Saturday, March 30, 2024

भद्रेश्वरनाथ शिव मंदिर -- आचार्य डा. राधे श्याम द्विवेदी

अवस्थिति:-
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिला मुख्यालय से 6 किमी. दक्षिण कुवानो नदी के तट पर यह पौराणिक मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह बस्ती सदर तहसील में बस्ती सोनूपार महसों रोड पर स्थित भदेश्वर गांव पंचायत में पड़ता है। यह मदिर 260 45' 23'' उत्तरी खंड तथा 820 44'29'' पूर्वी देशान्तर पर स्थित है। गोरखपुर से यहां की दूरी लगभग 78 किमी. है. 
रावण ने स्थापित किया था:-
ऐसा माना जाता था कि यह मंदिर रावण द्वारा स्थापित किया गया था। यहां एक मेला शिवरात्रि के अवसर पर एक सावन तेरस को कावड़ पूजन के रूप में आयोजित किया जाता है, जिसमें राज्य के विभिन्न हिस्सों से कई लोगों भाग लेते है। इस शिवलिंग और भद्रेश्वर नाथ का नाम शिव महापुराण में भी लिखा गया है। गांव भद्रेश्वर नाथ में ज्यादातर ब्राह्मण गोस्वामी की आबादी हैं। इस गांव की जनसंख्या लगभग 500 है।
विशाल भूभाग पर विस्तार:-
वर्तमान मंदिर लगभग 200 वर्ष पुराना बताया जाता है। इस स्थान पर पुराने बसावट के प्रमाण भी मिलते हैं। यह लगभग 30 बीघे के विशाल भूभाग पर फैला हुआ है। यहां हर सोमवार को भक्तों की भीड़ उमड़ती है, लेकिन महा शिवरात्रि के दिन तो दूर-दूर के शहर और शहर में बड़ी संख्या में मूर्ति पूजन, अर्चन और दर्शन के लिए आते हैं। पूरे मास में यहां विशेष पूजन और अर्चन होता है।
          अपने आप में कई पौराणिक कथाओं को समेटे बाबा भादेश्वर नाथ मंदिर पूरे बस्ती मण्डल की पहचान है. भादेश्वर नाथ गांव में भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग अपने आप में एक युग का इतिहास समेटे हुए है. माना जाता है कि यह शिवलिंग एक दिव्य ज्योति से साथ भादेश्वर नाथ गांव के घने जंगल में स्वतः प्रगट हुआ था. शिव धनुषाकार नदी के बीच में स्थित यह ऐसा पवित्र शिवलिंग है. जिसका वर्णन शिव पुराण के 18वे अध्याय के दूसरे दोहे कूपवाहनी शिवधनुवा अकारे, ता तटे बसे भद्रनाथ में वर्णित है. मतलब यह शिवलिंग पूरे विश्व का एक मात्र ऐसा शिवलिंग है जो शिव के धनुष के आकार के नदी के बीच में स्थित है. इस शिवलिंग की पूजा भगवान राम से लेकर लंका पति रावण ने भी किया है. भगवान राम के गुरु जिसका निवास स्थान ही बस्ती जिला था. गुरु वशिष्ट यहां नियमित रूप से पूजा पाठ करने आते रहते थे. लोग इस शिवलिंग को झारखंडेश्वर बाबा के नाम से भी जानते हैं. मंदिर के पुजारी ने बताया इस शिवलिंग की उत्पत्ति आज से लगभग 7000 वर्ष पूर्व यानी की द्वापर युग में हुआ था. पहले यहां बंदरगाह हुआ करता था. एक दिन रात में यहां लोगों को दिव्य ज्योति प्रकाश दिखाई पड़ी. उत्सुकता बस लोग यहां आकर देखने लगे और फिर उस जगह पर खुदाई करना शुरू किए. खुदाई करते ही यहां से जहरीली मधुमक्खियां, साप, बिच्छू आदि निकलने लगे. जो लोग खुदाई कर रहे थे वो लोग भागने लगे और पास में ही स्थित हत्तीयारवा नाले के पास जाकर वो लोग मर गए.
बढ़ रहा है इस शिवलिंग का आकार :-
 भगवान भद्रनाथ के शिवलिंग को आज तक कोई भी भक्त अपने दोनों बांहों में नहीं ले सका है. भक्त जब शिवलिंग को अपनी बांहों में लेना चाहते हैं तो शिवलिंग का आकार अपने आप बड़ा हो जाता है. पिछले कई सालों से शिवलिंग की बनावट में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है. लोगों के अनुसार शिवलिंग का आकार पहले बहुत छोटा था. लेकिन अब वह काफी बड़ा हो गया है. जब पांडवों को अज्ञातवास हुआ था तो वो लोग भी यहां आकर पूजा पाठ करते थे.
राजा को दिखा शिवलिंग :- 
बस्ती के राजा वन में शिकार खेलने गए. उन्होंने शिवलिंग को देखा तो वो उसमे मिट्टी पटवाने लगे. जैसे जैसे वो इसमें मिट्टी डलवाते वैसे वैसे शिवलिंग ऊपर आता चला गया. मन्दिर के पुजारी ने आगे बताया कि तब बस्ती राजा ने सन 1728 में प्रसादपुर गांव से हमारे पूर्वज को यहां पूजा पाठ करने के लिए भादेश्वरनाथ में लाए.
