भगवान श्रीकृष्ण, हिंदू धर्म के प्रमुख भगवानों में से एक हैं. वे विष्णु के 8वें अवतार माने गए हैं. कन्हैया, श्याम, माधव, गोपाल, केशव, द्वारकाधीश, वासुदेव कई नामों से उनको जाना जाता है. भगवान कृष्ण का जन्म द्वापरयुग में हुआ था. महर्षि वेदव्यास की रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तृत रूप से लिखा गया है. देश भर में भगवान कृष्ण के कई मंदिर हैं. उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक कृष्णजी के खूबसूरत और विशाल मंदिर स्थापित हैं. द्वारकाधीश मंदिर, मथुरा, बांके बिहारी मंदिर, वृंदावन, द्वारकाधीश मंदिर, गुजरात,जगन्नाथ पुरी, उड़ीसा , श्रीकृष्ण मठ मंदिर, उडुपी और श्रीकृष्ण निर्वाण स्थल, गुजरात आदि प्रमुख तीर्थ स्थल हैं। इसके साथ ही साथ तीर्थ राज प्रयाग भी श्री कृष्ण के पुण्य स्थलों में माना जाता है।
त्रिवेणी संगम प्रयाग राज:-
त्रिवेणी संगम प्रयाग में मुख्य स्थानों का उल्लेख नीचे दिए गए श्लोक में किया गया है :
त्रिवेणिं माधवं सोमं भरद्वाजं च वासुकिम्।
वन्देऽक्षयवतं शेषं प्रयागं तीर्थनायकम् ॥
उपरोक्त श्लोक के अनुसार प्रयाग राज में मुख्य स्थान हैं:
1. त्रिवेणी (या त्रिवेणी संगम)
2. माधव (प्रयाग में द्वादश माधव हैं)
3. सोम (या सोमेश्वर महादेव)
4. भारद्वाज (या भारद्वाज आश्रम)
5. वासुकी (या नाग वासुकी)
6. अक्षय वट (या अक्षय वट)
7. शेष (या बलदेव या बलदाऊ)
द्वादश माधव ही प्रयागराज रहे :-
द्वादश माधव प्रयाग ब्रह्मा , विष्णु और महेश्वर का शाश्वत निवास स्थान रहा है । मत्स्य पुराण के अनुसार भगवान विष्णु बेनी माधव के रूप में प्रयाग में रहते हैं । इतना ही नहीं प्रयाग द्वादश (बारह) माधवों का भी निवास स्थान है। यहाँ पर भगवान श्रीहरि विष्णु स्वयं अधिष्ठाता के रूप मे विराजमान हैं। शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री ब्रम्हा जी ने जब गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर सृष्टि का प्रथम यज्ञ किया था तब उस यज्ञ की रक्षा का भार भगवान श्री विष्णु ने ग्रहण किया था और अपने बारह स्वरूपों-त्रिवेणी माधव, शँख माधव, सँकष्टहर माधव, वेणी माधव, असि माधव, मनोहर माधव, अनंत माधव, बिंदु माधव, पद्म माधव, गदा माधव, आदि माधव, चक्र माधव के द्वारा पूरे सौ वर्षों तक पावन यज्ञ की पवित्रता एवं सुरक्षा को अक्षुण्य रखा है।
स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्माचारी जी के अनुसार सृष्टि रचना को ब्रह्माजी ने यज्ञ के लिए त्रिकोणात्मक वेदी बनाई थी। उसे अंतर्वेदी, मध्य वेदी, बर्हिवेदी के रूप में जाना जाता है। बहिर्वेदी में झूंसी, अंतर्वेदी में अरैल व मध्यवेदी दारागंज का क्षेत्र है। हर क्षेत्र में चार-चार माधव स्थित किये गये हैं। श्रीकृष्ण को माधव भी कहा जाता है। मान्यता है कि प्रयागराज में संगम की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने 12 रूप धारण किए थे और उन्हीं रूपों में वहां विराजमान किया गया है। उन रूपों की याद में सभी 12 स्थानों पर मंदिर बने थे, जो कुछ ठीक हालत में और कुछ अब जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं।
