मार्च
2017 में 30 साल की अवाध सेवा अवधि पूरा करने के उपरान्त मेरे कार्यालय ने मेरा 30
वर्षीय प्रोन्नति अपग्रेडेशन को आगे नहीं बढ़ाया था। समय से रिलीविंग आदेश नहीं जारी
किया गया। फलतः समय व स्टाफ के अभाव में गलत रुप में प्रभार हस्तान्तरण रिपोर्ट बनवाया
गया । एक लम्बी मिसिंग सूची बनाकर मेरी निष्ठा पर प्रश्न चिन्ह लगाया गया। पुस्तकालय
का एक गलत आदेश का सहारा लेकर बहुत बड़ी रकम जुमार्ने के रुप में उतारी गयी। मेरा पक्ष
जाने विना एकतरफा दण्डात्मक कार्यवाही की गयी। तीस साल के बाद मिलने वाले प्रोन्नति
को रोकने के लिए गलत वार्षिक रिर्पोटिंग तैयार करवायी गयी। जो काम एक साल पहले होना
चाहिए उसे लटकाया गया। मेरे अभिन्न शुभचिन्तक कहे जाने वाले लोगों ने मेरे अन्तिम सेवा
के दौरान ना केवल असहयोग किया अपितु मेरा पूरा काम रोकने का भरपूर प्रयास भी किया।
एक साल की मुफलिसी झेलते हुए बड़ी पैरवी तथा भाग दौड के बाद मेरा प्रोन्नति अपग्रेडेशन
आदेश जारी किया गया।परन्तु अभी तक किसी प्रकार का लाभ नहीं मिल पाया है।
यह अवधि मेरे
लिए असामान्य रही। माताजी को सदा सदा के लिए खोया। उनके प्रति हुए दुरव्यवहार जो मैंने
नहीं किये, परन्तु हमारे जिस भी परिवारी जनने किये उसके अभिशाप से आज तक मुक्ति नहीं
मिल पायी हैं । उनकी ही स्मृतियों तथा सम्पत्ति का उपभोग करते हुए उनकी आत्मा या शाया
निरन्तर अपने पुराने कर्मों का हिसाब पूछती रहती है और प्रायः एक भी काम सामान्य गति
से सम्पन्न नहीं होने देती है। अपने लोंगों के किये का कर्मफल भुगतने से मैं स्वयं
को अलग नहीं कर सकता परन्तु यदि अन्त भला हो तो सब कुछ विसराने में हमें कोई गुरेज
नहीं हैं। हमारे नियोक्ता ने मुझे एक साल की व्यथा देकर इस घड़ी को और ही दुगर्म बनाने
का प्रयास किया। इसे अंगीकार करते हुए परम पिता से प्रार्थना करता हूं कि संकट की घड़ी
को अवाध गति से काटते हुए अपने शरण में स्थान दीजिए और सांसारिक बस्तुओं तथा संचय की
प्रवृत्ति से छुटकारा दिलाइये।
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