बस्ती के सशक्त लेखक वागीश शुक्ल (बस्ती के छंदकार भाग 3 कड़ी 20)
आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी
वागीश शुक्ल हिन्दी के उन विरले लेखकों में हैं जो हिन्दी, संस्कृत, फ़ारसी, अंग्रेज़ी और इन भाषाओं के माध्यम से दूसरी भाषाओं के साहित्य को गहरायी से जानते हैं। वे वर्तमान समय में हिन्दी-साहित्य के सबसे गहरे और तीक्ष्ण ,सिद्धांसतार, आलोचक, निबंधकार एवं उपन्यासकार हैं। उनकी प्रतिभा आचार्य राम चन्द्र शुक्ल जैसी ही दिखती हैं एक गणितज्ञ को साहित्य की ऐसी परख विरले देखने को मिलता है। उनके बारे में सर्च करने पर बहुत ही विलक्षण चरित्र देखने को मिलता है। गद्य साहित्य की प्रचुरता के कारण 'बस्ती के छंदकार' के लेखक स्मृति शेष डा मुनि लाल उपाध्याय 'सरस' जी ने शायद उन्हे अपने अध्ययन में ना ले सकें। उन्हें उचित स्थान देने से बस्ती मण्डल खुद को गौरवान्वित महशूस कर सकता है। इसलिए उनके अप्रकाशित भाग 3 की श्रृंखला में इस कड़ी को पिरोया जा रहा है।
स्वनाम धन्य श्री वागीश जी एक वैज्ञानिक के रूप में भी जाने जाते हैं। उन्होंने गणित में स्नातकोत्तर किया है और आईआईटी दिल्ली में गणित के प्रोफ़ेसर भी रहे। उन्होंने ज्येष्ठ शुक्ल दशमी विक्रम संवत् 2003 तदनुसार 9 जुलाई, 1946 ई. को इस धरती पर अपने गाँव थरौली, तप्पा बड़गों पगार, परगना महुली पश्चिम, तहसील सदर, जिला बस्ती, उत्तर प्रदेश में जन्म लिया । बस्ती में वे एक ठाकुरद्वारे में रहते थे जिसे बस्ती राज-परिवार की रानी दिगम्बर कुँवरि ने बनवाया था। ये 1857 के प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी बाबू कुँवर सिंह की बहिन थीं किन्तु ये स्वयं अंगरेज़ों के साथ थीं जिसके नाते बस्ती का राज्य विक्टोरिया शासनकाल में कुछ बढ़ेआकार के साथ बचा रहा। वे वर्षों दिल्ली के आई. आई. टी. संस्थान में गणित पढ़ाते रहे और फिर सेवानिवृत्त होकर बस्ती में भी रहे हैं। उनका लिखा हुआ सरस और जटिल एक साथ होता है। उन्होंने निराला की प्रसिद्ध कविता ‘राम की शक्तिपूजा’ की बहुत ही सुन्दर टीका लिखी है जो ‘छन्द छन्द पर कुमकुम’ नाम से प्रकाशित हुई है। उन्होंने देवकीनन्दन खत्री की उपन्यास श्रृंखला ‘चन्द्रकान्ता सन्तति’ पर भी किताब लिखी है। उन्होंने ‘समास’ के लिए ‘भक्ति’ पर कई निबंधों की श्रृंखला भी लिखी है। वागीश जी हिन्दी में ग़ालिब की शायरी के सबसे बड़े विशेषज्ञ हैं और उन्होंने उस पर भी टीका लिख रखी है जो प्रकाशित होना बाक़ी है।
परिवारिक पृष्ठभूमि:-
1.पण्डित शूलपाणि पूर्वज पुरुष
वागीश शुक्ल जी के पूर्वज पण्डित शूलपाणि शुक्ल थे , जो बस्ती से थरौली के रास्ते में थरौली से तीन किलोमीटर पहले पड़ने वाले महसों में रहते थे, जहाँ के राजा द्वारा किये गये किसी अपमान से क्षुब्ध् होकर वे अनशन पर बैठ गये थे और उनका प्राणान्त हो गया जिसके बाद उनके पुत्रों ने ब्रह्महत्यारे के राज्य में जल न ग्रहण करने की प्रतिज्ञा करके महसों छोड़ दिया और किसी अन्य आश्रय की तलाश में निकल पड़े। उनमें से एक को थरौली के तत्कालीन निवासियों ने अपने गाँव में शरण दे दी और अन्य भाई आगे चले गये। थरौली महुली राज्य में पड़ता था। यह चंगेरवा और महादेवा के पास में है। इस समय थरौली ग्राम पंचायत बस्ती जिला परिषद के बनकटी पंचायत समिति भाग में एक ग्रामीण स्थानीय निकाय है । थरौली ग्राम पंचायत क्षेत्राधिकार के अंतर्गत कुल 4 गांव हैं।
