Wednesday, March 12, 2025

राममूर्ति मिश्र "सुधाकर" (बस्ती के छंदकार भाग 3 कड़ी 14)

राममूर्ति मिश्र "सुधाकर"
(बस्ती के छंदकार भाग 3 कड़ी 14)
डा. मुनि लाल उपाध्याय 'सरस' 
आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी 

जीवन परिचय :- 
कलाधर जी के अनुसार राममूर्ति सुधाकर का जन्म स० 1999 वि० मे बेलहर ग्राम में हुआ। इनके पिता का नाम शिवराज मिश्र था। शोध के प्रकरण से सुधाकर जी का पता लगाया गया किन्तु कुछ लोगों ने बताया कि ये बाहर रहते हैं, इसलिए कलाधर जी के बताने के अनुसार ही सुधाकर जी पर प्रकाश डाला जा रहा है। सुधाकर जी दस वर्ष की अवस्था से ही हिंदी लिखने लगे थे। इन्होंने कलाधर जी को अपना साहित्य गुरु बनाया था। सुधाकर जी के बारे मे "रसराज" कानपुर के सम्पादक आचार्य शिवदुलारे शर्मा सितम्बर 1958 के अंक 2 पृष्ठ 14 पर लिखते हैं "सवैया, घनाक्षरी तथा अन्य मात्रिक छन्दों के प्रयोग में सुधाकर जी सिद्धहस्त कवि हैं। इनके कुछ छन्द जो "रसराज" में छपे हैं, प्रस्तुत है।
 - ( 'रसराज’, कानपुर, शिव अभिनंदन 
     ग्रंथ नवम्बर 1957, पृष्ठ 26 )
      श्री शिवदुलारे जी के प्रति लिखा गया उनका छन्द बड़ा ही कलात्मक है-
कार्तिक की पूर्णिमा कापुण्यपर्व धन्यधन्य 
जन्म लियो शिव शिव सुकवि समाज के । 
जा रहे मनाने धूम धाम से जयन्ती शुचि 
कलाधर सुधाकर कवि गण आज के । 
प्रवृत्ति प्रदत्त बनी देख जो लुटाते आज 
पानिप के झले हुए मोती साथ साज के ।
बोलते विहंग नहीं विधि से मनाते वही
युग युग जीयें ये विधाता रसराज के।।
      - (वही, पृष्ठ 26)
      "इसी तरह से रह जायेगी" की पूर्ति सुधाकर जी ने भी "मृदुल " और "मौलिक"जी की परम्परा में किया है-
ऐसी धृष्टता है दुष्ट करता क्यो रात दिन, 
जैसी करता था नित्य कालीनाग पानी में।
याद कर सर्वदा अच्छे दिन रहते हैं ,
एक दिन अवश्य लगेगा दाग पानी में।
तेरी यह ऊँची पाग जाएगी रसातल मे ,
प्रलय में डूबता ज्यो भूमि भाग पानी में। 
गिर ना "सुधाकर नहीं तो बुझ जायेगा ,
गिर कर बुझ जाती जैसे आग पानी में। 
        - (वही, सितम्बर, 1957)
     इस छन्द के माध्यम से कवि ने कुविचारियों को बड़ी अच्छी चेतावनी दिया है। इसी संदर्भ में एक छन्द और प्रस्तुत है-
ऊंचे ऊंचे भवनों की भव्यता रहेगी नहीं 
दृढ से भी दृढ़ भीति गिरि ढह जायेगी ।
लोभ बस दूसरे की सम्पत्ति को लूट रहे 
वह काल नद में जरूर बह जायेगी। 
सर्वदा सनेह से सनेह चमकाते जिसे
एक दिन वही दिव्य देह ढह जायेगी । 
चुको ना 'सुधाकर' सदैव शुभ कार्य करो 
कहने को केवल कहानी रह जायेगी।।
         - ( वही, मई 1957)
      मई 1957 में लिखा गया यह छन्द तीन कवियों में रसराज में छपने के लिए भेजा था। तीनों की समस्या पुर्तियां छपी थी। तीनो ने संसार की नश्वरता को हृदय से स्पर्श लिया था किन्तु सुधाकर के लिए यह उच्च प्रेरणास्पद हुआ, जो मौलिक के लिए दुखान्त का नाटक और मृदुल के लिए आशा का प्रतीक रहा। 
        पुन: ;एक छन्द जिसने तत्कालीन राजनीति पर करारा व्यंग्य है, प्रस्तुत किया जा रहा है - 
ये रे कलिकल तेरो राज काज राजनीति 
देखि एक दूसरे के रक्त करषत है। 
द्रव्य लुटि लुटि लोग बनि धनवान रहे 
भोजन औ वस्त्र हेतु दीन तरसत हैं। 
एक दिन तेरी भी अवधि बीति जाये मूढ़
मान सच तेरे अंग अंग झरसत हैं। 
पाये ना पियूष तु "सुधाकर" से स्वप्न में भी
देखि एक दूसरे के रक्त करषत है।।
- (वही, जून 1968,)
       "सुधाकर" जी का एक छन्द "प्रभु" शीर्षक यहाँ प्रस्तुत है- 
मुद्दतों मनाते आप नाते पर पाते नहीं 
आप छिपे पता नही कैसे किस फूल में।
खोज खोज रोज-रोज घूम रहा बन बन 
मिलते सरोज में न मिलते बबूल में।
कहां कहां जाये जहां दिखवायें बार बार
 एक बार प्रतिमा दिखाये इसी धूल में।
आकर सुधाकर के सीतल बनाये गात 
अन्तर न पायें प्रभु प्रार्थना के भूल मे ।। 
      - (वही, अक्टूबर, 1958)
    इसी क्रम में "परिवर्तन” शीर्षक पर एक कविता द्रष्टव्य है- 
हरी भरी पावस लतिकाएं , 
नदिया उमड़ी जाती है।
मंद मंद मलियानिल चलता 
कलिकाये मुस्काती है। 
रंग-बिरंगी चित्रित सारी 
इन्द्रबधू फैलाती है। 
कभी-कभी धनघोर घटाएं 
अमृत बूंद बरसाती है।।
             - (वही, जुलाई 1960)
     ईश्वरीय विधान के संदर्भ में एक कविता है-
उसका विधान कभी कोई जान पाता नही 
करता अंधेरा कभी करता प्रभात है। 
कभी मायापति बन माया दिखलाता खड़ा 
कभी वह सुन्दर खिलाता जनजात है। 
कभी अत्याचारियों के नाश करने के हेतु
करता महान से महान उत्पात है। 
कभी पूरी सृष्टि ही सुधाकर डुबाता वह 
तब सूझता ही नहीं दिन और रात है। 
            - (वही, नवम्बर, 1958)
      सुधाकर जी आधुनिक चरण के कलाधर परम्परा के उच्चस्तरीय छन्दकार हैं। इनके छन्दों में युग-विम्व अधिक है। भाषा खड़ी बोली के साथ कहीं-कहीं भोजपुरी और ब्रजभाषा के शब्दों से युक्त है। छन्दों में शिल्प की कसावट है। अलंकारों का अभाव होते हुए भी कथन में चमत्कार है। इनसे जनपदीय छन्द परम्पराओं को अच्छी आपेक्षाएँ है।





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