गजकर्ण राक्षस का संहार :-
एक धार्मिक कथा के अनुसार गजकर्ण नाम के राक्षस को एक्जिमा हो गया था। नारद जी ने उसे संगम स्नान करने का परामर्श दिया। संगम स्नान करने से गजकर्ण का एक्जिमा ठीक हो गया। इसके बाद उसे लगा कि ये तीनों नदियां तो बहुत उपयोगी हैं। वह तीनों नदियों का जल पी गया। उस राक्षस से नदियों को मुक्त कराने के लिए भगवान माधव मंगलवार के दिन प्रयाग आए। दो दिन तक युद्ध चला और गुरुवार को गजकर्ण मारा गया। मगर इस दौरान गंगा और यमुना को ही छुड़ाया जा सका। सरस्वती नदी को गजकर्ण पूरी तरह पी चुका था। उसके बाद माधव भगवान 12 रूपों में प्रयाग की रक्षा के लिए यहां पर विराजमान हुए। इन्हीं रूपों की स्मृति में प्रयाग और उसके आसपास 12 मंदिर बने हुए थे, जिन्हें माधव मंदिर कहा जाता है। समय बीतने के साथ-साथ ये मंदिर जीर्ण-शीर्ण होते गए। अब इन मंदिरों के बारे में कोई बता भी नहीं पाता। इनमें से कई तो लुप्तप्राय हैं। चूंकि ग्रंथों में इन मंदिरों का उल्लेख है, इसलिए देशभर से प्रयाग आने वाले जिज्ञासु श्रद्धालु इनके वस्तुस्थिति के बारे में जानकारी खोजते रहते हैं।
भगवान ब्रह्मा के द्वारा स्थापित हुए थे द्वादश मंदिर :-
धार्मिक मान्यता है कि सृष्टि की रचना के बाद भगवान ब्रह्मा ने द्वादश (12) माधव की स्थापना प्रयागराज में की थी। कहा जाता है कि कल्पवास का आशीर्वाद और प्रयागराज के संगम में पवित्र स्नान का लाभ 12 माधव मंदिरों की परिक्रमा करने के बाद ही मिलता है ।
महर्षि भारद्वाज के निर्देशन में परिक्रमा प्रारंभ : -
त्रेतायुग में महर्षि भारद्वाज के निर्देशन में 12 माधव की परिक्रमा की जाती थी , लेकिन यह प्रथा धीरे-धीरे लुप्त हो गई। मुगल और ब्रिटिश प्रशासन के दौरान, द्वादश माधव के मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था। जिससे परिक्रमा की परंपरा भी कई बार रूकी और कई बार पुनः शुरू हुई।
1961 में दुबारा 12 माधव परिक्रमा शुरू:-
देश आजाद होने के बाद संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने विलुप्त हुए द्वादश माधव की खोज की। शंकराचार्य निरंजन देवतीर्थ ने धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के साथ 1961 में माघ मास में द्वादश माधव की परिक्रमा पुनः आरंभ कराई। संतों व भक्तों ने मिलकर तीन दिन पदयात्रा करते हुए परिक्रमा पूरी की। परिक्रमा 1987 तक चलकर फिर बंद हो गई।
1991 में तीसरी बार परिक्रमा शुरू :-
फिर तीन साल के अंतराल के बाद 1991 में टीकर माफ़ी पीठ (झूंसी) के स्वामी हरि चैतन्य ब्रह्मचारी ने परिक्रमा शुरू कराई। लेकिन अन्य धार्मिक संगठनों और प्रशासन की अज्ञानता के कारण कुछ वर्षों के बाद इसे रोक दिया गया।
कुंभ 2019 में चौथी बार द्वादश माधव परिक्रमा शुरू :-
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महासचिव महंत हरि गिरि के प्रयासों से 6 फरवरी को कुंभ 2019 में परिक्रमा फिर से शुरू की गई , जो आज भी जारी है। मत्स्य पुराण में लिखा है कि द्वादश माधव की परिक्रमा करने वाले को सारे तीर्थो व देवी-देवताओं के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है।
