आध्यात्मिक पृष्ठभूमि:-
भगवान श्रीकृष्ण, हिंदू धर्म के प्रमुख भगवानों में से एक हैं. वे विष्णु के आठवें अवतार माने गए हैं. कन्हैया, श्याम, माधव, गोपाल, केशव, द्वारकाधीश, वासुदेव कई नामों से उनको जाना जाता है . देश भर में भगवान कृष्ण के कई मंदिर हैं . उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक कृष्णजी के खूबसूरत और विशाल मंदिर स्थापित हैं. द्वारकाधीश मंदिर, मथुरा, बांके बिहारी मंदिर, वृंदावन, द्वारकाधीश मंदिर, गुजरात,जगन्नाथ पुरी, उड़ीसा , श्रीकृष्ण मठ मंदिर, उडुपी और श्रीकृष्ण निर्वाण स्थल, गुजरात आदि प्रमुख तीर्थ स्थल हैं। इसके साथ ही साथ तीर्थ राज प्रयाग भी श्री कृष्ण के पुण्य स्थलों में माना जाता है। द्वादश माधव प्रयाग ब्रह्मा , विष्णु और महेश्वर का शाश्वत निवास स्थान रहा है । मत्स्य पुराण के अनुसार भगवान विष्णु बेनी माधव के रूप में प्रयाग में रहते हैं । इतना ही नहीं प्रयाग द्वादश (बारह) माधवों का भी निवास स्थान है। यहाँ पर भगवान श्रीहरि विष्णु स्वयं अधिष्ठाता के रूप मे विराज मान हैं। शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री ब्रम्हा जी ने जब गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर सृष्टि का प्रथम यज्ञ किया था तब उस यज्ञ की रक्षा का भार भगवान श्री विष्णु ने ग्रहण किया था और अपने बारह स्वरूपों द्वारा पूरे सौ वर्षों तक पावन यज्ञ की पवित्रता एवं सुरक्षा को अक्षुण्य रखा है।
गजकर्ण राक्षस का संहार :-
एक धार्मिक कथा के अनुसार गजकर्ण नाम के राक्षस को एक्जिमा( दाद खाज चर्म रोग )हो गया था। गजकर्ण नाम का शाब्दिक अर्थ हाथी जैसी कान होता है। नारद जी ने रोग से मुक्ति के लिए उसे संगम स्नान करने का परामर्श दिया। संगम स्नान करने से गजकर्ण का एक्जिमा ठीक हो गया। इसके बाद उसे लगा कि ये तीनों नदियां तो बहुत उपयोगी हैं। वह तीनों नदियों का पूरा जल पी गया।
भगवान विष्णु को अपने भक्तों को गजकर्ण नामक राक्षस के अत्याचारों से बचाने की गोहार लगाई। उस राक्षस से नदियों को मुक्त कराने के लिए भगवान माधव मंगलवार के दिन प्रयाग आए। दो दिन तक भयंकर युद्ध करते रहे तीसरे दिन गुरुवार को भगवान विष्णु ने अपने शक्तिशाली सुदर्शन चक्र से गजकर्ण का सिर काट दिया । जैसे ही गजकर्ण जमीन पर गिरा, पवित्र नदियों का पानी उसके पेट से निकलकर अपने मूल प्रवाह में लौट आया। इस दौरान गंगा और यमुना को ही छुड़ाया जा सका। सरस्वती नदी को गजकर्ण पूरी तरह पी चुका था। तभी से सरस्वती अदृश्य हो गई ।
लोगों ने प्रयाग की रक्षा के लिए विष्णु जी को प्रयाग में ही रहने की प्रार्थना की जिसे स्वीकारते हुए वेनी माध्व के रूप में उन्होंने वही रहने के बात कही थी। उन्होंने अपने स्वरूप को विस्तारित करके 12 रूपों में प्रयाग की रक्षा के लिए अपनी आभा बढाई, जिससे इन्हीं रूपों की स्मृति में प्रयाग और उसके आसपास 12 मंदिर बने हुए थे, जिन्हें विभिन्न माधव मंदिर कहा जाता है। प्रयाग की स्थाई सुरक्षा के लिए परिक्रमा का विधान भी बनाया।