2.पण्डित शिवदीन वृद्ध प्रपितामह
पण्डित शिवदीन शुक्ल थरौली में बस गये पूर्वज के वंश में वागीश जी के वृद्ध प्रपितामह पण्डित शिवदीन शुक्ल हुए थे उनके दो पुत्र हुए। पण्डित रामप्रसाद शुक्ल और पण्डित रामअवतार शुक्ल।
3.रामप्रसाद शुक्ल प्रपितामह
पण्डित रामप्रसाद शुक्ल वागीश जी के सगे प्रपितामह रहे। उनके एक और प्रपितामह पण्डित रामअवतार शुक्ल रहे । इन दो भाइयों का परिवार एक ही रसोई में था किन्तु वागीश जी के होश सँभालने तक चूल्हे अलग हो चुके थे हालाँकि सभी लोग एक ही मकान में अलग-अलग बरामदे बाँट कर रहते थे।इस प्रकार पण्डित रामप्रसाद शुक्ल के दोनों पुत्रों- पण्डित शुभनारायण शुक्ल और उनके छोटे भाई पण्डित जयनारायण शुक्ल- के परिवार मिल कर वह परिवार बनाते थे जो उस समय‘संयुक्त परिवार रहा है।
4.पण्डित जयनारायण शुक्ल पितामह
यह मकान यों तो उनके पितामह पण्डित जयनारायण शुक्ल ने बनवाया था किन्तु बँटवारे में ज़ाहिर है कि उन लोगों के हिस्से में दो ही बरामदे और उनसे जुड़ी कोठरियाँ आनी थी।
5.शुभनारायण शुक्ल पिता
वागीश जी अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान थे ।वे संस्कृत के आचार्य थे.और पण्डित जयनारायण शुक्ल के वंशजों से बने संयुक्त परिवार के हमारे अपने टुकड़े में इस समय उनकी पीढ़ी में वे तथा उनके पितृव्य पण्डित जयदेव शुक्ल के पुत्र देवेन्द्र शुक्ल मौजूद हैं।
6.वागीश शुक्ल का जीवन परिचय:-वागीश जी की माता श्रीमती विद्यावती देवी यद्यपि चैदह वर्ष की अवस्था से ही अपने पितृकुल में गुरुजनों की शुश्रुषा कर रही थीं, तथापि उनके घर में बारह वर्ष बीत जाने पर भी उनके कोई सन्तान न हुई और उन्होंने किसी बड़ी-बूढ़ी की सलाह पर ऋषि पंचमी का व्रत प्रारम्भ किया। परिणाम स्वरूप ज्येष्ठ शुक्ल दशमी विक्रम संवत् 2003 तदनुसार 9 जुलाई, सन 1946 ई को इस धरती पर वागीश जी ने जन्म लिया। [उनकी पत्नी इंदुमती का जन्म 1951और मृत्यु 2023 में हुई थी। दोनों की शादी 1965 और वैधुर्य 2023 ई में हुआ है।] नवीं में पढ़ते हुए ही वागीश जी ने अपनी पहली कविता लिखी जिसकी प्रथम पंक्ति थीः ‘पर्यंक-त्याग क्यों ओ बोले’।इसी समय से वे जेब में इलायची - लोंग रखने लगे थे। जिसकी बहुत दिनों बाद परिणति तम्बाकू का पान खाने में हुई। यह आदत एकाध बार छूटने के बावुजूद ताउम्र तक क़ायम रही है। बँसिया की लठिया’ से शुरू होने वाली कविता छपी थी।एक संस्कृत विद्यालय के वाचनालय में देवकीनन्दन खत्री के सारे उपन्यास उन्होंने वहीं पढ़े। अंगरेज़ी अच्छी करने के चक्कर में आपके पिता जी ने ‘ब्लिट्ज़’ नामक साप्ताहिक उनके लिए मँगवाना शुरू किया था। इलाहाबाद में पढ़ाई के दौरान उनकी कोठरी में एक चटाई भर की जगह थी जिस पर सिर गड़ाये वे तब तक एक लालटेन के सहारे पढ़ते रहते थे जब तक सोने का समय न हो जाय और फिर वह चटाई बिस्तर का काम देती थी।
