लोकप्रहरी
नाम के एनजीओ ने
उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री को बंगला दिए
जाने के नियम को
चुनौती दी थी। इस
मामले पर सुनवाई करते
हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था
कि ये किसी एक
राज्य का मामला नहीं
बल्कि पूरे देश का मामला है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले
के लिए वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम को अमाइक्स क्यूरी
(न्याया मित्र) नियुक्त किया था। जिन्होंने पूर्व राष्ट्रपतियों और पूर्व प्रधानमंत्रियों
को सरकारी बंगला देने को गलत बताया
था। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में
राज्यों और एटॉर्नी जनरल
से पक्ष रखने को कहा चुकी
है। साल 2016 के अगस्त महीने
में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार
के उस आदेश को
खारिज कर दिया था।
जिसमें पूर्व मुख्यमंत्रियों को जीवन भर
मुफ्त सरकारी आवास देने की व्यवस्था की
गई थी। एनजीओ लोक प्रहरी ने 1997 सरकारी आदेश को चुनौती दी
थी। एनजीओ ने अपनी याचिका
में उत्तर प्रदेश मिनिस्टर्स सैलरीज, अलाउंस एंड अदर फैसिलिटीज एक्ट 1981 का हवाला दिया
गया था। इस एक्ट के
सेक्शन 4 में कहा गया है कि मंत्री
और मुख्यमंत्री, पद पर रहते
हुए एक निशुल्क सरकारी
आवास के हकदार हैं,
लेकिन जैसे ही वह पद
छोड़ेंगे 15 दिन के भीतर उन्हें
सरकारी मकान खाली करना होगा। इस आदेश के
बाद लगभग
सभी पूर्व सीएम कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, मायावती, अखिलेश यादव ने अपना आवास
खाली कर दिया। केवल
नारायण दत्त तिवारी की अस्वस्थता के
कारण आवास नहीं खाली हो सका है।
महादेवी
वर्मा को साहित्य का
पुरस्कार मिला था। वह राष्ट्रपति बाबू
राजेन्द्र प्रसाद से मिलने गई।
राजेन्द्र प्रसाद जी की पत्नी
इलाहाबाद से थी तो
उनसे भी मिलने चली
गई। राजेन्द्र बाबू की पत्नी ने
महादेवी वर्मा से कहा - ’अबकी
जब आवल जाई तो सूप लेते
अयिह्या इहाँ चाउर साफ ना होत (अबकी
जब आना तो सूप लेते
आना, यहाँ चावल साफ नहीं होता)।’फिर जब महादेवी जी
गई तो राष्ट्रपति राजेंद्र
प्रसाद की पत्नी को
सूप दिया। राजेंद्र प्रसाद जी जब राष्ट्रपति
भवन छोड़ने लगे तो उन्होंने पत्नी
से कहा यह सूप भी
राष्ट्र की धरोहर है।
यह उपहार मिला है इसको यहीं
छोड़ दो ।आज भी
राष्ट्रपति संग्रहालय में वह सूप रखा
हुआ है।
एक
तरफ राष्ट्रपति भवन में महादेवी वर्मा का सूप देखकर
हम राजनीति की सुचिता देख
पाते हैं और त्याग की
भावना का सम्मान करते
हैं तो दूसरी ओर
सोसल मीडिया तथा समाचारपत्रों सरकार
द्वारा प्रदत्त संरूाधनों जैसे की टोटी , टाइल्स
और अन्य साज सज्जा के चोरी या
नश्ट किये जाने की बात भी
पढ़ने को पाते हैं
। एसे नौतिक
पतन को देखते
हुए हमें राष्ट्र कवि मौथिली शरण गुप्त कि कुछ पंक्तियां
याद आती हैं -
हम कौन
थे
क्या
हो
गये
और
क्या
होगें
अभी
मौका
मिले तो देख सकते
है और जब मौका
मिले तो हमारे नेता
टोटी, टाइल्स और स्विच बोर्ड
तक उखाड़ ले जाते हैं।
हमें इस पर अवश्य
विचार अवश्य करना चाहिए कि हम कहाँ
से अपना नौतिक उच्च आदर्श स्थापित किये थे और आज
हम कहाँ निम्न स्तर तक पहुँच गये
हैं! चोर उच्चके जो सत्ता को
अपनी बपौती समझते हैं, जातिवादी राजनीति करके देश का बेड़ा गर्क
करते हैं। उनसे देश तथा प्रदेश को बचाना है।
यह छोटी पर गंभीर मामला
है।
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