भगवान ब्रह्मा के द्वारा स्थापित हुए थे द्वादश मंदिर :-
धार्मिक मान्यता है कि सृष्टि की रचना के बाद भगवान ब्रह्मा ने द्वादश (12) माधव की स्थापना प्रयागराज में की थी। कहा जाता है कि कल्पवास का आशीर्वाद और प्रयागराज के संगम में पवित्र स्नान का लाभ 12 माधव मंदिरों की परिक्रमा करने के बाद ही मिलता है ।
महर्षि भारद्वाज के निर्देशन में परिक्रमा प्रारंभ : -
त्रेतायुग में महर्षि भारद्वाज के निर्देशन में 12 माधव की परिक्रमा की जाती थी , लेकिन यह प्रथा धीरे-धीरे लुप्त हो गई। मुगल और ब्रिटिश प्रशासन के दौरान, द्वादश माधव के मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था। जिससे परिक्रमा की परंपरा भी कई बार रूकी और कई बार पुनः शुरू हुई।
1961 में दुबारा 12 माधव परिक्रमा शुरू:-
देश आजाद होने के बाद संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने विलुप्त हुए द्वादश माधव की खोज की। शंकराचार्य निरंजन देवतीर्थ ने धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के साथ 1961 में माघ मास में द्वादश माधव की परिक्रमा पुनः आरंभ कराई। संतों व भक्तों ने मिलकर तीन दिन पदयात्रा करते हुए परिक्रमा पूरी की। परिक्रमा 1987 तक चलकर फिर बंद हो गई।
1991 में तीसरी बार परिक्रमा शुरू :-
फिर तीन साल के अंतराल के बाद 1991 में टीकर माफ़ी पीठ (झूंसी) के स्वामी हरि चैतन्य ब्रह्मचारी ने परिक्रमा शुरू कराई। लेकिन अन्य धार्मिक संगठनों और प्रशासन की अज्ञानता के कारण कुछ वर्षों के बाद इसे रोक दिया गया।
कुंभ 2019 में चौथी बार द्वादश माधव परिक्रमा शुरू :-
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महासचिव महंत हरि गिरि के प्रयासों से 6 फरवरी को कुंभ 2019 में परिक्रमा फिर से शुरू की गई , जो आज भी जारी है। मत्स्य पुराण में लिखा है कि द्वादश माधव की परिक्रमा करने वाले को सारे तीर्थो व देवी-देवताओं के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है।
'द्वादश माधव' सर्किट बनाने की तैयारी :-
उत्तर प्रदेश में राम, कृष्ण और बुद्ध सर्किट के बाद अब महाकुंभ 2025 से पहले 'द्वादश माधव' सर्किट बनाने की तैयारी है. इसके तहत प्रयाग के 'द्वादश माधव' मंदिरों का कायाकल्प होगा. यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों संग बैठक में पौराणिक महत्व के 'द्वादश माधव' मंदिरों के बारे में प्रेज़ेंटेशन को मंज़ूरी दी है. इसमें , प्रयागराज के कई मंदिरों के लिए विस्तृत योजना बनी है. उत्तर प्रदेश में धार्मिक और आध्यात्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए 'द्वादश माधव' मंदिरों को महाकुंभ से पहले निखारा जाएगा. साथ ही 125 किलोमीटर लंबे 'द्वादश माधव' सर्किट की योजना पर भी काम शुरू हो चुका है।
वेणी माधव ही प्रयागराज