'द्वादश माधव' सर्किट बनाने की तैयारी :-
उत्तर प्रदेश में राम, कृष्ण और बुद्ध सर्किट के बाद अब महाकुंभ 2025 से पहले 'द्वादश माधव' सर्किट बनाने की तैयारी है. इसके तहत प्रयाग के 'द्वादश माधव' मंदिरों का कायाकल्प होगा. यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों संग बैठक में पौराणिक महत्व के 'द्वादश माधव' मंदिरों के बारे में प्रेज़ेंटेशन को मंज़ूरी दी है. इसमें , प्रयागराज के कई मंदिरों के लिए विस्तृत योजना बनी है. उत्तर प्रदेश में धार्मिक और आध्यात्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए 'द्वादश माधव' मंदिरों को महाकुंभ से पहले निखारा जाएगा. साथ ही 125 किलोमीटर लंबे 'द्वादश माधव' सर्किट की योजना पर भी काम शुरू हो चुका है।
वेणी माधव ही प्रयागराज वा उनके स्वरूप :-
वेणी माधव मंदिर के महंत ओंकार देव गिरि बताते हैं, ‘‘भगवान वेणी माधव को ही प्रयागराज कहा जाता है। वेदों में माधव मंदिर का वर्णन है। जब भगवान राम प्रयाग आए थे तब भारद्वाज मुनि के आश्रम में रुके थे।’’ इन महंत जी के पास ‘बारह माधव’ नाम से एक पुस्तिका है। जिसके लेखक आनन्द नारायण शुक्ल जी हैं जो हिन्दुस्तानी एकेडमी प्रयाग राज द्वारा 2012 से प्रकाशित हुई है।इसमें सभी 12 मंदिरों की जानकारी दी गई है। उपलब्ध विवरण के आधार पर इन बारहों माधव स्वरूपों का परिचय आगे की पंक्तियों में किया जा रहा है -
1.आदि वेणी माधव मन्दिर :-
इन 12 मंदिरों में सबसे प्रमुख है श्री आदि वेणी माधव मंदिर है। इनको मूल माधव वट माधव अक्षय माधव और आदि वेणी माधव मन्दिर नामों से भी जाना जाता है। संगम त्रिवेणी तट और अक्षय वट सहित 20 धनुष के क्षेत्र में इनकी उपस्थिति मानी जाती है। वे यहां लक्ष्मी सहित जल रूप में निवास करते हैं। यह मंदिर प्रयाग के निराला मार्ग दारागंज मुहल्ले में अरैल घाट पर वेणी (त्रिवेणी) तट पर वेणी माधव के नाम से विद्यमान है, जो प्रयागराज के मुख्य नगर देवता हैं।
श्री वेणी माधव ने तीर्थयात्रियों को बुरी शक्तियों से बचाने के लिए विभिन्न दिशाओं में बारह रूपों में स्थान लिया है। पुराणों के अनुसार, वेणी माधव (वेणी माधव) तीर्थयात्रियों से कुछ भी अपेक्षा नहीं करते हैं। वह माघ के शुभ महीने के दौरान प्रयागराज में उनके प्रवास से प्रसन्न होते हैं। वेणी माधव चार पुरुषार्थों का एक अक्षय खजाना है जिसे देवता प्रसन्न होने पर भक्तों और तीर्थयात्रियों को प्रदान करते हैं। राधा कृष्ण स्वरूप में स्थित भगवान विष्णु इंद्र और अन्य देवताओं के साथ मिलकर प्रयागराज की रक्षा करते हैं।
बाल रूप में विष्णु भगवान शिव द्वारा संरक्षित अक्षयवट के पत्तों पर शयन करते हैं। वेणी माधव बिल्कुल संगम पर अपने चतुर्भुज रूप में 'शंख' (शंख), 'चक्र' (पहिया), 'गदा' (गदा) और कमल (कमल) धारण किए हुए हैं। इनकी आराधना सकाम भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। बामन पुरान 22वें अध्याय के अनुसार भक्त प्रहलाद ने निर्मल तीर्थ में स्नान करने के बाद यमुना तीर्थ में योगदायी वेणी माधव का दर्शन किया था । इनकी आज्ञा से ऋषि भारद्वाज की गणना सप्त ऋषियों में हुई। प्रथम तीर्थ आदि वट त्रिवेणी माधव को संगम में स्थित माना जाता है। इनका साइनेज बड़े हनुमान मंदिर के पास उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लगाया जाना है।
