हुआ है लेकिन जिस तरह स्वस्थ रूप से सुधार की कल्पना की जाती है, सुधार हो सकता था वैसा सुधार नही हुआ है, आने वाले समय में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए इस दिशा में अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। पहले की अपेक्षा महिलाओं की दशा पर सुधार तो हुआ है लेकिन अभी भी देश की आधी आबादी अपने अनेक अधिकारों से वंचित है। आज भी हमारे सामने पीड़ित महिलाओं के उदाहरणों में कमी नही है। समाचार पत्र, समाचार चैनल, वेब चैनल, रेप, दहेज़ के लिए हत्या, भ्रूण हत्या की घटनाओं से भरे पड़े मिलते हैं, इन आंकड़ों में दिन व दिन बढ़ोतरी हो रही है। महिलाओं से होने वाली हिंसा और शोषण की घटनाएं खत्म होने का नाम नही ले रही। आज हर क्षेत्र में पुरुष के साथ ही महिलाएं भी तमाम चुनौतियों से लड़ रही हैं, सामना कर रही हैं, कई क्षेत्रों में तो महिलाएं पुरुषों से आगे हैं। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि समाज के कुछ पुरुष प्रधान मानसिकता वाले तत्व यह मानने के लिए तैयार नही हैं कि महिलाएं भी उनकी बराबरी करें, ऐसे लोग महिलाओं की खुले विचार वाली कार्य शैली को बर्दाशत नही कर पाते हैं। शायद इसलिए कभी तस्लीमा नसरीन जी चर्चित हुई तो कभी दीपा मेहता। आज भी हमारे समाज में महिला केंद्रित आलेख और सिनेमा आसानी से स्वीकार नही किए जाते हैं, कहीं न कहीं उनका विरोध शुरू हो जाता है। क्या महिलाओं को अधिकार नही है कि वे खुलकर अपने विचारों को समाज के सामने रखें
? अगर देश की आधी आबादी का यूं ही अनदेखा किया जाएगा, उनका शोषण किया जाएगा, ऐसे में उनके बिना समाज का विकास कैसे संभव है।
क्या है यह नारी सशक्तिकरण :- हम यह कह सकते हैं कि महिलाओं को अपनी जिंदगी के हर छोटे-बड़े हर काम का खुद निर्णय लेने की क्षमता होना ही सशक्तिकरण है। अपनी निजी स्वतंत्रता और खुद फैसले लेने के लिए महिलाओं को अधिकार देना ही महिला सशक्तिकरण है। प्रचीन काल से आज तक अपनी सभ्यता, संस्कृति व परम्परा हर तरह से हमारे समाज में पुरुषों को ही प्राथमिकता दी गई। एक समय था महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखा जाता था, मुख्यधारा से नही जुडऩे दिया जाता था और न ही कोई रोजगार करने दिया जाता था, उन्हें सिर्फ घर की चार दिवारी में कैद करके रखकर कभी मंगलसूत्र के बन्धन में तो कहीं ममता के मोह में बांधकर, कहीं पत्नी के रूप में तो कहीं मां के रूप में चार दिवारी के भीतर कैद रखा गया।
ईमानदारी से प्रयास नही हो रहा
है:- अब हालात पहले जैसे नही हैं महिलाएं, शिक्षित होने लगीं हैं, हर क्षेत्र में आगे बढऩे लगी हैं, लेकिन फिर भी सवाल वहीं की वही है कि क्या महिलाओं का शोषण बन्द हो गया है? क्या महिलाओं पर होने वाली हिंसा रुक गई है? यह वह सवाल हैं जो दशकों से समाज पर प्रश्न चिन्ह लगाये हुए हैं, समाज में कालिख की तरह पुते हुए हैं। चर्चा तो होती है लेकिन चिंतन नही होता, प्रयास तो होते हैं लेकिन सुधार नही होता। आखिर क्यों? ऐसा क्यों? शायद हम इस ओर पूरी इच्छा शक्ति और ईमानदारी से चर्चा और प्रयास नही कर रहे। जन्म से पहले कन्या भ्रूण हत्या किया जा रहा है, दहेज के लिए आए दिन महिलाओं की हत्या हो रही है, रेप की घटनाओं के बढ़ते आंकड़े देखे तो मन विचलित होता है। भारतीय संविधान ने महिला व पुरुष को समानता का अधिकार दिया है, साथ ही हमारी सरकारों ने भी महिलाओं के लिए अनेक योजनाएं चालू की हैं, इसके बावजूद समाज में महिला-पुरुष को लेकर अनेक तरह के भेद-भाव बना दिए गये हैं और हर जगह महिलाओं को कमतर आंकने की कोशिश की गई है, यह महिलाओं के साथ अन्याय नही है तो और क्या है।