वेणी माधव मंदिर के महंत ओंकार देव गिरि बताते हैं, ‘‘भगवान वेणी माधव को ही प्रयागराज कहा जाता है। वेदों में माधव मंदिर का वर्णन है। जब भगवान राम प्रयाग आए थे तब भारद्वाज मुनि के आश्रम में रुके थे।’’ इन महंत जी के पास ‘बारह माधव’ नाम से एक पुस्तिका है। जिसके लेखक आनन्द नारायण शुक्ल जी हैं जो हिन्दुस्तानी एकेडमी प्रयाग राज द्वारा 2012 से प्रकाशित हुई है।इसमें सभी 12 मंदिरों की जानकारी दी गई है।
आदि वेणी माधव मन्दिर :-
इन 12 मंदिरों में सबसे प्रमुख है श्री आदि वेणी माधव मंदिर है। इनको मूल माधव वट माधव अक्षय माधव और आदि वेणी माधव मन्दिर नामों से भी जाना जाता है। संगम त्रिवेणी तट और अक्षय वट सहित 20 धनुष के क्षेत्र में इनकी उपस्थिति मानी जाती है। विष्णु जी वेणी माधव रुप में और त्रिवेणी मा लक्ष्मी रूप में विराजित हैं। वे यहां लक्ष्मी सहित जल रूप में निवास करते हैं। यह मंदिर प्रयागराज जंक्शन से 6.8 किलोमीटर पूर्व में निराला मार्ग दारागंज मुहल्ले में अरैल घाट पर वेणी (त्रिवेणी) तट पर वेणी माधव के नाम से जाना जाता है । ये प्रयागराज के मुख्य नगर देवता भी माने जाते हैं। जिस प्रकार वाराणसी (काशी) को शिव नगरी (भगवान शिव की नगरी) कहा जाता है, उसी प्रकार प्रयागराज को विष्णु नगरी (भगवान विष्णु की नगरी) कहा जाता है। प्रयागराज के मुख्य देवता श्री वेणी माधव ने तीर्थयात्रियों को बुरी ताकतों से बचाने के लिए विभिन्न दिशाओं में बारह रूपों में स्थान लिया है। पुराणों के अनुसार, वेणी माधव (वेणी माधव) तीर्थयात्रियों से कुछ भी अपेक्षा नहीं करते हैं। वह माघ के शुभ महीने के दौरान प्रयागराज में उनके प्रवास से प्रसन्न हैं।
वेणी माधव चार पुरुषार्थों का एक अक्षय खजाना है जिसे देवता प्रसन्न होने पर भक्तों और तीर्थयात्रियों को प्रदान करते हैं। भगवान विष्णु इंद्र और अन्य देवताओं के साथ मिलकर प्रयागराज की रक्षा करते हैं। बाल रूप में विष्णु भगवान शिव द्वारा संरक्षित अक्षयवट के पत्तों पर शयन करते हैं। प्रयाग क्षेत्र की महिमा ऐसी ही है, जैसा कि पवित्र हिंदू धर्मग्रंथों में बताया गया है। वेणी माधव संगम पर अपने चतुर्भुज रूप में 'शंख' (शंख), चक्र' (पहिया), 'गदा' (गदा) और कमल (कमल) धारण किए हुए हैं।
इनकी आराधना सकाम भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। बामन पुरान 22वें अध्याय के अनुसार भक्त प्रहलाद ने निर्मल तीर्थ में स्नान करने के बाद यमुना तीर्थ में योगदायी वेणी माधव का दर्शन किया था । इनकी आज्ञा से ऋषि भारद्वाज की गणना सप्त ऋषियों में हुई।
संसार की दुर्लभ प्रतिमा है वेणी माधव:-
माघ मेले में कल्पवासियों का नियम तभी पूरा होता है जब वो अपने कल्पवास के सम्पन्न होने पर वेणी माधव का दर्शन करें. शालिग्राम शिला से बनी वेणी माधव की प्रतिमा के साथ त्रिवेणी जी की प्रतिमा भी है. त्रिवेणी जी की प्रतिमा भी माधव की तरह ही शंख चक्र धारण लिए हुए है. माधव विष्णु रूप में खड़े हैं पर त्रिवेणी जी कमल पर विराजमान हैं. कहा जाता है कि ये इस रूप में संसार की दुर्लभ प्रतिमा है जो कहीं और नहीं है.