अंग्रेजों को भी पड़ा था भागना :-
इतिहासकार प्रो. बृजेश कुमार ने बताया कि ब्रिटिश शासन काल में अंग्रेज मन्दिर के आस पास के क्षेत्रों पर कब्जा करना चाहते थे. लेकिन जैसे ही अंग्रेज मन्दिर परिसर के पास पहुंचे ऐसा दैवीय प्रकोप हुआ कि कुछ लोग वही मर गए. जो मन्दिर परिसर के क्षेत्र से बाहर थे वो भाग गए. तब से कभी भी अंग्रेजों ने यहां कदम नहीं रखा.
1928 में हुआ था मन्दिर का निमार्ण :-
 वैसे तो मन्दिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है. लेकिन इस मन्दिर का जीर्णोद्धार 1928 में बस्ती सदर तहसील के महसो गांव के अयोध्या प्रसाद शुक्ल ने करवाया था. उनसे पहले भी 10-12 लोगों ने मन्दिर बनवाने की कोशिश की. लेकिन वो लोग दिन में मन्दिर बनाते थे. रात में मन्दिर गिर जाता था. फिर एक दिन भगवान शिव अयोध्या प्रसाद शुक्ल के सपनों में आए और उन्होंने उनसे मन्दिर निमार्ण कराने के लिए कहा. मान्यता था कि जो भी कोई मन्दिर बनवाएगा उसका वंश समाप्त हो जाएगा. फिर भी अयोध्या प्रसाद ने मन्दिर निमार्ण शुरू कराया. जैसे ही मन्दिर निमार्ण शुरू हुआ पहले दिन उनकी वाइफ,दूसरे दिन नाती और बेटा तीसरे दिन उनकी बहु काल कवलित हो गई. लेकिन अयोध्या प्रसाद ने मन्दिर निमार्ण बन्द नहीं कराया और अपने संकल्प को पूरा किया. बाद में वो भी मृत्यु को प्राप्त हो गए.
पूरे साल रहता है भक्तों का जमावड़ा :-
वैसे तो आपको यहां पर हर दिन भक्तों का हुजूम देखने को मिल जाएगा. लेकिन सोमवार और सावन माह में लाखों की संख्या में दूर दूर से शिवभक्त यहां आते हैं. कहते हैं कि यहां पर सच्ची श्रद्धा से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है. श्रावण मास में 50 लाख से अधिक शिवभक्त अयोध्या के सरयू नदी से और हरिद्वार के गंगा नदी से जल लाकर यहां शिवलिंग पर चढ़ाते हैं. महाशिवरात्रि में जलाभिषेक के लिए यहां भक्तों का ताता लगा रहता है. लोग दो दिन पहले ही यहां आकर जलाभिषेक के लिए लाइन लगा का खड़े हो जाते हैं.
पुरातात्विक प्रमाण :-
इसी गांव से लगा हुआ देवरनवा (देवराम घाट) गांव एक एतिहासिक गांव है। यहां नरहन प्रकार के ताम्रपाषाण कालीन संस्कृति के संस्थापक, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के वर्तमान तथा पूर्व अध्यापक डा. राकेश तिवारी तथा बी. आर मणि ने 1990 और 1995 में खोज की। बी. एच. यू. के विद्वानों ने भी 1991 में यहां एक सर्वे किया था। इसकी सतह पर नस्लों के आधार पर लाल पात्र, काले एवं लाल पात्र, काले लोहित पात्र, डोरी छापित, गेरू छापित, लाल पंक लेपिट और उत्तरी काले रंगीन पात्र परंपराओं के प्रमाण प्राप्त हुए हैं। पुराने बर्तनों के अलावा यहां हस्त निर्मित और चाक निर्मित कई स्पष्ट आकार के बर्तन पहचाने जाते हैं। औद्योगिक कलश, थाली, कूटकी हांडी विभिन्न डिजाइन और छाप से युक्त पाये गये हैं। अन्य खोजों में मिट्टी के स्टॉल के पैर, गिब्बी, थालीज़, कार्लेनियन के लटकन, शशे के क्राउन, ग्लेज़्ड ग्रीन लेपिट कांच के टुकड़े प्राप्त हुए हैं। पूर्व साक्ष्यों में पत्थरों के टुकड़े और मनके के बेकार के टुकड़े मिलने की भी पुष्टि हुई है। वर्ष 2014 में लखनऊ विश्वविद्यालय डा. डी. के. वैज्ञानिक तथा दा ए. के. चौधरी ने भी लगभग इसी तरह की कहानियां और स्टोर के पुनर्जीवन की सूचना प्रकाशित की है। इन साक्ष्यों के आधार पर देवरामा तथा भदेश्वर स्थान की बसावत द्वितीय मिलेनियम बी.सी.ई.का प्रमाण माना गया है। इस स्थान के पास ही एक प्राचीन बौद्धकालीन स्थल सिसवेनिया भी स्थित है, जिसे प्राचीन सेतवाया के रूप में पुष्टि की गई है। यहां डा. मणि ने परीक्षण के तौर पर कहा कि यह लघु उद्यम भी था। आस-पास के इन स्थानों पर भदेश्वरनाथ की महत्ता और विविधता के विभिन्न वैज्ञानिक प्रमाण मिलते हैं।
                       डा. राधे श्याम द्विवेदी 
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।) 

No comments:

Post a Comment