पुरुष में सोच पैदा
हो :- संविधान, सरकार से लेकर सामाजिक संगठन तक में महिला सशक्तिकरण की बात तो होती है लेकिन महिला सशक्त नही हो पाई है। यह सत्य है कि महिला सशक्तिकरण तब तक संभव नही जब तक हमारे समाज के पुरुष प्रधान रवैये की में यह सोच पैदा न हो जाये कि महिला भी पुरुष से कम नही है साथ ही महिलाओं को भी अपने अधिकारों के लिए आगे आना होगा और अपनी कार्यक्षमता से अपनी शक्ति का, खुद के सशक्त होने का परिचय देना होगा। महिलाओं को दिखाना होगा की नारी सिर्फ भोग की वस्तु नही है बल्कि वह भी समाज का अहम हिस्सा है। महिलाओं को जागना होगा और दिखाना होगा की वह लाचार नही है उसे लाचार बनाया गया है। अब जागरूकता की परम आवश्यकता है, नारी को खुद को पहचानने की, अपने-आप को जानने की जरूरत है। अपने विकास, उन्नति, प्रगति समृद्धि और अधिकारों के लिए नारी हर पल चौकन्ना रहें, जागरूक बने और दूसरी नारी सशक्ति को भी प्रेरित करें। समाज का संतुलित विकास नारी के सशक्त होने पर ही सम्भव है। महिलाओं को शिक्षा तथा सोच से हर तरह से अपने-आप को सशक्त करने का समय आ गया है। महिलाओं को मानसिक रूप से मजबूत होकर खुद को अपने-आप को प्रस्तुत कर हर जगह शिखर पर स्थापित करना होगा, साथ ही सशक्त होने के लिए पुरुषों की सोच को भी बदलना होगा कि हम नारी आपसे कम नही हैं। परिवर्तन लाना जरूरी हैं क्योंकि नारी शक्ति को मुख्य धारा से जोड़े बिना विकास सम्भव नही है, इसलिए हर महिला को खुद से अपने घर से शुरुआत करनी होगी खुद को सशक्त बनाने की और अपने आस-पास की महिलाओं को भी जागरूक करना होगा, जागरूकता का माध्यम जो भी हो लेकिन खुद को सशक्त बनाने हेतु जागरूकता जरूर लाएं, साथ ही अपने अंदर निर्णय लेने की, नेतृत्व करने की क्षमता पैदा करें, साहसी बने, दृण निश्चयी बने, आत्म विश्वाशी बनें, क्योंकि नारी सशक्त होगी तभी हम देश और समाज के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना कर सकते हैं, एक सशक्त नारी के कन्धों पर ही संतुलित, स्वस्थ, विकसित समाज की नींव रख सकतें हैं।
नारी को खुद की शक्तियों को पहचानना होगा :- वर्षों से महिलाओं को चार दिवारी के अंदर कैद रखने और उसे शोषित करने की जो धारणा है, जो सोच है उसे पूरी तरह से दफन कर जागरूकता की ज्योति जलाकर एक नए सुन्दर समाज की स्थापना करना है। एक तरफ देवियों की पूजा अर्चना की जाती है तो दूसरी तरफ महिलाओं से दोयम दर्जे का व्यवहार कर भेदभाव किया जाता है। क्या यही महिला सशक्तिकरण है। नही, बिल्कुल नही यह सिर्फ छल है इस छल से बाहर आना होगा, महिलाओं को अपने-आप को खुद की शक्तियों को पहचानना होगा और आगे बढऩा होगा। देश को उन्नत शील बनाना है, एक सुदृण समाज की परिकल्पना को साकार करना है, इसलिए मैं समस्त नारी सशक्ति से आह्वाहन करती हूं उठो, जागो आगे बढ़ो अपने अधिकारों के लिए तुम्हे ही लडऩा होगा, आगे बढऩा होगा। इस पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों की सोच भी तुम्हे गई बदलना है, खुद को स्थापित करना है और साबित करना है कि हम भी पुरुषों से कम नही, बल्कि हम एक कदम आगे हैं। यह दिखाना होगा करके दिखाना होगा, अपना लोहा खुद मनवाना होगा,इसलिए जागों, जागरूक बनो, मजबूत बनो, आगे बढ़ो, सशक्त बनो। तभी सही मायने में महिला सशक्तिकरण का चिंतन साकार होगा, प्रयास पूरा होगा और एक नए भारत व स्वस्थ-संतुलित समाज का निर्माण होगा।