मंदिर का इतिहास :-
वेणी माधव का वर्तमान मंदिर 171 साल पुराना है। इतिहासकारों की माने तो इसका निर्माण श्रीमंत दौलत राव सिंधिया की पत्नी बैजा बाई साहब ने वर्ष 1835 में करवाया था। वेणी माधव मंदिर की गिनती प्रयागराज के सबसे पुराने मंदिरों में की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार बंगाल के प्रसिद्ध वैष्णवों के संत- चैतन्य महाप्रभु जी ने लंबे समय तक वेणी माधव मंदिर में तपस्या की थी। पद्म पुराण के अनुसार, यह प्रसिद्ध बंगाली गुरु प्रयाग के मुख्य देवता है। वह भगवान महा विष्णु और देवी लक्ष्मी के उत्साही भक्तों में से एक थे। वेणी माधव मंदिर प्रवेश द्वार के बायीं ओर लगे शिलालेख में उल्लेख है कि मंदिर का प्रबंधन सिंधिया देवस्थान ट्रस्ट, ग्वालियर के पास है।
मंदिर की वास्तुकला :-
वेणी माधव मंदिर की वास्तुकला बहुत सुंदर है, जो विशिष्ट मराठी वास्तुकला की एक झलक देता है। मंदिर के 'शिखर' पर नक्काशी की गई है और इसके उच्चतम बिंदु को पीतल की संरचना से सजाया गया है जो सूरज की रोशनी में चमकता है।
मन्दिर के शिखर पर सिंधिया राजवंश का प्रतीक चिन्ह (दो नागों से घिरे सूर्य की भव्य आकृति) भी उकेरा गया है। श्री कृष्ण भगवान जी की मूर्ति यहां पर श्याम रंग की है, जो बहुत ही खूबसूरत लगती है। मंदिर के मुख्य द्वार पर काले रंग का बड़ा गेट लगा है। पत्थर की सीढ़ियां गर्भगृह तक ले जाती हैं जहां श्री वेणी, माधव और गरुण की मूर्तियां हैं।
मूर्तियों के पास बैजा बाई की संगमरमर की मूर्ति भी रखी हुई है। जिसके कारण बैजा बाई के नाम पर ही इस मोहल्ले का नाम पड़ा ‘बाई का बाग पड़ा है। कभी इस क्षेत्र में जंगल ही जंगल था। बाई जी के बाग के भीतर आम और अमरूद के पौधे लगे थे, जिनकी आय से मंदिर की देखरेख होती थी। बाद में जब बाग के करीब की जमीन पर अतिक्रमण होने लगा तो राजमाता सिंधिया ने मंदिर परिसर को छोड़कर बाकी जमीन बेच दी। फिलहाल मंदिर का प्रबंधन सिंधिया देवस्थान ट्रस्ट, ग्वालियर के पास है। मंदिर के रखरखाव के लिए ग्वालियर स्टेट से ही रकम आती है। प्रवेश द्वार के ठीक ऊपर स्वर्गीय माधव राव सिंधिया की दो तस्वीरें हैं।
वेणी माधव की शोभायात्रा :-
हर साल पौष पूर्णिमा पर भगवान वेणी माधव की शोभायात्रा निकाली जाती है। मान्यता है कि भगवान माघ महीने में निकलते हैं और पूरे माघ पर्व को अपना आशीष देते हैं। यह यात्रा दारागंज पक्की और कच्ची सड़क से निकाली जाती है।
डॉ राधे श्याम द्विवेदी
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं । लेखक को अभी हाल ही में इस पावन स्थल को देखने का अवसर मिला था।)
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