वज़ीफ़े और गोल्ड मेडल के साथ ही उनका शुमार अब बी.ए. प्रथम वर्ष के पढ़ाकू छात्रों में था । लेक्चर’ के दौरान वे पिछली बेंच पर बैठते थे और प्रायः एक दूसरे की काॅपियों पर कुछ-न-कुछ - मसलन चिरकीन के शेर- लिखा करते थे।
हिन्दी, संस्कृत, फारसी और अँग्रेज़ी वाङ्मय के गहरे और गम्भीर अध्येता, आलोचक और अनुवादक वागीश शुक्ल भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली) 1970 से 2012 ) सेवा किए फिर सेवा निवृत्त होकर नौ वर्ष तक बस्ती में रहे । 2021 से पुनः दिल्ली में रह रहे हैं।
वागीश शुक्ल हिन्दी के उन विरले लेखकों में हैं जो हिन्दी, संस्कृत, फ़ारसी, अंग्रेज़ी और इन भाषाओं के माध्यम से दूसरी भाषाओं के साहित्य को गहरायी से जानते हैं। उनका लिखा हुआ सरस और जटिल एक साथ होता है। उनके लिखने का ढंग निराला है। वे कोई भी अवधारणा सीधे सीधे व्यक्त करने के स्थान पर पाठक को वैचारिकता के उस स्थान तक ले जाते हैं जहाँ वह अवधारणा रूप ले रही होती है।
रचनायें:-
वागीश जी ने लगभग एक दर्जन रचनाएं लिखी हैं,जो देश के प्रतिष्ठित प्रकाशनों से प्रकाशित हुई है तथा अमेज़न आदि केंद्रों के माध्यम से विक्रय के लिए उपलब्ध हैं।
1.छन्द छन्द पर कुमकुम : राम की शक्ति पूजा'
(इसकी यह टीका निराला की राम शक्ति पूजा पाठ, टीका आदि की अनेक नयी विधियाँ भारतीय प्रसंग में प्राकु-आधुनिक हूँ, भले इधर वे हिन्दी आलोचना के परिसर से बाहर ही रहती आयी हूँ । 'राम की शक्तिपूजा' की यह टीका निराला की कविता को उसकी पूरी अर्थाभा, आशयों और अन्तर्ध्वनियाँ में, समकालीन सन्दर्भों और पारम्परिक स्मृति के अत्यन्त सर्जनात्मक रसायन के रूप में पुनरायत्त करने का अवसर सुलभ कराती है।)
2. गालिब के लगभग पूरे साहित्य की विस्तृत टीका और व्याख्या, जो प्रकाशित होना बाक़ी है।
3. Sanskrit studied ,Samvat 2063 64 ,in 2 vols.
4.आहोपुरुषिका अनुवाद (मेघदूतम्' को छोड़ दूँ तो पत्नी के वियोग में इतना झंझावाती विषाद, आहोपुरुषिका )
5.समालोचना "उसे निहारते हुए"
6.समालोचना "प्रचण्ड प्रवीर का कथा लेखन"
7.प्रतिदर्शन (कुछ निबंध)
(प्रतिदर्शन है वागीश शुक्ल के अब तक के लेखन के चुनिंदा अंशों का। वे न केवल विद्वान-आलोचक हैं, वे अपनी पीढ़ी और अपनी पहली पीढ़ी में भी आदर्श हैं। उनकी विद्याएँ संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी, अंग्रेजी, व्याकरण, आधुनिक गणित और उत्तर आधुनिकता तक विस्तृत हैं।
8.शहंशाह के कपड़े कहां हैं ( निबन्ध)
9.उर्दू साहित्य का देव नागरी में लिपिकरण कुछ समस्याएं कुछ सुझाव
10.चंद्रकांता संतति का तिलस्म
11.' चिकितुषी' त्रिपुरा रहस्य चर्या खण्ड का सम्पादन
12.‘समास’ के लिए ‘भक्ति’ पर निबन्ध की श्रृंखला
13.कई बरसों से एक सुदीर्घ उपन्यास पर काम जारी है।
वागीश जी का फोन नम्बर 08765934624,09868541851
ईमेल : wagishs@yahoo.com
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।
मोबाइल नंबर +91 8630778321;
वॉर्ड्सऐप नम्बर+919412300183)
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