मंदिर का इतिहास :-
वेणी माधव मंदिर 171 साल पुराना है। इतिहासकारों की माने तो इसका निर्माण श्रीमंत दौलत राव सिंधिया की पत्नी बैजा बाई साहब ने वर्ष 1835 में करवाया था। वेणी माधव मंदिर की गिनती प्रयागराज के सबसे पुराने मंदिरों में की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार बंगाल के प्रसिद्ध वैष्णवों के संत- चैतन्य महाप्रभु जी ने लंबे समय तक वेणी माधव मंदिर में तपस्या की थी। पद्म पुराण के अनुसार, यह प्रसिद्ध बंगाली गुरु प्रयाग के मुख्य देवता है। वह भगवान महा विष्णु और देवी लक्ष्मी के उत्साही भक्तों में से एक थे। वेणी माधव मंदिर प्रवेश द्वार के बायीं ओर लगे शिलालेख में उल्लेख है कि मंदिर का प्रबंधन सिंधिया देवस्थान ट्रस्ट, ग्वालियर के पास है।
मंदिर की वास्तुकला:-
वेणी माधव मंदिर की वास्तुकला बहुत सुंदर है, जो विशिष्ट मराठी वास्तुकला की एक झलक देता है। मंदिर के 'शिखर' पर नक्काशी की गई है और इसके उच्चतम बिंदु को पीतल की संरचना से सजाया गया है जो सूरज की रोशनी में चमकता है। शिखर पर सिंधिया राजवंश का प्रतीक चिन्ह (दो नागों से घिरे सूर्य की भव्य आकृति) भी उकेरा गया है। श्री कृष्ण भगवान जी की मूर्ति यहां पर श्याम रंग की है, जो बहुत ही खूबसूरत लगती है। मंदिर के मुख्य द्वार पर काले रंग का बड़ा गेट लगा है। पत्थर की सीढ़ियां गर्भगृह तक ले जाती हैं जहां श्री वेणी, माधव और गरुण की मूर्तियां हैं। मूर्तियों के पास बैजा बाई की संगमरमर की मूर्ति भी रखी हुई है। प्रवेश द्वार के ठीक ऊपर स्वर्गीय माधव राव सिंधिया की दो तस्वीरें हैं।
2. चक्र माधव मंदिर :-
वेणी माधव मंदिर के बाद चक्र माधव मंदिर का स्थान है।
प्रयाग के अग्नि कोण में अरैल में भगवान सोमेश्वर के मंदिर से यह लगा हुआ इनका पावन स्थल है। पहले यहां अग्नि देव का आश्रम था । माना जाता है कि चक्र माधव जी अपने चक्र के द्वारा भक्तों की रक्षा करते हैं। यह 14 महाविद्याओं से परिपूर्ण है। इनके दर्शन-पूजन से 14 विद्याएं प्राप्त होती हैं। भगवान माधव की यह दूसरी पीठ है।
3. गदा माधव मंदिर :-
यमुना पार के क्षेत्र में गदा माधव का प्राचीन मंदिर है। गदा माधव के रूप में विष्णु जी प्रयाग के छिवकी रेलवे स्टेशन के समीप नैनी में विराजमान हैं। मान्यता है कि वैशाख मास में इनका पूजन करने से काल का भय नहीं रह जाता। भाद्र शुक्ल की पंचमी को पूजन से कलाओं में वृद्धि होती है। इस दिन यहां विशाल मेला लगता है। इस समय यह स्थान रिक्त है। इसलिए श्रद्धालु यहां पर शयन माता के मंदिर में पूजा करते हैं। कहते हैं कि वन गमन के समय भगवान राम ने एक रात यहां पर विश्राम किया था। उसी जगह पर शयन माता का मंदिर है। यह भगवान माधव की तीसरी पीठ है।
