अर्थशास्त्री कवि रामलखन मौर्य 'मयूर’ (बस्ती के छंदकार भाग 3 कड़ी 18) (उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर संकलन के पूर्ण परिचय वाले अंतिम कवि )लेखन :डॉ. मुनि लाल उपाध्याय 'सरस' ,सम्पादन : आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी
जीवन परिचय
रामलखन मौर्य 'मयूर' जी का जन्म 19 - 7-1948 ई.को बस्ती जिले के सदर तहसील के बहादुर पुर ब्लाक के नगर खास गांव जो अब नगर बाजार और नगर पंचायत है, मे हुआ है। उनके पिता का नाम श्री नवीन मौर्य है। शिक्षा, हिन्दी और अर्थशास्त्र से एम०ए०, बीएड.,साहित्यरत्न और शास्त्री है। ये लिखने-पढ़ने के अधिक शौकीन रहे हैं। जनता इण्टर कालेज नगर बाजार में अर्थशास्त्र के प्रवक्ता के रूप में अपनी सेवाएं दी हैं।
प्रकाशित कृतियाँ :-
1.उद्गार
2. शृंगार शतक
1.उद्गार काव्य संग्रह का संक्षिप्त परिचय :-
उद्गार में अगभग 60 पृष्ठ हैं। यह विविध प्रसंगों पर लिखी गई कविताओं का संग्रह है। गिरिराज के प्रति लिखा गया उनका एक द्रष्टव्य है-
उत्तुंग शिखर दुर्लघ्य सदा
तब विजय गीत को गाते है।
तेरे असीम अंचल में जन
सौन्दर्य निरखने जाते हैं।
निर्भर झर झर करते हैं कहीं
सरिता कल कल करती बहती।
है कहाँ मनोहर दृश्य विस्तृत
शुभ छटा जहां नर्तन करती
है शुभ निसर्ग शाश्वत स्वरूप
छवि धाम तुम्हें मेरा वन्दन ।।
- ('उदगार' संग्रह का "गिरिराज" शीर्षक )
अन्य कविताओ में मेरा गाँव, वीरो बढ़े चलो, बसंत, वर्षा की बूंद, सुमन, राष्ट्र शक्ति, बढ़े चलो , कदम-कदम, जलते द्वीप , बदलो समाज, सहकारिता, नव वर्ष, उया, सरिता, क्यों पीते हो, सीमा का प्रहरी, प्यारा हिन्दुस्तान, तरु आदि कविताएँ मयूर जी ने बड़ी तन्मयता के साथ लिखा है।
अधिकाँश कविताओं में प्राकृतिक चित्रण अच्छा बन पढ़ा है। कविताएँ खड़ी बोली में की गई हैं। उनके भावो में प्रवाह और कथन में लालित्य कूट कूट कर भरा है।
2.शृंगार शतक काव्य संग्रह का संक्षिप्त परिचय :-
मयूर जी का दूसरा काव्य-सग्रह "शृंगार शतक सवैया और मनहरण छन्दों में किया गया है। कहीं-कहीं पर भोजपुरी क्रियाएँ मिल जाने से भावो में चारुता अधिक आ गई है-
हम गांव के लोग गरीब हई
चली आवे महाजन द्वार हमारे ।
बड़ी भाग्य हमरो है जागलि बा
कइली हम राउर के सत्कारे ।
संवरी सजि सारी दशा हमरी
मुस्काई जो आप सनेह पधारे ।
हम धन्य हुए हैं प्रमोद भरे
करुणा से भरे प्रभु आप निहारे ।।
- ( श्रृंगार शतक, छन्द सख्या 32)
बसंत पर लिखा गया एक छन्द दर्शनीय है -
आयो बना दिगंत सज्यो
चहु ओर छटा छटकी छविकारी ।
शीतल मन्द समीर चल्यो
मदमाती बनाती लगी मनुहारी।
वन वीरच फुल्यो शीत पुरयो
अरुणाई पुपल्लव है दुतिकारी
मदमाली नटी सगरी धरती
मधुमास प्रमत्त हुए नर नारी।।
- (श्रृंगार शतक, छन्द सख्या 15)
मयूर जी जो आधुनिक चरण के सवैया और घनाक्षरी के बड़े अच्छे छन्दकार है। उनके छन्दो में प्राकृतिक सौष्ठव के साथ मानवीय सस्पर्शों का स्वर गूंजता दिखाई पड़ता है। जीवन की गहराई में कवि का अन्तर्मन डूब डूब कर छन्दो के गुलदस्तों को सजाने का सदैव प्रयास करता है। मयूर जी को मंचो पर अच्छा सम्मान मिलता है। आधुनिक युग के छन्द परम्परा के विकास में उनका योगदान भविष्य में बहुत अच्छा होगा, ऐसी सभावनाएँ है।
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