आंबेडकर का हिंदू कोड बिल महिला सशक्तिकरण का असली आविष्कार :- किसी भी स्वस्थ समाज को एक दायरे में रखने के लिए कुछ सामाजिक कायदे कानून होने चाहिए ताकि समाज उनका पालन करता हुआ अपना अस्तित्व बनाये रखे| इसलिए संवैधानिक रूप से भारत के महिला सशक्तिकरण के लिए पहला कानूनी दस्तावेज ‘हिंदू कोड बिल’ तैयार किया गया था| आंबेडकर ने ‘महिला वर्ग’ के सशक्तिकरण के लिए ‘हिंदू कोड बिल’ नामक प्रामाणिक कानूनी दस्तावेज़ साल 1951 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित ज. नेहरु के मंत्रिमंडल में केंद्रीय विधि मंत्री रहते हुए संसद में पेश किया| पर कुछ धार्मिक मतभेदों के कारण बहुत सांसदों ने बिल का विरोध किया| लिहाजा यह बिल पारित नहीं हो सका|आंबेडकर यह बात समझते
थे कि स्त्रियों की स्थिति सिर्फ
ऊपर से उपदेश
देकर नहीं सुधरने
वाली, उसके लिए
क़ानूनी व्यवस्था करनी
होगी| इस संदर्भ
में महाराष्ट्रीयन दलित
लेखक बाबुराव बागुल
कहते है, ‘हिंदू कोड बिल महिला सशक्तिकरण का असली आविष्कार है|’ ‘हिंदू कोड
बिल’ भारतीय महिलाओं
के लिए सभी
मर्ज़ की दवा
थी| क्योंकि आंबेडकर
समझते थे कि असल में
समाज की मानसिक
सोच जब तक नहीं बदलेगी
तब तक व्यावहारिक सोच विकसित नहीं
हो सकेगी| पर अफ़सोस यह बिल संसद
में पारित नहीं
हो पाया और इसी कारण
आंबेडकर ने विधि
मंत्री पद का इस्तीफ़ा दे दिया| इस आधार पर आंबेडकर को भारतीय महिला
क्रांति का ‘मसीहा’
कहना कहीं से भी अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा|आंबेडकर
ने कहा था
– ‘मैं नहीं जानता कि इस दुनिया का क्या होगा, जब बेटियों का जन्म ही नहीं होगा|’ स्त्री
सरोकारों के प्रति
डॉ भीमराव आंबेडकर
का समर्पण किसी
जुनून से कम नहीं था| सामाजिक न्याय,
सामाजिक पहचान, समान
अवसर और संवैधानिक स्वतंत्रता के रूप
में नारी सशक्तिकरण लिए उनका योगदान
पीढ़ी-दर-पीढ़ी
याद किया जायेगा|
दिशा सम्यक
संतुलित
तथा
संपूरक
हो:-
ओशो जी का कहना
है कि नारी यदि
पुरुषों का नकल करेंगी
तो कभी भी नम्बर एक
नहीं बन सकेगीं। विज्ञान
या समाज के किसी भी क्षेत्र
में वह कदापि पुरुषों
से आगे नहीं निकल सकती हैं। उन्हें अपनी प्रकृति व क्षमता के
अनुकूल कार्य चुन लेनी चाहिए। उन्हें अपने अन्दर छिपी प्रतिभा को पहचाननी चाहिए।
उसे प्रकट कर सुख शांति
से प्रगति करने पर सुखी बन
सकेंगी। उन्हें अपने गुणों को विकसित करना
चाहिए। उनके भीतर छिपी कोमलता, ममता,दया और करुणा को
जगाना चाहिए। भाषाशास़्त्री ने उनकी प्रकृति
के अनुसार सभी स्त्रीलिंग गुणों का विकास उनमें
किया है।प्रार्थना ,भावना व मंगलकामना आदि
शब्द और गुण नारी
में विशेषरुप से देखे जा
सकते हैं। पुरुष यदि बाह्य जगत से जीविका चलाने
के लिए संघर्षशील रहा तो नारी परिवार
संभालने वाली, सजाने वाली, घर गृहस्थी को
चलाने वाली रही। दोनों की भूमिकाएं सदैव
अलग- अलग रही तथा एक दूसरे की
पूरक रही। इस प्रकार ही
दोनों के जीवन में
पूर्णता संभव है। इसमें प्रतिद्वद्विता की गुंजाइस नहीं
रहेगी। दोनों में हीनता , ईष्या आदि कोई् विकार नहीं पनप सकते हैं। यदि कभी एसे अवसर आये तो अध्यात्म व
ज्ञान की दीक्षा से
इसे सही मार्ग की तरफ मोड़ा
जा सकता है। नारी की सही दिशा उसे महान से महानतम तथा जगत जननी का दर्जा दिला सकती है। पुरुष उसका सहचर बनकर उसका अनुगामी तथा संरक्षक बन सकता है।
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