4,.पद्म माधव मंदिर :- शहर से 25 किमी दूर यमुनापार के घूरपुर से आगे भीटा मार्ग पर बिकार कंपनी के पास छिपकली वीकर देवरिया ग्राम में भूतल से 60 फिट ऊपर ये अत्यंत प्राचीन सुजावन देव मंदिर है। बीते समय में जब यमुना जी की जलधारा परिवर्तित हुई तब यह मंदिर यमुना के बीच में आ गया। मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग से संरक्षित है। स्थानीय लोग बताते हैं कि यही मंदिर प्राचीन काल का पद्म माधव मंदिर है। यहां माधव जी लक्ष्मी जी के साथ विराजमान रहते थे । इनका दर्शन पूजन से पुत्र पौत्र आदि की प्राप्ति होती हैं। यहां चैत और कार्तिक मास में मेला लगता है। इनकी पूजा-अर्चना करने से योगियों को सिद्धि और गृहस्थों को पुत्र एवं धन-धान्य की प्राप्ति होती है। शाहजहां के सेनापति शाइस्ता खां ने इसे तोड़वा कर अष्टपहलू बैठका बनवा लिया था। बाद में हिन्दुओं ने इसे शिव मन्दिर में परिवर्तित कर लिया था। किवंदती है कि यहां यम द्वितीया पर यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने आए थे। उस समय उन्होंने बहन का हाथ पकड़कर यमुना में डुबकी लगाई थी। उस समय अपने आतिथ्य सत्कार से खुश होकर यमराज ने यमुना से वरदान मंगाने के लिए कहा था। यमुना ने वर मांगा कि भैया दूज के दिन जो भक्त यमुना स्नान करेंगे उन्हें मृत्यु का भय न रहे और देव लोक में स्थान मिले। यमराज ने कहा कि ऐसा ही होगा। इसी वजह से सुजावन देव मंदिर और यमुना तट पर मेला लगता है। लोग स्नान करके दीपदान करते हैं। यह माधव भगवान की चौथी पीठ है।
5.अनंत माधव का मंदिर :-
प्रयाग के पश्चिमी क्षेत्र दारागंज मुहल्ले में ऑर्डिनेंस पाइपलाइन और मामा-भांजा के तालाब के पास अनंत माधव का मंदिर स्थित है। दारागंज के वरुण खात देव शिखा के समीप इनका स्थान है। पहले यहां वरुण का आश्रम था। इनका दर्शन पूजन सभी कामनाओं पूर्ण करने वाला है। भगवान सूर्य और सप्तर्षि मंडल का वास भी यहां माना जाता है। मुगलकाल के पहले यदुवंशी राजा रामचंद्रदेव के पुत्र राजा श्रीकृष्णदेव के समय यह क्षेत्र उनकी राजधानी देवगिरवा के नाम से जाना जाता था। यवनों के आक्रमण से बचाने के लिए इस मंदिर के पुजारी स्वर्गीय मुरलीधर शुक्ल ने अनंत माधव भगवान की मूर्ति को अपने निजी निवास दारागंज में स्थापित कर दिया था। यह स्थान बेनी माधव की बगल वाली गली में स्थित है। यहां अनंत माधव मां लक्ष्मी जी के साथ विराजमान हैं। मुरलीधर शुक्ल के वंशज श्री नीरज लक्ष्मी जी की मूर्ति को काली जी की मूर्ति बताते है। यह माधव भगवान का पांचवां रूप है।
6.बिंदु माधव मन्दिर :-
शहर के वायव्य कोण में द्रौपदी घाट के पास सरस्वती विहार कालोनी में बिंदु माधव का निवास है। इनके पूजन से मन शांत होता है। शरीर के दोनो भौहों के मध्य आज्ञा चक्र पर स्थित होता है बिन्दु। बिंदु माधव की पूजा-अर्चना देवताओं और महर्षि भारद्वाज द्वारा भी की गई है। यह वह स्थान है जहां सप्त ऋषिगण विराजते हैं। कहा जाता है कि बिंदु माधव जी का मंदिर वहां पर था जहां पर इन दिनों लेटे हुए हनुमान जी का पौराणिक मंदिर है। यह माधव भगवान का छठा रूप है।
7.मनोहर माधव मन्दिर :-
शहर के उत्तरी भाग में मा लक्ष्मी सहित मनोहर माधव का मनोहारी विग्रह जनसेन गंज चौक में सूर्य कुण्ड अथवा सूर्य तीर्थ के निकट स्थित द्रव्येश्वर नाथ जी के मंदिर में प्रतिष्ठित हैं। मनोहर माधव अपनी पत्नी मां लक्ष्मी के साथ यहां विराजमान हैं। ऐसा कहा जाता कि इसी स्थान पर कुबेर जी महाराज का आश्रम था। किन्नर गंधर्व और अप्सराएं नृत्य गान किया करती थीं। आज भी ऐसा दृश्य परिलक्षित होता है। मनोहर मांधव जी के दर्शन से मानव धन धान्य से सम्पन्न हो जाता है। यह माधव की सातवीं पीठ है।
8.असि माधव मन्दिर :-
नगर के उत्तर पूर्व में असि माधव मंदिर प्राचीन काल मे हुआ करता था। शहर के ईशान कोण में स्थित नागवासुकी मंदिर के दक्षिण पूर्वी कोने पर असि माधव विराजते हैं। मान्यता है कि असि माधव के पूजन एवं दर्शन से समस्त उपद्रवियों का नाश होता है। ये दुष्ट दानवों से तीर्थो की रक्षा करते हैं। यह माधव का आठवां रूप है।
9.संकट हर माधव मन्दिर :-
पुरानी झूंसी के पोस्ट आफिस के पास में गंगा तट पर के हंस तीर्थ के स्थित वटवृक्ष में संकट हरन माधव का वास है। यहां पर दर्शन करने से भक्तों के संकट और पाप का हरण हो जाता है। इस पीठ की पुर्नस्थापना प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने 1931 में की थी। पुराना वट वृक्ष आज भी मौजूद है। यह उनका नौवां रूप है।आचार्य धीरज द्विवेदी "याज्ञिक" इस प्रकार कविता में कहते हैं -
प्राचीन नाम प्रतिष्ठानपुरी, वर्तमान झूंसी कहलाता है।
गंगा जी के पूर्वी तट पर, संध्या वट भी लहराता है।
इस संध्या वट के नीचे ही, पावन स्थल संकष्ठहर का।
कब्जा कर लिया गया,आधिपत्य हो गया दबंगों का।
10.आदि विष्णु माधव का मंदिर :-
आदि विष्णु माधव का मंदिर नैनी के अरैल क्षेत्र में यमुना तट पर है। इनके दर्शन पूजन से तत्काल कामना सिद्धि होती है। यह उनका 10वां रूप है।
11.आदि वट माधव मन्दिर :-
त्रिवेणी संगम मध्य में गंगा-यमुना नदी के बारे में बताया गया है। आदि वट माधव दो नदियों के संगम पर पानी के आकार में हैं। विष्णु माधव की पहचान संगम नगरी के रूप में की जाती है। यहां पर गंगा, यमुना और सरस्वती के मध्य में विष्णु जी जल रूप में विराजते हैं। यह उनका 11वां रूप है।
12.शंख माधव मन्दिर :-
प्रयाग के झूंसी के छतनाग सदाफल आश्रम मुंशी के बगीचे में शंख माधव की स्थली माना जाता है । पहले यहां चन्द्र की वाटिका थी। माघ अथवा वैसाख मास में इनका दर्शन पूजन करने से मोह माया से मुक्ति मिलती है और सभी उपद्रव शान्त होते हैं।शंख माधव की पूजा करने से आठों सिद्धियां प्राप्त होती हैं। यहां माधव 12वें रूप में विराजमान हैं।
13 .अक्षय वट माधव मंदिर
अक्षयवट मंदिर भारत के प्रयागराज में स्थित एक प्राचीन और प्रमुख हिंदू मंदिर है। इसका नाम इसके परिसर में स्थित अमर अक्षय वट वृक्ष से लिया गया है, जिसे भक्त भगवान विष्णु के स्वरूप के रूप में पूजते हैं। हिंदू धर्मग्रंथों में कहा गया है कि भगवान राम ने अपने वनवास के दौरान इस स्थल का दौरा किया था। यह मंदिर आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण संगम क्षेत्र में यमुना नदी के तट पर स्थित है। इसकी वास्तुकला में नवग्रहों सहित विभिन्न देवताओं के मंदिर हैं। अक्षयवट मंदिर हिंदू धर्म में बहुत धार्मिक महत्व रखता है क्योंकि इसका उल्लेख प्राचीन धर्मग्रंथों में मिलता है, यह किंवदंतियों से जुड़ा है, पवित्र अनुष्ठानों की सुविधा देता है और इसमें प्रमुख देवताओं के प्रतीक हैं। इसका स्थायी अस्तित्व और पवित्र स्थान इसे एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बनाता है। संक्षेप में, अक्षयवट मंदिर हिंदू धर्म की आत्मा को समाहित करता है और पूजा में अपने प्राचीन महत्व और भूमिका के कारण आस्था का एक अभिन्न अंग बना रहेगा।
यहां देवी पार्वती, भगवान गणेश, भगवान हनुमान और नव दुर्गा के लिए भी अलग-अलग मंदिर हैं। मंदिर की दीवारें भित्तिचित्रों और नक्काशी के माध्यम से रामायण और महाभारत के दृश्यों को दर्शाती हैं। विशाल प्रांगण में भक्तों और पुजारियों के लिए अनुष्ठान और प्रार्थना करने के लिए पर्याप्त जगह है। कुल मिलाकर, अक्षयवट मंदिर की वास्तुकला सरल लेकिन भव्य है, पवित्र संगम से इसकी निकटता इसके दिव्य महत्व को बढ़ाती है।
हिंदू धर्म में अक्षयवट मंदिर का महत्व:-
अमर अक्षय वट वृक्ष को स्वयं भगवान विष्णु के स्वरूप के रूप में पूजा जाता है और यह भक्तों की इच्छाओं को पूरा करता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने इस स्थल का दौरा किया था, जिससे इसे ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व मिला। संगम के तट पर मंदिर का स्थान इसे हिंदुओं के लिए आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण बनाता है, जो मानते हैं कि यहां स्नान करने से मोक्ष मिलता है।वास्तुकला और प्रमुख हिंदू देवताओं की मूर्तियाँ इसे एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बनाती हैं। अक्षय वट से संबंधित मिथकों का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है, जो इसकी पौराणिक स्थिति को बढ़ाता है। अक्षय वट के तहत अनुष्ठानों का पालन अत्यधिक शुभ माना जाता है। प्राचीन काल से इसका अस्तित्व इसे हिंदू धर्म का जीवंत प्रतीक बनाता है। इस प्रकार, शास्त्रों में अपने केंद्रीय स्थान, अनुष्ठानिक भूमिका, पवित्र स्थान और पूजा की शाखाओं के साथ, अक्षयवट मंदिर हिंदू लोकाचार और पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह सनातन धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र बना रहेगा।
संक्षेप में, प्रयागराज का अक्षयवट मंदिर हिंदुओं के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व का एक प्राचीन और पवित्र स्थल है। इसका प्रसिद्ध अक्षय वट वृक्ष, प्रमुख देवताओं की उपस्थिति, संगम पर स्थान और शास्त्रों में भूमिका इसे एक लोकप्रिय तीर्थस्थल बनाती है। यह मंदिर आध्यात्मिक सांत्वना प्रदान करता है और भक्तों को प्राचीन भारतीय विरासत से जोड़ता है। यह आने वाले वर्षों में हिंदू धार्मिक लोकाचार का एक अभिन्न अंग बना रहेगा। इस क्रम में यह 13वां माधव मंदिर कहा जा सकता है।
( तस्वीरें केवल प्रतीकात्मक हैं (सार्वजनिक डोमेन/इंटरनेट से ली गई हैं और कोई भी कॉपीराइट उल्लंघन अनजाने में और खेदजनक है।)
आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं । लेखक को अभी हाल ही में इस पावन स्थल को देखने का अवसर मिला था।)
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